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Dec 02 2024

संदर्भ

महासागर कार्बन अवशोषण और ताप विनियमन द्वारा जलवायु विनियमन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

जलवायु विनियमन में महासागर की भूमिका

  • ऊष्मा अवशोषण और वितरण
    • ऊष्मा अवशोषण: महासागर मानवजनित कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन का 25% और ग्रीनहाउस गैसों द्वारा उत्पन्न अतिरिक्त तापमान का 90% से अधिक अवशोषित करके जलवायु विनियमन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

    • ऊष्मा परिवहन: महासागरीय धाराएँ, दुनिया भर में ऊष्मा का पुनर्वितरण करती हैं, मौसम के पैटर्न को प्रभावित करती हैं और तापमान चरम सीमाओं को नियंत्रित करती हैं। यह ‘वैश्विक ताप कन्वेयर बेल्ट’ अपेक्षाकृत स्थिर जलवायु को बनाए रखने में मदद करती है।
  • वायुमंडलीय गैसों का विनियमन
    • कार्बन सिंक: महासागर मानवजनित कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन का लगभग 25% अवशोषित करते हैं, जो एक महत्त्वपूर्ण कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं। यह ग्रीनहाउस प्रभाव को कम करने और जलवायु परिवर्तन को धीमा करने में मदद करता है।
    • जैव-भू-रासायनिक चक्र: समुद्री जीव वैश्विक कार्बन चक्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो वायुमंडल और महासागर के बीच कार्बन डाइऑक्साइड के आदान-प्रदान को प्रभावित करते हैं।
  • मौसम पैटर्न पर प्रभाव
    • वाष्पीकरण और वर्षा: महासागर जलवाष्प का प्राथमिक स्रोत हैं, जो मौसम प्रणालियों को ऊर्जा प्रदान करता है और वर्षा पैटर्न को प्रभावित करते हैं।
    • तूफान का निर्माण और तीव्रता: महासागरीय तापमान और धाराएँ तूफानों, जैसे चक्रवात और टाइफून के निर्माण तथा तीव्रता को प्रभावित कर सकती हैं।

महासागरीय अम्लीकरण और तापमान वृद्धि के परिणाम

  • महासागरीय अम्लीकरण से प्रवाल और शेलफिश जैसे कैल्सीफाइंग जीवों के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न होता है, जो जीवित रहने के लिए स्थिर कार्बोनेट स्तरों पर निर्भर होते हैं।
  • जल के गर्म होने से महासागरीय परिसंचरण पैटर्न परिवर्तित हो जाता है और महत्त्वपूर्ण समुद्री आवासों में ऑक्सीजन का स्तर कम हो जाता है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र और भी अधिक खतरे में पड़ जाता है।

समुद्री कार्बन डाइऑक्साइड निष्कासन (mCDR)

  • समुद्री कार्बन डाइऑक्साइड निष्कासन (mCDR) में वे विधियाँ शामिल हैं, जिनका उद्देश्य वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने की महासागर की प्राकृतिक क्षमता को बढ़ाना, ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता को कम करके जलवायु परिवर्तन को न्यून करना है।
  • mCDR उत्सर्जन में कमी का विकल्प नहीं है, लेकिन यह विश्व के शुद्ध-शून्य उत्सर्जन की ओर बढ़ने के प्रयासों को पूरक बना सकता है।
  • यदि इसे आक्रामक डीकार्बोनाइजेशन रणनीतियों के साथ जोड़ा जाए तो यह दीर्घकालिक CO₂ बोझ को संबोधित करने और तापमान को 1.5°C से नीचे बनाए रखने की क्षमता प्रदान करता है।
  • mCDR तकनीकों में शामिल हैं:
    • जैविक (प्रकृति-आधारित) समाधान: ये दृष्टिकोण प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्रों, जैसे मैंग्रोव, समुद्री घास और मैक्रोशैवाल का उपयोग करके कार्बन डाइऑक्साइड को एकत्रित करते हैं, जिसमें प्रति वर्ष 1 बिलियन टन CO₂ तक की क्षमता होती है और भंडारण अवधि सैकड़ों से हजारों वर्षों तक होती है।

    • अजैविक (इंजीनियर्ड) समाधान: तकनीकों में कार्बन पृथक्करण के लिए समुद्री भौतिक या रासायनिक गुणों का प्रत्यक्ष परिवर्तन शामिल है।
      • महासागर क्षारीयता संवर्द्धन (OAE): समुद्री जल में क्षारीय पदार्थों को मिलाकर अम्लीयता को अप्रभावी किया जाता है और प्रतिवर्ष 1-15 बिलियन टन CO₂ को संगृहीत करने में सक्षम ‘बाइकार्बोनेट’ या ‘कार्बोनेट आयनों’ का निर्माण किया जाता है।
      • समुद्र में ‘बायोमास बुरिअल’: कार्बन को अलग करने के लिए समुद्री घास या फसल के अवशेषों जैसे कार्बनिक पदार्थों को गहरे समुद्र में प्रवाहित करना। यह वार्षिक रूप से  7-22 बिलियन टन CO₂ को अलग करने में सक्षम है।
      • ओसियन आयरन फर्टिलाइजेशन (OIF): फाइटोप्लैंकटन की फसल को प्रोत्साहित करने के लिए समुद्री जल में आयरन मिलाना, जो कार्बन डाइऑक्साइड को ग्रहण करता है एवं  प्राथमिक उत्पाद को बढ़ाकर जैविक कार्बन पृथक्करण को बढ़ावा देता है।

समुद्री कार्बन डाइऑक्साइड निष्कासन (mCDR) तकनीकों के जोखिम और चुनौतियाँ

  • ओसियन आयरन फर्टिलाइजेशन (OIF): यह समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित करने, खाद्य जाल में परिवर्तन करने और गहरे जल में ऑक्सीजन के स्तर को कम करने का जोखिम उठाता है। ये व्यवधान जैव विविधता को नुकसान पहुँचा सकते हैं और समुद्री प्रणालियों के पारिस्थितिकी संतुलन से समझौता कर सकते हैं।
  • सूक्ष्म शैवालों की खेती: सूक्ष्म शैवालों की खेती, कार्बन अवशोषण के लिए एक जैविक दृष्टिकोण है, जिसमें कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने के लिए समुद्री शैवाल उगाए जाते हैं।
    • कार्बन हटाने में लाभदायक होते हुए भी, इसके कारण बड़े पैमाने पर बायोमास से समुद्री वातावरण के स्थानीय रसायन विज्ञान में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हो सकता है, जिससे संभावित रूप से अनपेक्षित पारिस्थितिकी परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं। 
  • महासागर क्षारीयता संवर्द्धन (OAE): स्केलेबिलिटी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के बावजूद, OAE समुद्री जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र पर इसके संभावित प्रभावों के बारे में महत्त्वपूर्ण चिंताएँ उत्पन्न करता है।
    • इसके अतिरिक्त, यह प्रक्रिया ऊर्जा-गहन है तथा सामग्री उत्पादन और इसके प्रयोग के लिए अक्सर व्यापक संसाधनों की आवश्यकता होती है।
  • अंशांकन और मापन में चुनौतियाँ: महासागर की विशालता और अशांति के कारण कार्बन निष्कासन का सटीक मापन और अंशांकन कठिन हो जाता है।
    • यह निर्धारित करना कि कितना कार्बन कैप्चर किया गया है और कितना संगृहीत रहता है, एक प्रमुख वैज्ञानिक और तार्किक चुनौती है, जो mCDR तकनीकों की प्रभावशीलता की निगरानी और सत्यापन करने के प्रयासों को कमजोर करता है।

हिंद महासागर में भारत की अप्रयुक्त क्षमता

  • सामरिक महत्त्व: अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से लेकर विस्तृत हिंद महासागर, महासागरीय कार्बन डाइऑक्साइड निष्कासन (mCDR) के माध्यम से जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने का एक महत्त्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करता है।
  • कार्बन पृथक्करण क्षमता
    • सावधानीपूर्वक क्रियान्वित mCDR तकनीकों के माध्यम से हिंद महासागर 25-40% महासागरीय कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर सकता है।
    • गहरी समुद्री धाराएँ, दीर्घकालिक कार्बन भंडारण के लिए प्राकृतिक मार्ग प्रदान करती हैं।
  • विविधतापूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र: समृद्ध महासागरीय जैव विविधता, जैविक समाधान (मैंग्रोव, समुद्री घास और प्रवाल भित्तियाँ) और अजैविक समाधान (क्षारीयता वृद्धि और बायोमास बुरिअल) दोनों का समर्थन करती है।

जलवायु कार्रवाई में महासागर की भूमिका को बढ़ावा देने हेतु पहल

  • समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पुनर्स्थापन: कार्बन अवशोषण और तटीय लचीलेपन को बढ़ाने के लिए मैंग्रोव, प्रवाल भित्तियों और समुद्री घासों को पुनर्स्थापित करने के कार्यक्रम।
    • उदाहरण: मैंग्रोव कार्य योजना और तटीय वनरोपण पहल।
  • ‘ब्लू इकोनॉमी’ नीति: जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को संबोधित करते हुए समुद्री संसाधनों के स्थायी उपयोग को बढ़ावा देना।
    • अपतटीय पवन और ज्वारीय ऊर्जा जैसी महासागर आधारित नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं का विकास।
  • अनुसंधान एवं विकास: समुद्री कार्बन प्रवाह की निगरानी के लिए समुद्री कार्बन कैप्चर प्रौद्योगिकियों और महासागर अवलोकन प्रणालियों में निवेश।
    • स्केलेबल mCDR समाधान विकसित करने के लिए शैक्षणिक संस्थानों और अनुसंधान संगठनों के साथ सहयोग।
  • क्षेत्रीय साझेदारियाँ: साझा जलवायु कार्रवाई लक्ष्यों को लागू करने के लिए हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA) देशों के साथ संबंधों को मजबूत करना।
    • समुद्री संरक्षण और सतत् विकास में क्षेत्रीय विशेषज्ञता का उपयोग करना।
  • ग्लोबल फ्रेमवर्क में भागीदारी: सतत् विकास के लिए संयुक्त राष्ट्र महासागर विज्ञान दशक (2021-2030) जैसी पहलों में सक्रिय भागीदारी।
    • समुद्री आधारित कार्बन निष्कासन को आगे बढ़ाने के लिए अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान परियोजनाओं पर सहयोग।
  • प्रौद्योगिकी और ज्ञान का आदान-प्रदान: तकनीकी सहायता और प्रशिक्षण के लिए mCDR तकनीकों में अनुभवी देशों (जैसे, जापान, ऑस्ट्रेलिया) के साथ साझेदारी करना।
    • समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की निगरानी के लिए उपग्रह और AI आधारित उपकरण साझा करना।

आगे की राह 

  • जागरूकता अभियान: जलवायु शमन में महासागर की महत्त्वपूर्ण भूमिका के बारे में जनता को शिक्षित करना।
  • हितधारकों की भागीदारी: समावेशी और सतत् समाधान सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय समुदायों, गैर-सरकारी संगठनों और मत्स्यपालन उद्योग के साथ सहयोग करना।
  • क्षमता निर्माण: समुद्री वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं को अत्याधुनिक mCDR प्रौद्योगिकियों और शासन ढाँचों में प्रशिक्षण प्रदान करना।
  • भविष्य की संभावनाएँ: भारत का रणनीतिक भौगोलिक लाभ, मजबूत सरकारी नीतियों और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के साथ मिलकर इसे महासागर आधारित जलवायु समाधानों में वैश्विक स्थिति प्रदान करता है।

SAREX-2024

हाल ही में भारतीय तट रक्षक (Indian Coast Guard- ICG) ने कोच्चि तट पर राष्ट्रीय समुद्री खोज एवं बचाव अभ्यास (SAREX-2024) का 11वाँ संस्करण आयोजित किया। 

SAREX-2024 का मुख्य विवरण

  • थीम: क्षेत्रीय सहयोग के माध्यम से खोज एवं बचाव क्षमताओं को बढ़ाना।
  • उद्देश्य: बड़े पैमाने पर समुद्री आकस्मिकताओं के प्रबंधन के लिए रणनीतियों के आदान-प्रदान को सुविधाजनक बनाना तथा समुद्री सुरक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग में सुधार करना।

ICG की भूमिका का महत्त्व 

  • अग्रणी समुद्री एजेंसी: भारतीय तटरक्षक बल (ICG) भारत में खोज एवं बचाव कार्यों के प्रबंधन के लिए एक प्रमुख संगठन बन गया है।
  • समुद्री सुरक्षा को बढ़ावा देना: विभिन्न हितधारकों के साथ काम करके, ICG ने समुद्र में सुरक्षा में उल्लेखनीय सुधार किया है।
  • सागर विजन का समर्थन: इसके प्रयास क्षेत्रीय सुरक्षा एवं विकास पर ध्यान केंद्रित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा तथा विकास’ (Security and Growth for All in the Region) या  सागर (SAGAR) पहल के अनुरूप हैं।
  • वैश्विक साझेदारी को मजबूत करना: ICG का योगदान भारत को अंतरराष्ट्रीय समुद्री गतिविधियों में एक विश्वसनीय एवं सक्रिय भागीदार के रूप में स्थापित करता है।

वैश्विक सहभागिता योजना (Global Engagement Scheme)

हाल ही में भारत सरकार ने भारत की सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने एवं भारत की वैश्विक छवि को बेहतर बनाने के लिए वैश्विक सहभागिता योजना (Global Engagement Scheme) शुरू की।

वैश्विक सहभागिता योजना के बारे में

  • यह संस्कृति मंत्रालय (भारत सरकार) की एक पहल है।  
  • उद्देश्य
    • अंतरराष्ट्रीय संबंधों को मजबूत करना: भारत एवं अन्य देशों के बीच लोगों-से-लोगों के बीच संबंध एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना।
    • भारत की वैश्विक छवि को मजबूत करना: भारत की विविध सांस्कृतिक परंपराओं एवं कलात्मक अभिव्यक्तियों को बढ़ावा देना।

प्रमुख गतिविधियाँ

  • भारत का त्योहार (Festival of India- FoI)
    • विभिन्न देशों में सांस्कृतिक उत्सवों का आयोजन करता है, जिनमें शामिल हैं:
      • लोक कलाएँ (संगीत, नृत्य, रंगमंच, कठपुतली)।
      • शास्त्रीय एवं पारंपरिक नृत्य।
      • समसामयिक नृत्य।
      • शास्त्रीय एवं अर्द्ध-शास्त्रीय संगीत।
      • थिएटर।
    • लोक कलाकारों सहित भाग लेने वाले कलाकारों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
    • भारत-विदेश मैत्री सांस्कृतिक समितियों को अनुदान सहायता: विदेशों में भारतीय सांस्कृतिक समाजों द्वारा आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमों एवं गतिविधियों का समर्थन करता है।
    • अनुभवी कलाकारों के लिए वित्तीय सहायता
      • उद्देश्य: 60 वर्ष एवं उससे अधिक आयु के वृद्ध तथा गरीब कलाकारों का समर्थन करना, जिन्होंने अपने क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
      • सहायता राशि: 6,000 रुपये प्रति माह तक, किसी भी राज्य कलाकार को प्राप्त पेंशन के साथ समायोजित।

नेशनल सीड कांग्रेस (National Seed Congress- NSC)

हाल ही में 13वीं ‘नेशनल सीड कांग्रेस’ (National Seed Congress- NSC), 2024 वाराणसी में आयोजित हुई।

प्रमुख घोषणाएँ

  • सीड पार्क: उत्तर प्रदेश में कृषि नेतृत्व को बढ़ावा देने के लिए 200 सीड पार्कों की योजना।
  • साथी (SATHI) पोर्टल: सीड (बीज) की गुणवत्ता का पता लगाने की क्षमता बढ़ाने एवं प्रमाणन प्रणालियों में सुधार के लिए एक पोर्टल की शुरुआत।
  • ‘राइस फालो वेबपेज’ (Rice Fallow Webpage) एवं एटलस: पूर्वी भारत में परती भूमि का मानचित्रण करने के लिए भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करने वाले उपकरण का शुभारंभ किया गया।

नेशनल सीड कांग्रेस’ (NSC) कार्यक्रम की मुख्य विशेषताएँ 

  • आयोजित: कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय (भारत सरकार)। 
  • उद्देश्य
    • बीज प्रणालियों को मजबूत करना: बीजों को अधिक सुलभ एवं किफायती बनाने के लिए नवाचार तथा साझेदारी को बढ़ावा देना।
    • किसानों को सशक्त बनाना: जलवायु प्रभावों एवं खाद्य सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए छोटे किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले बीजों तक पहुँच सुनिश्चित करना।
  • थीम: ‘बीज क्षेत्र में क्षेत्रीय सहयोग, साझेदारी और ज्ञान को बढ़ावा देना।’ (Fostering Regional Cooperation, Partnerships, and Knowledge in the Seed Sector)

वैश्विक बीज उद्योग में भारत की भूमिका

  • जैव विविधता एवं अनुसंधान का लाभ उठाना: भारत की समृद्ध जैव विविधता एवं मजबूत अनुसंधान क्षमताएँ वैश्विक बीज उद्योग में एक प्रमुख हितधारक के रूप में उभर रही हैं।
    • सरकार उच्च गुणवत्ता वाले बीज विकसित करने के लिए उन्नत प्रौद्योगिकियों एवं सार्वजनिक-निजी भागीदारी के उपयोग को बढ़ावा दे रही है, जो कीटों, बीमारियों तथा जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीले हैं।
  • सतत् कृषि पद्धतियाँ: भारत सतत् कृषि पद्धतियों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, जिसमें तिलहन एवं बाजरा जैसी जलवायु-अनुकूल फसलों की खेती शामिल है।
  • अंतरराष्ट्रीय भागीदारी: भारत बीज क्षेत्र में ज्ञान एवं प्रौद्योगिकी साझा करने के लिए अन्य देशों, विशेषकर दक्षिण एशिया के साथ सक्रिय रूप से सहयोग कर रहा है।
  • गुणवत्ता एवं सुरक्षा सुनिश्चित करना: सरकार गुणवत्ता एवं सुरक्षा मानकों को सुनिश्चित करने के लिए बीज उद्योग के लिए नियामक ढाँचे को मजबूत करने के लिए कार्य कर रही है।

कोरगा जनजाति समुदाय (Koraga Tribal Community)

केरल राजस्व विभाग ने अनुसूचित जनजाति विकास विभाग की कोष निधि के माध्यम से कासरगोड और मंजेश्वरम तालुकों में कोरगा समुदाय को भूमि का स्वामित्व (पट्टा) प्रदान करने के लिए ‘ऑपरेशन स्माइल’ (Operation Smile) शुरू किया है।

कोरगा जनजाति समुदाय के बारे में

  • पर्यावास: कोरगा जनजाति एक विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (Particularly Vulnerable Tribal Group- PVTG) है, जो कासरगोड जिले (केरल) एवं कर्नाटक में पाया जाता है।
  • PVTG स्थिति: जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा पहचानी गई; वर्तमान में, भारत में 75 PVTG समुदाय हैं।
    • वर्ष 1956 के राष्ट्रपति आदेश के तहत अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया।
  • भाषा: कोरागा मुख्य रूप से तुलु भाषा बोलते हैं,a लेकिन उनकी अपनी स्वतंत्र भाषा भी है।
  • सामाजिक संरचना: 17 बहिर्विवाही कुलों (जिन्हें बाली कहा जाता है) में विभाजित।
    • यह परिवार मातृवंशीय है, तथा वंश परंपराओं का संबंध महिला वंश से संबंधित होता है।
    • विवाह के बाद निवास पितृस्थानीय (Patrilocal) होता है।
    • संपत्ति का बँटवारा बेटों एवं बेटियों के बीच समान रूप से किया जाता है।
  • धर्म एवं विश्वास: विभिन्न भूतों (आध्यात्मिक देवताओं) जैसे- पंजुर्ली, कल्लूरती, कोराथी एवं गुलिगा के उपासक।
    • तुलु नाडु में एक अनुष्ठानिक लोक नृत्य परंपरा, भुटा कोला (Bhuta Kola) से संबद्ध।

अधिकारियों के प्रशिक्षण के लिए एकलव्य डिजिटल प्लेटफॉर्म

हाल ही में थल सेनाध्यक्ष (Chief of the Army Staff- COAS) ने भारतीय सेना के लिए “एकलव्य” उपनाम से एक ऑनलाइन शिक्षण मंच लॉन्च किया।

एकलव्य डिजिटल प्लेटफॉर्म के बारे में

  • एकलव्य डिजिटल प्लेटफॉर्म एक सैन्य प्रशिक्षण पहल है, जिसे मुख्यालय सेना प्रशिक्षण कमान के तत्त्वावधान में विकसित किया गया है, जिसमें प्रायोजक एजेंसी के रूप में ‘आर्मी वॉर कॉलेज’ है।
  • उद्देश्य: परिवर्तन के दशक (2023-2032) के तहत भारतीय सेना अधिकारियों के लिए व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण को बढ़ाना।
  • वर्ष 2024 की थीम: प्रौद्योगिकी अवशोषण का वर्ष (Year of Technology Absorption)
  • विकास: सूचना प्रणाली महानिदेशालय के सहयोग से, भास्कराचार्य राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुप्रयोग एवं भू-सूचना विज्ञान संस्थान (Bhaskaracharya National Institute of Space Applications and Geoinformatics- BISAN-N), गांधीनगर द्वारा विकसित किया गया।
    • यह स्केलेबल आर्किटेक्चर के साथ आर्मी डेटा नेटवर्क पर होस्ट किया गया है, जिससे प्रशिक्षण प्रतिष्ठानों का निर्बाध एकीकरण और विभिन्न प्रकार के पाठ्यक्रमों की मेजबानी संभव हो सकी है।
  • नॉलेज हब: एक केंद्रीकृत ‘नॉलेज हाईवे’, एक ही विंडो के तहत पत्रिकाओं, शोध-पत्रों, लेखों एवं अन्य संसाधनों के लिए खोज योग्य भंडार की सुविधा है।

महत्त्व 

  • सतत् व्यावसायिक सैन्य शिक्षा को बढ़ावा देता है।
  • समकालीन सामग्री के साथ मौजूदा भौतिक पाठ्यक्रमों को कम करना।
  • विशेषज्ञ नियुक्तियों के लिए अधिकारियों को तैयार करता है एवं डोमेन विशेषज्ञता को बढ़ावा देता है।
  • परिवर्तन के दशक एवं प्रौद्योगिकी अवशोषण के वर्ष के तहत भारतीय सेना के आधुनिकीकरण लक्ष्यों के अनुरूप।

संदर्भ

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (Competition Commission of India) ने ‘रियल मनी गेमिंग’ (Real Money Gaming- RMG) पारिस्थितिकी तंत्र में अपनी प्रमुख स्थिति के कथित दुरुपयोग के लिए गूगल के खिलाफ जाँच शुरू की है।

प्रमुख घटनाक्रम

  • CCI जाँच: CCI के महानिदेशक को दो महीने के भीतर गहन जाँच करने का कार्य सौंपा गया है।
  • विंजो (Winzo) द्वारा शिकायत: यह जाँच RMG प्लेटफॉर्म विंजो (Winzo) की शिकायत पर आधारित है, जिसमें गूगल पर भेदभावपूर्ण व्यवहार का आरोप लगाया गया है।
    • यह शिकायत गूगल द्वारा शुरू की गई एक पायलट परियोजना पर केंद्रित है, जिसने चुनिंदा रूप से कुछ डेली फैंटेसी स्पोर्ट्स (DFS) और रम्मी ऐप्स, जैसे ड्रीम 11, को अपने प्ले स्टोर पर अनुमति दी थी।

गूगल पर आरोप

  • बाजार विकृति: CCI ने चिंता जताई कि गूगल के लंबे समय से चल रहे पायलट कार्यक्रम और प्रवर्तन नीतियों में पारदर्शिता की कमी से RMG पारिस्थितिकी तंत्र में प्रतिस्पर्द्धा विकृत हो रही है।
    • इस तरह की प्रथाओं से नवाचार बाधित हो सकता है तथा छोटे उद्यमों को बाजार में प्रवेश करने में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
  • प्रभुत्वशाली स्थिति का दुरुपयोग: आरोपों में कुछ ऐप्स को सस्ते वितरण की पेशकश करके तथा अन्य पर प्रतिबंध लगाकर गूगल के प्रभुत्व का दुरुपयोग करना शामिल है।

कथित बदलाव की केस स्टडी

  • भेदभावपूर्ण पायलट कार्यक्रम: वर्ष 2022 में, गूगल ने एक वर्ष के लिए भारत में अपने प्ले स्टोर पर केवल डेली फैंटेसी स्पोर्ट्स (Daily Fantasy Sports- DFS) एवं रम्मी ऐप्स की मेजबानी का परीक्षण करने के लिए एक पायलट कार्यक्रम शुरू किया।
    • विंजो ने दावा किया कि पायलट कार्यक्रम का सीमित दायरा “अकारण” और भेदभावपूर्ण था, जिससे ड्रीम 11 जैसे प्रतिस्पर्द्धियों को बाजार में महत्त्वपूर्ण लाभ मिला।
    • पायलट कार्यक्रम के लॉन्च होने के दो महीने के भीतर ड्रीम11 को कथित तौर पर 1.7 करोड़ नए उपयोगकर्ता मिले।
  • प्रतिबंधात्मक विज्ञापन नीतियाँ: गूगल ने अपनी विज्ञापन नीति को प्रतिबंधित करते हुए केवल DFS और रम्मी ऐप्स को ही अपने प्लेटफॉर्म पर विज्ञापन देने की अनुमति दी।
    • विंजो ने तर्क दिया कि इससे गूगल के विज्ञापन टूल तक पहुँच सीमित हो गई, जिससे चुनिंदा ऐप्स को अनुचित लाभ मिला।
  • साइडलोडिंग बाधाएँ: जब उपयोगकर्ताओं ने विंजो ऐप को अपनी वेबसाइट से साइडलोड किया, तो गूगल पे ने इन-ऐप भुगतान के दौरान चेतावनियाँ प्रदर्शित कीं, जैसे:
    • “इस व्यक्ति को जोखिम भरे व्यक्ति के रूप में चिह्नित किया जा सकता है।”
    • “यह असामान्य रूप से उच्च राशि है।”
    • ये संदेश संभावित रूप से उपयोगकर्ताओं को लेन-देन पूरा करने से रोकते हैं, जिससे विंजो का व्यवसाय प्रभावित होता है।

आरोपों के विरुद्ध गूगल का बचाव

  • कानूनी परिभाषाओं में अस्पष्टता: गूगल ने भारत में ‘कौशल के खेल’ की वस्तुनिष्ठ परिभाषा के अभाव का हवाला दिया, क्योंकि इस तरह के वर्गीकरण विशिष्ट खेल प्रारूपों, विशेषताओं और नियमों पर निर्भर करते हैं।
  • खंडित गेमिंग विनियम: कंपनी ने भारत में गेमिंग कानूनों की खंडित प्रकृति पर प्रकाश डाला, जिसमें राज्यों में अलग-अलग नियम हैं।
  • आईटी मंत्रालय से लंबित नियम: गूगल ने उल्लेख किया कि IT मंत्रालय द्वारा अधिसूचित ऑनलाइन गेमिंग नियम, जिसके लिए ‘प्ले स्टोर’ जैसे प्लेटफॉर्म पर गेम को स्व-नियामक निकायों द्वारा अनुमोदित करने की आवश्यकता होती है, अभी तक पूरी तरह से लागू नहीं हुए हैं।

प्रौद्योगिकी दिग्गजों पर बढ़ती जाँच का रुझान

  • मेटा (Meta) के खिलाफ कार्रवाई: गूगल की जाँच से कुछ दिन पहले, CCI ने मेटा (व्हाट्सऐप की मूल कंपनी) पर व्हाट्सऐप की विवादास्पद वर्ष 2021 गोपनीयता नीति अपडेट के संबंध में अपनी प्रमुख स्थिति का दुरुपयोग करने के लिए 213.14 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था।
    • CCI ने मेटा एवं व्हाट्सऐप को एक निर्धारित समय-सीमा के भीतर व्यवहार संबंधी उपाय लागू करने का निर्देश दिया।
    • विज्ञापन उद्देश्यों के लिए व्हाट्सऐप के उपयोगकर्ता डेटा को अन्य मेटा कंपनियों के साथ साझा करने पर पाँच वर्ष तक प्रतिबंध लगा दिया जाएगा।
  • व्यापक अविश्वास रुझान: यह जाँच, विशेष रूप से गेमिंग एवं डेटा गोपनीयता जैसे संवेदनशील डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र में प्रतिेस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं पर तकनीकी दिग्गजों की भारत की बढ़ती जाँच को दर्शाती है।

भारतीय प्रतिेस्पर्द्धा आयोग (CCI) 

  • स्थापना: CCI की स्थापना वर्ष 2003 में हुई थी।
  • मंत्रालय: भारत सरकार के कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय के तहत कार्य करता है।
  • वैधानिक निकाय: प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 के तहत प्रतिस्पर्द्धा कानून लागू करता है।
  • पृष्ठभूमि: एकाधिकार और प्रतिबंधात्मक व्यापार व्यवहार (Monopolies and Restrictive Trade Practice- MRTP) अधिनियम, 1969 की जगह, राघवन समिति की सिफारिशों के आधार पर गठित।
  • लक्ष्य एवं उद्देश्य
    • बाजारों में प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना एवं बनाए रखना।
    • उपभोक्ता हितों की रक्षा करना एवं व्यापार की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना।
    • एक अर्द्ध-न्यायिक निकाय के रूप में कार्य करता है, वैधानिक अधिकारियों को राय प्रदान करता है एवं मामलों का निर्णय करता है।
  • संरचना: इसमें एक अध्यक्ष एवं अधिकतम छह सदस्य होते हैं।
  • CCI द्वारा जारी निर्णय एवं आदेश शामिल पक्षों पर बाध्यकारी हैं।
  • न्यायिक और अपीलीय तंत्र: CCI के निर्णयों के खिलाफ अपील सुनने के लिए प्रतिस्पर्द्धा (संशोधन) अधिनियम, 2009 के तहत प्रतिस्पर्द्धा अपीलीय न्यायाधिकरण (Competition Appellate Tribunal- COMPAT) की स्थापना की गई।
  • वर्ष 2017 में राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (National Company Law Appellate Tribunal- NCLAT) द्वारा प्रतिस्थापित।

संदर्भ

उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के स्थानांतरण के लिए सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम द्वारा की गई पाँच सिफारिशें छह माह से अधिक समय से सरकार के पास लंबित हैं।

  • यह खुलासा लोकसभा में लंबित कॉलेजियम सिफारिशों की स्थिति के बारे में पूछे गए प्रश्न के उत्तर में किया गया।

न्यायाधीशों के स्थानांतरण पर भारतीय संविधान 

  • अनुच्छेद-222 के प्रावधान: अनुच्छेद-222 के खंड (1) के तहत, एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को भारत के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श के बाद राष्ट्रपति द्वारा दूसरे उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किया जा सकता है। 
    • इस प्रावधान के तहत स्थानांतरित न्यायाधीश संसद द्वारा निर्धारित प्रतिपूरक भत्ते के हकदार हैं।
  • स्थानांतरण प्रक्रिया
    • स्थानांतरण प्रक्रिया भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा शुरू की जाती है, जिनकी सलाह ऐसे मामलों में निर्णायक होती है।
    • सिफारिश की समीक्षा उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम द्वारा की जाती है, जिसमें CJI और  उच्चतम न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं।
    • उच्च न्यायालय के स्थानांतरण के लिए न्यायाधीशों की सहमति की आवश्यकता नहीं होती है।
  • स्थानांतरण की न्यायिक समीक्षा: स्थानांतरण के मामलों में न्यायिक समीक्षा अत्यंत सीमित है, जैसा कि S.C. एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड मामले (1994) में स्थापित किया गया है।
    • किसी स्थानांतरण को केवल तभी चुनौती दी जा सकती है, जब वह भारत के मुख्य न्यायाधीश की संस्तुति के बिना किया गया हो।
    • निर्णय लेने की प्रक्रिया में बहुलता के तत्त्व के कारण पक्षपात या अन्य आधारों को बाहर रखा गया है।

कॉलेजियम प्रणाली के बारे में

  • उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम: भारत के मुख्य न्यायाधीश और उच्चतम न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों से मिलकर बना है।
    • उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम 25 उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति, स्थानांतरण और पदोन्नति की सिफारिश करने के लिए उत्तरदायी है।
    • केंद्र सरकार द्वारा इन सिफारिशों पर कार्रवाई किए जाने के बाद, राष्ट्रपति उनके कार्यान्वयन के लिए अंतिम आदेश जारी करते हैं।
  • उच्च न्यायालय कॉलेजियम: उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और उसके दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों से मिलकर बना होता है।
    • यह उच्च न्यायालयों के लिए विशिष्ट नियुक्तियों और पदोन्नति की सिफारिश करता है।

राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC)

  • न्यायिक नियुक्तियों को विनियमित करने और आयोग को सशक्त बनाने के लिए 99वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2014 के तहत NJAC की स्थापना की गई थी।
  • संरचना: इसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश (अध्यक्ष के रूप में), सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीश, केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री और दो प्रतिष्ठित व्यक्ति शामिल थे।
  • अस्वीकार: वर्ष 2015 में, सर्वोच्च न्यायालय की एक संवैधानिक पीठ ने NJAC को असंवैधानिक घोषित करते हुए निर्णय दिया कि इसने न्यायिक स्वतंत्रता को खतरे में डालकर संविधान के मूल ढाँचे का उल्लंघन किया है।

कॉलेजियम प्रणाली का विकास

  • प्रथम न्यायाधीश मामला (वर्ष 1981): यह माना गया कि भारत के मुख्य न्यायाधीश की सिफारिश को कार्यपालिका द्वारा ‘ठोस कारणों’ से अस्वीकार किया जा सकता है। 
    • न्यायिक नियुक्तियों में न्यायपालिका पर कार्यपालिका की प्रधानता स्थापित की गई।
  • द्वितीय न्यायाधीश मामला (वर्ष 1993): “परामर्श” को “सहमति” के रूप में व्याख्यायित करके कॉलेजियम प्रणाली की शुरुआत की गई। 
    • यह निर्धारित किया गया कि मुख्य न्यायाधीश की राय में संस्थागत आम सहमति को प्रतिबिंबित करना चाहिए, जो उच्चतम न्यायलय  के दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों के परामर्श से बनाई गई हो।
  • तृतीय न्यायाधीश मामला (1998): कॉलेजियम का विस्तार कर इसे पाँच सदस्यीय निकाय बना दिया गया, जिसमें मुख्य न्यायाधीश और सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल थे।
  • चतुर्थ न्यायाधीश मामला (2015): न्यायिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए कॉलेजियम प्रणाली को बरकरार रखते हुए NJAC अधिनियम, 2014 और संबंधित संवैधानिक संशोधन को रद्द कर दिया गया।

संदर्भ 

ऑस्ट्रेलिया ने 16 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए सोशल मीडिया उपयोग पर प्रतिबंध लगाकर एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया है, जिससे ऑस्ट्रेलिया की प्रशंसा, चिंता और आलोचना मिश्रित रूप से की जा रही  है।

प्रतिबंध के प्रमुख प्रावधान

  • इस प्रतिबंध को विश्व में पहली बार लागू किया गया है, जिसका उद्देश्य नाबालिगों को सोशल मीडिया से जुड़े शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य जोखिमों से बचाना है, लेकिन इसने इसकी व्यवहार्यता तथा व्यापक निहितार्थों पर भी सवाल उठाए हैं।
  • इस कानून के अंतर्गत प्लेटफॉर्म: इंस्टाग्राम, फेसबुक और टिकटॉक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को 16 वर्ष से कम आयु के बच्चो को लॉग इन करने से रोका जाना चाहिए।
    • कानून के गैर-अनुपालन के परिणामस्वरूप 49.5 मिलियन ($32 मिलियन) ऑस्ट्रेलियन डॉलर तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
  • कार्यान्वयन: प्रवर्तन के लिए एक परीक्षण चरण जनवरी माह में प्रारंभ होगा, जिसका पूर्ण कार्यान्वयन अगले वर्ष के लिए निर्धारित है।
  • पूर्ण कानून: अन्य देशों में इसी तरह के उपायों के विपरीत, जिनमें प्रायः पूर्ण प्रतिबंध के बजाय माता-पिता की सहमति की आवश्यकता होती है।

चुनौतियाँ और चिंताएँ

  • कार्यान्वयन में बाधाएँ: प्रभावी आयु सत्यापन तंत्र की आवश्यकता गोपनीयता और व्यवहार्यता के मुद्दों को जन्म देती है।
  • अनपेक्षित जोखिम: आलोचक चेतावनी देते हैं कि इस कदम से बच्चे वैकल्पिक, कम सुरक्षित ऑनलाइन प्लेटफॉर्म की तलाश करेंगे।
  • अंतरराष्ट्रीय संबंध: प्रतिबंध ने ऑस्ट्रेलिया के अमेरिका स्थित तकनीकी दिग्गजों के साथ संबंधों में तनाव उत्पन्न कर दिया है।

अन्य वैश्विक पहल

  • फ्राँस और अमेरिका: नाबालिगों को सोशल मीडिया तक पहुँचने के लिए माता-पिता की सहमति की आवश्यकता होती है, लेकिन सीधे तौर पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाए जाते।
  • फ्लोरिडा: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संबंधी चिंताओं का हवाला देते हुए 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों पर लगाए गए इसी तरह के प्रतिबंध को लेकर कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

भारत में सोशल मीडिया विनियमन

  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT Act), 2000: यह भारत में सोशल मीडिया सहित डिजिटल गतिविधियों को नियंत्रित करने वाला प्राथमिक कानून है।
  • सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021: ये नियम विशेष रूप से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को विनियमित करते हैं, उन पर विभिन्न दायित्व लागू करते हैं।
  • नियम के तहत मुख्य प्रावधान
    • शिकायत अधिकारी की नियुक्ति: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को उपयोगकर्ता की शिकायतों को दूर करने के लिए एक शिकायत अधिकारी की नियुक्ति करनी चाहिए।
    • आपत्तिजनक कंटेंट सामग्री को हटाना: प्लेटफॉर्म को ऐसे कंटेंट को हटाना होगा जो अवैध, हानिकारक या आपत्तिजनक हो।
    • संदेशों की उत्पत्ति का पता लगाने की क्षमता: प्लेटफॉर्म को सूचना के पहले स्रोत की पहचान करने में सक्षम होना चाहिए, जिससे गोपनीयता के बारे में चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
    • उचित परिश्रम: प्लेटफॉर्म को उपयोगकर्ता खातों और सामग्री की प्रामाणिकता की पुष्टि करने में उचित परिश्रम करना चाहिए।
    • पारदर्शिता रिपोर्ट: प्लेटफॉर्म को सरकार को समय-समय पर पारदर्शिता रिपोर्ट प्रस्तुत करनी चाहिए।
  • संबंधित प्राधिकारी
    • इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY): सोशल मीडिया सहित सूचना प्रौद्योगिकी से संबंधित नीतियों को तैयार करने और लागू करने के लिए जिम्मेदार प्राथमिक सरकारी निकाय।
    • साइबर अपराध जाँच प्रकोष्ठ (साइबर सेल): सोशल मीडिया से संबंधित साइबर अपराधों की जाँच करता है।
    • कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया दल (CERT-In): साइबर खतरों और कमजोरियों पर नजर रखता है और उनका उत्तर देता है।
  • विनियमन का उद्देश्य: इन विनियमों का उद्देश्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर गलत सूचना, अभद्र भाषा और अन्य हानिकारक सामग्री को नियंत्रित करने की आवश्यकता के साथ अभिव्यक्ति को संतुलित करना है।
    • हालाँकि, उन्होंने संभावित सेंसरशिप और निगरानी के बारे में भी चिंता व्यक्त की है।

आगे की राह

  • संतुलित दृष्टिकोण: ऐसे नियम लागू करना, जो बच्चों की सुरक्षा करते हुए व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सुरक्षित रखें एवं यह सुनिश्चित करना कि गोपनीयता और मुक्त भाषण से समझौता न हो।
  • प्रभावी आयु सत्यापन: डेटा सुरक्षा मानकों को बनाए रखते हुए दुरुपयोग को रोकने के लिए सुरक्षित, गोपनीयता-केंद्रित आयु सत्यापन प्रणाली विकसित करना।
  • सहयोगी नीति निर्माण: समावेशी, साक्ष्य-आधारित नीतियाँ बनाने के लिए मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों, तकनीकी कंपनियों और माता-पिता सहित हितधारकों को शामिल करना।
  • डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना: बच्चों और माता-पिता को जिम्मेदार सोशल मीडिया उपयोग के बारे में शिक्षित करने के लिए कार्यक्रम शुरू करना, उन्हें ऑनलाइन स्पेस को सुरक्षित रूप से नेविगेट करने के लिए सशक्त बनाना।

संदर्भ

अगस्त 1987 में अमेरिकी समुद्र तट ‘सिरिंज टाइड’ (Syringe Tide) से त्रस्त थे, जहाँ जर्सी तट और न्यूयॉर्क शहर के समुद्र तटों पर प्रयोग की गई सिरिंज, रक्त की शीशियाँ और शरीर के ऊतक बहकर किनारे पर आ गए थे।

‘सिरिंज टाइड’  की मुख्य विशेषताएँ

  • चिंता: फेंके गए सिरिंजों से खेलते बच्चे सार्वजनिक स्वास्थ्य की उपेक्षा का प्रतीक बन गए।
    • पर्यटन पर अत्यधिक बुरा प्रभाव पड़ा तथा आर्थिक हानि 7.7 बिलियन डॉलर तक पहुँच गई।
  • मूल कारण: कचरे की जानकारी न्यूयॉर्क शहर द्वारा अनुचित निपटान से प्राप्त की गई, जिसने खतरनाक कचरे को खराब तरीके से प्रबंधित लैंडफिल में फेंक दिया।
  • जोखिम का कारण: उभरती HIV/AIDS महामारी ने, सिरिंजों को देखकर डर का माहौल उत्पन्न कर दिया।
    • वर्ष 1983 में खोजे गए HIV/AIDS को 1980 के दशक में सीमित समझ और बड़े पैमाने पर गलत सूचना के साथ मौत की सजा के रूप में देखा गया था।
  • चिकित्सा अपशिष्ट से संबंध: HIV के साथ सीरिंज के संबंध ने जनता की चिंता को बढ़ा दिया, जिससे प्रशासन को त्वरित कार्रवाई करने पर मजबूर होना पड़ा।

बायोमेडिकल अपशिष्ट 

  • बायोमेडिकल अपशिष्ट का अर्थ कोई भी ठोस और/या तरल अपशिष्ट है, जिसमें उसका कंटेनर तथा कोई मध्यवर्ती उत्पाद शामिल है, जो मानव या पशुओं के निदान, उपचार या टीकाकरण अथवा उससे संबंधित शोध गतिविधियों या जैविक उत्पादन या परीक्षण या स्वास्थ्य शिविरों में उत्पन्न होता है।
  • संरचना: स्वास्थ्य सेवा अपशिष्ट का 85% सामान्य, गैर-खतरनाक अपशिष्ट होता है।
    • 15% खतरनाक अपशिष्ट होता है, जिसमें संक्रामक, रासायनिक, रेडियोधर्मी अपशिष्ट शामिल हैं।

न्यायिक प्रयास: डॉ. बी.एल. वढेरा मामला (1996)

  • सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली की अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली की आलोचना की और राजधानी की तुलना ‘खुले कचरे के ढेर’ (Open Garbage Dump) से की।
  • परिणाम: इस ऐतिहासिक मामले ने कचरा प्रबंधन पर राष्ट्रीय चर्चा को गति प्रदान की  और विधायी सुधारों के लिए मंच तैयार किया।

बायोमेडिकल  अपशिष्ट के प्रकार

  • संक्रामक अपशिष्ट: रक्त, शरीर के तरल पदार्थ या रोगजनकों से दूषित। 
  • रोगजनक अपशिष्ट: मानव ऊतक, अंग और तरल पदार्थ।
  • नुकीला अपशिष्ट: सुई, सीरिंज, ब्लेड और टूटा हुआ काँच।
  • रासायनिक अपशिष्ट: प्रयोगशाला अभिकर्मक, कीटाणुनाशक और भारी धातुएँ।
  • दवा और साइटोटॉक्सिक अपशिष्ट (Cytotoxic Waste): एक्सपायर हो चुकी दवाएँ और जीनोटॉक्सिक (Genotoxic) पदार्थ।
  • रेडियोधर्मी अपशिष्ट: रेडियोन्यूक्लाइड द्वारा दूषित सामग्री।
  • सामान्य अपशिष्ट: घरेलू अपशिष्ट के समान गैर-खतरनाक सामग्री।

जैविक अपशिष्ट प्रबंधन के लिए वैश्विक सम्मेलन और प्रोटोकॉल

कन्वेंशन/प्रोटोकॉल

अपनाने का वर्ष

जैविक अपशिष्ट प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करना

खतरनाक अपशिष्ट पर बेसल कन्वेंशन (Basel Convention) वर्ष 1989

जैव-चिकित्सा अपशिष्ट सहित खतरनाक अपशिष्टों की सीमापार आवाजाही को नियंत्रित करता है तथा पर्यावरण की दृष्टि से उचित प्रबंधन सुनिश्चित करता है।

जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन पर विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा-निर्देश वर्ष 2000

जैव-चिकित्सा अपशिष्ट के सुरक्षित प्रबंधन के लिए व्यापक दिशा-निर्देश प्रदान करता है, जिसमें इसके पृथक्करण, संग्रहण, परिवहन, उपचार और निपटान को शामिल किया गया है।

स्थायी कार्बनिक प्रदूषकों पर स्टॉकहोम कन्वेंशन (Stockholm Convention) वर्ष 2001

यह स्थायी कार्बनिक प्रदूषकों (POP) की समस्या पर ध्यान देता है, जिनमें से कुछ जैव-चिकित्सा अपशिष्ट में मौजूद हो सकते हैं तथा इसका उद्देश्य पर्यावरण में उनके उत्सर्जन को कम करना है।

पारे पर मिनामाटा कन्वेंशन  वर्ष 2013

इसका उद्देश्य पारे और उसके यौगिकों के नियंत्रण पर ध्यान केंद्रित करना है, जिनमें कुछ जैव-चिकित्सा अपशिष्टों में उपस्थित पारा भी शामिल है, जिसका उद्देश्य उनके उत्सर्जन को न्यूनतम करना तथा मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण की रक्षा करना है।

जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम 

  • खतरनाक कचरे का वर्गीकरण: पहली बार, अस्पताल के कचरे को आधिकारिक तौर पर जैव-चिकित्सा अपशिष्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियमों के तहत खतरनाक माना गया।
  • नियामक ढाँचा: अधिनियम ने केंद्रीय और राज्य स्तर पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को अपशिष्ट निपटान की निगरानी तथा विनियमन करने का अधिकार दिया।
  • प्रमुख अद्यतित आँकड़े
    • वर्ष 2016: अपशिष्ट प्रबंधन प्रौद्योगिकी में प्रगति को संबोधित करने के लिए व्यापक संशोधन किए गए।
    • वर्ष 2020: अनुपालन बढ़ाने के लिए मौजूदा प्रोटोकॉल में मामूली संशोधन किए गए।
  • वर्तमान प्रथाएँ: वर्तमान में, कड़े प्रोटोकॉल अस्पताल के कचरे के पृथक्करण, उपचार और जिम्मेदार निपटान को सुनिश्चित करते हैं।

जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2018 में संशोधन 

  • क्लोरीनयुक्त प्लास्टिक का चरणबद्ध तरीके से उन्मूलन: स्वास्थ्य सुविधाओं को 27 मार्च, 2019 तक क्लोरीनयुक्त प्लास्टिक बैग (रक्त बैग को छोड़कर) और दस्तानों का उपयोग समाप्त करना होगा।
  • वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशन: सभी स्वास्थ्य सुविधाओं को वर्ष 2018 के संशोधन के दो वर्षों के भीतर अपनी वेबसाइटों पर जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन पर अपनी वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित करनी होगी।
  • बार कोडिंग और GPS ट्रैकिंग: सामान्य जैव-चिकित्सा अपशिष्ट उपचार और निपटान सुविधाओं के संचालकों को 27 मार्च, 2019 तक अपशिष्ट प्रबंधन के लिए बार कोडिंग तथा GPS ट्रैकिंग लागू करनी होगी।
  • डेटा रिपोर्टिंग और विश्लेषण: राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को जैव-चिकित्सा अपशिष्ट उत्पादन, उपचार सुविधाओं और निपटान विधियों पर विस्तृत जानकारी एकत्र करनी होगी, उसका विश्लेषण करना होगा और उसे केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को प्रस्तुत करना होगा।
  • ऑन-साइट प्री-ट्रीटमेंट: स्वास्थ्य सुविधाओं को प्रयोगशाला अपशिष्ट, माइक्रोबायोलॉजिकल अपशिष्ट, रक्त के नमूने और रक्त बैग को सामान्य उपचार सुविधाओं में भेजने से पहले WHO द्वारा अनुशंसित विधियों का उपयोग करके ऑन-साइट प्री-ट्रीट करना होगा।
  • सख्त अनुपालन: गैर-अनुपालन को रोकने के लिए दंड में वृद्धि और सख्त प्रवर्तन तंत्र लागू किए गए हैं।
  • छोटे पैमाने की स्वास्थ्य सुविधाओं पर ध्यान केंद्रित करना: उचित अपशिष्ट प्रबंधन प्रथाओं को सुनिश्चित करने के लिए छोटे पैमाने की स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए विशिष्ट दिशा-निर्देश प्रस्तुत किए गए हैं।
  • हरित प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना: अपशिष्ट उपचार और निपटान के लिए पर्यावरण के अनुकूल प्रौद्योगिकियों को अपनाने को प्रोत्साहित करने के लिए प्रोत्साहन और सब्सिडी प्रदान की जा रही है।
  • अनिवार्य प्रशिक्षण: सभी स्वास्थ्य कर्मियों को बायोमेडिकल अपशिष्ट प्रबंधन प्रथाओं, जिसमें पृथक्करण, संचालन और निपटान शामिल है, पर अनिवार्य प्रशिक्षण से गुजरना होगा।

भारत की नीतियों पर वैश्विक प्रभाव 

  • HIV कनेक्शन: HIV के प्रति वैश्विक प्रतिक्रिया और अमेरिकी सुधारों ने बायोमेडिकल अपशिष्ट प्रबंधन में भारत की प्रगति को प्रभावित किया।
  • कार्यबल सुरक्षा: HIV के संबंध में जागरूकता ने चिकित्सा पेशेवरों को व्यावसायिक खतरों से बचाने के महत्त्व पर प्रकाश डाला।

जैविक अपशिष्ट प्रबंधन में चुनौतियाँ

  • असुरक्षित निपटान से स्वास्थ्य जोखिम: संपूर्ण विश्व में प्रत्येक वर्ष 16 बिलियन इंजेक्शन लगाए जाते हैं, जिनमें से कई सुइयों और सिरिंजों का अनुचित तरीके से निपटान किया जाता है।
  • जोखिमों में शामिल हैं
    • संक्रमण: असुरक्षित निपटान से HIV, हेपेटाइटिस B (30% जोखिम) और हेपेटाइटिस C (1.8% जोखिम) होता है।
    • चोटें: तीव्र आकस्मिक चोटों से स्वास्थ्य सेवा कर्मियों और अपशिष्ट संचालकों को खतरा होता है।
    • विषाक्त जोखिम: खराब अपशिष्ट प्रबंधन खतरनाक रसायनों के संपर्क में वृद्धि करता है।
  • हानिकारक उत्सर्जन: खुले में जलाने और कम तापमान पर जलाने से डाइऑक्सिन (Dioxins), फ्यूरान (Furans) और भारी धातुएँ निष्कर्षित होती हैं, जो पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए जोखिम उत्पन्न करती हैं।
  • जल प्रदूषण: खराब तरीके से प्रबंधित लैंडफिल निपटान स्थानीय जल स्रोतों को दूषित करता है।
  • प्रदूषण और रोगजनक: अनुपचारित बायोमेडिकल अपशिष्ट मृदा और वायु प्रदूषण में योगदान देता है और संक्रामक रोगों के प्रसार को बढ़ावा देता है।
  • अपशिष्ट प्रबंधन में सेवा अंतराल : वर्ष 2021 में, वैश्विक स्तर पर केवल 61% अस्पतालों में बुनियादी स्वास्थ्य सेवा अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली थी।
    • संवेदनशील परिस्थितियों में स्थिति और भी खराब है, जहाँ स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में केवल 25% अनुपालन होता है।
  • अनुपालन और विनियमन अंतराल: प्रगति के बावजूद, स्वास्थ्य सेवा अपशिष्ट विनियमन का प्रवर्तन विभिन्न क्षेत्रों में असंगत और असमान बना हुआ है। 
  • ग्रामीण और संसाधन सीमित क्षेत्रों को सुरक्षित निपटान सुनिश्चित करने में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे स्वास्थ्य और पर्यावरणीय जोखिम बढ़ जाते हैं।

भारत में जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन के लिए आगे की राह

  • ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे को मजबूत करना: जैव-चिकित्सा अपशिष्ट के सुरक्षित प्रबंधन और निपटान को सुनिश्चित करने के लिए ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में अपशिष्ट प्रबंधन सुविधाओं में निवेश करना।
    • शहरी सुविधाओं पर बोझ कम करने के लिए विकेंद्रीकृत अपशिष्ट उपचार इकाइयाँ स्थापित करना।
  • उन्नत निगरानी और प्रवर्तन: GPS और बारकोडिंग प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके उत्पादन से लेकर निपटान तक बायोमेडिकल अपशिष्ट की ‘रियल टाइम ट्रैकिंग’ के लिए डिजिटल तंत्र तैनात करना।
  • जागरूकता और प्रशिक्षण: जैव-चिकित्सा अपशिष्ट कुप्रबंधन से जुड़े जोखिमों के बारे में स्वास्थ्य सेवा कर्मियों, रोगियों और जनता के लिए व्यापक जागरूकता अभियान चलाना।
  • पर्यावरण अनुकूल प्रथाओं को प्रोत्साहित करना: जैव-चिकित्सा अपशिष्ट के उपचार के लिए ‘ऑटोक्लेविंग’ और ‘माइक्रोवेविंग’ जैसी हरित प्रौद्योगिकियों के उपयोग को बढ़ावा देना।
    • सतत् अपशिष्ट प्रबंधन समाधान अपनाने के लिए छोटे पैमाने की स्वास्थ्य सेवा सुविधाओं हेतु सब्सिडी प्रदान करना।
  • अपशिष्ट पृथक्करण पर ध्यान: स्रोत पर अपशिष्ट पृथक्करण प्रोटोकॉल का सख्त कार्यान्वयन सुनिश्चित करना, जिसमें विभिन्न श्रेणियों के अपशिष्ट के लिए अलग-अलग डिब्बे शामिल हैं।
  • सहयोगी प्रयास: प्रभावी जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं और संसाधनों को साझा करने के लिए सार्वजनिक, निजी तथा गैर-सरकारी संगठनों के बीच साझेदारी को प्रोत्साहित करना।
    • बायोमेडिकल अपशिष्ट उल्लंघनों की निगरानी और रिपोर्टिंग में स्थानीय समुदायों को शामिल करना।
  • आवधिक नीति समीक्षा: उभरती चुनौतियों का समाधान करने और अपशिष्ट प्रबंधन प्रौद्योगिकियों में प्रगति को शामिल करने के लिए मौजूदा जैव-चिकित्सा अपशिष्ट विनियमों की आवधिक समीक्षा करना।
  • अनुसंधान और विकास: पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए जहाँ संभव हो, जैव-चिकित्सा अपशिष्ट के पुनर्चक्रण और पुनःउपयोग पर ध्यान केंद्रित करते हुए अपशिष्ट उपचार और निपटान के लिए नवीन, लागत प्रभावी प्रौद्योगिकियों को विकसित करने के लिए अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना।
  • वैश्विक सहयोग: जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन में वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं से सीखना और उन्हें भारत के संदर्भ में अपनाने पर जोर देना।

संदर्भ

हालिया राज्य चुनावों में राजनीतिक दलों द्वारा प्रायः अत्यधिक अवास्तविक वादे किए जाने के कारण, विशेषकर चुनाव से पहले, अवांछनीय परिणाम सामने आए हैं।

कल्याणकारी राजनीति 

  • राजनीति में, ‘कल्याण’ से तात्पर्य सरकारी कार्यक्रमों की एक शृंखला से है, जो लोगों तथा परिवारों को बुनियादी आवश्यकताओं में सहायता करते हैं या जीवन स्तर को बनाए रखते हैं।
  • कल्याणकारी कार्यक्रमों को करदाताओं द्वारा वित्तपोषित किया जाता है तथा इनके तहत प्राप्तकर्ताओं को खाद्य टिकट, वाउचर या प्रत्यक्ष भुगतान जैसे लाभ प्रदान किए जाते हैं।
  • कल्याणकारी कार्यक्रम अक्सर निम्नलिखित सिद्धांतों पर आधारित होते हैं:
    • अवसर की समानता।
    • धन का न्यायसंगत वितरण।
    • उन लोगों के लिए सार्वजनिक जिम्मेदारी, जो अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में असमर्थ हैं।

डिजिटल युग में सामाजिक कल्याण का वितरण

  • डिजिटल युग ने सामाजिक कल्याण प्रदान करने के तरीके को बदल दिया है, जिससे दक्षता, पारदर्शिता तथा समावेशिता संभव हुई है।
  • विभिन्न देशों की सरकारें यह सुनिश्चित करने के लिए डिजिटल तकनीकों का लाभ उठा रही हैं कि कल्याणकारी योजनाएँ लक्षित लाभार्थियों तक प्रभावी रूप से पहुँचें।
  • लाभ
    • पारदर्शिता: भारत के प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म यह सुनिश्चित करते हैं कि धन सीधे लाभार्थियों तक पहुँचे, जिससे भ्रष्टाचार कम हो।
    • समावेशिता: आधार जैसी डिजिटल प्रणालियाँ भौगोलिक बाधाओं को पार करते हुए हाशिए पर पड़े समूहों के लिए सेवाओं तक पहुँच को सक्षम बनाती हैं।
    • दक्षता: मनरेगा की तरह स्वचालन, समय पर और सटीक लाभ वितरण सुनिश्चित करता है।
    • डेटा-संचालित नीति: वास्तविक समय आधारित डेटा संग्रह, कल्याण प्रभावों का आकलन करने और उन्हें बेहतर बनाने में सहायता करता है।
    • पहुँच में आसानी: ऐप और ऑनलाइन पोर्टल आवेदन प्रक्रिया को सरल बनाते हैं, जैसा कि पीएम- किसान जैसी योजनाओं में देखा गया है।

कल्याणकारी राजनीति बनाम पहचान की राजनीति

पहलू कल्याणकारी राजनीति पहचान की राजनीति
केंद्र सामाजिक-आर्थिक आवश्यकताएँ तथा गरीबी कम करना। साझा सांस्कृतिक/पहचान चिह्नों (जैसे, जाति, धर्म, लिंग) पर आधारित राजनीतिक लामबंदी।
दृष्टिकोण समावेशी, आर्थिक पिछड़ेपन को लक्ष्य बनाना। समूह-विशिष्ट, विशिष्ट पहचान की मान्यता को प्राथमिकता देना।
संसाधनों का आवंटन आर्थिक स्थिति (गरीबी, बेरोजगारी, आदि) के आधार पर। पहचान श्रेणियों (जाति, धर्म, नृजातीयता) के आधार पर।
चुनावी रणनीति आर्थिक राहत के चुनावी वादे (जैसे- नकद हस्तांतरण, सब्सिडी)। समूह पहचान तथा अधिकारों के संरक्षण के आधार पर समर्थन जुटाना।
सामाजिक एकता पर प्रभाव सार्वभौमिक आवश्यकताओं पर ध्यान केंद्रित करके विविध समूहों को एकजुट किया जा सकता है। समूह मतभेदों पर जोर देकर सामाजिक विभाजन को गहरा कर सकता है।
दीर्घावधि बनाम अल्पावधि दीर्घकालिक संरचनात्मक विकास पर ध्यान केंद्रित करता है। दीर्घकालिक संरचनात्मक विकास पर ध्यान केंद्रित करता है।
नीतिगत चुनौतियाँ कुशल लक्ष्यीकरण, वित्तपोषण और भ्रष्टाचार से बचना। प्रतिेस्पर्द्धी समूह हितों में संतुलन बनाए रखना तथा अन्य समूहों के बहिष्कार या अलगाव से बचना।

कल्याणकारी राज्य 

  • कल्याणकारी राज्य एक सरकारी अवधारणा है, जहाँ राज्य अपने नागरिकों के सामाजिक तथा आर्थिक कल्याण के लिए जिम्मेदार होता है।
  • भारत में कल्याणकारी राज्य की विशेषताएँ
    • मौलिक अधिकार: ये सभी भारतीय नागरिकों को नागरिक स्वतंत्रता और बुनियादी अधिकारों की गारंटी देते हैं, जैसे कि बोलने की स्वतंत्रता, धर्म की स्वतंत्रता तथा कानून के समक्ष समानता।
    • राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत: ये संविधान के भाग IV में शामिल किए गए हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भारत के लोग सामाजिक और आर्थिक अधिकारों तक पहुँच सकें।
      • अनुच्छेद-38: इस अनुच्छेद में कहा गया है कि राज्य को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय से प्रेरित सामाजिक व्यवस्था सुनिश्चित करके लोगों के कल्याण को बढ़ावा देने का प्रयास करना चाहिए।
    • समाजवाद (Socialism): सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि भारत में “समाजवाद” का तात्पर्य “सामाजिक कल्याणकारी राज्य” है

कल्याणकारी योजनाओं में केंद्र तथा राज्य सरकारों की भूमिका

भारत में केंद्र और राज्य सरकारें कल्याणकारी योजनाओं में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं तथा उनकी जिम्मेदारियों को विभिन्न प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है।

  • केंद्रीय क्षेत्र की योजनाएँ (CSS)
    • इनका पूर्ण वित्तपोषण तथा क्रियान्वयन केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है तथा इसमें राज्य सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता।
    • केंद्र सरकार ही संपूर्ण लागत वहन करती है तथा क्रियान्वयन का प्रबंधन करती है।
    • उदाहरण: राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), उज्ज्वला योजना तथा प्रधानमंत्री -किसान केंद्रीय क्षेत्र की योजनाएँ हैं।
  •  केंद्रीय प्रायोजित योजनाएँ (CSS)
    • इन योजनाओं को केंद्र तथा राज्य सरकारें मिलकर वित्तपोषित करती हैं। 
    • केंद्र सरकार एक निश्चित प्रतिशत धनराशि उपलब्ध कराती है और बाकी धनराशि राज्य सरकारें देती हैं।
      • आमतौर पर, केंद्र सरकार 60% का भुगतान करती है और राज्य सरकार 40% का भुगतान करती है। 
      • पूर्वोत्तर राज्यों, जम्मू और कश्मीर और विशेष श्रेणी के राज्यों जैसे कुछ क्षेत्रों में, केंद्र सरकार 90% का भुगतान कर सकती है, जबकि राज्य सरकार 10% का भुगतान करती है।
    • कार्यान्वयन में राज्य सरकारों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
    • उदाहरण: महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA), राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (RSBY), और मध्याह्न भोजन योजना।
  • राज्य-विशिष्ट योजनाएँ
    • इन्हें पूरी तरह से राज्य सरकारों द्वारा डिजाइन और वित्तपोषित किया जाता है, जो राज्य के भीतर आबादी की विशिष्ट आवश्यकताओं को लक्षित करते हैं।
    • केंद्र सरकार वित्तीय सहायता प्रदान कर सकती है या नहीं भी कर सकती है।
    • उदाहरण: कर्नाटक की गृह लक्ष्मी योजना, तेलंगाना की रायथु बंधु (किसान कल्याण योजना), तथा दिल्ली की मुख्यमंत्री तीर्थ यात्रा योजना।

भारत में सामाजिक संरक्षण और कल्याण की राजनीति

मानव अधिकार के रूप में सामाजिक सुरक्षा

  • संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार घोषणा-पत्र द्वारा मान्यता प्राप्त है तथा अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की वर्ष 2012 की अनुशंसा द्वारा सभी राष्ट्रों के लिए ‘सामाजिक सुरक्षा स्तर’ स्थापित करने पर बल दिया गया है।
  • भारत सामाजिक सुरक्षा पर अपेक्षाकृत कम खर्च करता है, जैसा कि ILO की विश्व सामाजिक सुरक्षा रिपोर्ट, 2022 में बताया गया है। अनौपचारिक रोजगार भारत के कार्यबल का 90% हिस्सा है, जिससे कमजोरियों को दूर करने के लिए सामाजिक सुरक्षा महत्त्वपूर्ण हो जाती है।
  • सामाजिक सुरक्षा का विस्तार
    • प्रारंभिक अनिच्छा के बावजूद, राजनीतिक-आर्थिक विचारों से प्रभावित होकर सामाजिक सुरक्षा उपायों का लगातार विस्तार हुआ है।
    • सामाजिक कल्याण व्यय 2017- 2018 में GSDP के 1.2-1.3% से बढ़कर वर्ष 2022- 2023 में 11 राज्यों में लगभग 1.6% (क्रिसिल रिपोर्ट, 2023) हो गया।
  • महिला-केंद्रित कल्याण योजनाएँ
    • महिला-केंद्रित योजनाएँ भारत की कल्याणकारी संरचना का केंद्र बनती जा रही हैं। उदाहरणों में शामिल हैं:
      • दिल्ली और हिमाचल: महिलाओं के लिए नकद हस्तांतरण योजनाएँ।
      • तमिलनाडु: कलैगनार मगलिर उरीमाई योजना (21 वर्ष से अधिक आयु की महिलाओं के लिए 1,000 रुपये प्रति माह, जिनकी घरेलू आय 2.5 लाख रुपये से कम) है।
      • मध्य प्रदेश: लाडली बहना योजना (गरीब महिलाओं के लिए 1,250 रुपये प्रति माह)।
      • कांग्रेस शासित राज्य: महालक्ष्मी (तेलंगाना) तथा गृह लक्ष्मी (कर्नाटक) कार्यक्रम।
    • महिलाओं को नकद हस्तांतरण से आर्थिक और सामाजिक लाभ सिद्ध हुए हैं, जिनमें घरेलू उपभोग में सुधार और संभावित सशक्तीकरण शामिल हैं।
  • राजनीतिक कल्याण योजनाओं का विकास
    • केंद्र सरकार ने शुरू में कल्याण विस्तार का विरोध किया (जैसे, मनरेगा का विरोध)। हालाँकि
      • वर्ष 2019: किसानों के लिए पीएम-किसान आय हस्तांतरण योजना शुरू की गई।
      • वर्ष 2020: कोविड-19 महामारी के दौरान, मनरेगा और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना का विस्तार किया गया।
      • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत 800 मिलियन परिवारों को मुफ्त अनाज वितरण जारी है।
  • राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा तथा कल्याण स्थिरता में रुझान
    • उच्च राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा वाले राज्य (जैसे- राजस्थान, छत्तीसगढ़) मौजूदा कल्याणकारी योजनाओं को जारी रखते हैं या उनमें संशोधन करते हैं, जिससे स्थिरता सुनिश्चित होती है।
    • कम राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा वाले राज्य (जैसे- गुजरात) नए कार्यक्रम शुरू करने में कम सक्रिय हैं।
  • सामाजिक सुरक्षा ढाँचे में चुनौतियाँ
    • अधिकांश योजनाओं को कानूनी समर्थन का अभाव है तथा वे प्रकृति में प्रशासनिक हैं।
      • उदाहरण: महिलाओं की आय हस्तांतरण योजनाएँ अक्सर पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण को दर्शाती हैं, जो पुरुष-प्रधान परिवारों में महिलाओं को निष्क्रिय लाभार्थी के रूप में मानती हैं।
    • कानूनी गारंटी का अभाव ऐसी योजनाओं की स्थिरता के बारे में चिंताएँ पैदा करता है।
    • कम राजनीतिक प्रभाव वाले समूह (जैसे- बहुत युवा और बुजुर्ग) मौजूदा सुरक्षा से वंचित हो रहे हैं।

कल्याणकारी राजनीति के प्रमुख मुद्दे

  • लोक-लुभावनवाद का प्रलोभन
    • राजनेता प्रायः गरीबों से अत्यधिक वादे करके वोट प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
    • गरीबी में जनसांख्यिकीय बदलाव आया है:
      • वर्ष 1990 में, 90% गरीब लोग कम आय वाले देशों में रहते थे।
      • वर्तमान में, 75% गरीब लोग मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं, जिससे उच्च जीवन स्तर की माँग बढ़ गई है।
  • कल्याणकारी राज्य तथा मुफ्त सुविधाएँ
    • भारतीय राज्यों में राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव पूर्व किए गए वादे रेवड़ी संस्कृति को बढ़ावा देते हैं, जिसमें मुफ्त गैस सिलेंडर, स्मार्टफोन, महिलाओं के लिए स्कूटर, नकद हस्तांतरण में वृद्धि, कृषि ऋण माफी, मुफ्त भोजन के पैकेट और किसानों के लिए मुफ्त बिजली शामिल हैं।
      • रेवड़ी संस्कृति एक शब्द है, जिसका प्रयोग चुनाव प्रचार के दौरान मतदाताओं को मुफ्त उपहार वितरित करने के लिए किया जाता है।
  • वितरण में चुनौतियाँ
    • संसाधनों की महत्त्वपूर्ण कमी के कारण इन वादों को पूरा करना अस्थायी हो गया है।
    • उदाहरण के लिए, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक को कल्याणकारी योजनाओं के अति-वादों के कारण चुनावों के बाद वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा।
  • लक्ष्यीकरण समस्याएँ
    • बहिष्करण त्रुटियों के परिणामस्वरूप वास्तविक गरीब लोग कल्याणकारी कार्यक्रमों से बाहर रह जाते हैं।
    • समावेशन त्रुटियों के कारण गरीबी रेखा से बाहर के व्यक्तियों को अनावश्यक रूप से लाभ मिलता है, जिससे सीमित संसाधनों पर दबाव पड़ता है।
    • सब्सिडी का स्वैच्छिक परित्याग अप्रभावी सिद्ध हुआ है; उदाहरण के लिए, सरकार की अपील के बावजूद वर्ष 2021 में 247.2 मिलियन LPG ग्राहकों में से केवल 10.3 मिलियन ने ही सब्सिडी छोड़ी।

मुफ्त सुविधाएँ बनाम कल्याणकारी कार्यक्रम

पहलू

मुफ्त सुविधाएँ 

(Freebies)

कल्याणकारी कार्यक्रम 

(Welfare Programs)

परिभाषा

गैर-आवश्यक, प्रायः अनियोजित या अत्यधिक दान, जिसका उद्देश्य वोट या अल्पकालिक लाभ आकर्षित करना होता है।

नियोजित, लक्षित सामाजिक कार्यक्रम जिनका उद्देश्य दीर्घकालिक सामाजिक-आर्थिक परिणामों में सुधार करना है।

उद्देश्य

मुख्यतः राजनीतिक, समर्थन प्राप्त करने या चुनाव जीतने के लिए।

सामाजिक न्याय और गरीबी उन्मूलन, जिसका उद्देश्य बुनियादी आवश्यकताओं और सेवाओं को उपलब्ध कराना है।

लक्ष्य निर्धारण

प्रायः ये वास्तविक जरूरतमंदों को उचित रूप से लक्षित किए बिना सार्वभौमिक या व्यापक आधार पर होते हैं।

विशिष्ट कमजोर समूहों (जैसे गरीब, महिलाएँ, बच्चे, बुजुर्ग) को लक्ष्य करने के लिए डिजाइन किया गया।

स्थिरता

सीमित वित्तीय संसाधनों के कारण यह आमतौर पर लंबे समय तक स्थायी नहीं होता है।

सामान्यतः इसे दीर्घकालिक सरकारी योजना और बजट के माध्यम से टिकाऊ बनाया जाता है।

राजकोषीय प्रभाव

इससे सरकारी वित्त पर दबाव पड़ सकता है, जिससे राजकोषीय घाटा बढ़ सकता है।

करों, सरकारी राजस्व और सावधानीपूर्वक बजट आवंटन के माध्यम से वित्तपोषित।

कार्यान्वयन

इसे प्रायः संस्थागत समर्थन या कानूनी समर्थन के बिना शीघ्रता से क्रियान्वित और वापस लिया जा सकता है।

लगातार वितरण के लिए बुनियादी ढाँचे, योजना और कानूनी समर्थन की आवश्यकता होती है।

सामाजिक प्रभाव

इससे निर्भरता बढ़ सकती है तथा सामाजिक मूल्य या कार्य नैतिकता कमजोर हो सकती है।

आत्मनिर्भरता को प्रोत्साहित करता है, सेवाओं तक पहुँच में सुधार करता है तथा सामाजिक गतिशीलता को बढ़ावा देता है।

राजनीतिक प्रेरणाएँ चुनावी लाभ और वोट बैंक की राजनीति से प्रेरित।

संरचनात्मक असमानताओं को दूर करने और सामाजिक कल्याण में सुधार करने की इच्छा से प्रेरित।

उदाहरण

चुनाव के दौरान मुफ्त बिजली, मुफ्त स्मार्टफोन, मुफ्त गैस सिलेंडर।

मनरेगा, NFSA (राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम), प्रधानमंत्री आवास योजना।

जवाबदेही एवं पारदर्शिता कार्यान्वयन में प्रायः पारदर्शिता या जवाबदेही का अभाव रहता है।

इसमें जवाबदेही, निगरानी और कार्यनिष्पादन मूल्यांकन की प्रणालियाँ हैं, हालाँकि चुनौतियाँ बनी हुई हैं।

कल्याणकारी राजनीति के अनपेक्षित परिणाम

  • भ्रष्टाचार एवं कालाबाजारी
    • सब्सिडी वाली वस्तुओं और सेवाओं की कमी से ऐसे वातावरण का निर्माण होता है, जहाँ रिश्वत, कमीशन भुगतान और कालाबाजारी की प्रथाएँ पनपती हैं।
    • नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (NIPFP) द्वारा वर्ष 2016 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत वितरित किए जाने वाले लगभग 40% खाद्यान्न की कालाबाजारी की गई
  • विकृत प्रोत्साहन
    • निहित स्वार्थों तथा कालाबाजारी की माँग से प्रेरित होकर राजनेताओं को और भी अधिक अत्यधिक वादे करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।
    • हिमाचल प्रदेश में सत्तारूढ़ सरकार ने वर्ष 2022 के राज्य चुनावों से पहले किसानों को मुफ्त बिजली और महिलाओं को नकद हस्तांतरण का वादा किया था। इससे वित्तीय संकट पैदा हो गया और राज्य समय पर भुगतान करने में अपने दायित्वों को पूरा करने में विफल रहा है।
  • उत्पादक निवेश पर प्रभाव
    • असंवहनीय कल्याणकारी कार्यक्रमों पर अत्यधिक व्यय से शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और बुनियादी ढाँचे जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों से संसाधन हट जाते हैं।
    • तेलंगाना में सरकार ने किसानों को प्रत्यक्ष आय सहायता प्रदान करने वाली योजना ‘रयथु बंधु’ की शुरुआत की, जिसके कारण महत्त्वपूर्ण सेवाओं में लंबित कार्यों की समस्या उत्पन्न हो गई।
  • राजनीति में विश्वास का क्षरण
    • वादों और क्रियान्वयन के बीच लगातार अंतराल से राजनीतिक दलों में जनता का विश्वास समाप्त हो रहा है।
    • विश्वास की यह कमी, ईमानदार शासन प्रयासों की विश्वसनीयता को कमजोर करती है।
    • हिमाचल प्रदेश (वर्ष 2024) में, सत्तारूढ़ दल द्वारा महिलाओं को मुफ्त बिजली और नकद हस्तांतरण जैसे महत्त्वाकांक्षी वादे करने के बाद, राज्य को वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और इनमें से कई वादे अधूरे रह गए।

केस स्टडीज

  • हिमाचल प्रदेश
    • चुनावों के दौरान अत्यधिक कल्याणकारी वादे करने के बाद राज्य को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा।
    • मंत्रियों को दो महीने तक अपना वेतन नहीं मिला और सरकार ने कुछ कल्याणकारी योजनाओं को वापस लेने पर विचार किया।
    • सेली हाइड्रो इलेक्ट्रिक पॉवर कंपनी को बकाया राशि का भुगतान न करने के मामले में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने नई दिल्ली में हिमाचल भवन को संभावित नीलामी के लिए कुर्क करने का आदेश दिया।
  • कर्नाटक और तेलंगाना
    • इन राज्यों में, वादों में मुफ्त बस यात्रा, बिजली, सब्सिडी वाले गैस सिलेंडर और वरिष्ठ नागरिकों के लिए पेंशन शामिल थे।
    • चुनाव के बाद, राजकोषीय तनाव ने इन वादों को पूरा करना जटिल बना दिया है।

आर्थिक तथा प्रशासनिक चिंताएँ

  • वित्तीय तनाव
    • प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना जैसे कार्यक्रम, जो 2 ट्रिलियन रुपये की वार्षिक लागत पर 810 मिलियन लोगों को मुफ्त खाद्यान्न प्रदान करते हैं, सार्वभौमिक बुनियादी आय योजनाओं से मिलते-जुलते हैं।
    • ऐसे कार्यक्रम राजकोषीय संसाधनों पर दबाव डालते हैं, जिससे दीर्घकालिक समावेशी विकास के लिए आवश्यक पूँजीगत व्यय के लिए बहुत कम धन बचता है।
  • गरीबों की पहचान करने में कठिनाई
    • अनौपचारिक क्षेत्र का प्रभुत्व आय आकलन को चुनौतीपूर्ण बनाता है।
    • केवल 100 मिलियन करदाताओं के साथ, गरीबों की सही पहचान करने के लिए आयकर डेटा अपर्याप्त है।

आगे की राह

  • लक्षित कल्याण तंत्र
    • कल्याणकारी कार्यक्रमों को इस तरह से डिजाइन किया जाना चाहिए कि वे उन लोगों की सही पहचान कर सकें और उन्हें लाभ पहुँचा सकें, जिन्हें वास्तव में उनकी जरूरत है।
    • बहिष्करण संबंधी त्रुटियों से बचने और समावेशन संबंधी त्रुटियों को रोकने के बीच संतुलन होना चाहिए।
  • राजकोषीय अनुशासन
    • राजनीतिक दलों को विशेष रूप से चुनावों के दौरान अवास्तविक और असंतुलित वादे करने से बचना चाहिए।
    • संसाधन-कुशल और प्रभावशाली कल्याणकारी पहलों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।
  • जन जागरूकता
    • अभियान के तहत गैर-गरीब लाभार्थियों को स्वैच्छिक रूप से सब्सिडी छोड़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। 
      • उदाहरण के लिए, प्रधानमंत्री मोदी द्वारा LPG सब्सिडी छोड़ने की सार्वजनिक अपील को मजबूत करने की आवश्यकता है।
  • उत्तरदायी शासन व्यवस्था
    • जनता का विश्वास जीतने के लिए सेवा वितरण में भ्रष्टाचार और अक्षमताओं को संबोधित किया जाना चाहिए।
    • शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और बुनियादी ढाँचे जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में निवेश को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

निष्कर्ष

हालाँकि कल्याणकारी योजनाओं ने सामाजिक सुरक्षा को बढ़ाया है, उनकी प्रशासनिक प्रकृति और कानूनी गारंटी की कमी स्थिरता के लिए चुनौतियाँ पेश करती है। कमजोर समूहों की समावेशिता, स्थिरता और दीर्घकालिक सशक्तीकरण सुनिश्चित करने के लिए एक संतुलित, कानूनी रूप से समर्थित ढाँचा आवश्यक है।

संदर्भ

हाल ही में केंद्र ने ‘पूँजी निवेश के लिए राज्यों को विशेष सहायता’ (Special Assistance to States for Capital Investment-SASCI) के तहत पर्यटन स्थलों और बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए 23 राज्यों में पहचानी गई 40 नई परियोजनाओं हेतु राज्यों को 3,295 करोड़ रुपये के ब्याज मुक्त ऋण को मंजूरी दी है।  

‘पूँजी निवेश के लिए राज्यों को विशेष सहायता’ (Special Assistance to States for Capital Investment-SASCI)

  • इसे कोविड-19 महामारी से उत्पन्न आर्थिक चुनौतियों के जवाब में वर्ष 2020-21 में लॉन्च किया गया था।
  • उद्देश्य: राज्यों को 50 वर्षीय ब्याज-मुक्त ऋण प्रदान करना, जिससे वे महत्त्वपूर्ण पूँजी निवेश कर सकें।

योजना की मुख्य विशेषताएँ

  • सिद्धांत: यह योजना गुणक प्रभाव के सिद्धांत पर आधारित है, जहाँ यह माना जाता है कि पूँजीगत व्यय के रूप में खर्च किए गए प्रत्येक ₹1 का परिणाम ₹3 के बराबर होगा।
  • पूँजी निवेश क्षेत्र: स्वास्थ्य, शिक्षा, सिंचाई, जलापूर्ति, बिजली, सड़क, पुल और रेलवे में परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है।
  • फोकस क्षेत्र: योजना के तहत लक्षित प्रमुख क्षेत्रों में शामिल हैं:
    • व्हीकल स्क्रैपेज नीति: पुराने, प्रदूषणकारी वाहनों को हटाने के लिए प्रोत्साहन देना।
    • शहरी नियोजन सुधार: शहरों में शासन और बुनियादी ढाँचे को बढ़ाना।
    • पुलिस कर्मियों के लिए आवास: सुरक्षा बलों के लिए बेहतर रहने की स्थिति सुनिश्चित करना।
    • यूनिटी मॉल परियोजनाएँ: इन सांस्कृतिक केंद्रों के विकास के माध्यम से राष्ट्रीय एकीकरण को बढ़ावा देना।
    • पुस्तकालय: शैक्षणिक पहुँच में सुधार के लिए पंचायत और वार्ड स्तर पर डिजिटल पुस्तकालयों की स्थापना करना।
  • राष्ट्रीय परियोजनाओं के लिए समर्थन
    • यह योजना महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचा पहलों के कार्यान्वयन में तेजी लाने में मदद करती है, जैसे:
      • जल जीवन मिशन (जल आपूर्ति)।
      • प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (ग्रामीण सड़क कनेक्टिविटी)।

SASCI के तहत वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित पर्यटन केंद्रों के विकास के बारे में

  • कार्यान्वयन
    • राज्यों को 50 वर्ष की अवधि के लिए ऋण प्रदान किया जाएगा और यह ब्याज मुक्त होगा।
    • परियोजनाओं के लिए भूमि उपलब्ध कराने, उन्हें लागू करने और पूरा होने के बाद उनके संचालन का प्रबंधन करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है।
    • सभी परियोजनाओं को दो वर्ष की समय सीमा के भीतर पूरा किया जाना चाहिए। राज्य सरकार परियोजना के संचालन और रखरखाव के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार है, संभवतः सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मोड के माध्यम से।
  • निधि वितरण
    • व्यय विभाग पहली किस्त के रूप में 66% धनराशि सीधे राज्यों को जारी करेगा।
    • नोडल मंत्रालय: केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय
    • राज्य एक से अधिक परियोजनाएँ प्रस्तुत कर सकते हैं, जिनमें से प्रत्येक परियोजना के लिए अधिकतम 100 करोड़ रुपये का वित्तपोषण किया जा सकता है।
  • परियोजना पहचान
    • इन परियोजनाओं में उत्तर प्रदेश में बटेश्वर, गोवा में पोंडा, आंध्र प्रदेश में गंडिकोटा और गुजरात में पोरबंदर जैसे कम ज्ञात पर्यटन स्थल शामिल हैं।

भारत में पर्यटन

  • भारत का पर्यटन क्षेत्र एक प्रमुख उद्योग है, जो देश के सकल घरेलू उत्पाद में योगदान देता है और रोजगार सृजित करता है।
    • पर्यटन क्षेत्र देश के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 9% का योगदान देता है।

  • वृद्धि और स्थिति
    • पिछले दो दशकों में भारत के पर्यटन क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
    • वर्ष 2023 में, भारत में 9.24 मिलियन विदेशी पर्यटकों का आगमन दर्ज किया गया, जो वर्ष 2022 की तुलना में 43.5% की वृद्धि है।
    • विश्व यात्रा और पर्यटन परिषद (World Travel and Tourism Council-WTTC) का अनुमान है कि भारत का यात्रा और पर्यटन क्षेत्र वर्ष 2024 में अर्थव्यवस्था में लगभग 21.15 ट्रिलियन रुपये का योगदान देगा।
    • विश्व आर्थिक मंच (WEF) द्वारा प्रकाशित यात्रा और पर्यटन विकास सूचकांक (Travel and Tourism Development Index-TTDI) 2024 रिपोर्ट के अनुसार, भारत 119 देशों में 39वें स्थान पर है।
  • विदेशी पर्यटकों के आगमन (Foreign Tourist Arrivals-FTAs) में वृद्धि: भारत ने वर्ष 2023 में 9.24 मिलियन FTA दर्ज किए, जो वर्ष 2022 में 6.44 मिलियन की तुलना में 43.5% की वृद्धि दर्शाता है।
    • इस वृद्धि ने महत्त्वपूर्ण विदेशी मुद्रा आय (FEEs) में योगदान दिया।
  • घरेलू पर्यटक यात्राओं (Domestic Tourist Visits-DTVs) में वृद्धि: घरेलू पर्यटन ने उल्लेखनीय वृद्धि दिखाई है, वर्ष 2023 (अनंतिम) में 2509.63 मिलियन घरेलू पर्यटक यात्राएँ (DTVs) दर्ज की गईं, जो वर्ष 2022 में 1731.01 मिलियन DTVs थीं।

भारत में पर्यटन का प्रभाव

  • आर्थिक
    • आर्थिक योगदान
      • रोजगार: वर्ष 2022 में पर्यटन भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 7% होगा और इसी अवधि में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 76.17 मिलियन नौकरियाँ उत्पन्न हुईं।
      • विदेशी मुद्रा आय: पर्यटन से विदेशी मुद्रा आय (FEE) में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो वर्ष 2023 में ₹2.3 लाख करोड़ तक पहुँच गई है, जो इसके आर्थिक महत्त्व को दर्शाता है।
    • रोजगार सृजन: पर्यटन क्षेत्र ने वर्ष 2022-23 में 76.17 मिलियन प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार सृजित किए, जो वर्ष 2021-22 में 70.04 मिलियन रोजगारों से अधिक है।
    • बुनियादी ढाँचे का विकास: पिछले कुछ वर्षों में, भारत ने पर्यटन बुनियादी ढाँचे को बेहतर बनाने के लिए 1 बिलियन डॉलर (₹7,000 करोड़) का निवेश किया है, जिससे आगंतुकों के लिए समग्र अनुभव में वृद्धि हुई है।
    • प्रचार के प्रयास: सरकार भारत को एक अग्रणी वैश्विक यात्रा गंतव्य के रूप में स्थापित करने के लिए घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भारत के पर्यटन उत्पादों को समग्र रूप से बढ़ावा दे रही है।
  • सांस्कृतिक प्रभाव
    • पर्यटन सांस्कृतिक आदान-प्रदान और विरासत संरक्षण को बढ़ावा देता है। उदाहरण के लिए, आगरा में स्थित ताजमहल प्रत्येक वर्ष लाखों पर्यटकों को आकर्षित करता है, जिससे संरक्षण के लिए धन जुटाया जाता है।
  • सामाजिक प्रभाव
    • पर्यटन रोजगार और कौशल विकास के माध्यम से स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाता है।
    • ओडिशा के रघुराजपुर जैसे ग्रामीण पर्यटन पहलों से कारीगरों और शिल्पकारों को सहायता मिलती है, जिससे पट्टचित्र चित्रकला जैसे पारंपरिक कौशल का संरक्षण संभव होता है और 2,000 से अधिक परिवारों की आजीविका में वृद्धि होती है।
  • पर्यावरणीय प्रभाव
    • यद्यपि पर्यटन से आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है, लेकिन इससे अपशिष्ट और प्रदूषण जैसी पर्यावरणीय चिंताएँ भी उत्पन्न होती हैं।
      • उदाहरण के लिए, वर्ष 2023 में लेह-लद्दाख में 1.2 मिलियन से अधिक पर्यटकों के आगमन के परिणामस्वरूप प्लास्टिक अपशिष्ट में उल्लेखनीय वृद्धि हुई तथा चरम पर्यटन समय में मासिक रूप से 200 टन से अधिक अपशिष्ट एकत्र किया गया।
    • पर्यटन ने भारत में पर्यावरण-अनुकूल प्रथाओं को अपनाने और संरक्षण प्रयासों को बढ़ावा दिया है।
      • उदाहरण के लिए, असम के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में पारिस्थितिकी पर्यटन के कारण वन्यजीव संरक्षण के लिए वित्तपोषण में वृद्धि हुई है।

भारत में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए सरकारी पहल

  • स्वदेश दर्शन योजना (2014): इस योजना का उद्देश्य सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और प्राकृतिक विरासत का लाभ उठाते हुए पूरे भारत में थीम आधारित पर्यटन सर्किट विकसित करना है। यह विश्व स्तरीय पर्यटन अवसंरचना और अनुभव बनाने पर केंद्रित है।
  • प्रसाद (PRASAD) योजना (2014): तीर्थयात्रा कायाकल्प और आध्यात्मिक, विरासत संवर्द्धन अभियान (प्रसाद) योजना, भारत में तीर्थ स्थलों के विकास और सौंदर्यीकरण पर केंद्रित है। इसका उद्देश्य घरेलू और अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों के लिए समग्र तीर्थयात्रा अनुभव को बढ़ाना है।
  • पर्यटन पर्व (2015): यह राष्ट्रव्यापी अभियान देश भर में सांस्कृतिक कार्यक्रमों, त्योहारों और गतिविधियों का आयोजन करके घरेलू पर्यटन को प्रोत्साहित करता है। इसका उद्देश्य भारत की विविध सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देना और विभिन्न क्षेत्रों की खोज करने के लिए घरेलू पर्यटकों को आकर्षित करना है।
  • देखो अपना देश पहल (2015): यह पहल भारत के विविध परिदृश्यों और सांस्कृतिक विरासत की खोज को बढ़ावा देकर घरेलू पर्यटन को प्रोत्साहित करती है। इसका उद्देश्य कम ज्ञात स्थलों के बारे में जागरूकता उत्पन्न करना और घरेलू यात्रा को बढ़ावा देना है।
  • एक भारत श्रेष्ठ भारत (2015): यह पहल भारत के विभिन्न राज्यों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान और एकीकरण को बढ़ावा देती है। यह राज्यों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम, त्योहार और गतिविधियाँ आयोजित करने, एकता की भावना और घरेलू पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करती है।
  • ई-वीजा (2014): भारत सरकार ने ई-वीजा प्रणाली लागू की है, जिससे विदेशी पर्यटकों के लिए वीजा प्राप्त करना और भारत की यात्रा करना आसान हो गया है। इसने वीजा प्रक्रिया को काफी हद तक सुव्यवस्थित किया है और इसे अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों के लिए अधिक सुविधाजनक बनाया है।
  • धर्मशाला घोषणा (2022): इसमें महामारी के बाद पर्यटन को पुनर्जीवित करने की भारत की योजना की रूपरेखा प्रस्तुत की गई है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2024 तक 150 बिलियन डॉलर का GDP योगदान, 30 बिलियन डॉलर की विदेशी मुद्रा आय और 15 मिलियन विदेशी पर्यटकों का आगमन है।
    • वर्ष 2030 तक इसका लक्ष्य 250 बिलियन डॉलर का सकल घरेलू उत्पाद योगदान, 137 मिलियन नौकरियाँ, 56 मिलियन विदेशी पर्यटक और 56 बिलियन डॉलर की कमाई करना है, जिससे भारत एक वैश्विक पर्यटन केंद्र के रूप में स्थापित हो सके।

भारत के पर्यटन क्षेत्र की संभावनाएँ

  • विविध आकर्षण
    • भारत की विविध भौगोलिक और सांस्कृतिक विविधताएँ हिमालय और केरल के बैकवाटर जैसे प्राकृतिक चमत्कारों से लेकर ताजमहल और हम्पी जैसे ऐतिहासिक स्थलों तक की विविधता प्रदान करती हैं।
    • 40 यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों के साथ, भारत सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत में वैश्विक बढ़त रखता है।
    • उदाहरण के लिए, सारनाथ जैसे बौद्ध स्थलों के साथ एकीकृत वाराणसी में पर्यटन सर्किट घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों पर्यटकों को आकर्षित करता है।
  • घरेलू पर्यटन में वृद्धि
    • देखो अपना देश और स्वदेश दर्शन 2.0 जैसी सरकारी पहलों ने घरेलू यात्रा को बढ़ावा दिया है।
    • वर्ष 2023 में घरेलू पर्यटकों की संख्या बढ़कर 2509.63 मिलियन हो गई, जो इन अभियानों की प्रभावशीलता को दर्शाता है।
  • विदेशी पर्यटकों का आगमन (Foreign Tourist Arrivals- FTAs)
    • वर्ष 2023 में 9.24 मिलियन आगंतुकों (वर्ष 2022 में 6.44 मिलियन से ऊपर) के साथ FTA में वृद्धि, वैश्विक पर्यटन स्थल के रूप में भारत की बढ़ती अपील को उजागर करती है। 
    • ई-वीजा उपलब्धता और बहुभाषी पर्यटक हेल्पलाइन​ ने इसे और बढ़ावा दिया।
  • निकेत पर्यटन (Niche Tourism)
    • एडवेंचर टूरिज्म, इको-टूरिज्म, मेडिकल और वेलनेस टूरिज्म में वृद्धि स्पष्ट है, जिसमें केरल के आयुर्वेद और योग रिट्रीट सबसे प्रमुख हैं।
    • भारत हिमालयी ट्रेकिंग के लिए भी एक लोकप्रिय गंतव्य बन गया है।

भारत के पर्यटन क्षेत्र की चुनौतियाँ

  • बुनियादी ढाँचा और कनेक्टिविटी
    • कई पर्यटन स्थलों, खासकर पूर्वोत्तर जैसे दूरदराज के क्षेत्रों में, बुनियादी ढाँचे की कमी है। 
    • उदाहरण के लिए, अरुणाचल प्रदेश के सुंदर स्थान अपर्याप्त सड़क और हवाई संपर्क के कारण कम खोजे गए हैं।
  • सुरक्षा और स्वच्छता
    • सुरक्षा संबंधी चिंताएँ, विशेषतौर पर महिलाओं के लिए और स्वच्छता संबंधी मुद्दे पर्यटन पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
    • वाराणसी, एक आध्यात्मिक केंद्र होने के बावजूद, अपशिष्ट प्रबंधन की चुनौतियों का सामना करता है, जिससे कई पर्यटक यहाँ आने से कतराने लगते हैं।
  • अल्प उपयोगिता संबंधी विरासत
    • हालाँकि जयपुर और आगरा जैसे स्थलों पर अत्यधिक पर्यटक आते हैं, वहीं खजुराहो और हम्पी जैसे अन्य स्थल उपेक्षा और खराब प्रचार के कारण वैश्विक ध्यान आकर्षित करने के अवसर से वंचित रह जाते हैं।
  • मौसमी पर्यटन
    • शिमला और मनाली जैसे लोकप्रिय स्थलों पर पीक सीजन के दौरान अत्यधिक भीड़ होती है, लेकिन ऑफ सीजन में पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए कोई रणनीति नहीं होती है, जिसके कारण आर्थिक लाभ असमान होता है।
  • कुशल कार्यबल
    • आतिथ्य और पर्यटन में प्रशिक्षित कर्मियों की कमी से सेवा की गुणवत्ता प्रभावित होती है। इसमें कई पर्यटन केंद्रों में कुशल गाइड और प्रबंधकों की कमी शामिल है।

आगे की राह

  • बुनियादी ढाँचे का विकास: दूरस्थ क्षेत्रों में बेहतर कनेक्टिविटी विकसित करना, जैसे कि पूर्वोत्तर में नए हवाई अड्डे और रेल नेटवर्क को बढ़ाना, पर्यटन की संभावनाओं को खोल सकता है।
    • उदाहरण के लिए, लद्दाख में बेहतर सड़कें और परिवहन ने आगंतुकों की संख्या में वृद्धि की है।
  • संधारणीय पर्यटन: केरल की जिम्मेदार पर्यटन पहल सामुदायिक विकास को पारिस्थितिकी पर्यटन के साथ एकीकृत करती है, जो अन्य राज्यों के लिए एक सफल मॉडल प्रदान करती है।
  • केंद्रित विपणन अभियान: आध्यात्मिक पर्यटन और आयुर्वेद जैसे विषयों के साथ अतुल्य भारत अभियान को नया रूप देने से विशिष्ट यात्री समूह आकर्षित हो सकते हैं।
    • राजस्थान में रेगिस्तानी संस्कृति पर ध्यान केंद्रित करते हुए इसी तरह के प्रयासों ने सफलता दिखाई है।
  • सुरक्षा और संरक्षा उपाय: मुख्य आकर्षण स्थलों पर पर्यटक पुलिस की तैनाती, साइनेज में सुधार, तथा यात्रियों, विशेषकर महिलाओं के लिए डिजिटल सुरक्षा को बढ़ाना, भारत की वैश्विक छवि को बेहतर बना सकता है।
  • ऑफ-सीजन पर्यटन को बढ़ावा देना: लद्दाख विंटर फेस्टिवल जैसे आयोजन या कम भीड़-भाड़ वाले समय में छूट वाले यात्रा पैकेज वर्ष भर पर्यटन गतिविधियों को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं​।

निष्कर्ष

भारत के पर्यटन क्षेत्र में आर्थिक विकास को गति देने, रोजगार सृजन करने और वैश्विक सांस्कृतिक जुड़ाव को बढ़ाने की अपार संभावनाएँ हैं। बुनियादी ढाँचे की कमी, मौसमी निर्भरता और सुरक्षा संबंधी चिंताओं जैसी चुनौतियों का समाधान करने के साथ-साथ अपनी विविध विरासत और प्राकृतिक आकर्षणों का लाभ उठाकर भारत खुद को वैश्विक पर्यटन महाशक्ति के रूप में स्थापित कर सकता है, जो इसके विकास लक्ष्यों में महत्त्वपूर्ण योगदान देगा।

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