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Dec 04 2024

संदर्भ

3 eDyNAmiC नामक टीम द्वारा नेचर पत्रिका में प्रकाशित शोधपत्रों में यह पता लगाया गया कि ecDNA का निर्माण किस प्रकार होता है और कैंसर तथा दवा प्रतिरोध की प्रगति में किस प्रकार योगदान देता है।

अध्ययन के निष्कर्ष

  • विषय
    • पहला अध्ययन: ecDNA के निर्माण से पहले और बाद में ट्यूमर में उत्परिवर्तन पैटर्न का विश्लेषण किया गया ताकि धूम्रपान, कुछ पदार्थों के संपर्क में आने और DNA क्षति को उत्प्रेरित करने वाले आनुवंशिक उत्परिवर्तन जैसे कुछ कारकों की भूमिका की पहचान की जा सके, जिससे ecDNA का निर्माण होता है।
    • दूसरा अध्ययन: मेंडल के स्वतंत्र वर्गीकरण के तीसरे नियम का उल्लंघन यह रिपोर्ट करके किया गया कि ecDNA कोशिका विभाजन के दौरान समूह में संतति कोशिकाओं में परिवर्तित हो जाता है।
      • मेंडल का तीसरा नियम: एक ही गुणसूत्र पर स्थित जीन एक साथ आनुवंशिक रूप से मिलते हैं, जबकि विभिन्न गुणसूत्रों पर स्थित जीन एक दूसरे से स्वतंत्र रूप से वितरित होते हैं, आमतौर पर जब कोशिकाएँ विभाजित होती हैं।
        • जब कोशिकाएँ विभाजित होती हैं, तो वे गुणसूत्रों की प्रतिलिपि बनाती हैं और उन्हें अपनी संतति कोशिकाओं में समान रूप से वितरित करती हैं।

डिऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (DNA)

  • यह जीवित जीवों में कोशिकाओं के नाभिक में मौजूद आनुवंशिक पदार्थ है।
  • उपस्थिति: DNA एक कोशिका के नाभिक में एक द्विकुंडलित संरचना  के रूप में मौजूद होता है, जो अंतःस्थापित प्रोटीन के साथ गुणसूत्र बनाने के लिए ‘सुपरकोइल’ के रूप में होता है।
  • आनुवंशिक संरचना: शरीर के आंतरिक संगठन, शारीरिक विशेषताओं और शारीरिक कार्यों के बारे में सभी जानकारी DNA अणुओं में एन्कोडेड होती है।
  • न्यूक्लियोटाइड: DNA में दोहराई जाने वाली इकाइयाँ होती हैं, जिन्हें न्यूक्लियोटाइड कहा जाता है। प्रत्येक न्यूक्लियोटाइड एक शर्करा अणु (डीऑक्सीराइबोज), एक फॉस्फेट समूह और चार नाइट्रोजनस बेस अर्थात् एडिनीन (A), थाइमिन (T), साइटोसिन (C) और ग्वानिन (G) में से एक से बना होता है।
  • बेस पेयरिंग: DNA के दो ‘स्ट्रैंड’ विशिष्ट बेस पेयर द्वारा एक साथ बंधे होते हैं,
    • एडिनीन, थाइमिन के साथ और साइटोसिन ग्वानिन के साथ युग्मित होता है। यह युग्मन द्विकुंडलित संरचना की स्थिरता सुनिश्चित करता है और DNA की सटीक प्रतिकृति के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • गुणसूत्र: गुणसूत्र प्रोटीन और DNA के एकल अणु से बनी धागेनुमा संरचनाएँ होती हैं जो जीनोमिक सूचना को एक कोशिका से दूसरी कोशिका तक ले जाने का कार्य करते हैं।
    • प्रत्येक केंद्रकयुक्त कोशिका में 23 जोड़े गुणसूत्र मौजूद होते हैं।
  • DNA का स्रोत: DNA अनुक्रम शरीर की प्रत्येक कोशिका में मौजूद होता है (परिपक्व लाल रक्त कोशिकाओं को छोड़कर) और इसे लार, वीर्य, ​​योनि द्रव, रक्त, शरीर के ऊतकों, दांतों, बालों और हड्डियों से प्राप्त किया जा सकता है।

    • तीसरा अध्ययन: इसने ecDNA पर निर्भर ट्यूमर में संभावित कमजोरी को उजागर किया, जिससे RNA निर्माण की प्रक्रिया में शामिल ‘सेलुलर मशीनरी’ और कैंसर कोशिकाओं की गतिविधि के बीच संघर्ष होता है, जिससे DNA क्षति होती है।
  • नमूने: अध्ययन के लिए यू.के. की 100,000 जीनोम परियोजना से लगभग 15,000 कैंसर रोगियों के नमूनों का विश्लेषण किया गया, जिसमें 39 ट्यूमर प्रकार शामिल थे।
  • प्रयुक्त विधि: ‘एम्पलीकॉन आर्किटेक्ट’ जैसे ‘कम्प्यूटेशनल टूल’ और उसके बाद ‘एम्पलीकॉन क्लासिफायर’ का उपयोग पूरे जीनोम अनुक्रमण डेटा से ecDNA की पहचान करने के लिए किया गया और निष्कर्षों को ‘फ्लोरोसेंस इन-सीटू हाइब्रिडाइजेशन’ (FISH) नामक विधि का उपयोग करके मान्य किया गया।
    • FISH तकनीक विशेष रूप से ऊतक के नमूनों में कैंसर से संबंधित कुछ जीनों की खोज करती है।
  • आवश्यकता: ecDNA कैंसर रोगियों के लिए उपचार प्रतिरोध और खराब परिणाम का प्रमुख कारण है।
  • निष्कर्ष:
    • व्यापक उपस्थिति: यह पाया गया कि ecDNA लगभग 17% ट्यूमर नमूनों में मौजूद था, लेकिन लिपोसारकोमा, मस्तिष्क ट्यूमर और स्तन कैंसर में यह अधिक था। कीमोथेरेपी जैसे उपचारों के बाद ecDNA का प्रचलन बढ़ गया, और यह मेटास्टेसिस के साथ सहसंबंधित हुआ। 
    • “जैकपॉट प्रभाव”: ‘डॉटर’ कोशिकाओं में ecDNA का समूहन, कैंसर कोशिकाओं को एक लाभ देता है क्योंकि यह उन्हें जीन अंतर्संबंधन को बढ़ाने, कैंसर के विकास का समर्थन करने और कई जीवन-चक्रों में अनुकूल आनुवंशिक संयोजनों को संरक्षित करने की अनुमति देता है।
      • आनुवंशिकी संबंधी अवधारणा में मौलिक बदलाव: यह उस विचार के विपरीत है कि जीन DNA स्ट्रैंड से जुड़े नहीं होते हैं तो जीन वंशागति पूरी तरह से यादृच्छिक होती है।
    • यह बताया गया कि प्रतिलेखन प्रक्रिया (DNA से RNA तक) कोशिका विभाजन के दौरान ecDNA के समन्वित पृथक्करण की सुविधा प्रदान करती है।
    • नया कैंसर उपचार: CHK1 प्रोटीन को अवरुद्ध करने के लिए एक दवा (BBI-2779) का उपयोग किया गया था, जिसमें पाया गया कि दवा ने ecDNA के साथ कैंसर कोशिकाओं को चुनिंदा रूप से समाप्त कर दिया, जिससे पेट के कैंसर से प्रभावित नमूनों में ट्यूमर की संख्या में काफी कमी आई।
      • यह विशेष रूप से ecDNA-संचालित कैंसर, जैसे- ग्लियोब्लास्टोमा और डिम्बग्रंथि और फेफड़ों के कैंसर के रोगियों के लिए नए उपचार विकल्प प्रदान कर सकता है।

ecDNA

  • एक्स्ट्राक्रोमोसोमल DNA (ecDNA) एक प्रकार का DNA है, जो कोशिका के नाभिक में गुणसूत्रों के बाहर मौजूद होता है।
    • सामान्य मानव कोशिकाओं में, नाभिक में 23 जोड़े गुणसूत्र होते हैं, जो DNA को घेरे रहते हैं।

  • खोज: ecDNA की खोज 1960 के दशक में हुई थी, जब इसकी मौजूदगी केवल 1.4% ट्यूमर में पाई गई थी।
  • संरचना: ecDNA बड़े (आमतौर पर 500 किलोबेस से अधिक), संचलनीय, जीन-युक्त (और विनियामक-क्षेत्र-युक्त) गोलाकार DNA कण होते हैं, जो कई कैंसर कोशिकाओं के नाभिक में पाए जा सकते हैं।
  • विभाजन: ecDNA में ‘सेंट्रोमियर’ की कमी होती है और यह कोशिका विभाजन के दौरान बेतरतीब ढंग से या विषम रूप से अलग हो जाता है
  • ecDNA और कैंसर जीवविज्ञान
    • व्यापकता: वर्ष 2017 में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चलता है कि ecDNA लगभग 40% कैंसर कोशिका रेखाओं में और 90% तक ‘रोगी-व्युत्पन्न मस्तिष्क ट्यूमर नमूनों’ में मौजूद है, जो कैंसर जीव विज्ञान को समझने के लिए इसका अध्ययन महत्त्वपूर्ण बनाता है।
    • ऑन्कोजीन: ecDNA मानव कैंसर में प्रवर्द्धित ऑन्कोजीन (कैंसर पैदा करने में सक्षम उत्परिवर्तित जीन) के लिए एक सामान्य स्रोत है और ट्यूमर में इसकी उपस्थिति में प्रायः ऑन्कोजीन की कई प्रतियाँ होती हैं जो ट्यूमर के विकास को सक्रिय करने के लिए आवश्यक होती हैं।
      • उपस्थिति: गुणसूत्रों में ऑन्कोजीन मौजूद नहीं होते हैं, क्योंकि ecDNA गुणसूत्र DNA के विपरीत, स्वतंत्र रूप से चलता है (यह कोशिका में विशिष्ट क्षेत्रों के भीतर तय होता है) और अन्य ecDNA के साथ अंतर्संबंध स्थापित करता है। 
      • कैंसर का विकास: वर्ष 2021 के एक अध्ययन में पाया गया है कि जब कोशिकाएँ ecDNA को mRNA में ट्रांसक्राइब करती हैं, तो इस प्रक्रिया के कारण विशिष्ट ऑन्कोजीन कोशिका में चार गुना अधिक सामान्य हो जाते हैं।
        • यह विसंगति ट्यूमर के विकास को तीव्र करने की क्षमता को बढ़ाती है तथा कैंसर को दवाओं का प्रतिरोध करने में मदद करती है।

प्रगति प्रणाली (PRAGATI System)

हाल ही में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए एक अध्ययन में परियोजनाओं की तीव्र गति से प्रगति के लिए भारत की प्रगति प्रणाली (PRAGATI System) की प्रशंसा की गई।

संबंधित तथ्य

  • अध्ययन का शीर्षक: ‘गतिरोध से विकास तक: नेतृत्व किस प्रकार भारत के प्रगति पारिस्थितिकी तंत्र को प्रगति की शक्ति प्रदान करता है।’ (From Gridlock to Growth: How Leadership Enables India’s PRAGATI Ecosystem to Power Progress)
  • लेखक: सौमित्र दत्ता एवं मुकुल पंड्या।
  • प्रस्तुति: इसे भारतीय प्रबंधन संस्थान- बंगलूरू  द्वारा एक संगोष्ठी में प्रस्तुत किया गया था।

प्रगति प्रणाली (PRAGATI System) के बारे में

  • प्रगति का तात्पर्य ‘प्रो-एक्टिव गवर्नेंस एवं परियोजनाओं का समय पर कार्यान्वयन’ (Pro-Active Governance and Timely Implementation of Projects) है।
  • लॉन्च वर्ष: वर्ष 2015 में
  • कार्यान्वयन एजेंसी: प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO)
  • उद्देश्य: बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं की कड़ी निगरानी एवं समय पर पूरा करना।

प्रगति की मुख्य विशेषताएँ

  • सहयोग एवं समन्वय
    • केंद्र एवं राज्य सरकारों को एक मंच पर लाता है।
    • भूमि अधिग्रहण एवं अंतर-मंत्रालयी समन्वय जैसी चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटता है।
  • प्रौद्योगिकी संचालित दृष्टिकोण
    • परियोजनाओं की निगरानी के लिए वास्तविक समय डेटा, ड्रोन फीड एवं वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का उपयोग करता है।
      • तेजी से निर्णय लेने एवं समस्या समाधान की सुविधा प्रदान करता है।
  • त्वरित विकास: सड़क, रेलवे, जल एवं विद्युत जैसी सेवाओं में सुधार करते हुए 340 परियोजनाओं को तेजी से पूरा करने में मदद की।

प्रगति प्रणाली का आर्थिक प्रभाव

  • गुणक प्रभाव: RBI एवं ‘नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी’ के अध्ययनों के अनुसार, बुनियादी ढाँचे पर खर्च किया गया प्रत्येक ₹1 GDP वृद्धि में ₹2.5 से ₹3.5 उत्पन्न करता है।
    • आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में बुनियादी ढाँचे की भूमिका पर प्रकाश डाला गया।
  • सामाजिक प्रभाव 
    • आवश्यक सेवाएँ: सड़क, रेलवे, जल एवं विद्युत से संबंधित परियोजनाओं ने लाखों भारतीयों के जीवन स्तर में सुधार किया है। 
    • स्थिरता: पर्यावरणीय मंजूरी को शामिल करता है एवं हरित प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देता है।

पैकेज्ड पेयजल, मिनरल वाटर का पुनर्वर्गीकरण

पैकेज्ड पेयजल एवं मिनरल वाटर को भारतीय खाद्य सुरक्षा तथा मानक प्राधिकरण (FSSAI) द्वारा उच्च जोखिम वाले भोजन के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

संबंधित तथ्य

  • पुनर्वर्गीकरण का उद्देश्य
    • उपभोक्ता संरक्षण को मजबूत करना: सुरक्षित एवं स्वच्छ पेयजल सुनिश्चित करके सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा करना।
      • यह सख्त गुणवत्ता नियंत्रण लागू करता है एवं उपभोक्ता सुरक्षा में सुधार करता है।
  • कठोर गुणवत्ता नियंत्रण सुनिश्चित करना: पैकेज्ड जल के उत्पादन में कड़े मानक बनाए रखना।
    • यह कदम खाद्य सुरक्षा बढ़ाने एवं उपभोक्ताओं की सुरक्षा के प्रति FSSAI की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

उच्च जोखिम वाले खाद्य पदार्थ कौन-कौन से हैं?

  • ये वे खाद्य श्रेणियाँ हैं, जिनके संदूषण की संभावना अधिक होती है।
    • इससे सार्वजनिक स्वास्थ्य को भारी खतरा उत्पन्न होता है।
  • उच्च जोखिम वाले खाद्य श्रेणियों के अंतर्गत आने वाले अन्य उत्पाद हैं:
    • डेयरी उत्पाद 
    • मांस एवं मांस उत्पाद, जिसमें पोल्ट्री शामिल है।
    • मछली और मछली उत्पाद जिसमें मोलस्क, क्रस्टेशियन और इकाइनोडर्म शामिल हैं।
    • अंडे एवं अंडे के उत्पाद
    • विशेष पोषण संबंधी उपयोग के लिए बनाए गए खाद्य उत्पाद
    • तैयार खाद्य पदार्थ
    • भारतीय मिठाइयाँ
    • पोषक तत्व और उनकी तैयारी (केवल फोर्टिफाइड चावल के दाने)

विनियमों में मुख्य परिवर्तन

  • अनिवार्य वार्षिक निरीक्षण
    • पैकेज्ड पेयजल का उत्पादन करने वाली सभी सुविधाओं को वार्षिक निरीक्षण से गुजरना होगा।
    • स्वास्थ्य जोखिमों को कम करने के लिए विशेष रूप से केंद्रीय लाइसेंस धारकों पर लागू होता है।

  • तृतीय-पक्ष खाद्य सुरक्षा ऑडिट
    • खाद्य सुरक्षा मानकों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए निर्माताओं को अब अनिवार्य तृतीय-पक्ष ऑडिट पूरा करना होगा।
  • उन्नत गुणवत्ता मानक
    • अद्यतन नियमों के तहत निर्माताओं को उच्च गुणवत्ता मानकों का पालन करना आवश्यक है।
  • हालिया नियामक संदर्भ
    • यह पुनर्वर्गीकरण खाद्य सुरक्षा एवं मानक (बिक्री पर निषेध तथा प्रतिबंध) विनियम, 2011 में संशोधन के बाद किया गया है।
    • इससे पहले, कुछ खाद्य उत्पादों के लिए अनिवार्य BIS प्रमाणीकरण हटा दिया गया था, लेकिन अब पैकेज्ड पानी के लिए सख्त नियंत्रण प्रस्तुत किए गए हैं।

भारतीय महिलाओं के लिए वन-स्टॉप सेंटर

केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने 9 वन-स्टॉप सेंटर (OSCs) स्थापित करने के विदेश मंत्रालय के एक प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।

बजट एवं फंडिंग

  • इस पहल के लिए विदेश मंत्रालय द्वारा एक समर्पित बजट लाइन बनाई गई है।
  • भारतीय समुदाय कल्याण कोष (Indian Community Welfare Fund- ICWF) संकटग्रस्त भारतीय नागरिकों, विशेषकर महिलाओं के लिए कल्याण उपायों के वित्तपोषण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

वन-स्टॉप सेंटर (OSCs)

  • यह महिलाओं के कल्याण के लिए एक पहल है। 
    • इस पहल के तहत, सरकार भारतीय महिलाओं, विशेषकर परित्यक्त या कानूनी अथवा वित्तीय कठिनाइयों का सामना करने वाली अद्वितीय चुनौतियों का समाधान करती है।
  • OSCs के स्थान
    • शेल्टर होम के साथ: बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, UAE एवं सऊदी अरब (जेद्दा तथा रियाद) में सात OSCs स्थापित किए जाएँगे।
    • आश्रय गृहों के बिना: टोरंटो एवं सिंगापुर में दो OSCs स्थापित किए जाएँगे।

भारतीय समुदाय कल्याण कोष (Indian Community Welfare Fund- ICWF) के बारे में

  • ICWF का तात्पर्य भारतीय समुदाय कल्याण कोष से है।
  • स्थापना: वर्ष 2009 में
  • उद्देश्य: आपात स्थिति एवं संकट के दौरान प्रवासी भारतीय नागरिकों की मदद करना।
  • लाभार्थी
    • विदेश में रहने वाले भारतीय नागरिक।
    • विदेश यात्रा पर जाने वाले भारतीय नागरिकों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
  • कार्य
    • व्यक्ति की वित्तीय आवश्यकता के आधार पर योग्य मामलों में सहायता प्रदान करता है।
    • संघर्ष क्षेत्रों, प्राकृतिक आपदाओं एवं अन्य आपात स्थितियों से भारतीय नागरिकों को निकालने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • संचालन: दुनिया भर में सभी भारतीय मिशनों एवं पोस्टों में उपलब्ध है।

ICWF द्वारा प्रदान किया गया समर्थन

  • आपातकालीन सहायता: भोजन एवं आवास, फँसे हुए व्यक्तियों के लिए हवाई यात्रा, कानूनी सहायता, चिकित्सा देखभाल आदि।
  • कानूनी सहायता एवं परामर्श: प्रवासी भारतीय या विदेशी पतियों द्वारा छोड़ी गई महिलाओं के लिए विशिष्ट प्रावधान।
  • सामुदायिक कल्याण गतिविधियाँ: सांस्कृतिक कार्यक्रम, भाषा शिक्षा एवं छात्र कल्याण। 
  • कानूनी पैनल: समय पर सहायता के लिए बड़ी संख्या में भारतीय प्रवासी वाले देशों में स्थापित।
  • छोटे कानूनी उल्लंघन: फंड भारतीय नागरिकों की रिहाई सुनिश्चित करने के लिए जुर्माने के भुगतान की अनुमति देता है।

अभ्यास अग्नि वारियर (XAW-2024)

अभ्यास अग्नि वारियर (XAW-2024) का 13वाँ संस्करण भारत एवं सिंगापुर के बीच घनिष्ठ रक्षा संबंधों पर प्रकाश डालता है, जो 30 नवंबर, 2024 को फील्ड फायरिंग रेंज, देवलाली, महाराष्ट्र में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ।

XAW-2024 की मुख्य विशेषताएँ

  • भाग लेने वाले सैन्य बल
    • सिंगापुर सशस्त्र बल (SAF): सिंगापुर तोपखाने से 182 कर्मी।
    • भारतीय सेना: आर्टिलरी रेजिमेंट के 114 कर्मी।
  • उद्देश्य
    • संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत संयुक्त परिचालन क्षमता प्राप्त करने के लिए अभ्यास एवं प्रक्रियाओं की आपसी समझ को बढ़ाना।
    • नई पीढ़ी के उपकरणों पर ध्यान केंद्रित करते हुए संयुक्त मारक क्षमता योजना एवं निष्पादन का प्रदर्शन करना।

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संदर्भ

हाल ही में राष्ट्रीय बीज कांग्रेस (National Seed Congress-NSC) का 13वाँ संस्करण उत्तर प्रदेश में संपन्न हुआ, जिसमें वैज्ञानिकों, नीति निर्माताओं और उद्योग जगत के नेताओं सहित 700 से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया।

संकर फसलें (Hybrid Crops)

  • परिभाषा: एक ही प्रजाति की दो अलग-अलग किस्मों की क्रॉस-ब्रीडिंग करके दोनों प्रजातियों (नर-मादा) से वांछनीय गुणों वाली प्रजाति उत्पन्न करना।
  • उदाहरण: चावल, गेहूँ, मक्का और कपास की संकर किस्मों की भारत में व्यापक रूप से खेती की जाती है जैसे- सोनालिका जो हरित क्रांति में शुरू की गई रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली उच्च उपज देने वाली गेहूँ की किस्म है।
  • लाभ: उपज में वृद्धि, रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार और पोषण मूल्य में वृद्धि।

बायोफोर्टिफाइड फसलें (Biofortified Crops)

  • परिभाषा: ऐसी फसलें, जिन्हें आनुवंशिक रूप से तैयार किया गया है ताकि उनमें विटामिन, खनिज और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों जैसी आवश्यक पोषण सामग्री का उच्च स्तर हो।
  • उदाहरण: गोल्डन राइस (विटामिन A से भरपूर), आयरन-फोर्टिफाइड चावल और बीन्स।
  • लाभ: बेहतर पोषण मूल्य, कम कुपोषण और बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य सुनिश्चित करती है।

राष्ट्रीय बीज सम्मेलन के बारे में

  • राष्ट्रीय बीज कांग्रेस (NSC) एक वार्षिक आयोजन है, जिसमें सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के शोधकर्ता, नीति निर्माता, किसान और हितधारक एक साथ आते हैं।
  • यह भारत और विश्व स्तर पर कृषि को मजबूत करने के लिए बीज उत्पादन, फसल सुधार और वितरण प्रणालियों में प्रगति पर चर्चा करने के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है।
  • केंद्रीय कृषि मंत्रालय और अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (IRRI) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया जाता है।

उद्देश्य

  • नवाचार को बढ़ावा देना: बीज उत्पादन और फसल सुधार में अनुसंधान और तकनीकी प्रगति को प्रोत्साहित करना।
  • सहयोग को बढ़ावा देना: बीज उद्योग में सार्वजनिक-निजी भागीदारी और क्षेत्रीय सहयोग को मजबूत करना।
  • किसान सशक्तीकरण को बढ़ावा देना: किसानों, बीज उद्यमियों और अन्य हितधारकों के बीच क्षमता निर्माण करना। 
  • नीतिगत विकास: क्षेत्र को विनियमित करने और सुधारने के लिए नए बीज विधेयक जैसे ढाँचे और सुधारों पर विचार-विमर्श करना।
  • सतत् कृषि: जलवायु परिवर्तन, कुपोषण और खाद्य सुरक्षा जैसी वैश्विक चुनौतियों का समाधान स्थायी प्रथाओं के माध्यम से करना।

NSC 2024 थीम: सतत् बीज पारिस्थितिकी तंत्र के लिए नवाचार

  • सतत् बीज पारिस्थितिकी तंत्र: खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, सतत् बीज पारिस्थितिकी तंत्र किसानों को समय पर, किफायती और उच्च गुणवत्ता वाली उपयुक्त फसल किस्मों के बीज उपलब्ध कराता है, जो सतत् कृषि के लिए आवश्यक हैं।
    • कुपोषण से निपटने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए संकर तथा बायोफोर्टिफाइड फसलों पर ध्यान केंद्रित करता है। 
  • जलवायु-लचीला अभ्यास: जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने के लिए तनाव-सहिष्णु बीज किस्मों की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
    • कृषि इनपुट लागत को कम करने के लिए प्रत्यक्ष बीज वाले चावल और शून्य जुताई जैसी प्रथाओं को प्रोत्साहित करता है।

  • त्वरित प्रजनन चक्र (Accelerated Breeding Cycles): बाजार में नवीन बीजों को शीघ्रता से लाने के लिए प्रजनन समय को कम करने पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • फसल की लचीलापन और उपज बढ़ाने के लिए अत्याधुनिक प्रजनन प्रौद्योगिकियों का कार्यान्वयन।

नीति और साझेदारी अनुशंसाएँ

  • नीतिगत रूपरेखा: बीज उद्योग को विनियमित करने और गुणवत्ता मानकों को सुनिश्चित करने के लिए एक व्यापक नए बीज विधेयक की आवश्यकता है।
    • बीज उत्पादन और वितरण में प्रमुख हितधारकों के रूप में किसानों को सशक्त बनाने के लिए बीज उद्यमिता को बढ़ावा देना।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP): सतत् बीज उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सरकारी निकायों और निजी संस्थाओं के बीच सहयोग किया जाना चाहिए।
    • आपूर्ति शृंखलाओं को मजबूत करने और गुणवत्ता वाले बीजों तक पहुँच सुनिश्चित करने की पहल की जा रही है।
  • बीज पार्कों का विकास: उच्च गुणवत्ता वाले बीजों के अनुसंधान, विकास और बड़े पैमाने पर उत्पादन की सुविधा के लिए बीज पार्कों की स्थापना करना।
    • उत्तर प्रदेश को उच्च गुणवत्ता वाले बीज उत्पादन का केंद्र बनाने की योजना, जिसमें संकर, बायोफोर्टिफाइड फसलों और सब्जी के बीजों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
  • किसानों के लिए सहायता: उत्पादकता और लाभप्रदता को बढ़ावा देने के लिए बेहतर बीजों तक पहुँच के माध्यम से किसानों को सशक्त बनाना।
    • आत्मनिर्भरता और आर्थिक विकास में सुधार के लिए किसान-नेतृत्व वाली बीज उद्यमिता को प्रोत्साहित करना।
  • वैश्विक और स्थानीय सहयोग: कांग्रेस ने कृषि चुनौतियों से निपटने में अंतरराष्ट्रीय भागीदारी के महत्त्व को रेखांकित किया।
    • मौजूदा प्रणालियों में बायोफोर्टिफाइड चावल और संकर बीजों को एकीकृत करने के प्रयास सतत् विकास की दिशा में एक कदम दर्शाते हैं।

भारत के बीज पारिस्थितिकी तंत्र में चुनौतियाँ

  • बीज प्रतिस्थापन दर (SRR): SRR खेत से बचाए गए बीजों के बजाय प्रमाणित बीजों से बोए गए फसल क्षेत्र के अनुपात को दर्शाता है।
    • भारत का SRR अधिकांश फसलों के लिए लगभग 15-20% है, हालाँकि यह संकर बीजों के लिए 100% तक पहुँच जाता है।
  • मोनोकल्चर खेती (Monoculture Farming): बीटी कपास की व्यापक खेती जैव-विविधता को कम करती है और कीटों की संवेदनशीलता को बढ़ाती है।
  • बीज बाजार पर एकाधिकार: बहुराष्ट्रीय निगमों (जैसे- बेयर) का प्रभुत्व स्थानीय रूप से अनुकूलित बीजों तक पहुँच को सीमित करता है।
  • अन्य मुद्दे
    • अद्यतन कानून का अभाव (जैसे- लंबित बीज विधेयक)।
    • बीज उद्यमिता को अपर्याप्त प्रोत्साहन।

बीज उपलब्धता में सुधार के लिए सरकारी पहल

  • राष्ट्रीय बीज निगम (NSC): वर्ष 1963 में स्थापित, यह 60 फसलों की 600 से अधिक किस्मों के लिए आधारभूत और प्रमाणित बीज तैयार करता है।
  • बीज अधिनियम, 1966: बीज की गुणवत्ता को विनियमित करता है और राज्य बीज प्रमाणन एजेंसियों की स्थापना करता है।
  • राष्ट्रीय बीज नीति, 2002: किस्मों के विकास, बीज की गुणवत्ता आश्वासन और बौद्धिक संपदा संरक्षण पर जोर देती है।
  • बीज ग्राम कार्यक्रम (बीज ग्राम योजना): इसका उद्देश्य किसानों द्वारा बचाए गए बीजों की गुणवत्ता में सुधार करना है।
  • राष्ट्रीय बीज भंडार: जलवायु संबंधी व्यवधानों या आपात स्थितियों के दौरान बीज की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए भंडार बनाए रखता है।

संदर्भ

हाल ही में भारत सरकार ने विमानन टरबाइन ईंधन (Aviation Turbine Fuel- ATF), कच्चे तेल, पेट्रोल और डीजल पर विंडफॉल टैक्स को समाप्त कर दिया है।

विंडफॉल टैक्स ( Windfall Tax)

  • विंडफॉल टैक्स एक उच्च कर है, जो सरकार द्वारा विशिष्ट उद्योगों पर लगाया जाता है, जब उन्हें अप्रत्याशित और औसत से अधिक लाभ होता है।
  • उदाहरण के लिए: 1980 के दशक में संयुक्त राज्य अमेरिका की तेल कंपनियों पर विंडफॉल टैक्स लगाया गया था। वर्ष 1979 में तेल संकट के कारण तेल की कीमतों में अचानक वृद्धि हुई, जिसके कारण बाद में इस क्षेत्र की कंपनियों को अप्रत्याशित लाभ हुआ।

संबंधित तथ्य

  • भारत में विंडफॉल टैक्स की शुरुआत: घरेलू बाजार में ऊर्जा उत्पादों की कमी को दूर करने के लिए, भारत सरकार ने जुलाई 2022 में गैसोलीन एवं डीजल के निर्यात पर एक विशेष अतिरिक्त उत्पाद शुल्क जोड़ा, जिसे विंडफॉल टैक्स के रूप में जाना जाता है।
  • इसकी वापसी के कारण
    • स्थिर तेल की कीमतें: वैश्विक कच्चे तेल की कीमतें लगभग $70-$75 प्रति बैरल पर स्थिर हो गई हैं।
    • राजस्व में गिरावट: इस कर से सरकारी राजस्व वित्त वर्ष 2023 में ₹25,000 करोड़ से घटकर वित्त वर्ष 2025 में ₹6,000 करोड़ रह गया।
    • उद्योग की चुनौतियाँ: इस कर ने लाभप्रदता को प्रभावित किया, निवेश को बाधित किया और निजी एवं विदेशी हितधारकों के लिए अनिश्चितता उत्पन्न की।
  • संबंधित उपाय: पेट्रोल और डीजल के निर्यात पर सड़क और बुनियादी ढाँचा उपकर (Road and Infrastructure Cess- RIC) को वापस लेना।
    • 31 अगस्त, 2024 को अंतिम कर संशोधन, 18 सितंबर, 2024 तक निर्यात शुल्क पहले से ही शून्य हो जाएगा।

विंडफॉल टैक्स की आलोचना

  • निवेश को हतोत्साहित करना: अप्रत्याशित कर व्यवसायों को उन क्षेत्रों में निवेश करने से हतोत्साहित कर सकते हैं, जो अप्रत्याशित लाभ के लिए अतिसंवेदनशील हैं।
  • निवेशकों के लिए अनिश्चितता: अप्रत्याशित कर निवेशकों के लिए अनिश्चितता उत्पन्न करते हैं, जिससे व्यवसायों के लिए अपने संभावित रिटर्न का पूर्वानुमान लगाना और भविष्य की योजना बनाना जटिल हो जाता है।
  • अत्यधिक मुनाफाखोरी को हतोत्साहित करना: ये कर, व्यवसायों या उद्योगों को अप्रत्याशित परिस्थितियों का लाभ उठाकर अनुपातहीन रूप से उच्च लाभ कमाने से हतोत्साहित कर सकते हैं, जिससे निष्पक्ष बाजार व्यवहार को बढ़ावा मिलता है।
  • जटिल कार्यान्वयन: यह निर्धारित करना कि ‘अप्रत्याशित लाभ’ क्या है और उचित कर दर निर्धारित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

इसको वापस लेने पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

  • तेल उद्योग के लिए सकारात्मक
    • उत्पादक और रिफाइनर: रिलायंस इंडस्ट्रीज और ONGC जैसी कंपनियों को रिफाइनिंग मार्जिन और लाभप्रदता में सुधार देखने की उम्मीद है।
    • शेयर बाजार की प्रतिक्रिया: रिलायंस इंडस्ट्रीज और ONGC के शेयरों ने घोषणा के बाद बढ़त दिखाई है।
  • संभावित आर्थिक बढ़ावा: लेवी को हटाने से कच्चे तेल के उत्पादन में वृद्धि और रिफाइनिंग क्षमता विस्तार को बढ़ावा मिल सकता है।
    • निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ सकती है, जिससे भारतीय निर्माताओं को मजबूत निर्यात ऑर्डर वृद्धि का लाभ मिल सकता है।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता: यह वापसी वैश्विक तेल मूल्य प्रवृत्तियों के अनुरूप है और यह सुनिश्चित करती है कि भारतीय उत्पादक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बने रहें।
  • सरकारी राजस्व समायोजन: हालाँकि इस निर्णय से अल्पकालिक राजस्व में कमी आ सकती है, लेकिन यह उत्पादन और निवेश को प्रोत्साहित करके दीर्घकालिक आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए एक रणनीतिक कदम है।

संदर्भ

‘सेंटर फॉर DNA फिंगरप्रिंटिंग एंड डायग्नोस्टिक्स’ (CDFD) ने एक परिवार पर किए गए DNA विश्लेषण में लेविरेट (Levirate) के प्रचलन का खुलासा किया है, जिससे आनुवंशिक गोपनीयता बनाए रखने पर सवाल उठ रहे हैं।

  • दाता (पिता), रोगी और रोगी की माँ के DNA प्रोफाइल तैयार किए गए।
  • DNA से पता चला कि महिला का पति मरीज का वास्तविक पिता नहीं था, बल्कि एक करीबी रिश्तेदार था, संभवतः वास्तविक पिता का भाई था, जिससे लेविरेट के अभ्यास का संकेत मिलता है।

DNA प्रोफाइल के बारे में

  • DNA प्रोफाइल आनुवंशिक विशेषताओं का एक समूह है, जो किसी व्यक्ति के DNA मार्करों का विश्लेषण करके प्राप्त किया जाता है।
  • DNA प्रोफाइलिंग: इसे DNA फिंगरप्रिंटिंग के रूप में भी जाना जाता है, यह एक वैज्ञानिक तकनीक है, जिसका उपयोग व्यक्तियों की उनकी अनूठी आनुवंशिक संरचना के आधार पर पहचान करने के लिए किया जाता है।
  • खोज: एक ब्रिटिश आनुवंशिकीविद् एलेक जेफ्रीस (Alec Jeffreys) ने 1980 के दशक में पाया कि DNA के कुछ क्षेत्रों में ऐसे पैटर्न होते हैं, जो प्रत्येक व्यक्ति के लिए अद्वितीय होते हैं।
  • DNA प्रोफाइलिंग की प्रक्रिया
    • अलगाव: इसमें एक नमूने से DNA की बहुत सारी प्रतियाँ बनाई जाती हैं। [पाॅलीमरेज चेन रिएक्शन (PCR) का उपयोग करके]
    • विखंडन: DNA को छोटी लंबाई में तोड़ने के लिए एक एंजाइम का उपयोग करना।
    • पृथक करना: केशिका जेल वैद्युतकण संचलन (Capillary Gel Electrophoresis) (जेल की एक परत में विद्युत प्रवाह के माध्यम से) नामक तकनीक का उपयोग करके DNA के टुकड़ों को आकार के अनुसार अलग किया जाता है।
    • तुलना: DNA के अन्य नमूनों के साथ जेल पर टुकड़ों के पैटर्न का मिलान करना।

‘सेंटर फॉर DNA फिंगरप्रिंटिंग एंड डायग्नोस्टिक्स’ (CDFD)

  • ‘सेंटर फॉर DNA फिंगरप्रिंटिंग एंड डायग्नोस्टिक्स’ (CDFD) हैदराबाद, भारत में स्थित एक भारतीय स्वायत्त जैव-प्रौद्योगिकी अनुसंधान केंद्र है।
  • वित्तपोषित: जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT), भारत सरकार।
  • मान्यता: CDFD चिकित्सा जैव सूचना विज्ञान में ‘सन माइक्रोसिस्टम्स सेंटर ऑफ एक्सीलेंस’ है, जो एक मजबूत जैव सूचना विज्ञान सुविधा द्वारा समर्थित है और यह EMBnet का भारत नोड है।
  • जीवन विज्ञान में ‘डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी’ की पढ़ाई करने के लिए इस केंद्र को हैदराबाद विश्वविद्यालय और मणिपाल विश्वविद्यालय द्वारा मान्यता प्राप्त है।
  • क्षेत्र: CDFD में अनुसंधान मुख्य रूप से जीवाणु रोगजनकों की आणविक महामारी विज्ञान, संरचनात्मक आनुवंशिकी, आणविक आनुवंशिकी, जैव सूचना विज्ञान और कंप्यूटेशनल जीव विज्ञान पर केंद्रित है।


  • विधियाँ
    • ‘शॉर्ट टेंडम रिपीट’ (Short Tandem Repeats- STR) विश्लेषण: STR, DNA के गैर-कोडिंग क्षेत्र हैं, जिनमें समान न्यूक्लियोटाइड अनुक्रम के दोहराव होते हैं, इसलिए DNA के उन विशिष्ट क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जिनमें लघु अनुक्रम दोहराव होते हैं।
      • उदाहरण: GATAGATAGATAGATAGATAGATA एक ​​STR है, जहाँ न्यूक्लियोटाइड अनुक्रम GATA को छह बार दोहराया जाता है।
    • ‘पॉलीमरेज चेन रिएक्शन’ (Polymerase Chain Reaction- PCR): PCR एक ऐसी तकनीक है, जिसका उपयोग DNA के विशिष्ट क्षेत्रों की वृद्धि के लिए किया जाता है, जिससे इसका विश्लेषण करना आसान हो जाता है। यह उन मामलों में अपरिहार्य सिद्ध हुआ है, जहाँ केवल थोड़ी मात्रा में DNA उपलब्ध है।
    • ‘सिंगल न्यूक्लियोटाइड पॉलीमॉर्फिज्म’ (Single Nucleotide Polymorphism- SNP) विश्लेषण: ‘सिंगल न्यूक्लियोटाइड पॉलीमॉर्फिज्म’ (SNP) DNA अनुक्रम में एकल बेस जोड़ी में भिन्नताएँ हैं। ह्यूमन जीनोम में फैले लाखों ‘सिंगल न्यूक्लियोटाइड पॉलीमॉर्फिज्म’ (SNP) के साथ, उनका विश्लेषण एक विस्तृत DNA प्रोफाइल प्रदान कर सकता है।
  • उपयोग
    • आपराधिक जाँच और फोरेंसिक: फोरेंसिक विज्ञान के क्षेत्र में DNA प्रोफाइलिंग एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसका उपयोग संदिग्धों को अपराध स्थलों से प्राप्त साक्ष्य से जोड़ने के लिए किया जाता है।
      • DNA प्रोफाइलिंग तकनीक को पहली बार वर्ष 1986 में एक आपराधिक मामले में लागू किया गया था, जिसने फोरेंसिक विज्ञान में एक नए युग की शुरुआत की।
    • आनुवांशिक इतिहास का निर्धारण: DNA प्रोफाइलिंग वंशावली अनुसंधान में पैतृक वंशावली की खोज और जैविक संबंधों को स्थापित करने के लिए एक विश्वसनीय और सटीक विधि प्रदान करती है।
    • आनुवांशिकी आधारित उपचार दिनचर्या: DNA प्रोफाइलिंग का उपयोग किसी रोगी की कुछ बीमारियों के प्रति प्रवृत्ति को समझने और उनके आनुवंशिक मेकअप के अनुसार, उपचार प्रदान करने में मदद करता है, जिससे अधिक प्रभावी और व्यक्तिगत स्वास्थ्य सेवा मिलती है।
    • वन्यजीव और संरक्षण आनुवंशिकी: वन्यजीव और संरक्षण में, DNA प्रोफाइलिंग जानवरों के प्रवास को ट्रैक करने, आनुवंशिक विविधता की निगरानी करने और लुप्तप्राय प्रजातियों के प्रजनन का प्रबंधन करने में मदद करती है।

DNA प्रोफाइलिंग और गोपनीयता संबंधी चिंताएँ

  • संवेदनशील जानकारी प्रकट करना: DNA प्रोफाइलिंग से पूर्व सहमति के बिना वंश, चिकित्सा इतिहास आदि से संबंधित संवेदनशील निजी जानकारी तीसरे पक्ष को प्रकट की जा सकती है, जिससे उल्लंघन हो सकता है।
  • निगरानी उपकरण: इस तकनीक का उपयोग सरकारें अपने खिलाफ उठने वाले प्रत्येक असहमतिपूर्ण मुद्दे को दबाने और उसके साथ भेदभाव करने के लिए कर सकती हैं, जिससे लोकतांत्रिक मूल्यों का क्षरण हो सकता है।
  • सुरक्षा: DNA प्रोफाइल के संबंध में प्रभावी कानूनों और इसके प्रवर्तन की कमी के कारण उन्हें लीक एवं दुरुपयोग का खतरा हो सकता है।
  • भेदभाव: DNA जानकारी का उपयोग धर्म, जाति, नस्ल, वर्ग और लिंग एवं स्वास्थ्य के आधार पर समाज के विभिन्न वर्गों के साथ भेदभाव करने के लिए किया जा सकता है।
  • डेटा संग्रह: ‘डायरेक्ट-टू-कंज्यूमर’ जेनेटिक टेस्टिंग कंपनियाँ आपके बारे में गैर-DNA  जानकारी एकत्र और साझा कर सकती हैं। यह जानकारी डेटा ब्रोकरों को बेची जा सकती है, जो इसका उपयोग बीमा दरों या होम लोन की ब्याज दरों को निर्धारित करने के लिए कर सकते हैं।
  • फोरेंसिक उपयोग: कानून प्रवर्तन एजेंसियाँ कानून प्रवर्तन उद्देश्यों के लिए DNA नमूने और प्रोफाइल रख सकती हैं, जैसे अपराधियों या लापता व्यक्तियों की पहचान करना।

भारत में DNA प्रोफाइलिंग के संबंध में कानूनी प्रावधान

  • दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC)
    • धारा 53: यह जाँच एजेंसी के अनुरोध पर संदिग्धों की DNA प्रोफाइलिंग की अनुमति देती है। यह पुलिस अधिकारी को जाँच करने के लिए चिकित्सा पेशेवर की सहायता लेने की भी अनुमति देती है।
    • धारा 53A: यह विशेष रूप से दुष्कर्म के संदिग्धों के लिए DNA प्रोफाइलिंग की अनुमति देती है।
  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872: भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धाराएँ 45-51 न्यायालय में DNA साक्ष्य सहित विशेषज्ञ गवाही की स्वीकार्यता निर्धारित करती हैं।
  • दंड प्रक्रिया (शिनाख्त) विधेयक, 2022: यह एक भारतीय कानून है, जो पुलिस को आपराधिक जाँच के लिए व्यक्तियों से पहचान योग्य जानकारी एकत्र करने की अनुमति देता है, जैसे कि माप लेना, गिरफ्तार लोगों से फिंगरप्रिंट, पैरों के निशान, जैविक नमूने और व्यवहार संबंधी विशेषताएँ एकत्र करना, जिसमें दोषी भी शामिल हैं।
  • DNA प्रौद्योगिकी (उपयोग एवं अनुप्रयोग) विनियमन विधेयक, 2018: DNA प्रौद्योगिकी की सटीकता, व्यक्तिगत गोपनीयता के लिए संभावित खतरों और दुरुपयोग की संभावना के आधार पर विपक्ष के विरोध के कारण विधेयक को लोकसभा से वापस ले लिया गया था।
    • उद्देश्य
      • विनियामक निकाय के रूप में एक DNA प्रोफाइलिंग बोर्ड स्थापित करना, जिसका एक कार्य DNA नमूना परीक्षण करने के लिए अधिकृत प्रयोगशालाओं को मान्यता प्रदान करना होगा।
      • DNA डेटा बैंक: दोषियों और अभियुक्तों से एकत्रित DNA जानकारी को संगृहीत करने के लिए डेटाबेस यानी DNA डेटा बैंक बनाना। इस डेटाबेस को अनुक्रमित किया जा सकता है और अपराध स्थलों से मिलान करने वाले नमूनों की खोज की जा सकती है।
      • दोषियों और आरोपियों से DNA नमूने एकत्र करने में सुविधा प्रदान करना।

लेविरेट (Levirate)

  • यह शब्द लैटिन शब्द लेविर (Levir) से आया है, जिसका अर्थ है ‘पति का भाई’।
  • लेविरेट वह प्रथा है, जिसमें विधवा महिला या जिसका पति मानसिक या शारीरिक रूप से अक्षम है, वह अपने पति के भाई से बच्चे पैदा कर सकती है।
  • लेविरेट विवाह उन समाजों में प्रचलित था, जहाँ कबीले की संरचना मजबूत थी, जहाँ बहिर्विवाह (कुल से बाहर विवाह) वर्जित था।
  • उद्देश्य: यह सुनिश्चित करने के लिए प्रचलित है कि पुरुष उत्तराधिकारी का कार्य करना और जैविक या आनुवंशिक वंशावली को आगे जारी रखना।
  • प्रचलन: लेविरेट विवाह उत्तर भारत की तुलना में दक्षिण भारत में अधिक आम और स्वीकार्य था।

संदर्भ

भारत सरकार और एशियाई विकास बैंक (ADB) ने भारत के बागवानी क्षेत्र में पौध स्वास्थ्य प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए 98 मिलियन डॉलर के ऋण पर हस्ताक्षर किए।

  • यह ऋण समझौता भारत के आत्मनिर्भर स्वच्छ संयंत्र कार्यक्रम को समर्थन देने के लिए है।

आत्म निर्भर स्वच्छ संयंत्र कार्यक्रम (CCP)

  • घोषणा: बागवानी क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए एकीकृत बागवानी विकास मिशन (MIDH) के तहत वित्त वर्ष 2023-24 के केंद्रीय बजट में इसकी घोषणा की गई थी।
  • उद्देश्य: प्रमाणित रोग-मुक्त रोपण सामग्री तक किसानों की पहुँच में सुधार करना, फसल की पैदावार, गुणवत्ता और जलवायु प्रभावों के प्रति लचीलापन बढ़ाना। 
  • कार्यान्वयन एजेंसियाँ: इस परियोजना को राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के माध्यम से कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जाएगा।
  • हितधारकों के साथ सहयोग: इस परियोजना के सफल कार्यान्वयन के लिए निजी नर्सरियों, शोधकर्ताओं, राज्य सरकारों और उत्पादकों के संघों के साथ परामर्श शामिल है। 
  • स्वच्छ पौध केंद्रों की स्थापना: स्वच्छ पौध केंद्र (CPCs), CCP के मुख्य घटक हैं।
    • इस परियोजना के तहत रोग मुक्त रोपण सामग्री (Planting Materials) को बनाए रखने के लिए प्रयोगशालाओं और प्रशिक्षित विशेषज्ञों से सुसज्जित केंद्र स्थापित किए जाएँगे।
    • संपूर्ण भारत में उन्नत सी.पी.सी. स्थापित किए जाएँगे, जिनमें से प्रत्येक विशिष्ट फलों के प्रकारों पर केंद्रित होगा।
    • ये केंद्र आधुनिक नैदानिक ​​और चिकित्सीय सुविधाओं से सुसज्जित होंगे, जिनमें ऊतक संवर्द्धन प्रयोगशालाएँ भी शामिल हैं।
  • स्वच्छ पौध प्रमाणन योजना: यह पहल वर्ष 1966 के बीज अधिनियम के तहत एक प्रमाणन योजना को शुरू करेगी, ताकि रोग-मुक्त रोपण सामग्री के लिए निजी नर्सरियों का परीक्षण और मान्यता दी जा सके।
  • व्यापक पहलों के साथ संरेखण: स्वच्छ पौध कार्यक्रम मिशन लाइफ (लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट) और वन हेल्थ दृष्टिकोण जैसी व्यापक पहलों के साथ संरेखित है।

भारत में बागवानी क्षेत्र

  • वर्ष 2022-23 में भारत का बागवानी उत्पादन 351.92 मिलियन टन तक पहुँच गया, जो खाद्यान्न उत्पादन से अधिक है।
  • भारत के कुल बागवानी उत्पादन में फलों और सब्जियों का योगदान लगभग 90% है।
  • कृषि सकल मूल्य वर्द्धित (GVA) में योगदान: बागवानी कृषि का GVA में 33% योगदान है।
  • भारत वैश्विक फलों और सब्जियों के उत्पादन में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है।
  • बागवानी उत्पादों का निर्यात
    • सब्जियों का निर्यात: वैश्विक सब्जी निर्यात में भारत 14वें स्थान पर है।
    • फलों का निर्यात: वैश्विक फल निर्यात में भारत 23वें स्थान पर है।

भारत के बागवानी क्षेत्र में सुधार लाने हेतु प्रमुख सरकारी योजनाएँ

  • एकीकृत बागवानी विकास मिशन (MIDH)
    • उद्देश्य: यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसका उद्देश्य बागवानी क्षेत्र का समग्र विकास करना है।
    • कार्यान्वयन मंत्रालय: वर्ष 2014-15 से कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय इसका क्रियान्वयन कर रहा है।
    • हरित क्रांति का भाग: MIDH को ‘हरित क्रांति-कृषोन्ति योजना’ के तहत लागू किया गया है।
    • फंडिंग पैटर्न
      • सामान्य राज्य: भारत सरकार (GoI) विकास कार्यक्रमों के लिए कुल परिव्यय का 60%, जबकि राज्य सरकारें 40% का योगदान देती हैं। 
      • पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्य: इन क्षेत्रों के लिए, भारत सरकार कुल परिव्यय का 90% वहन करती है, जबकि राज्य सरकारें शेष 10% का योगदान देती हैं।
  • MIDH की उपयोजनाएँ
    • राष्ट्रीय बागवानी मिशन (NHM): वर्ष 2005 में शुरू किया गया NHM एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसका उद्देश्य बागवानी क्षेत्र के समग्र विकास को बढ़ावा देना है।
    • पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों के लिए बागवानी मिशन (HMNEH): यह पूर्वोत्तर और हिमालयी क्षेत्रों में बागवानी के व्यापक विकास पर ध्यान केंद्रित करता है।
      • यह इन क्षेत्रों की विशिष्ट कृषि-जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल फसलों को बढ़ावा देता है, जिसका उद्देश्य किसानों की आजीविका में सुधार लाना और सतत् बागवानी प्रथाओं को बढ़ावा देना है।
  • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के तहत बागवानी के लिए हुई वृद्धि: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के तहत किसानों के लिए प्रीमियम अंशदान की सीमा इस प्रकार है:
    • खरीफ फसलों के लिए 2%
    • रबी फसलों के लिए 1.5%
    • वाणिज्यिक और बागवानी फसलों के लिए 5%।
  • बागवानी क्लस्टर विकास कार्यक्रम (HCDP): HCDP भौगोलिक विशेषज्ञता के आधार पर बागवानी क्लस्टरों के एकीकृत और बाजार आधारित विकास को बढ़ावा देता है।
    • यह विशिष्ट क्षेत्रों में चिह्नित फसलों पर ध्यान केंद्रित करता है, जिसका उद्देश्य उत्पादकता को अनुकूलित करना, निर्यात को बढ़ाना और भारतीय बागवानी उत्पादों की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाना है।
  • पोस्ट हार्वेस्टिंग अवसंरचना विकास योजना: यह योजना आधुनिक सुविधाओं, जैसे पैक हाउस, राइपनिंग चैंबर, शीत भंडारण इकाइयों और प्रसंस्करण सुविधाओं के लिए सहायता प्रदान करके होने वाली ‘पोस्ट हार्वेस्टिंग’ क्षति की भरपाई करती है।
  • मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना: यद्यपि यह योजना केवल बागवानी तक सीमित नहीं है, फिर भी इससे बागवानी करने वाले किसानों को काफी लाभ मिलता है।
    • इसमें मृदा परीक्षण शामिल है और पोषक तत्त्वों एवं उर्वरकों पर फसलवार सिफारिशों के साथ स्वास्थ्य कार्ड प्रदान किए जाते हैं, जिससे किसानों को सूचित निर्णय लेने में मदद मिलती है, जिससे संभावित रूप से पैदावार में सुधार होता है और आगत पर आने वाली लागत में कमी आती है।

संदर्भ

अपने वर्ष 2047 विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए, भारत वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता एवं उभरते खतरों को संबोधित करते हुए नवाचार का उपयोग करने के लिए विज्ञान, प्रौद्योगिकी तथा अनुसंधान सुरक्षा पर जोर देता है।

वर्ष 2047 तक भारत के विकास में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका

  • भारत का लक्ष्य रणनीतिक एवं उभरते क्षेत्रों में विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी (Science and Technology- S&T) पर जोर देकर वर्ष 2047 तक महत्त्वपूर्ण विकास हासिल करना है।
  • आधुनिक प्रौद्योगिकियों में निवेश महत्त्वपूर्ण है:
    • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा में अपना स्थान सुनिश्चित करना।
    • सामाजिक चुनौतियों का समाधान करना।
    • आर्थिक अवसरों को अनलॉक करना।

अनुसंधान सुरक्षा का महत्त्व

  • परिभाषा: वैज्ञानिक अनुसंधान को गोपनीयता, आर्थिक मूल्य एवं राष्ट्रीय हित के खतरों से बचाना।
  • अनुसंधान सुरक्षा इसकी सुरक्षा करती है:
    • अनुसंधान के साधन, जानकारी एवं उत्पाद।
    • वैज्ञानिक अनुसंधान इनपुट।
    • प्रक्रियाएँ।
    • परिणाम।
  • यह इसके लिए महत्त्वपूर्ण है: 
    • अनुसंधान में सार्वजनिक निवेश की रक्षा करना।
    • अनुसंधान डेटा एवं प्रौद्योगिकी के दुरुपयोग को रोकना।
    • विदेश यात्रा करने वाले छात्रों एवं कर्मचारियों की सुरक्षा की रक्षा करना।
    • विदेशी सरकार के हस्तक्षेप से सुरक्षा सुनिश्चित करना।
    • जोखिमों को न्यूनतम करना एवं सहयोगात्मक विज्ञान के पुरस्कारों को अधिकतम करना।
  • भू-राजनीतिक संबंधी खतरे
    • विदेशी हस्तक्षेप: राष्ट्रीय अनुसंधान हितों से समझौता करने के लिए विदेशी संस्थाओं द्वारा हस्तक्षेप करना।
      • उदाहरण: अमेरिकी खुफिया जानकारी के अनुसार, वर्ष 2016 के संयुक्त राज्य अमेरिका के चुनावों में रूसी सरकार ने डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति चुनाव अभियान को बढ़ावा देने के लिए हस्तक्षेप किया था।
    • बौद्धिक संपदा की चोरी: आर्थिक या रणनीतिक लाभ हासिल करने के लिए स्वामित्व अधिग्रहण या प्रौद्योगिकियों की चोरी करना।
      • उदाहरण: वर्ष 2020 के अंत में, उत्तर कोरियाई साइबर हमलावरों ने कथित तौर पर यूनाइटेड किंगडम में वैक्सीन निर्माता एस्ट्राजेनेका को निशाना बनाया था।
    • आतंरिक खतरे: संगठनों के भीतर के व्यक्ति जानबूझकर या अनजाने में अनुसंधान सुरक्षा से समझौता करते हैं।
      • उदाहरण: हार्वर्ड के एक प्रोफेसर को अमेरिकी रक्षा अनुदान प्राप्त करते समय चीनी फंडिंग से अघोषित संबंधों के लिए वर्ष 2020 में गिरफ्तार किया गया था।
    • साइबर हमले: हैकिंग, संवेदनशील अनुसंधान डेटा को नष्ट करने या चुराने एवं महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे को बाधित करने का प्रयास करती है।
      • उदाहरण: वर्ष 2021 में, औपनिवेशिक पाइपलाइन पर रैंसमवेयर हमले के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्वी तट पर व्यापक ईंधन की कमी हो गई।
    • संवेदनशील डेटा तक अनधिकृत पहुँच: गोपनीय अनुसंधान को उजागर करने वाले उल्लंघन, राष्ट्रीय सुरक्षा एवं प्रतिस्पर्द्धात्मकता को नुकसान पहुँचाते हैं।
      • उदाहरण: वर्ष 2018 में, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले में डेटा ब्रीच के मामले सामने आए, जिससे संकाय, कर्मचारियों एवं छात्रों सहित 3,00,000 से अधिक व्यक्तियों की व्यक्तिगत जानकारी प्रभावित हुई।

भारत के रणनीतिक प्रौद्योगिकी क्षेत्र

  • फोकस क्षेत्र
    • अंतरिक्ष, रक्षा, अर्द्धचालक, साइबर सुरक्षा।
    • परमाणु प्रौद्योगिकी, जैव प्रौद्योगिकी, स्वच्छ ऊर्जा।
    • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), क्वांटम तकनीक।
  • अनुसंधान सुरक्षा उल्लंघनों के जोखिम
    • राष्ट्रीय हितों से समझौता करना।
    • तकनीकी प्रगति में देरी करना।
    • विदेशी अभिकर्ताओं द्वारा शोषण।

अनुसंधान सुरक्षा पर वैश्विक उदाहरण

  • संयुक्त राज्य अमेरिका
    • अनुसंधान सुरक्षा प्रावधानों के साथ CHIPS एवं विज्ञान अधिनियम।
    • राष्ट्रीय मानक एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (NIST) द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा राष्ट्रपति ज्ञापन 33 (NSPM-33)।
      • जनवरी 2021 में प्रकाशित, NSPM-33 संघीय एजेंसियों को अमेरिकी सरकार समर्थित अनुसंधान एवं विकास में विदेशी सरकार के हस्तक्षेप के खिलाफ सुरक्षा मजबूत करने का निर्देश देता है।
  • कनाडा
    • अनुसंधान भागीदारी के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा दिशा-निर्देश।
      • फरवरी 2023 में, कनाडा सरकार के तीन मंत्रियों ने एक संयुक्त बयान जारी किया, जिसमें संवेदनशील क्षेत्रों में कुछ शोधकर्ताओं के विदेशी संस्थाओं से जुड़े होने के कारण अनुसंधान के लिए सरकारी फंडिंग पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
  • यूरोपीय संघ
    • जोखिम मूल्यांकन
      • साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर करने से पहले, अनुसंधान एवं नवाचार संगठन अंतरराष्ट्रीय भागीदारों की प्रेरणाओं तथा एजेंडा पर विचार करने के लिए जोखिम मूल्यांकन कर सकते हैं।
    • क्षेत्र स्व-शासन एवं जोखिम-आधारित दृष्टिकोण पर जोर।
    • अनुसंधान सुरक्षा के लिए होराइजन यूरोप दिशा-निर्देश।

अनुसंधान सुरक्षा में चुनौतियाँ

  • विज्ञान की सहयोगात्मक प्रकृति के साथ संघर्ष: अनुसंधान की सुरक्षा पर प्रतिबंध वैज्ञानिक प्रगति के लिए महत्त्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय सहयोग में बाधा बन सकते हैं।
    • ‘ह्यूमन जीनोम परियोजना’ को वैज्ञानिक प्रगति में तेजी लाने के लिए डेटा एवं संसाधनों के खुले आदान-प्रदान की आवश्यकता थी। सख्त सुरक्षा उपाय लागू करने से ऐसे सहयोगात्मक प्रयासों में बाधा आ सकती थी।
  • मुक्त विज्ञान एवं सुरक्षा को संतुलित करना: संवेदनशील जानकारी की सुरक्षा करते हुए अनुसंधान में पारदर्शिता तथा पहुँच सुनिश्चित करना।
    • COVID 19 महामारी के दौरान, वैक्सीन विकास के लिए अनुसंधान डेटा का तेजी से साझाकरण महत्त्वपूर्ण था, बौद्धिक संपदा अधिकारों के बारे में चिंताओं एवं संवेदनशील जानकारी के दुरुपयोग के कारण डेटा साझाकरण प्रतिबंधों के बारे में कई बार बहस हुई।
  • प्रशासनिक बोझ में वृद्धि: अनुसंधान सुरक्षा उपायों को लागू करने से विश्वविद्यालयों एवं शोधकर्ताओं के लिए अनुपालन की जटिलता बढ़ जाती है।
    • यूनाइटेड किंगडम के राष्ट्रीय सुरक्षा एवं निवेश अधिनियम तथा कनाडा के अनुसंधान साझेदारी के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा दिशा-निर्देश जैसे नियामक दायित्वों के लिए विश्वविद्यालयों को अनुपालन के लिए महत्त्वपूर्ण संसाधन समर्पित करने की आवश्यकता होती है।
  • राजनीतिक हस्तक्षेप का जोखिम: सुरक्षा उपाय शैक्षणिक स्वतंत्रता को कमजोर करते हुए राजनीतिक प्रभाव का एक उपकरण बन सकते हैं।
    • कुछ देशों में, अनुसंधान सुरक्षा उपायों का उपयोग असहमति को दबाने या महत्त्वपूर्ण अनुसंधान को दबाने के लिए किया गया है।
  • कार्यान्वयन की लागत: मजबूत अनुसंधान सुरक्षा बुनियादी ढाँचे की स्थापना करना संसाधन-गहन है।
    • आयाम अनुसंधान सुरक्षा जैसे उपकरण, जोखिमों को संबोधित करने में प्रभावी होते हुए भी, वित्तीय निवेश की आवश्यकता होती है, जिसे वहन करने के लिए कई संस्थानों को संघर्ष करना पड़ सकता है।
  • गतिशील एवं विकसित होते खतरे: AI एवं अन्य प्रौद्योगिकियों में तेजी से प्रगति खतरों को अधिक अप्रत्याशित एवं जटिल बनाती है।
    • रैंसमवेयर हमलों एवं डेटा ब्रीच जैसे साइबर खतरों के तेजी से विकास के लिए निरंतर सतर्कता तथा सुरक्षा उपायों को अपनाने की आवश्यकता है।
  • अंतरराष्ट्रीय संघर्ष एवं प्रतिद्वंद्विता: भू-राजनीतिक तनाव सीमाओं के पार अनुसंधान सुरक्षा के प्रबंधन में जटिलता जोड़ते हैं।
    • उदाहरण के लिए, अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध ने दोनों देशों के बीच वैज्ञानिक सहयोग को प्रभावित किया है, जिससे संयुक्त अनुसंधान परियोजनाओं में बाधा उत्पन्न हुई है।
  • संभावित अति-विनियमन: अत्यधिक कड़े सुरक्षा उपाय नवाचार को बाधित कर सकते हैं।
    • नियमित अनुसंधान एवं उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों के बीच अंतर करने में विफल रहने वाले नियम शोधकर्ताओं को अत्याधुनिक विषयों की खोज करने से हतोत्साहित कर सकते हैं, जैसा कि AI शासन के आसपास की चर्चाओं में बताया गया है।
  • अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र के साथ एकीकरण: सुरक्षा प्रोटोकॉल को मुख्य गतिविधियों को बाधित किए बिना अनुसंधान वर्कफ्लो के साथ संरेखित करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए, सख्त डेटा एक्सेस नियंत्रण से शोधकर्ताओं के लिए प्रभावी ढंग से सहयोग करना मुश्किल हो सकता है।
  • उभरते AI जोखिम: AI नैतिक दुविधाएँ प्रस्तुत करता है, जैसे एल्गोरिदम एवं डेटा का संभावित दुरुपयोग।
    • सामग्री तैयार करने की AI की क्षमता अनुसंधान आउटपुट में विश्वास को जटिल बनाती है। 
    • यह जोखिम भी उत्पन्न करता है, जैसे अनधिकृत एप्लिकेशन (जैसे- डीपफेक तकनीक) विकसित करने में मशीन लर्निंग मॉडल का उपयोग।

भारत में अनुसंधान सुरक्षा को बढ़ावा देने की पहल

  • यद्यपि भारत के पास व्यापक राष्ट्रीय अनुसंधान सुरक्षा ढाँचा नहीं है, फिर भी सरकार ने अनुसंधान सुरक्षा के विशिष्ट पहलुओं, विशेषकर साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में, के समाधान के लिए कई पहल की हैं:-
  • IT अधिनियम, 2000: यह अधिनियम डेटा सुरक्षा, गोपनीयता एवं साइबर अपराध सहित इलेक्ट्रॉनिक लेन-देन तथा साइबर सुरक्षा के लिए एक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है। 
  • डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम 2023: यह अधिनियम डेटा सुरक्षा एवं नियामक आवश्यकताओं को जोड़कर राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति को मजबूत करता है। 
  • साइबर स्वच्छता केंद्र: यह पहल कंप्यूटर एवं उपकरणों से दुर्भावनापूर्ण बॉटनेट प्रोग्राम का पता लगाती है तथा उन्हें हटा देती है। यह मैलवेयर विश्लेषण के लिए निःशुल्क उपकरण भी प्रदान करता है। 
  • साइबर सुरक्षित भारत: यह कार्यक्रम मुख्य सूचना सुरक्षा अधिकारियों (CISO) एवं IT समुदाय को साइबर सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए शिक्षित तथा सक्षम बनाता है।

भारत में अनुसंधान सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए कदम

  • एक राष्ट्रीय अनुसंधान सुरक्षा नीति तैयार करना: संवेदनशील डेटा, बौद्धिक संपदा एवं AI, क्वांटम कंप्यूटिंग तथा जैव-प्रौद्योगिकी जैसी रणनीतिक प्रौद्योगिकियों की सुरक्षा के लिए एक व्यापक ढाँचा विकसित करना।
    • अनुसंधान साझेदारी के लिए कनाडा के राष्ट्रीय सुरक्षा दिशा-निर्देश भारत के लिए मार्गदर्शक का कार्य कर सकते हैं।
  • साइबर सुरक्षा बुनियादी ढाँचे को मजबूत करना: साइबर हमलों को रोकने एवं अनुसंधान बुनियादी ढाँचे को सुरक्षित करने के लिए उन्नत साइबर सुरक्षा प्रणालियों में निवेश करना। वास्तविक समय में खतरे का पता लगाने तथा उसे कम करने के लिए राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा एजेंसियों के साथ सहयोग करना।
    • संवेदनशील परियोजनाओं पर लक्षित साइबर हमलों के बाद यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने अपने साइबर सुरक्षा उपायों को बढ़ावा दिया।
  • रणनीतिक अनुसंधान को वर्गीकृत एवं प्राथमिकता देना: अनुसंधान परियोजनाओं को उनके रणनीतिक महत्त्व के आधार पर वर्गीकृत करना एवं अति-विनियमन को कम करने के लिए आनुपातिक सुरक्षा उपाय लागू करना।
    • US नेशनल साइंस फाउंडेशन (NSF) सुरक्षा संसाधनों को प्रभावी ढंग से आवंटित करने के लिए अनुसंधान क्षेत्रों को वर्गीकृत करता है।
  • जागरूकता एवं प्रशिक्षण को बढ़ावा देना: सुरक्षित अनुसंधान प्रथाओं एवं जोखिम न्यूनीकरण पर शोधकर्ताओं के लिए कार्यशालाएँ, प्रशिक्षण तथा शैक्षिक मॉड्यूल आयोजित करना।
    • यूनाइटेड किंगडम में विश्वविद्यालय, जैसे कि ब्रिस्टल विश्वविद्यालय, अपने पाठ्यक्रम में सुरक्षित अनुसंधान प्रशिक्षण को शामिल करते हैं। 
  • विदेशी सहयोग में पारदर्शिता बढ़ाना: शोधकर्ताओं को संभावित जोखिमों की पहचान करने के लिए, विशेष रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में विदेशी फंडिंग एवं सहयोग का खुलासा करने की आवश्यकता है।
    • US NSPM-33 कार्यान्वयन मार्गदर्शन अनुसंधान को सुरक्षित रखने के लिए विदेशी भागीदारी का पूर्ण खुलासा अनिवार्य करता है।
  • एक समर्पित अनुसंधान सुरक्षा कार्यालय स्थापित करना: संस्थानों में अनुसंधान सुरक्षा उपायों के समन्वय एवं निगरानी के लिए अनुसंधान राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (ANRF) के तहत एक विशेष कार्यालय बनाना।
    • US NSF का अनुसंधान सुरक्षा कार्यालय ऐसी पहल के लिए एक मॉडल के रूप में कार्य करता है।
  • AI अनुसंधान के लिए नैतिक मानकों को अपनाना: दुरुपयोग को रोकने एवं नियामक ढाँचे के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए AI अनुसंधान हेतु नैतिक मानदंड तथा जवाबदेही दिशा-निर्देश विकसित करना।
    • सिटी, लंदन विश्वविद्यालय में AI रिसर्च सेंटर शोधकर्ताओं की नैतिक जिम्मेदारी पर जोर देता है।
  • फंडिंग आवंटित करना एवं अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना: विशेषज्ञता एवं सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने के लिए विश्वसनीय अंतरराष्ट्रीय भागीदारों के साथ सहयोग करते हुए सुरक्षित अनुसंधान बुनियादी ढाँचे तथा प्रशिक्षण के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना।
    • QUAD (अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) के भीतर भारत का सहयोग उभरती प्रौद्योगिकियों में अनुसंधान सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित कर सकता है।

निष्कर्ष 

भारत के रणनीतिक हितों की रक्षा करने, नवाचार को बढ़ावा देने एवं वर्ष 2047 तक इसके विकास उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए मजबूत अनुसंधान सुरक्षा सुनिश्चित करना आवश्यक है। खुलेपन तथा सहयोग के साथ सुरक्षा को संतुलित करके, भारत एक लचीला एवं विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण कर सकता है।

संदर्भ

केंद्रीय कृषि एवं किसान मंत्रालय द्वारा तैयार ‘कृषि विपणन पर राष्ट्रीय नीतिगत फ्रेमवर्क’ को सार्वजनिक टिप्पणियों तथा सुझावों के लिए जारी किया गया है।

पृष्ठभूमि

  • कृषि कानूनों को निरस्त करना: भारत सरकार ने कोविड-19 महामारी के दौरान तीन कृषि कानून लाकर कृषि सुधारों की शुरुआत करने की कोशिश की, लेकिन किसानों के विरोध के कारण अंततः उन्हें निरस्त करना पड़ा।
  • अधिकार क्षेत्र: कृषि राज्य सूची का विषय है, जबकि कृषि व्यापार समवर्ती सूची के अंतर्गत आता है।

कृषि विपणन पर राष्ट्रीय नीतिगत फ्रेमवर्क के मसौदे में प्रमुख प्रस्ताव

  • सशक्त कृषि विपणन सुधार समिति का गठन
    • GST अधिकार प्राप्त राज्य वित्त मंत्रियों की समिति के समान एक पैनल बनाने का सुझाव दिया गया।
    • संरचना: राज्य कृषि मंत्री, बारी-बारी से इसकी अध्यक्षता करेंगे।
    • पंजीकरण: सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत पंजीकरण किया गया जाएगा।
    • समिति का गठन: समिति का गठन गैर-सांविधिक राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से किया जाना चाहिए।
    • संचालन: त्रैमासिक बैठकें या आवश्यकतानुसार; एक स्थायी सचिवालय प्रस्तावित किया गया है।
  • समिति के लक्ष्य
    • राज्यों को राज्य APMC अधिनियमों में सुधार प्रावधानों को अपनाने के लिए प्रेरित करना।
    • नियमों को अधिसूचित करना तथा एकल लाइसेंसिंग/पंजीकरण प्रणाली और एकल शुल्क के माध्यम से कृषि उपज के लिए एकीकृत राष्ट्रीय बाजार की दिशा में आगे बढ़ने के लिए राज्यों के बीच आम सहमति बनाना।
  • राज्यों के लिए प्रस्तावित सुधार
    • आदर्श कृषि उत्पाद विपणन अधिनियम, 2003 को अपनाना।
    • 12 चिह्नित सुधार क्षेत्रों का कार्यान्वयन, जिनमें शामिल हैं:
      • निजी थोक बाजार।
      • प्रसंस्करणकर्त्ता, निर्यातक तथा खुदरा विक्रेताओं द्वारा सीधे प्राथमिक उत्पादक से खरीदारी करना।
      • गोदामों और कोल्ड स्टोरेज के लिए ‘डीम्ड मार्केट यार्ड’ का दर्जा देना।
      • राज्यों में एकल-समय बाजार शुल्क और एकीकृत व्यापार लाइसेंस की सुविधा प्रदान करना।
  • किसानों के लिए मूल्य बीमा योजना: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के समान मूल्य आश्वासन तंत्र का प्रस्ताव किया गया, जिसका उद्देश्य है:-
    • मूल्य में गिरावट के दौरान किसानों की आय को स्थिर करना।
    • आधुनिक कृषि पद्धतियों को अपनाने को प्रोत्साहित करना।
    • कृषि क्षेत्र में ऋण प्रवाह को बढ़ाना।

भारतीय किसानों के लिए अपनी उपज बेचने के अवसर

  • फार्मगेट या स्थानीय बाजार (हाट): किसान सीधे गाँव के एग्रीगेटर्स या स्थानीय बाजारों में उपभोक्ताओं को बेच सकते हैं, लेकिन कीमत आमतौर पर खरीदार द्वारा तय की जाती है।
  • कृषि उपज मंडी समिति (APMC) थोक मंडी: किसान APMC मंडियों में निजी व्यापारियों को अपनी उपज बेच सकते हैं, जहाँ कीमतें भी खरीदारों द्वारा निर्धारित की जाती हैं।
  • सरकारी एजेंसियाँ: सरकारी खरीद एजेंसियाँ ​​उन किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) प्रदान करती हैं, जिनकी उपज विशिष्ट गुणवत्ता मानकों को पूरा करती है, जिससे मूल्य का आधार उपलब्ध होता है।

प्रस्तावित मसौदा नीति का महत्त्व 

  • बाजार विखंडन को संबोधित करना: यह प्रस्ताव राज्य के APMC अधिनियमों के कारण वैधानिक रूप से गठित बाजार समिति द्वारा प्रबंधित और विनियमित अधिसूचित बाजार क्षेत्र के नाम पर राज्य के अंतर्गत होने वाले बाजारों के विखंडन को संबोधित करने का प्रयास करता है।
  • विचारों में मतभेद को दूर करना: कृषि विपणन पर केंद्र, राज्यों तथा किसानों के बीच आपसी मुद्दों का समाधान करने का प्रयास किया गया है।

कृषि विपणन के बारे में

  • कृषि विपणन में कृषि उपज को खेतों से उपभोक्ताओं तक पहुँचाने से संबंधित सभी गतिविधियाँ शामिल होती हैं।
    • इसमें संग्रहण, ग्रेडिंग, भंडारण, परिवहन, प्रसंस्करण और बिक्री शामिल हैं।
  • भारत में कृषि विपणन कृषि उपज विपणन समिति (APMC) अधिनियमों द्वारा शासित होता है, जिसका प्रशासन संबंधित राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है।

कृषि विपणन के बढ़ते महत्त्व के कारण

  • विपणन योग्य अधिशेष में वृद्धि: उन्नत प्रौद्योगिकी तथा बेहतर गुणवत्ता वाले बीजों के कारण कृषि उत्पादकता में वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप वस्तुओं का अधिशेष बढ़ गया है।
    • इस अधिशेष को प्रबंधित करने के लिए कुशल तथा उत्तरदायी बाजार आवश्यक हैं।
  • बागवानी फसलों के लिए बाजार आवश्यकताएँ: उच्च मूल्य वाली बागवानी फसलों की ओर विविधीकरण, जो भारी और जल्दी खराब होने वाली होती हैं, आपूर्ति शृंखला में गुणवत्ता बनाए रखने के लिए उचित हैंडलिंग और भंडारण की आवश्यकता होती है।
  • मूल्य खोज और मूल्य संकेत: कृषि विपणन में विभिन्न चरणों में कीमतों की खोज करना और विशेष रूप से उपभोक्ताओं से किसानों तक मूल्य संकेतों को प्रसारित करना शामिल है।
    • मूल्य संकेत किसानों को बाजार के रुझान को समझने में मदद करते हैं तथा उन्हें क्या उगाना है, कब बेचना है तथा किस कीमत पर बेचना है, इस बारे में निर्णय लेने में मदद करते हैं, जिससे उचित मूल्य निर्धारण सुनिश्चित होता है तथा उत्पादन माँग के अनुरूप होता है।
  • शहरी आबादी को भोजन उपलब्ध कराना: बढ़ते शहरीकरण के लिए ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी केंद्रों तक खाद्यान्न पहुँचाने के लिए कुशल कृषि विपणन प्रणालियों की आवश्यकता होती है, ताकि शहरों में खाद्यान्न की बढ़ती माँग को पूरा किया जा सके।

कृषि विपणन में APMC तथा आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 की भूमिका

  • कृषि उपज मंडी समितियाँ (APMC)
    • बाजार विनियमन: APMC की स्थापना कृषि उपज के विपणन को विनियमित करने, निष्पक्ष व्यापार प्रथाओं को सुनिश्चित करने तथा बिचौलियों द्वारा शोषण के खिलाफ सुरक्षा के लिए की गई थी।
    • मूल्य निर्धारण: APMC नीलामी के माध्यम से पारदर्शी मूल्य निर्धारण की सुविधा प्रदान करती हैं, जिससे किसानों को उनकी उपज के लिए लाभकारी मूल्य प्राप्त करने में मदद मिलती है।
    • बुनियादी ढाँचे का विकास: ये बाजार यार्ड के भीतर गोदामों, कोल्ड स्टोरेज तथा परिवहन जैसे आवश्यक बुनियादी ढाँचे प्रदान करती हैं।
    • गुणवत्ता मानक: APMC बिक्री से पहले उपज का निरीक्षण तथा ग्रेडिंग करके गुणवत्ता मानकों का पालन सुनिश्चित करती हैं।
  • आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955
    • मूल्य नियंत्रण तथा विनियमन: इसका उद्देश्य आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन, आपूर्ति तथा वितरण को विनियमित करना है ताकि उचित मूल्य पर उनकी उपलब्धता सुनिश्चित हो सके।
      • यह सरकार को स्टॉकहोल्डिंग सीमा लगाने, कीमतों को नियंत्रित करने और विशेष रूप से कमी या आपात स्थिति के दौरान आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति को विनियमित करने की शक्ति प्रदान करता है।
      • आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 में आवश्यक वस्तुओं की कोई विशिष्ट परिभाषा नहीं है।
    • बाजार स्थिरीकरण: खाद्यान्न, दालों तथा खाद्य तेलों जैसी आवश्यक वस्तुओं को विनियमित करके, ECA बाजार की कीमतों को स्थिर करने में मदद करता है तथा उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर उपलब्धता सुनिश्चित करता है।
    • ECA से संबंधित मुद्दे: ECA मूल्य नियंत्रण तथा स्टॉकहोल्डिंग प्रतिबंध लगाकर निजी क्षेत्र की भागीदारी को सीमित करता है, जिससे बुनियादी ढाँचे के विकास में बाधा आती है।
      • यह अधिशेष अवधि के दौरान अनावश्यक नियंत्रण लागू करके मूल्य अस्थिरता का कारण भी बनता है, जिससे बाजार संचालित मूल्य निर्धारण में बाधा उत्पन्न होती है।

भारत में कृषि विपणन के समस्या क्षेत्र

  • खंडित बाजार संरचना: भारत में कृषि बाजारों को राज्य-विशिष्ट कृषि उपज बाजार समिति अधिनियमों द्वारा नियंत्रित किया जाता है, जो विपणन प्रणाली को खंडित करते हैं।
    • देश भर में लगभग 2,500 APMC-विनियमित थोक बाजार हैं।
    • किसानों को अक्सर अपनी उपज निर्धारित APMC मंडियों में बेचने के लिए बाध्य किया जाता है, जिससे व्यापक बाजार तक उनकी पहुँच सीमित हो जाती है।
  • विनियामक बाधाएँ: उच्च बाजार शुल्क, उपकर शुल्क और लाइसेंसिंग आवश्यकताएँ लेन-देन लागत को बढ़ाती हैं।
    • विभिन्न राज्यों के अलग-अलग नियम हैं, जिससे एकीकृत राष्ट्रीय बाजार के विकास में बाधा उत्पन्न हो रही है।
  • APMC समस्याएँ: भारत में APMC प्रणाली को APMC बाजारों में व्यापारियों की सीमित संख्या जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जिससे प्रतिस्पर्द्धा कम हो रही है, व्यापारियों के बीच गुटबाजी हो रही है तथा कमीशन शुल्क और बाजार शुल्क के रूप में अनुचित कटौती हो रही है।
    • उदाहरण: हरियाणा और पंजाब में, FCI द्वारा खरीदे गए गेहूँ और गैर-बासमती चावल के लिए मंडी शुल्क तथा ग्रामीण विकास शुल्क, निजी व्यापारियों द्वारा खरीदे गए बासमती चावल के शुल्क से चार से छह गुना अधिक है।
  • छोटी एवं सीमांत जोतें: खंडित भूमि स्वामित्व से उत्पादन तथा परिवहन लागत बढ़ जाती है, जिससे विपणन मार्जिन कम हो जाता है।
    • वर्ष 2022 तक, भारत में 121 मिलियन कृषि जोतें थीं; इनमें से 99 मिलियन जोतें छोटी और सीमांत (87%) हैं।
  • अपर्याप्त भंडारण सुविधाएँ: शीत भंडारण सहित उचित भंडारण की कमी के कारण किसानों को अपनी उपज तुरंत, अक्सर कम कीमतों पर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
    • अधिकांश मौजूदा भंडारण सुविधाएँ बहुत खराब स्थिति में हैं, जिससे कृषि उपज की गुणवत्ता प्रभावित होती है और फसल कटाई के बाद नुकसान होता है।
      • उदाहरण: NABCONS द्वारा अखिल भारतीय फसल कटाई उपरांत हानि सर्वेक्षण, 2022 से पता चलता है कि देश को 1.53 ट्रिलियन रुपये ($18.5 बिलियन) की खाद्यान्न हानि हुई है, जिसमें 12.5 मिलियन मीट्रिक टन (MMT) अनाज, 2.11 MMT तिलहन और 1.37 MMT दालें शामिल हैं।
  • खराब परिवहन अवसंरचना: सभी मौसमों के लिए उपयुक्त सड़कें, जल्दी खराब होने वाली वस्तुओं के लिए उपयुक्त वाहनों और मंडियों तक संपर्क सड़कों की कमी होने के कारण परिवहन लागत बढ़ जाती है।
  • ऋण तक सीमित पहुँच: किसान किफायती संस्थागत ऋण तक सीमित पहुँच के कारण साहूकारों से उच्च ब्याज दर पर ऋण लेते हैं, जिससे उन्हें ऋण चुकाने के लिए समय से पहले अपनी उपज बेचनी पड़ती है।
    • उदाहरण: केवल 30% किसान औपचारिक स्रोतों से उधार लेते हैं, जबकि लगभग 50% छोटे और सीमांत किसान किसी भी स्रोत से उधार लेने में असमर्थ हैं।
  • बाजार की जानकारी का अभाव: ग्रामीण क्षेत्रों में अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे और सीमित ICT पहुँच के कारण किसान बाजार कीमतों से अनभिज्ञ रहते हैं, जिससे वे बिचौलियों पर निर्भर हो जाते हैं।
  • अपर्याप्त विपणन अनुसंधान: विपणन, भंडारण तथा पैकेजिंग में अनुसंधान की तुलना में उत्पादन पर अधिक जोर देने से पुरानी तकनीकें और उपभोक्ता वरीयताओं की अपर्याप्त समझ उत्पन्न होती है।
  • किसान संगठनों का अभाव: किसान व्यक्तिगत रूप से कार्य करते हैं, जिससे लागत बढ़ती है और सौदेबाजी की शक्ति कम होती है, जिसके परिणामस्वरूप संगठित व्यापारियों द्वारा उनका शोषण होता है।
    • किसानों को अक्सर अपनी उपज का लाभकारी मूल्य नहीं मिलता है।
      • उदाहरण: दूध बेचने वाले डेयरी किसानों को अमूल जैसी सहकारी समितियों के सदस्यों की तुलना में कम कीमत मिल सकती है, जो बेहतर दरों पर समझौता करते हैं और भंडारण सहायता प्रदान करते हैं।

कृषि विपणन में किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) की भूमिका

  • सौदेबाजी की शक्ति: FPOs किसानों को उपज को एकत्रित करके बेहतर कीमतों पर सौदेबाजी करने में सक्षम बनाते हैं।
  • बाजार तक पहुँच: वे छोटे किसानों को स्थानीय तथा राष्ट्रीय दोनों बाजारों तक बेहतर पहुँच प्रदान करते हैं, जिससे उन्हें बिक्री के अवसरों को बढ़ाने में मदद मिलती है।
  • मूल्य संवर्द्धन: FPO अक्सर मूल्य संवर्द्धन प्रसंस्करण में निवेश करते हैं, जैसे पैकेजिंग, ग्रेडिंग या कृषि उत्पादों का प्रसंस्करण, जिससे उत्पादों की विपणन क्षमता बढ़ती है और किसानों की आय में सुधार होता है।
  • प्रौद्योगिकी तथा ज्ञान साझा करना: FPO किसानों को उन्नत कृषि प्रौद्योगिकियों, बाजार के रुझान और सूचना तक पहुँच प्रदान करते हैं।
  • क्रेडिट पहुँच: वित्तपोषण तथा ऋण तक आसान पहुँच की सुविधा प्रदान करता है।

भारत में कृषि विपणन में सुधार के लिए सरकारी उपाय

  • राष्ट्रीय कृषि बाजार (e-NAM) का शुभारंभ: वर्ष 2016 में सरकार ने e-नाम (e-NAM) लॉन्च किया, जिससे किसान अपनी उपज को विभिन्न बाजारों में बड़ी संख्या में खरीदारों को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से पारदर्शी तरीके से बेच सकेंगे।
  • कृषक उत्पादक संगठनों का गठन और संवर्द्धन: भारत सरकार ने वर्ष 2027-28 तक 10,000 नए FPOs बनाने और बढ़ावा देने के लिए ‘10,000 किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) के गठन और संवर्द्धन’ की केंद्रीय क्षेत्र योजना को मंजूरी दी है।

राष्ट्रीय कृषि बाजार (e-NAM)

  • e-NAM एक इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म है, जिसे भारत भर में मौजूदा कृषि उपज बाजार समिति (APMC) मंडियों को जोड़ने के लिए डिजाइन किया गया है, जिससे कृषि वस्तुओं के लिए एक एकीकृत राष्ट्रीय बाजार बनाया जा सके।
  • लॉन्च किया गया: e-NAM को आधिकारिक तौर पर 14 अप्रैल, 2016 को लॉन्च किया गया था।
  • वित्तपोषित: यह प्लेटफॉर्म पूरी तरह से केंद्र सरकार द्वारा वित्तपोषित है।
  • कार्यान्वित: कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत लघु कृषक कृषि व्यवसाय कंसोर्टियम (Small Farmers Agribusiness Consortium- SFAC)।
  • उद्देश्य: e-NAM का उद्देश्य प्रतिस्पर्द्धी मूल्य खोज के लिए एक ऑनलाइन मंच प्रदान करके किसानों के लिए बेहतर विपणन अवसर प्रदान करना है।

  • कृषि अवसंरचना कोष (AIF): सरकार ने ब्याज अनुदान और वित्तीय सहायता के माध्यम से भंडारण और सामुदायिक कृषि परिसंपत्तियों जैसी फसलोत्तर अवसंरचना परियोजनाओं का समर्थन करने के लिए 1,00,000 करोड़ रुपये के आवंटन के साथ कृषि अवसंरचना कोष की स्थापना की है।
  • कृषि विपणन अवसंरचना (AMI) योजना: कृषि विपणन के लिए एकीकृत योजना (Integrated Scheme for Agricultural Marketing- ISAM) के तहत, सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में गोदामों और वेयरहाउस के निर्माण का समर्थन करती है, जिससे भंडारण क्षमता बढ़ जाती है।
    • लाभार्थी की श्रेणी के आधार पर परियोजना पूंजीगत लागत पर 25% से 33.33% तक की सब्सिडी प्रदान की जाती है।
  • निजी बाजारों की स्थापना: 120 से अधिक निजी बाजार स्थापित किए गए हैं, जो किसानों को वैकल्पिक विपणन चैनल प्रदान करते हैं और उनकी उपज के लिए बेहतर मूल्य सुनिश्चित करते हैं।
  • मॉडल कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट, 2018: कृषि उपज विपणन समितियों के अधिकार क्षेत्र से कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को बाहर रखा गया है।
    • इसमें विवाद समाधान के लिए प्रावधान शामिल हैं, जैसे सौदेबाजी, सुलह, तथा विवाद निपटान अधिकारी को रेफर करना।
  • आदर्श कृषि उपज और पशुधन विपणन (संवर्द्धन एवं सुविधा) अधिनियम, 2017
    • कृषि उपज तथा पशुधन दोनों के लिए एक ही लाइसेंस के साथ एकीकृत कृषि बाजार बनाने के लिए APMC अधिनियम, 2003 को प्रतिस्थापित करता है।
    • प्रत्येक 80 किलोमीटर पर विनियमित थोक कृषि बाजारों की स्थापना को अनिवार्य बनाता है।
    • निजी बाजार यार्ड, गोदामों और कोल्ड स्टोरेज को विनियमित कृषि-बाजारों के रूप में कार्य करने की अनुमति देता है।
  • ऑपरेशन ग्रीन्स: इसका उद्देश्य इन फसलों की कीमत में अस्थिरता को कम करने के लिए टमाटर, प्याज और आलू की फसलों की आपूर्ति को स्थिर करना है।

आगे की राह

  • आर्थिक सर्वेक्षण के सुझावों का प्रभावी कार्यान्वयन: वर्ष 2024 के आर्थिक सर्वेक्षण में इंगित किया गया कि ई-राष्ट्रीय कृषि बाजार (e-NAM) को लागू करना, किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) को समर्थन देना और सहकारी समितियों को कृषि विपणन में भाग लेने में सक्षम बनाना, बाजार के बुनियादी ढाँचे को बढ़ा सकता है और बेहतर मूल्य खोज की सुविधा प्रदान कर सकता है।
  • राज्यों को वित्तीय प्रोत्साहन: नीति आयोग ने कृषि सुधारों को लागू करने के लिए राज्यों को वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करने के 15वें वित्त आयोग के विचार को पुनर्जीवित किया है।
    • वित्त आयोग ने राज्यों द्वारा कृषि सुधारों के कार्यान्वयन के लिए प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन की सिफारिश की थी।
  • e-NAM सुधार
    • व्यापारियों के लिए प्रक्रिया को सरल बनाने तथा अलग-अलग लाइसेंस की आवश्यकता को समाप्त करने के लिए सभी APMC में एकीकृत e-NAM ट्रेडिंग लाइसेंस लागू करना।
    • प्लेटफॉर्म में अधिक APMC को एकीकृत करके, क्षेत्रीय संपर्क को बढ़ाकर तथा किसानों को बेहतर मूल्य खोज के लिए खरीदारों के बड़े पूल तक पहुँच प्रदान करके e-NAM कवरेज का विस्तार करना।
    • अधिक किसानों को बिचौलियों पर निर्भर रहने के बजाय सीधे e-NAM के माध्यम से अपनी उपज बेचने के लिए प्रोत्साहित करना।
  • नमूना आधारित बिक्री सक्षम: किसानों को अपनी पूरी उपज ले जाने के बजाय, प्रासंगिक गुणवत्ता प्रमाणीकरण के साथ, मंडी में अपनी उपज का एक नमूना लाने की अनुमति दी जानी चाहिए।
    • इससे परिवहन लागत में बचत होगी और APMC में भीड़ कम होगी, साथ ही परिवहन के लिए तैयार वर्गीकृत उपज प्राप्त होने से व्यापारियों को लाभ होगा।
  • APMC के पास भंडारण और बैंकिंग सुविधाएँ: APMC के पास बैंकिंग तथा भंडारण सुविधाएँ प्रदान करना, साथ ही कटाई के बाद के महीनों में संकटपूर्ण स्थिति के दौरान बिक्री से बचने के लिए गोदाम रसीदों के आधार पर ऋण भी उपलब्ध कराना।

निष्कर्ष

चूँकि कृषि राज्य सूची का विषय है, इसलिए इसमें सुधारों हेतु चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। देश के कृषि पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार के लिए केंद्र, राज्यों और किसानों के बीच आम सहमति बनाने तथा सहकारी संघवाद के सिद्धांतों को सम्मिलित करने की आवश्यकता है।

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