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Dec 06 2024

सीस्टेम (SheSTEM) 2024

हाल ही में स्वीडन के दूतावास में सीस्टेम (SheSTEM) 2024 प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था।

सीस्टेम (SheSTEM) 2024

  • यह एक वार्षिक पहल है, जो STEM में महिलाओं के योगदान को प्रोत्साहित करती है।
  • आयोजक: अटल इनोवेशन मिशन (AIM), नीति आयोग तथा विज्ञान एवं नवाचार कार्यालय के तहत नॉर्डिक सहयोगियों अर्थात् इनोवेशन नॉर्वे, इनोवेशन सेंटर डेनमार्क एवं बिजनेस फिनलैंड के साथ साझेदारी में।
  • उद्देश्य: छात्रों को महत्त्वपूर्ण STEM विषयों से जुड़ने एवं वैश्विक स्थिरता प्रयासों में योगदान करने के लिए एक मंच प्रदान करना।
  • थीम 2024: सीस्टेम (SheSTEM) 2024 चुनौती ने पूरे भारत में कक्षा 6-12 के छात्रों को बैटरी प्रौद्योगिकी एवं ऊर्जा भंडारण (BEST) प्रणालियों पर केंद्रित नवीन विचारों को प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया।
    • यह भारत-नॉर्डिक BEST परियोजना का हिस्सा है, इस चुनौती का उद्देश्य ऊर्जा समाधानों को आगे बढ़ाकर स्थिरता को बढ़ावा देना है।

नैनो बबल टेक्नोलॉजी

हाल ही में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने जलीय जीवों के स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय प्राणी उद्यान, दिल्ली के पानी की सफाई तथा शुद्धिकरण के लिए ‘नैनो बबल टेक्नोलॉजी’ लॉन्च की।

नैनो बबल प्रौद्योगिकी 

  • नैनो बबल तकनीक पानी की गुणवत्ता में सुधार के लिए छोटे बुलबुले का उपयोग करने की एक विधि है।
  • नैनोबबल अति सूक्ष्म बुलबुले (व्यास में 200 नैनोमीटर से कम) होते हैं, जो आँखों के लिए लगभग अदृश्य होते हैं। 
  • नैनोबबल विभिन्न तरीकों का उपयोग करके उत्पन्न किए जा सकते हैं, जिनमें केंद्रोपसारक बल, अल्ट्रासाउंड, इलेक्ट्रोलिसिस आदि शामिल हैं। 

यह किस प्रकार कार्य करता है

  • निलंबन एवं स्थिरता: नैनोबबल अपने छोटे आकार एवं उच्च सतह ऊर्जा के कारण स्थिर होते हैं, जिससे वे लंबे समय तक पानी में निलंबित रह सकते हैं।
  • सतही आवेश: उनके पास एक मजबूत नकारात्मक आवेश होता है, जो शैवाल, कार्बनिक अपशिष्ट, तेल एवं ग्रीस जैसी अशुद्धियों को आकर्षित करता है तथा विखंडित करता है।
  • ऑक्सीजन संवर्द्धन: नैनोबबल पानी में घुलित ऑक्सीजन के स्तर को बढ़ाते हैं। यह कार्बनिक पदार्थों के विखंडन को बढ़ावा देता है एवं पानी की गुणवत्ता में सुधार करता है।
  • ऑक्सीडेटिव प्रभाव: अपघटित होने पर, नैनोबबल हाइड्रॉक्सिल रेडिकल उत्पन्न करते हैं, जो शक्तिशाली ऑक्सीकारक एजेंट होते हैं, जो प्रदूषकों को नष्ट करने एवं रोगजनकों को मारने में सक्षम होते हैं।
  • लाभ
    • वे शैवाल, जैविक अपशिष्ट, तेल एवं ग्रीस जैसे प्रदूषकों को हटा सकते हैं। 
    • नैनोबबल पारंपरिक तरीकों की तुलना में अधिक ऊर्जा-कुशल हैं एवं रसायन-मुक्त हैं, जो उन्हें पर्यावरण के अनुकूल बनाता हैं।

अन्य अनुप्रयोग

  • पौधों की वृद्धि: पौधों की जड़ों तक ऑक्सीजन वितरण में सुधार हो सकता है, जिससे पोषक तत्त्वों की मात्रा बढ़ सकती है एवं पौधों की वृद्धि बढ़ सकती है। 
  • दवा वितरण: दवाओं को वितरित करने के लिए उपयोग किया जाता है एवं जैव-संगत सतहों के साथ क्रियाशील होता है। 
  • मेडिकल इमेजिंग: उनके गैस कोर के इकोजेनिक गुणों के कारण इमेजिंग एजेंट के रूप में उपयोग किया जाता है। 
  • अवायवीय पाचन: सल्फाइड एवं वाष्पशील फैटी एसिड के स्तर को कम करके अवायवीय पाचन प्रक्रिया में सुधार संभव है। 
  • कपड़ा उद्योग: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रोपड़ ने एक एयर नैनो-बबल तकनीक विकसित की है, जो कपड़ा क्षेत्र में पानी के उपयोग को 90% तक कम कर सकती है।

संदर्भ 

दक्षिण कोरिया ने एक टेलीविजन ब्रीफिंग के दौरान “आपातकालीन मार्शल लॉ” की घोषणा की।

दक्षिण कोरिया में मार्शल लॉ की घोषणा के कारण

  • विपक्ष पर आरोप
    • राज्य विरोधी गतिविधियाँ: विपक्ष पर उन गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया गया है, जो देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को खतरे में डालती हैं।
  • सरकार की प्रतिज्ञा
    • उत्तर कोरिया समर्थक ताकतों का उन्मूलन: उत्तर कोरिया के प्रति सहानुभूति रखने वाली ताकतों को समाप्त करने की प्रतिबद्धता।
    • लोकतंत्र की सुरक्षा: दक्षिण कोरिया की संवैधानिक लोकतांत्रिक व्यवस्था की रक्षा करने का संकल्प।

मार्शल लॉ 

  • इसे सरकार द्वारा घोषित आपातकाल की स्थिति के रूप में परिभाषित किया गया है।
    • इसका मुख्य उद्देश्य देश के भीतर अप्रत्याशित खतरों एवं संकटों का समाधान करना है। 
  • मार्शल लॉ में नागरिक सरकार का स्थान सेना द्वारा प्राप्त कर लिया जाता है।
  • सेना को नागरिक अधिकारों एवं कानूनी सुरक्षा को निलंबित करने की असीमित शक्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं।
  • आपातकाल, आपदा या तख्तापलट जैसे संकटों के दौरान घोषित किया गया।

दुनिया भर में मार्शल लॉ के प्रकार

  • पूर्ण मार्शल लॉ
    • सेना पूर्ण नियंत्रण अपने हाथ में ले लेती है, नागरिक प्राधिकारियों को निलंबित कर देती है एवं संवैधानिक अधिकारों का हनन करती है।
    • उदाहरण: फिलीपींस (1972-1981) में, फर्डिनेंड मार्कोस के तहत, बंदी प्रत्यक्षीकरण को निलंबित कर दिया गया था।
  • आंशिक या क्षेत्रीय मार्शल लॉ
    • स्थानीय संघर्षों या खतरों को संबोधित करने के लिए विशिष्ट क्षेत्रों में घोषित किया गया, जबकि देश का बाकी हिस्सा सामान्य शासन के अधीन रहता है।
    • उदाहरण: बैंकॉक (2014) में, राजनीतिक अशांति के दौरान मार्शल लॉ कुछ क्षेत्रों तक सीमित था।
  • नागरिक निरीक्षण के साथ आपातकालीन मार्शल लॉ
    • सैन्य शक्तियाँ नागरिक प्राधिकार के अंतर्गत अथवा सीमित कानूनी ढाँचे के भीतर संचालित होती हैं।
    • उदाहरण: दक्षिण कोरिया ने संक्षेप में मार्शल लॉ घोषित किया, लेकिन नेशनल असेंबली ने इसे रद्द करने का अधिकार बरकरार रखा।
  • अस्थायी मार्शल लॉ
    • प्राकृतिक आपदाओं या आतंकवादी हमलों जैसी तीव्र आपात स्थितियों के दौरान छोटी अवधि के लिए लगाया जाता है।
    • उदाहरण: अमेरिका में वर्ष 1941 के पर्ल हार्बर हमले के दौरान मार्शल लॉ घोषित किया गया था।
    • भारत के आपातकाल काल (1975) को अस्थायी मार्शल लॉ के समान रूप में देखा जा सकता है।
  • अनंतिम मार्शल लॉ
    • एक संक्रमणकालीन अवधि के दौरान घोषित, अक्सर शासन परिवर्तन या संघर्ष के बाद।
    • उदाहरण: सद्दाम हुसैन के बाद के इराक (2004) में, स्थिरीकरण के लिए अमेरिका के नेतृत्व वाले कब्जे के दौरान मार्शल लॉ लागू किया गया था।

वर्तमान में मार्शल लॉ के अधीन देश

  • यूक्रेन: रूसी आक्रमण के बाद वर्ष 2022 (फरवरी) में मार्शल लॉ लगाया गया। 
    • विस्तार: उपाय को दस बार बढ़ाया गया है, जिससे वर्ष 2023 के विधायी एवं वर्ष 2024 के राष्ट्रपति चुनावों में देरी हुई है क्योंकि मार्शल लॉ के दौरान चुनाव नहीं हो सकते हैं।
  • म्याँमार: इस देश में 1 फरवरी, 2021 को सैन्य तख्तापलट के बाद विभिन्न क्षेत्रों में मार्शल लॉ लागू है। 
    • विस्तारित मार्शल लॉ: वर्ष 2023 के बाद, मार्शल लॉ को 50 टाउनशिप तक बढ़ा दिया गया, जिसमें यांगून एवं मांडले जैसे प्रमुख शहर शामिल थे।
  • इक्वाडोर: जनवरी 2024 में मार्शल लॉ घोषित किया गया। 
    • अवधि: बढ़ती सामूहिक हिंसा का मुकाबला करने एवं देश को स्थिर करने के लिए सेना को तैनात करने हेतु यह मार्शल उपाय 60 दिनों के लिए था।

भारतीय संविधान में मार्शल लॉ

अनुच्छेद-34: सिंहावलोकन

  • दायरा: अनुच्छेद-34 मार्शल लॉ एवं संविधान के भाग III द्वारा प्रदत्त अधिकारों पर इसके प्रभाव से संबंधित है।
  • संसद का प्राधिकरण: संसद को मार्शल लॉ के दौरान व्यवस्था बनाए रखने या बहाल करने के लिए किए गए कार्यों के लिए व्यक्तियों को क्षतिपूर्ति करने की अनुमति देता है।
  • मान्यता: संसद मार्शल लॉ के तहत सजा, जब्ती या अन्य कृत्यों को मान्य कर सकती है।

क्षतिपूर्ति के लिए शर्तें

  1. उद्देश्य: कार्रवाई, व्यवस्था बनाए रखने या बहाल करने से संबंधित होनी चाहिए।
  2. क्षेत्र: जिस क्षेत्र में कार्रवाई हुई वहाँ मार्शल लॉ प्रभावी होना चाहिए।

भारत में मार्शल लॉ की ऐतिहासिक घटनाएँ

ब्रिटिश औपनिवेशिक काल

  • अमृतसर नरसंहार (1919)
    • जलियाँवाला बाग नरसंहार के बाद अशांति को दबाने के लिए मार्शल लॉ घोषित किया गया था।
    • इसने सैन्य बल के अप्रतिबंधित उपयोग की अनुमति दी, जिससे गंभीर उत्पीड़न हुआ।
  • भारत की रक्षा अधिनियम (1915 एवं 1939)
    • इन अधिनियमों ने औपनिवेशिक सरकार को प्रथम एवं द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान मार्शल लॉ घोषित करने का अधिकार दिया।
    • असहमति को नियंत्रित करने एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए उपयोग किया जाता है।

मार्शल लॉ की प्रमुख विशेषताएँ

  • मौलिक अधिकारों पर प्रभाव: मुख्य रूप से मौलिक अधिकारों के प्रयोग को प्रभावित करता है।
  • सरकारी कार्यों का निलंबन: सामान्य सरकारी कार्यों एवं न्यायालयों को निलंबित कर दिया जाता है।
  • सीमित अनुप्रयोग: देश के केवल उन विशिष्ट क्षेत्रों पर लागू होता है, जहाँ मार्शल लॉ घोषित किया गया है।

भारत में मार्शल लॉ एवं राष्ट्रीय आपातकाल के बीच अंतर

विशेषता

मार्शल लॉ

राष्ट्रीय आपातकाल

सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम (AFSPA)

कानूनी आधार निहित शक्तियाँ, संविधान में स्पष्ट रूप से उल्लिखित नहीं हैं। संविधान का अनुच्छेद-352
  • भारतीय संविधान में इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं है। 
  • आंतरिक संघर्ष, विद्रोह या हिंसक अशांति के कारण “अशांत” समझे जाने वाले क्षेत्रों में सेना द्वारा कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए संसद द्वारा अधिनियमित किया गया।
दायरा कानून एवं व्यवस्था भंग होने का सामना करने वाले विशिष्ट क्षेत्रों तक सीमित। राष्ट्रव्यापी या विशिष्ट क्षेत्रों में लगाया जा सकता है।
  • यह अशांत क्षेत्रों में सशस्त्र बलों को शक्ति प्रदान करता है, जिसमें ये शक्तियाँ भी शामिल हैं:
    • बिना वारंट के तलाशी एवं गिरफ्तारी।
    • उन स्थितियों में जहाँ कोई व्यक्ति अपराध कर रहा हो या गिरफ्तारी का विरोध कर रहा हो, हत्या के अधिकार सहित बल का प्रयोग करें।
    • यदि संपत्ति का उपयोग विद्रोहियों को शरण देने के लिए किया जा रहा हो तो उसे नष्ट कर दें।
    • एक निर्दिष्ट अवधि के लिए व्यक्तियों को बिना किसी आरोप के हिरासत में रखना।
अवधि अस्थायी, जब तक स्थिति नियंत्रण में न हो जाए। आमतौर पर छह महीने के लिए प्रभावी होता है, लेकिन हर छह महीने में संसदीय मंजूरी के साथ इसे अनिश्चितकाल तक बढ़ाया जा सकता है। कोई निश्चित अवधि नहीं है। इसे तब तक लागू किया जा सकता है, जब तक सरकार किसी क्षेत्र को “अशांत” घोषित करती रहेगी।
मौलिक अधिकारों पर प्रभाव प्रभावित क्षेत्र में मौलिक अधिकारों को निलंबित कर देता है। आपातकाल के प्रकार के आधार पर कुछ या सभी मौलिक अधिकारों को निलंबित कर सकता है। मौलिक अधिकारों को विशेष रूप से सीमित करता है

  • अनुच्छेद-21 (जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार)। 
  • अनुच्छेद-22 (गिरफ्तारी एवं हिरासत से संरक्षण)।
अधिकार सैन्य अधिकारी केंद्र सरकार किसी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के राज्यपाल AFSPA की धारा 3 के तहत किसी क्षेत्र को “अशांत” घोषित कर सकते हैं।
न्यायिक समीक्षा सीमित या निलंबित इसे अदालतों में चुनौती दी जा सकती है, हालाँकि सीमाएँ लागू हो सकती हैं। सीमित, यह कानून सैन्य कानून के तहत उनकी कार्रवाई के लिए कानूनी कार्रवाई से सुरक्षा देता है।

संदर्भ

CBL-I, इंस्टिट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी इन साइंस एंड टेक्नोलॉजी (Institute of Advanced Study in Science and Technology- IASST), गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने टाइप 2 मधुमेह में इंसुलिन प्रतिरोध को व्यवस्थित करने के लिए सुबाबुल सीडपॉड के चिकित्सीय गुणों का पता लगाया है।

टाइप 2 मधुमेह

  • टाइप 2 मधुमेह एक ऐसी स्थिति है, जो शरीर द्वारा प्रभावी ढंग से इंसुलिन का उपयोग करने में असमर्थता को प्रदर्शित करती है। 
  • यह अक्सर खराब आहार, गतिहीन जीवनशैली एवं मोटापे जैसे कारकों से जुड़ा होता है।

प्रभाव

  • अंग क्षति: हृदय, गुर्दे, आँखों एवं तंत्रिकाओं को नुकसान हो सकता है।
  • जटिलताओं का खतरा बढ़ जाता है: हृदय रोग, स्ट्रोक, गुर्दे की विफलता एवं अंधापन का खतरा बढ़ जाता है।
  • जीवन की गुणवत्ता में कमी: दैनिक जीवन एवं समग्र कल्याण पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

  • सक्रिय यौगिकों की पहचान की गई: अध्ययन ने एक जैव-सक्रियता-निर्देशित अंश विकसित किया एवं पौधे से चार सक्रिय यौगिकों की पहचान की।
    • शोधकर्ताओं ने क्वेरसेटिन-3-ग्लूकोसाइड को अलग किया, एक यौगिक जो माइटोकॉन्ड्रियल डीएसेटाइलेज एंजाइम सिर्टुइन 1 (SIRT 1) के अपग्रेडेशन को प्रदर्शित करता है, जो इंसुलिन संवेदनशीलता को विनियमित करने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • क्रिया का तंत्र: बायोएक्टिव अंश ने मुक्त फैटी एसिड-प्रेरित कोशिकाओं (C2C12) में इंसुलिन संवेदीकरण को बढ़ाया।
    • GLUT2 प्रोटीन ट्रांसलोकेशन, जो कोशिका झिल्ली में ग्लूकोज एवं फ्रक्टोज परिवहन की सुविधा प्रदान करता है, को भी अपग्रेड किया गया था।

  • चिकित्सीय निहितार्थ: अध्ययन ग्लूकोज अवशोषण में सुधार करने में सुबाबुल की चिकित्सीय क्षमता पर प्रकाश डालता है, जो मधुमेह एवं संबंधित स्थितियों के उपचार के रूप में इसके नृवंशविज्ञान संबंधी दावों की पुष्टि करता है।

सुबाबुल (ल्यूकेना ल्यूकोसेफला) के बारे में

  • पौधे की उत्पत्ति: सुबाबुल एक तेजी से बढ़ने वाला फलीदार पौधा है, जो मैक्सिको की मूल प्रजाति है एवं उष्णकटिबंधीय तथा उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाई जाती है।
    • पारंपरिक उपयोग: इसके पोषण मूल्य के लिए जातीय समुदायों द्वारा व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है, पत्तियों एवं अपरिपक्व बीजों को कच्चे या सूप या सलाद में प्रयोग किया जाता है।
  • प्रोटीन एवं फाइबर के एक समृद्ध स्रोत के रूप में जाना जाता है, इसका उपयोग मानव तथा पशु भोजन में किया जाता है।
  • भौतिक विशेषताएँ: एक छोटा, बारहमासी, अत्यधिक शाखाओं वाला पेड़।

  • आर्थिक महत्त्व: बागानों में कवर फसल के रूप में एवं चारे तथा ईंधन उद्देश्यों के लिए पेश किया गया।
    • इसकी लकड़ी मूल्यवान है, जिसका उपयोग कोयला, छोटे फर्नीचर एवं कागज की लुगदी बनाने में किया जाता है।
  • पोषण संसाधन एवं औषधीय पौधे के रूप में इसकी दोहरी उपयोगिता सार्वजनिक स्वास्थ्य तथा आर्थिक स्थिरता में इसके महत्त्व को रेखांकित करती है।

संदर्भ

हाल ही में भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, जिसका शीर्षक ‘फिलिस्तीन के प्रश्न का शांतिपूर्ण समाधान’ (Peaceful Settlement of the Question of Palestine) था।

प्रस्ताव के प्रमुख बिंदु

  • प्रस्ताव को भारी समर्थन: प्रस्ताव को 157 मतों के साथ स्वीकार किया गया, जो व्यापक अंतरराष्ट्रीय समर्थन को दर्शाता है।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका और इजरायल सहित आठ देशों ने प्रस्ताव के विरुद्ध मतदान किया।

  • भारत का रुख: भारत ने फिलिस्तीनी मुद्दे और दो-राज्य समाधान के प्रति अपनी ऐतिहासिक प्रतिबद्धता की पुष्टि करते हुए प्रस्ताव का समर्थन किया।
  • मतदान से दूरी: कैमरून, चेक गणराज्य, इक्वाडोर, जॉर्जिया, पैराग्वे, यूक्रेन और उरुग्वे सहित सात देशों ने मतदान नहीं किया।
  • प्रस्ताव का उद्देश्य
    • पूर्वी येरुशलम सहित वर्ष 1967 से कब्जे वाले क्षेत्रों से इजरायल की वापसी।
    • फिलिस्तीनी लोगों के अविभाज्य अधिकारों को मान्यता, जैसे आत्मनिर्णय का अधिकार और एक स्वतंत्र राज्य।
    • वर्ष 1967 से पहले की सीमाओं पर आधारित दो-राज्य समाधान के प्रति प्रतिबद्धता।
    • गाजा पट्टी: गाजा को फिलिस्तीनी राज्य के अभिन्न अंग के रूप में मान्यता देना और गाजा की क्षेत्रीय अखंडता को बदलने वाली किसी भी कार्रवाई को अस्वीकार करना।
    • गैर-कानूनी कार्रवाइयों का अंत: इजरायल से सभी बस्तियों की गतिविधियों को रोकने, अवैध बस्तियों को सक्षम करने वाले कानूनों को निरस्त करने और बसने वालों को निकालने की माँग।
  • भारत का व्यापक रुख: भारत का वोट क्षेत्र में रणनीतिक संबंधों को संतुलित करते हुए शांतिपूर्ण समाधान और अंतरराष्ट्रीय कानून के पालन के लिए उसके निरंतर समर्थन को दर्शाता है।
  • ICJ से जुड़े प्रस्ताव पर भारत का बहिष्कार: भारत ने ICJ की राय में शामिल नहीं किए गए दंडात्मक उपायों के बारे में चिंताओं का हवाला देते हुए, इजरायल से फिलिस्तीनी क्षेत्रों को खाली करने और दंडात्मक प्रतिबंध लगाने का आग्रह करने वाले प्रस्ताव से स्वयं को दूर रखा।

इजरायली कब्जे की पृष्ठभूमि

  • वर्ष 1967 के छह दिवसीय युद्ध के बाद इजरायल ने फिलिस्तीन पर अधिकार कर लिया, जहाँ इजरायल ने पश्चिमी तट, गाजा पट्टी, पूर्वी येरुशलम और गोलान हाइट्स सहित कई क्षेत्रों पर कब्जा जमाया।
  • तब से ये क्षेत्र इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष के केंद्र में हैं, जहाँ फिलिस्तीनी राज्य और इजरायल की वापसी की माँगें अनसुलझी हैं।
  • इन क्षेत्रों में इजरायली बस्तियों के निर्माण की व्यापक रूप से आलोचना की गई है, क्योंकि यह चौथे जिनेवा कन्वेंशन सहित अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है।
  • द्वि-राज्य समाधान रूपरेखा: द्वि-राज्य समाधान में इजरायल और फिलिस्तीन को वर्ष 1967 से पहले स्थापित सीमाओं के भीतर स्वतंत्र राज्यों के रूप में शांतिपूर्ण ढंग से सह-अस्तित्व में रहने की परिकल्पना की गई है।
    • अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस ढाँचे को क्षेत्र में स्थायी शांति के आधार के रूप में बड़े पैमाने पर समर्थन देता है।
  • सीरियाई गोलान हाइट्स पर संकल्प: संकल्प में माँग की गई कि इजरायल प्रासंगिक सुरक्षा परिषद के निर्देशों के अनुसार सीरियाई गोलान हाइट्स से जून 1967 से पहले की रेखा पर वापस आ जाए।
    • इसने गोलान हाइट्स पर अपने कानून, अधिकार क्षेत्र और प्रशासन को लागू करने के इजरायल के वर्ष 1981 के फैसले को अमान्य घोषित कर दिया।

मतदान निर्णयों के लिए भारत के तर्क

  • फिलिस्तीन और सीरियाई गोलान प्रस्तावों के लिए समर्थन
    • भारत ने इजरायल और फिलिस्तीन के बीच शांति के आधार के रूप में दो-राज्य समाधान के लिए अपने दीर्घकालिक समर्थन की पुष्टि की।
    • भारत ने अंतरराष्ट्रीय कानून का पालन करने की आवश्यकता पर जोर दिया, जिसमें बस्तियों की गतिविधियों को रोकना और फिलिस्तीनियों के आत्मनिर्णय के अधिकार को मान्यता देना शामिल है।
  • ICJ प्रस्ताव पर मतदान से दूरी
    • भारत ने स्पष्ट किया कि उसका बहिष्कार दंडात्मक प्रतिबंधों पर चिंताओं के आधार पर था तथा तर्क दिया कि ऐसे उपाय ICJ सलाहकार राय के दायरे से बाहर थे।
    • भारत ने दोनों पक्षों के बीच मतभेदों को पाटने के प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करने के महत्त्व पर जोर दिया, न कि उन कार्रवाइयों पर जो विभाजन को और गहरा कर सकती हैं।

संयुक्त राष्ट्र महासभा प्रस्तावों के बारे में

  • संयुक्त राष्ट्र महासभा प्रस्ताव, महासभा द्वारा अपनाए गए विचारों या निर्णयों की औपचारिक अभिव्यक्ति है।
  • गैर-बाध्यकारी होने के बावजूद, प्रस्तावों में महत्त्वपूर्ण राजनीतिक और नैतिक महत्त्व होता है क्योंकि वे अंतरराष्ट्रीय समुदाय की सामूहिक इच्छा का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • संकल्प के प्रकार
    • घोषणाएँ: सिद्धांतों या विचारों के कथन।
    • सिफारिशें: सदस्य देशों या संयुक्त राष्ट्र निकायों द्वारा कार्रवाई के लिए सुझाव।
    • निर्णय: प्रक्रियात्मक या प्रशासनिक मामलों से संबंधित।

संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्तावों पर मतदान की प्रक्रिया

  • मसौदा तैयार करना: मसौदा प्रस्ताव सदस्य देशों, समितियों या संयुक्त राष्ट्र निकायों द्वारा तैयार किए जाते हैं।
    • इन्हें अलग-अलग राष्ट्रों, क्षेत्रीय समूहों या संयुक्त राष्ट्र संस्थाओं द्वारा प्रस्तावित किया जा सकता है।
  • विचार-विमर्श: मसौदा प्रस्ताव पर संबंधित समिति या महासभा में बहस की जाती है।
  • मतदान: संयुक्त राष्ट्र महासभा आम तौर पर निम्नलिखित मतदान विधियों का उपयोग करती है:
    • हाथ उठाकर वोट देना: एक सरल और त्वरित विधि, जिसका उपयोग अक्सर नियमित निर्णयों के लिए किया जाता है।
    • रिकॉर्डेड वोट: एक अधिक औपचारिक विधि, जिसमें प्रत्येक सदस्य राज्य का वोट व्यक्तिगत रूप से दर्ज किया जाता है।
    • रोल-कॉल वोट: एक विस्तृत विधि, जिसमें प्रत्येक सदस्य राज्य का वोट वर्णानुक्रम में पुकारा जाता है।
  • विभिन्न प्रस्तावों के लिए बहुमत की आवश्यकताएँ
    • साधारण बहुमत: संयुक्त राष्ट्र महासभा में अधिकांश निर्णय उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत द्वारा लिए जाते हैं। इसका अर्थ है कि डाले गए 50% से अधिक वोट प्रस्ताव के पक्ष में होने चाहिए।
    • दो-तिहाई बहुमत: कुछ महत्त्वपूर्ण मुद्दों के लिए उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है। ये मुद्दे आम तौर पर निम्नलिखित से संबंधित होते हैं:
      • शांति और सुरक्षा पर सिफारिशें
      • बजटीय मामले
      • संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों का चुनाव
      • सदस्य देशों का प्रवेश, निलंबन या निष्कासन।
  • अंगीकरण: संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाए गए प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र के आधिकारिक दस्तावेज बन जाते हैं।

संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्तावों के निहितार्थ

  • राजनीतिक प्रभाव: संकल्प वैश्विक समुदाय के बीच प्रमुख मुद्दों पर आम सहमति या विभाजन को दर्शाते हैं।
    • वे अंतरराष्ट्रीय राय और नीति-निर्माण को प्रभावित कर सकते हैं।
  • नैतिक अधिकार: हालाँकि वे बाध्यकारी नहीं हैं, लेकिन वे नैतिक और राजनीतिक महत्त्व रखते हैं, सदस्य देशों से अंतरराष्ट्रीय कानून और साझा मूल्यों के अनुसार कार्य करने का आग्रह करते हैं।
  • बहुपक्षवाद के लिए समर्थन: UNGA संकल्प संवाद और सहयोग के माध्यम से मुद्दों को हल करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिबद्धता की पुष्टि करते हैं।
  • आगे की कार्रवाई के लिए उदाहरण: संकल्प अक्सर बाद के कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौतों या सुरक्षा परिषद की कार्रवाइयों के लिए आधार के रूप में काम करते हैं।
  • आर्थिक और सामाजिक विकास: संकल्प सतत् विकास, मानवाधिकार और गरीबी उन्मूलन जैसे क्षेत्रों में वैश्विक पहलों का समर्थन करते हैं।
  • संघर्ष समाधान: वे शांति निर्माण और संघर्ष समाधान के लिए रूपरेखा प्रदान करते हैं, भले ही उनका कार्यान्वयन राजनीतिक इच्छाशक्ति और व्यावहारिक व्यवहार्यता पर निर्भर करता है।

संदर्भ

तटीय व्यापार को बढ़ावा देने और भारतीय नागरिकों द्वारा संचालित भारतीय ध्वज वाले जहाजों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से तटीय नौवहन विधेयक, 2024 को लोकसभा में ध्वनि मत से प्रस्तुत किया गया।

  • तटीय नौवहन विधेयक, 2024, संसद के चालू शीतकालीन सत्र के दौरान पेश किए जाने वाले पाँच नए विधायी उपायों में से एक है।

ध्वनि मत

  • ध्वनि मत विधायिका में निर्णय लेने की एक विधि है, जिसमें सदस्य मौखिक रूप से किसी प्रस्ताव पर अपनी सहमति या असहमति व्यक्त करते हैं।
  • जो पक्ष में होते हैं वे ‘हाँ’ कहते हैं, और जो विपक्ष में होते हैं वे ‘नहीं’ कहते हैं।
  • पीठासीन अधिकारी (जैसे- राज्यसभा में सभापति) बहुमत में आईं प्रतिक्रियाओं के आधार पर परिणाम निर्धारित करता है।
  • सीमाएँ: ध्वनि मत में उपस्थित सांसदों का रिकॉर्ड नहीं होता है।
    • व्यक्तिगत वोट की कोई औपचारिक रिकॉर्डिंग नहीं होती है। 
    • यह व्यक्तिगत रुख को नहीं दर्शाता है। 
    • यह गलत हो सकता है।

तटीय नौवहन के बारे में

  • तटीय नौवहन से तात्पर्य किसी देश की तटरेखा के साथ माल एवं यात्रियों के परिवहन से है, जो अंतरराष्ट्रीय जल में प्रवेश किए बिना उसके बंदरगाहों को जोड़ता है।
    • घरेलू व्यापार: इसमें मुख्य रूप से घरेलू व्यापार और एक ही देश के भीतर बंदरगाहों के बीच आवागमन शामिल है।
    • कम दूरी का समुद्री व्यापार: यह किसी देश के प्रादेशिक जल (आधार रेखा से 12 समुद्री मील तक) के भीतर संचालित होता है।
  • तटीय नौवहन के लाभ
    • लागत-प्रभावशीलता: तटीय शिपिंग को रेल या सड़क जैसे अन्य विकल्पों की तुलना में परिवहन का एक सस्ता तरीका माना जाता है।
      • उदाहरण: जलमार्ग परिवहन की लागत केवल 0.2-0.3 रुपये प्रति टन-किमी. है, जबकि रेल द्वारा 1.2-1.5 रुपये प्रति टन-किमी. और सड़क द्वारा 2.0-3.0 रुपये प्रति टन-किमी. है।
    • ईंधन दक्षता: समुद्री परिवहन अधिक ईंधन-कुशल और पर्यावरण के अनुकूल है।
    • विघटन: सड़क और रेल नेटवर्क पर अत्यधिक बोझ को कम करता है।
    • रणनीतिक उपयोग: राष्ट्रीय संकटों के दौरान क्षेत्रीय व्यापार और आपातकालीन रसद को बढ़ाता है।

तटीय नौवहन विधेयक, 2024 की मुख्य विशेषताएँ

  • विधेयक का उद्देश्य
    • तटीय व्यापार को बढ़ावा देने का लक्ष्य।
    • भारतीय नागरिकों के स्वामित्व और संचालन वाले भारतीय ध्वज वाले जहाजों की भागीदारी को प्रोत्साहित करता है।
    • राष्ट्रीय सुरक्षा और वाणिज्यिक आवश्यकताओं पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • विधेयक के प्रावधान
    • तटीय व्यापार के लिए लाइसेंस: विधेयक में भारतीय जहाजों के अलावा अन्य जहाजों द्वारा बिना लाइसेंस के तटीय जल में व्यापार पर प्रतिबंध लगाने की बात कही गई है।
      • अंतर्देशीय जहाजों को निर्दिष्ट शर्तों के तहत तटीय व्यापार में संलग्न होने की अनुमति दी गई है।
    • महानिदेशक की भूमिका: इसमें महानिदेशक को चालक दल की नागरिकता और जहाज की निर्माण आवश्यकताओं सहित कुछ कारकों को ध्यान में रखने के बाद लाइसेंस जारी करने का अधिकार देने की बात कही गई है।
      • इसका उद्देश्य भारतीय नाविकों के लिए बड़ी संख्या में रोजगार सृजित करना और भारत में जहाज निर्माण को बढ़ावा देना है।
    • लाइसेंसों का निरस्तीकरण: विधेयक महानिदेशक द्वारा लाइसेंसों में संशोधन, निलंबन या निरस्तीकरण के आधार निर्दिष्ट करता है।
      • इनमें शामिल हैं: (i) लाइसेंस की शर्तों या किसी मौजूदा कानून का उल्लंघन, या (ii) महानिदेशक के निर्देशों का पालन करने में विफलता।
    • राष्ट्रीय डेटाबेस: विधेयक तटीय नौवहन का राष्ट्रीय डेटाबेस बनाने का प्रयास करता है, ताकि प्रक्रियाओं की पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके और सूचना साझा करने में सहायता मिल सके।
    • तटीय विकास के लिए रणनीतिक योजना: यह तटीय नौवहन के विकास, वृद्धि और संवर्द्धन के लिए राष्ट्रीय तटीय और अंतर्देशीय नौवहन रणनीतिक योजना तैयार करने का प्रावधान करता है।
    • लाइसेंस धारकों का संरक्षण: विधेयक के अनुसार, दिए गए किसी भी लाइसेंस को निलंबित, निरस्त या संशोधित नहीं किया जाएगा, जब तक कि लाइसेंस को सुनवाई का उचित अवसर न दिया गया हो।
    • छूट देने की शक्तियाँ: केंद्र सरकार किसी भी श्रेणी के जहाजों को विधेयक के दायरे से छूट दे सकती है।
    • अपराधों का शमन: अधिनियम में सभी प्रथम अपराधों को समझौता करने की अनुमति दी गई है। विधेयक के अंतर्गत, केवल निम्नलिखित अपराध ही समझौता योग्य होंगे:
      • बिना लाइसेंस के या समाप्त हो चुके लाइसेंस के साथ तटीय व्यापार करना।
      • बिना लाइसेंस के जहाज को समुद्र में ले जाना।
      • जानकारी देने में विफल रहना।
      • निरोध आदेश का उल्लंघन करना।

भारत में तटीय नौवहन

  • सामरिक लाभ: भारत की लगभग 7,500 किलोमीटर लंबी विस्तृत तटरेखा तटीय नौवहन के लिए अपार संभावनाएँ प्रदान करती है।
    • प्रमुख वैश्विक नौवहन मार्गों से निकटता इसके महत्त्व को बढ़ाती है।
  • भारत में तटीय नौवहन का हिस्सा: वर्तमान में, तटीय नौवहन का भारत के परिवहन मिश्रण में केवल 7 प्रतिशत हिस्सा है, जबकि सड़क में 62 प्रतिशत और रेल में 31 प्रतिशत हिस्सा है।
  • लॉजिस्टिक्स परफॉरमेंस इंडेक्स (LPI) में स्थान: विश्व बैंक के इंटरनेशनल शिपमेंट लॉजिस्टिक्स परफॉरमेंस इंडेक्स (LPI) में भारत की रैंकिंग वर्ष 2018 में 44 से बढ़कर वर्ष 2023 में 22 हो गई।
  • कार्गो की मात्रा: राष्ट्रीय जलमार्गों (NW) द्वारा प्रबंधित किए जाने वाले कार्गो की मात्रा वित्तीय वर्ष 2022 में 108 MMT से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2024 में 133 MMT हो गई।
  • तटीय टन भार में वृद्धि: तटीय टन भार वित्तीय वर्ष 2022 में 260 MMT से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2024 में 324 MMT हो गया है।

वर्तमान विनियामक ढाँचा

  • एकरूपता का अभाव: भारत में तटीय समुद्री क्षेत्र के विनियमन में एकरूपता का अभाव है।
  • गैर-मशीनीकृत पोत: तटीय व्यापार में लगे गैर-मशीनीकृत पोत तटीय पोत अधिनियम, 1838 द्वारा शासित होते हैं, जो केवल ऐसे पोतों के पंजीकरण का प्रावधान करता है।
  • मशीनीकृत पोत: मर्चेंट शिपिंग अधिनियम, 1958 के अंतर्गत विनियमित होते हैं।

कैबोटेज के बारे में

  • शिपिंग उद्योग में, कैबोटेज कानून यह विनियमित करते हैं कि विदेशी ध्वज वाले जहाज किसी देश के घरेलू जल क्षेत्र में कैसे कार्य करते हैं।
    • ये कानून विदेशी जहाजों को घरेलू बंदरगाहों के बीच माल या यात्रियों के परिवहन से प्रतिबंधित या निषिद्ध कर सकते हैं।

भारत में कैबोटेज कानून (Cabotage Law In India)

  • भारत का कैबोटेज कानून मर्चेंट शिपिंग एक्ट, 1958 के अंतर्गत विनियमित है।
  • यह तटीय व्यापार के लिए भारतीय ध्वज वाले जहाजों के उपयोग को अनिवार्य बनाता है।
  • लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में छूट की अनुमति देता है:
    • भारतीय जहाजों की कमी।
    • विशेष कार्गो श्रेणियों जैसे कि एक्जिम एंड एम्प्टी कंटेनर (Exim and Empty Containers), कृषि, उर्वरक, ओवर-डायमेंशनल कार्गो (Over-Dimensional Cargo), रो-रो वेसल्स (Ro-Ro Vessels), LNG वेसल्स आदि को बढ़ावा देना।
  • मर्चेंट शिपिंग अधिनियम, 1958 के अंतर्गत विदेशी ध्वज वाले जहाजों के लिए लाइसेंसिंग आवश्यकताएँ
    • विदेशी ध्वज वाले जहाजों के लिए अधिदेश: भारत के भीतर तटीय व्यापार में शामिल होने के इच्छुक विदेशी ध्वज वाले जहाजों को लाइसेंस प्राप्त करना होगा।
    • लाइसेंसिंग के लिए पात्रता: भारतीय नागरिकों, भारतीय कंपनियों या सहकारी समितियों द्वारा किराए पर लिए गए जहाजों पर लागू।
    • लाइसेंस जारी करने का प्राधिकरण: लाइसेंस शिपिंग महानिदेशक द्वारा मर्चेंट शिपिंग अधिनियम, 1958 की धारा 406 और 407 (1) के अंतर्गत जारी किए जाते हैं।

तटीय नौवहन के माध्यम से माल ढुलाई बढ़ाने के लिए सरकारी पहल

  • सागरमाला कार्यक्रम के तहत तटीय बर्थ योजना: यह योजना समुद्र/राष्ट्रीय जलमार्गों द्वारा माल/यात्रियों की आवाजाही को बढ़ावा देने के लिए बुनियादी ढाँचे के निर्माण के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
  • लाइसेंसिंग में छूट: मर्चेंट शिपिंग अधिनियम की धारा 407 के तहत लाइसेंसिंग में छूट कंटेनर जहाजों को ट्रांसशिपमेंट बंदरगाहों पर EXIM कंटेनर और खाली कंटेनर ले जाने की अनुमति देती है।
    • विदेशी ध्वज वाले जहाज कृषि, मत्स्यपालन, बागवानी, उर्वरक और पशु उत्पाद वस्तुओं का परिवहन कर सकते हैं, बशर्ते कि ये कुल माल का कम-से-कम 50% हिस्सा हों।
  • तटीय जहाजों के लिए पोत और कार्गो शुल्क पर छूट: तटीय कार्गो जहाजों को पोत और कार्गो से संबंधित शुल्क पर प्रमुख बंदरगाहों द्वारा 40% की छूट दी जाती है।
  • तटीय जहाजों के लिए ‘प्रायोरिटी बर्थिंग पाॅलिसी’: तटीय जहाजों के लिए प्रायोरिटी बर्थिंग पाॅलिसी’ को अधिसूचित किया गया है ताकि तटीय जहाजों के लिए टर्नअराउंड समय को कम किया जा सके और उनके उपयोग में सुधार किया जा सके।
  • बंकर ईंधन पर GST में कमी: भारतीय ध्वज वाले जहाजों में इस्तेमाल होने वाले बंकर ईंधन पर GST को 18% से घटाकर 5% कर दिया गया है।

निष्कर्ष 

तटीय नौवहन विधेयक, 2024 का उद्देश्य समुद्री भारत विजन 2030 के उद्देश्यों के अनुरूप तटीय नौवहन को आगे बढ़ाकर भारत के समुद्री क्षेत्र को मजबूत करना है।

संदर्भ

हाल ही में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) द्वारा गठित केरल राज्य स्तरीय निगरानी समिति (SLMC) ने अष्टमुडी झील के प्रदूषण पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत की।

  • यह रिपोर्ट अष्टमुडी झील में बड़े पैमाने पर मछलियों की मृत्यु  की जाँच के बाद तैयार की गई है।

रिपोर्ट में मुख्य अंतर्दृष्टि और सिफारिशें

  • प्रदूषण पर मुख्य निष्कर्ष: मल और सेप्टेज सहित जैव अपशिष्ट के अवैध निर्वहन के कारण होने वाले अत्यधिक शैवाल प्रस्फुटन से झील के पर्यावरण और जलीय जैव विविधता को गंभीर रूप से नुकसान पहुँचा है।
  • समयबद्ध उपचारात्मक उपाय: जैव अपशिष्ट निर्वहन को रोकने के लिए चल रही परियोजनाओं का तत्काल कार्यान्वयन, तत्काल पर्यावरण संरक्षण सुनिश्चित करना
  • सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण पूरा करना: कोल्लम जिले के सेप्टेज अपशिष्ट मुद्दे से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए कुरीपुझा प्लांट के निर्माण में तेजी लानी चाहिए।
  • बढ़ी हुई निगरानी प्रणाली: तटरेखा निगरानी के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाने और अवैध अपशिष्ट डंपिंग को रोकने के लिए सेप्टेज टैंकर लॉरियों के पंजीकरण को अनिवार्य करने की सिफारिश की गई।
  • संरक्षण के लिए महत्त्व: सिफारिशों का उद्देश्य अष्टमुडी झील में पारिस्थितिकी संतुलन को बहाल करना तथा रामसर साइट संरक्षण और एकीकृत आर्द्रभूमि प्रबंधन के लिए एक राष्ट्रीय मॉडल स्थापित करना है।

 अष्टमुडी झील

  • अष्टमुडी झील भारत के केरल के कोल्लम जिले में स्थित है।
  • इसका नाम इसकी आठ परस्पर जुड़ी भुजाओं के कारण रखा गया है, जो इसे एक अद्वितीय ताड़ के आकार का रूप देते हैं।
  • केरल की दूसरी सबसे बड़ी झील के रूप में, अष्टमुडी झील एक महत्त्वपूर्ण आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र है।

  • इसके पारिस्थितिकी महत्त्व के लिए मान्यता प्राप्त, इसे वर्ष 2002 में अंतरराष्ट्रीय महत्त्व के रामसर आर्द्रभूमि के रूप में नामित किया गया था।
  • यह झील स्थानीय मछुआरों के लिए आजीविका का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है, जो इसके समृद्ध जलीय संसाधनों पर निर्भर हैं।
  • मुख्य रूप से कल्लदा नदी द्वारा पोषित, यह झील नींदकारा मुहाने के माध्यम से अरब सागर से जुड़ती है।
  • ऐतिहासिक रूप से, अष्टमुडी झील ने 14वीं शताब्दी के दौरान एक प्रमुख बंदरगाह शहर के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
    • मोरक्को के खोजकर्ता इब्नबतूता के यात्रा अभिलेखों में इस झील के व्यापारिक केंद्र के रूप में महत्त्व का उल्लेख है।
  • झील का विविध पारिस्थितिकी तंत्र विभिन्न प्रकार की मैंग्रोव प्रजातियों का पोषण करता है, जिनमें दो लुप्तप्राय प्रजातियाँ शामिल हैं: सिजीगियम ट्रावनकोरिकम और कैलामस रोटांग।

संदर्भ

अंतरराष्ट्रीय चीता दिवस के अवसर पर दो चीतों, अग्नि और वायु को मध्य प्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान के खुले वन क्षेत्र में छोड़ा गया।

स्थानांतरण की मुख्य विशेषताएँ

  • चीता पुनर्स्थांतरण परियोजना में मील का पत्थर: जुलाई 2023 में सेप्टीसीमिया के कारण तीन चीतों की मृत्यु सहित कई बाधाओं के बाद सुरक्षात्मक बाड़ों में एक वर्ष से अधिक समय बिताने के बाद, यह इस परियोजना के लिए नई आशा का प्रतीक है।
    • चीतों को छोड़ने की प्रक्रिया कुनो नदी के पार पालपुर पूर्वी क्षेत्र में सभी आवश्यक सैन्य और सुरक्षा उपायों के साथ की गई।
  • चरणबद्ध मुक्ति की रणनीति: चीता परियोजना संचालन समिति ने चीतों को जंगल में छोड़ने के लिए चरणबद्ध दृष्टिकोण का प्रस्ताव रखा।
    • नर चीतों को प्राथमिकता दी जाती है, उसके बाद अलग-अलग चीतों और शावकों वाली मादाओं को प्राथमिकता दी जाती है।
  • निगरानी उपाय: छोड़े गए चीतों पर उनके व्यवहार और वन परिस्थितियों के प्रति अनुकूलन का अध्ययन करने के लिए लगातार निगरानी की जा रही है।
  • चुनौतियों पर काबू पाना: तेंदुओं जैसे सह-शिकारियों और जीवित रहने की प्रवृत्ति के नुकसान के बारे में चिंताओं को गहन निगरानी और तैयारियों के माध्यम से कम किया गया।
    • संभावित बीमारियों से निपटने के लिए निवारक टीकाकरण किए गए हैं।
  • शिकार में सफलता: बाड़ों में रहते हुए, चीतों ने चीतलों की तरह शिकार करने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया, जिससे उनके जीवित रहने के कौशल में आत्मविश्वास पैदा हुआ।
  • कुनो में वर्तमान जनसंख्या: पार्क में 12 शावकों सहित कुल 24 चीते रहते हैं, जो परियोजना की बढ़ती गति को दर्शाता है।

अंतरराष्ट्रीय चीता दिवस

  • अंतरराष्ट्रीय चीता दिवस प्रत्येक वर्ष 4 दिसंबर को मनाया जाता है और इसकी शुरुआत चीता संरक्षण कोष (CCF) द्वारा की गई थी।
  • उद्देश्य: अंतरराष्ट्रीय चीता दिवस चीता संरक्षण प्रयासों के बारे में जागरूकता बढ़ाता है और जंगल में इस प्रजाति को बहाल करने के महत्त्व पर प्रकाश डालता है।

  • दुनिया भर के लोगों को चीतों के बारे में सीखकर और संरक्षण पहलों का समर्थन करके भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
  • आयोजक निकाय: इस दिन का नेतृत्व चीता संरक्षण कोष (CCF) सहित वैश्विक वन्यजीव संगठनों द्वारा किया जाता है।

चीता संरक्षण कोष (CCF) 

  • CCF एक वैश्विक संगठन है, जो चीतों और उनके पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के लिए समर्पित है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1990 में प्रसिद्ध संरक्षण जीव विज्ञानी डॉ. लॉरी मार्कर ने की थी।
  • CCF नामीबिया में स्थित है, जो जंगली चीतों की सबसे बड़ी आबादी वाले देशों में से एक है।

CCF की पहल

  • अनुसंधान: CCF, चीता पारिस्थितिकी, व्यवहार और आनुवंशिकी को बेहतर ढंग से समझने के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान करता है।
  • संरक्षण: CCF, चीता आवासों की रक्षा करने और मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए संरक्षण कार्यक्रम लागू करता है।
  • शिक्षा: CCF, समुदायों को चीता संरक्षण के महत्त्व के बारे में शिक्षित करता है और स्थायी भूमि उपयोग प्रथाओं को बढ़ावा देता है।
  • सामुदायिक आउटरीच: CCF, स्थानीय समुदायों के साथ स्थायी आजीविका विकसित करने और अवैध शिकार तथा आवास के नुकसान के खतरे को कम करने के लिए कार्य करता है।
    • CCF के सबसे सफल कार्यक्रमों में से एक है। पशुधन रक्षक कुत्ता कार्यक्रम, जिसमें शिकारियों से पशुधन की रक्षा के लिए कुत्तों का उपयोग किया जाता है, जिससे चीतों पर घातक नियंत्रण की आवश्यकता कम हो जाती है।

कुनो राष्ट्रीय उद्यान

  • अवस्थिति: मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले में विंध्य पहाड़ियों के पास स्थित है।
    • इसका नाम चंबल नदी की एक प्रमुख सहायक नदी कुनो के नाम पर रखा गया है।
  • स्थिति: प्रारंभ में एक वन्यजीव अभयारण्य के रूप में स्थापित, इसे वर्ष 2018 में ‘भारत में चीता के परिचय के लिए कार्य योजना’ के तहत एक राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था।
  • वनस्पतियाँ: मुख्य रूप से घास के मैदान।
    • प्रमुख वृक्ष प्रजातियों में करधई, सलाई और खैर शामिल हैं।
  • जीव: भारतीय तेंदुआ, जंगली बिल्ली, सुस्त भालू, भारतीय भेड़िया, धारीदार लकड़बग्घा, सुनहरा सियार, बंगाल लोमड़ी और ढोल जैसी प्रजातियों का घर।
  • पारिस्थितिकी महत्त्व
    • खटियार-गिर शुष्क पर्णपाती वनों का भाग, जिसकी विशेषता शुष्क पर्णपाती और कांटेदार झाड़ियाँ हैं।
    • यह पारिस्थितिकी क्षेत्र एशिया में एशियाई शेरों के लिए अद्वितीय है, मुख्य रूप से गुजरात के गिर राष्ट्रीय उद्यान में।

संदर्भ

पिछले महीने G20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए ब्राजील जाते समय भारतीय प्रधानमंत्री नाइजीरिया भी गए। प्रधानमंत्री की नाइजीरिया यात्रा से अफ्रीकी देशों के साथ भारत के रणनीतिक संबंधों को बढ़ावा मिला है।

संबंधित तथ्य

  • भारतीय प्रधानमंत्री को नाइजीरिया के दूसरे सबसे बड़े राष्ट्रीय पुरस्कार, ग्रैंड कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द नाइजर (Grand Commander of the Order of the Niger) से सम्मानित किया गया। 
  • वर्ष 1969 के बाद से महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के बाद यह सम्मान पाने वाले वे दूसरे विदेशी गणमान्य व्यक्ति बन गए।

पश्चिम अफ्रीका के बारे में

  • पश्चिम अफ्रीका मुख्यतः एक राजनीतिक और आर्थिक पदनाम है और इसमें शामिल हैं:-
    • बेनिन (Benin), बुर्किना फासो (Burkina Faso), केप वर्डे (Cape Verde), गांबिया (Gambia), घाना (Ghana), गिनी (Guinea), गिनी-बिसाऊ (Guinea-Bissau), आइवरी कोस्ट (Ivory Coast), लाइबेरिया (Liberia), माली (Mali), मॉरिटोनिया (Mauritania), नाइजर (Niger), नाइजीरिया (Nigeria), सेनेगल (Senegal), सिएरा लियोन (Sierra Leone) और टोगो (Togo)।

नाइजीरिया का सामरिक महत्त्व

  • नाइजीरिया अफ्रीका की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और लोकतंत्र है।
  • यह पश्चिम अफ्रीका में एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में स्थापित है और अफ्रीकी संघ में महत्त्वपूर्ण प्रभाव रखता है।
  • नाइजीरिया को एक लोकतांत्रिक रोल मॉडल माना जाता है और इसने अफ्रीकी महाद्वीप के विवादों में मध्यस्थता की भूमिका निभाई है।
  • यह दक्षिण-दक्षिण सहयोग को आगे बढ़ाने और ‘ग्लोबल साउथ’ को मजबूत करने में भारत का एक प्रमुख भागीदार है।

भारत अफ्रीका तथ्य

   

भारत-अफ्रीका संबंध

  • ऐतिहासिक संबंध: भारत का उपनिवेशवाद और रंगभेद के विरुद्ध संघर्ष तथा गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) के माध्यम से विकासशील देशों की आवाज बनने का निरंतर प्रयास।
    • गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) की स्थापना वर्ष 1961 में शीतयुद्ध के दौरान विकासशील देशों के हितों को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से की गई थी।
  • भारत अफ्रीका मंच शिखर सम्मेलन: पहली बार वर्ष 2008 में नई दिल्ली में आयोजित, इसने अफ्रीकी राष्ट्रों के समूह के साथ समग्र रूप से व्यापक साझेदारी की तलाश करने के लिए भारत के प्रारंभिक कूटनीतिक प्रयासों को चिह्नित किया।
    • कंपाला सिद्धांत (Kampala Principles): वर्ष 2018 में रेखांकित ये समझौते भारत के इस महाद्वीप के साथ जुड़ाव के लिए मार्गदर्शक ढाँचे के रूप में कार्य करते हैं।
  • भारत-अफ्रीका व्यापार सहयोग: अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा जारी एक पेपर के अनुसार, वर्ष 2022 तक, भारत अफ्रीका का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था, जिसका निर्यात 7 प्रतिशत ($32.3 बिलियन) और आयात 5 प्रतिशत ($28 बिलियन) था।
    • भारत और अफ्रीका के बीच द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2022-23 में बढ़कर 98 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो पिछले वर्ष के 89.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर से उल्लेखनीय वृद्धि दर्शाता है।
    • अफ्रीका, अफ्रीकी महाद्वीपीय मुक्त व्यापार क्षेत्र (African Continental Free Trade Area -AfCFTA) के माध्यम से, भारत के अनुकूलन को सुनिश्चित करने के लिए इस संदर्भ में उचित नियम लागू कर रहा है।
    • इससे एक एकीकृत महाद्वीपीय बाजार उपलब्ध होगा, जिस तक भारतीय कंपनियाँ आसानी से पहुँच सकेंगी और उसका लाभ उठा सकेंगी – जिससे अफ्रीका के साथ भारत के जुड़ाव का दायरा और स्तर बढ़ सकता है।
    • रियायती वित्तपोषण: भारत ने 12.37 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक के रियायती ऋण प्रदान किए हैं।
      • भारत सरकार ने 42 अफ्रीकी देशों को 12 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य की 196 ऋण-व्यवस्थाएँ प्रदान की हैं।
  • बुनियादी ढाँचा: जापान के साथ साझेदारी में अफ्रीकी देशों के साथ सहयोग बढ़ाने के लिए भारत द्वारा एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर (Asia Africa Growth Corridor-AAGC) शुरू किया गया।
    • अफ्रीका में भारत का संचयी निवेश वर्तमान में लगभग 75 बिलियन डॉलर होने का अनुमान है, जिसमें IT से लेकर महत्त्वपूर्ण खनिज क्षेत्र शामिल हैं।
  • रक्षा: पारस्परिक सहयोग के लिए नए क्षेत्रों की खोज करने हेतु भारत अफ्रीका रक्षा वार्ता (India Africa Defence Dialogue-IADD) को प्रत्येक दो वर्ष में एक बार आयोजित करने के लिए संस्थागत रूप दिया गया है। 
    • इसमें क्षमता निर्माण, प्रशिक्षण, साइबर सुरक्षा, समुद्री सुरक्षा और आतंकवाद से निपटने जैसे व्यापक उद्देश्य शामिल हैं।
    • भारतीय सेना संयुक्त राष्ट्र शांति सेना के रूप में कार्य कर रही है और अफ्रीका (कांगो गणराज्य, इथियोपिया-इरिट्रिया सीमा, सूडान और अन्य) में शांति स्थापना में भूमिका निभा रही है, बुनियादी ढाँचे का निर्माण कर रही है।
  • शिक्षा: पड़ोसी और अफ्रीकी देशों के छात्रों को आकर्षित करने के लिए ‘भारत में अध्ययन’ पहल की शुरुआत की गई।
    • भारत ने वर्ष 2015 के भारत अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन (IAFS)-III के बाद से 42,000 छात्रवृत्तियाँ प्रदान की हैं।
    • युगांडा में राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय (NFSU) और तंजानिया में IIT मुंबई के पहले विदेशी परिसर स्थापित किए गए।
  • भारत और अफ्रीका के बीच स्वास्थ्य और चिकित्सा पर्यटन: भारत वर्ष 2010 से 2019 तक अफ्रीका के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में तीसरा सबसे बड़ा निवेशक था, जिसकी हिस्सेदारी 19 प्रतिशत थी।
    • जनवरी 2021 से मार्च 2023 तक 42 अफ्रीकी देशों को भारत में निर्मित कोविड-19 टीके निर्यात किए गए हैं।
    • भारत एक शीर्ष चिकित्सा पर्यटन स्थल बन गया है, जहाँ वर्ष 2020 में 19.5% अफ्रीकी पर्यटक चिकित्सा कारणों से भारत आए थे।
  • मानवीय सहायता: भारत ने खाद्यान्न की कमी, बाढ़ सहायता और अन्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मानवीय सहायता प्रदान की है।
    • भारत ने खाद्य सुरक्षा में मदद के लिए मलावी को 1,000 मीट्रिक टन चावल, जांबिया को 1,300 मीट्रिक टन मक्का और जिम्बाब्वे को 1,000 मीट्रिक टन चावल भेजा।
    • भारत ने केन्या को बाढ़ राहत सहायता के रूप में 1 मिलियन डॉलर भी भेजे, जिसमें चिकित्सा सहायता, शिशु आहार, जल शोधन आपूर्ति आदि शामिल है।

काबिल (KABIL) के बारे में

  • काबिल (KABIL) का तात्पर्य खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड (Khanij Bidesh India Limited) है, यह एक संयुक्त उद्यम कंपनी है, जिसका गठन भारत को महत्त्वपूर्ण खनिजों की विश्वसनीय आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए किया गया था।
  • काबिल (KABIL) को वर्ष 2019 में कंपनी अधिनियम 2013 के तहत शामिल किया गया था।
  • यह तीन सरकारी उद्यमों के बीच एक संयुक्त उद्यम है: नेशनल एल्युमिनियम कंपनी लिमिटेड (NALCO), हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड (HCL), और मिनरल एक्सप्लोरेशन एंड कंसल्टेंसी लिमिटेड (MECL)।

अफ्रीका में भारत के लिए अवसर

  • द्विपक्षीय व्यापार का विस्तार: कृषि, खनन और ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में व्यापार साझेदारी को मजबूत करना। अफ्रीका भारतीय फार्मास्यूटिकल्स के लिए एक महत्त्वपूर्ण गंतव्य है, जो इस क्षेत्र में भारत के निर्यात का लगभग 18.5% है।
    • बुनियादी ढाँचे के विकास में निवेश: अफ्रीका में सड़क, रेलवे और बिजली परियोजनाओं के निर्माण के लिए बुनियादी ढाँचे के विकास में भारत की विशेषज्ञता का लाभ उठाना।
    • अफ्रीका को बुनियादी ढाँचे के लिए प्रतिवर्ष 100 अरब डॉलर से अधिक के निवेश की आवश्यकता है, जो भारतीय कंपनियों के लिए एक अप्रयुक्त बाजार प्रस्तुत करता है।
    • अडानी समूह ने केन्या इलेक्ट्रिसिटी ट्रांसमिशन कंपनी के साथ 388 किलोमीटर लंबी हाई-वोल्टेज ट्रांसमिशन लाइन बनाने के लिए 736 मिलियन डॉलर का समझौता किया है।
  • महत्त्वपूर्ण खनिजों को सुरक्षित करना: लीथियम और कोबाल्ट जैसे महत्त्वपूर्ण खनिजों तक पहुँच बढ़ाना, जो भारत के नवीकरणीय ऊर्जा और EV लक्ष्यों के लिए आवश्यक हैं।
    • अफ्रीका में दुनिया के ज्ञात महत्त्वपूर्ण खनिज भंडारों का 30% हिस्सा है और भारत ने पहले ही अर्जेंटीना में काबिल (KABIL) के लीथियम अन्वेषण समझौतों (अफ्रीकी भागीदारी के माध्यम से) जैसी साझेदारियाँ शुरू कर दी हैं।
  • खाद्य सुरक्षा और कृषि सहयोग: खाद्य आयात पर अफ्रीका की निर्भरता को दूर करने के लिए कृषि प्रौद्योगिकियों, खाद्य प्रसंस्करण और सिंचाई पर सहयोग करना।
    • अफ्रीका का खाद्य आयात बिल वर्ष 2022 में $43 बिलियन था, जबकि 282 मिलियन अफ्रीकी कुपोषित हैं, जो कृषि क्षेत्र में परिवर्तन की आवश्यकता को दर्शाता है।
  • अक्षय ऊर्जा सहयोग: अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) के अंतर्गत सौर और नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएँ विकसित करना।
    • भारत ने अफ्रीका को सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए $2 बिलियन के सहयोग का आश्वासन दिया है। सौर ऊर्जा पहल अफ्रीका के 600 मिलियन लोगों तक विद्युत पहुँचाने में मदद कर सकती है, जो वर्तमान में विद्युत तक पहुँच से वंचित हैं।
  • डिजिटल परिवर्तन और स्टार्ट-अप: भारत की डिजिटल भुगतान प्रणाली, E-गवर्नेंस मॉडल और प्रौद्योगिकी स्टार्ट-अप का अफ्रीका में विस्तार करना।
    • अफ्रीका में 1.2 बिलियन से अधिक मोबाइल ग्राहक हैं, जो इसे UPI, आधार और Co-WIN प्लेटफॉर्म जैसे भारतीय डिजिटल समाधानों के लिए एक आकर्षक बाजार का गठन करता है।
  • स्वास्थ्य और दवा संबंधों को मजबूत करना: दवा निर्यात में वृद्धि करना और अफ्रीका में स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढाँचे के विकास का समर्थन करना।
    • अफ्रीका के दवा आयात में भारतीय जेनेरिक दवाओं का हिस्सा 20% है। सस्ती दवाओं की बढ़ती माँग के कारण महाद्वीप का स्वास्थ्य सेवा बाजार वर्ष 2030 तक $259 बिलियन तक बढ़ने का अनुमान है।
  • राजनीतिक और रणनीतिक गठबंधन: भारत के कूटनीतिक संबंधों को मजबूत करना और WTO और संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक मंचों पर अफ्रीकी देशों का समर्थन करना।
    • भारत ने G20 में अफ्रीकी संघ की स्थायी सदस्यता हासिल करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने अफ्रीकी हितों के लिए वैश्विक अधिवक्ता के रूप में अपनी भूमिका का प्रदर्शन किया।

अफ्रीका में चीनी भागीदारी

आर्थिक संबंध

  • व्यापार: अफ्रीका का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार, जिसका व्यापार वर्ष 2023 में 282 बिलियन डॉलर से अधिक हो जाएगा। यह व्यापार मुख्य रूप से अफ्रीका के प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों जैसे तेल, खनिज और कृषि उत्पादों द्वारा संचालित होता है।
  • निवेश: अफ्रीका में एक प्रमुख निवेशक के रूप में उभरा, विशेष रूप से सड़क, रेलवे, बंदरगाह और बाँध जैसी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में। यह निवेश, चीनी राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों से ऋण और प्रत्यक्ष निवेश के माध्यम से सुगम बनाया गया है।
    • वर्ष 2024 में बीजिंग में 9वाँ चीन-अफ्रीका सहयोग पर फोरम (Forum on China-Africa Cooperation-FOCAC) अफ्रीका में उभरते रणनीतिक दृष्टिकोण में महत्त्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करता है और भारत के लिए अफ्रीका के साथ अपने जुड़ाव को मजबूत करने के अवसर प्रस्तुत करता है।
  • ऋण: हालाँकि चीन के निवेश ने कुछ अफ्रीकी देशों में आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया है, इसने ऋण स्थिरता के बारे में चिंताएँ भी उत्पन्न की हैं।

राजनीतिक प्रभाव

  • कूटनीति: कूटनीतिक चैनलों के माध्यम से अफ्रीकी देशों के साथ सक्रिय रूप से जुड़ना, मजबूत द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ावा देना। यह जुड़ाव अक्सर घरेलू मामलों में हस्तक्षेप न करने और आपसी सम्मान के सिद्धांतों पर आधारित होता है।
  • सॉफ्ट पॉवर: अफ्रीका में अपनी सॉफ्ट पॉवर को बढ़ाने के लिए सांस्कृतिक आदान-प्रदान, सहायता कार्यक्रमों और मीडिया आउटरीच का उपयोग किया। इसमें कन्फ्यूशियस इंस्टिट्यूट (Confucius Institutes) और अफ्रीकी छात्रों को चीन में अध्ययन करने के लिए छात्रवृत्ति जैसी पहल शामिल हैं।
  • सुरक्षा सहयोग: कुछ अफ्रीकी देशों के साथ सुरक्षा सहयोग में शामिल, सैन्य उपकरण और प्रशिक्षण प्रदान करना।

नाइजीरिया-चीन संबंध

  • नाइजीरिया की सीमाओं के भीतर 200 से ज्यादा चीनी कंपनियाँ कार्य कर रही हैं।
  • चीन ने नाइजीरिया में 22 बड़ी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में 47 बिलियन डॉलर का निवेश किया है, जिसमें लेक्की डीप सी पोर्ट (Lekki Deep Sea Port), अबुजा लाइट रेल (Abuja Light Rail) और एयरपोर्ट टर्मिनल विस्तार (Airport Terminal Expansions) शामिल हैं।
  • मार्च 2020 तक, नाइजीरिया पर चीनी ऋणों में 3.121 बिलियन डॉलर बकाया था, जो उसके बाहरी ऋण का 11.28% था।
  • चीनी प्रौद्योगिकी कंपनी हुआवेई (Huawei) की नाइजीरिया में महत्त्वपूर्ण उपस्थिति है, जिसने 2,000 से अधिक नाइजीरियाई युवाओं और 1,000 सिविल सेवकों को साइबर सुरक्षा और संबंधित क्षेत्रों में प्रशिक्षित किया है।
  • चीन नाइजीरिया के खनन क्षेत्र में भी सक्रिय है और देश का पहला लीथियम-प्रसंस्करण संयंत्र (Lithium-Processing Plant) बना रहा है।

भारत-अफ्रीका संबंधों में चुनौतियाँ

  • सीमित व्यापार एकीकरण: अफ्रीका का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार होने के बावजूद, भारत-अफ्रीका व्यापार केवल $90.5 बिलियन (2022-23) है, जबकि चीन-अफ्रीका व्यापार वर्ष 2021 में $250 बिलियन से अधिक हो गया।
    • अफ्रीकी महाद्वीपीय मुक्त व्यापार क्षेत्र (AfCFTA) के अंतर्गत अफ्रीका का अंतर-क्षेत्रीय व्यापार अपार संभावनाएँ प्रदान करता है, लेकिन इन ढाँचों में भारत की भागीदारी सीमित है।
  • भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता: अफ्रीका चीन और अमेरिका जैसी वैश्विक शक्तियों के लिए एक युद्ध का मैदान बन गया है, जो संसाधनों और बाजारों तक पहुँच के लिए प्रतिस्पर्द्धा कर रहे हैं।
    • अफ्रीका भर में चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) ने केन्या और इथियोपिया में रेलवे जैसी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को वित्तपोषित किया है, जिसमें भारत पिछड़ रहा है।
    • केन्या ने अमेरिकी रिश्वतखोरी और धोखाधड़ी के आरोपों के बाद अदानी समूह के साथ कई मिलियन डॉलर के हवाई अड्डे के विस्तार और ऊर्जा सौदों को रद्द कर दिया।
  • शासन और सुरक्षा मुद्दे: अफ्रीका को राजनीतिक अस्थिरता, आतंकवाद और भ्रष्टाचार जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, विशेषकर साहेल क्षेत्र में।
    • वर्ष 2020 और वर्ष 2023 के बीच, सूडान, नाइजर और बुर्किना फासो सहित सात अफ्रीकी देशों में 9 राजनीतिक तख्तापलट हुए, जिससे राजनयिक संबंध जटिल हो गए।
  • विकास सहयोग का सीमित प्रभाव: भारत की ‘लाइन ऑफ क्रेडिट’ (LoC) और क्षमता निर्माण पहलों में अक्सर रणनीतिक एकीकरण की कमी होती है, जिससे उनका प्रभाव सीमित हो जाता है।
    • पैन-अफ्रीकन E-नेटवर्क जैसी परियोजनाओं ने कनेक्टिविटी में सुधार किया है, लेकिन गरीबी या खाद्य असुरक्षा जैसी बड़ी प्रणालीगत चुनौतियों का समाधान करने में विफल रही हैं।
  • स्वास्थ्य सेवा और दवा संबंधी चुनौतियाँ: भारत, अफ्रीका के 62% दवा आयात की आपूर्ति करता है, लेकिन कोविड-19 ने वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में कमजोरियों को उजागर किया है।
    • आपूर्ति शृंखला में व्यवधान के कारण अफ्रीकी देशों को टीकों और दवाओं तक पहुँचने में अत्यधिक देरी का सामना करना पड़ा है।
  • सांस्कृतिक और शैक्षिक बाधाएँ: भारत में अफ्रीकी छात्रों के साथ भेदभाव की घटनाएँ और शिक्षा की गुणवत्ता के बारे में शिकायतें सांस्कृतिक और शैक्षिक आदान-प्रदान में बाधा डालती हैं।
    • हालाँकि 95,000 अफ्रीकी छात्र चीन में अध्ययन करते हैं, जबकि भारत की ‘भारत में अध्ययन’ पहल अफ्रीकी छात्रों की महत्त्वपूर्ण संख्या को आकर्षित करने में विफल रही है।
  • जलवायु परिवर्तन और खाद्य असुरक्षा: अफ्रीका की 282 मिलियन कुपोषित आबादी (2022) और बढ़ती जलवायु संबंधी आपदाओं पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।
    • ‘हॉर्न ऑफ अफ्रीका’ में भयंकर सूखा पड़ रहा है, जिससे खाद्य असुरक्षा बढ़ रही है और भारत को मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

आगे की राह

  • आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना: नवीकरणीय ऊर्जा, प्रौद्योगिकी और स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करके व्यापार पोर्टफोलियो में विविधता लाना।
  • सहभागिता को मजबूत करना: पिछला भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन (India Africa Forum Summit-IAFS), 2015 में आयोजित किया गया था। भारत को अपनी अध्यक्षता में G20 में अफ्रीकी संघ के शामिल होने का लाभ उठाने के लिए जल्द ही IAFS-IV का आयोजन करना चाहिए।
    • भारत-अफ्रीकी संघ ट्रैक 1.5 वार्ता आपसी चिंताओं को दूर करने में मदद कर सकती है, जिसमें अदीस अबाबा (अफ्रीकी संघ की सीट) IAFS-IV के लिए संभावित मेजबान के रूप में शामिल है।
    • नई दिल्ली में अफ्रीकी संघ (AU) का क्षेत्रीय कार्यालय स्थापित करने से नियमित परामर्श की सुविधा होगी।
  • सुरक्षा सहयोग बढ़ाना: आतंकवाद-रोधी, समुद्री सुरक्षा और साइबर सुरक्षा में सहयोग बढ़ाना।
  • खाद्य और स्वास्थ्य सेवा संबंधी आवश्यकताओं को संबोधित करना: टिकाऊ कृषि पर अफ्रीकी देशों के साथ साझेदारी करना और अफ्रीका के भीतर दवा निर्माण को बढ़ावा देना।
  • सांस्कृतिक और शैक्षिक संबंधों का लाभ उठाना: भारत और चुनिंदा अफ्रीकी देशों में विश्वविद्यालयों, थिंक टैंकों, नागरिक समाज और मीडिया संगठनों के बीच अधिक-से-अधिक संपर्क की आवश्यकता है।
    • भारत में अफ्रीकी अध्ययन के लिए राष्ट्रीय केंद्र की स्थापना की जाएगी तथा अफ्रीकी छात्रों के लिए वीजा नीतियों को सुगम बनाया जाएगा।
  • त्रिपक्षीय और बहुपक्षीय सहयोग: अफ्रीका की विकासात्मक चुनौतियों का समाधान करने के लिए भारत-ब्राजील-दक्षिण अफ्रीका (IBSA) कोष जैसी त्रिपक्षीय पहल को बढ़ावा देना।
  • सतत् विकास पहल: अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) जैसे प्लेटफॉर्मों के माध्यम से अक्षय ऊर्जा और जलवायु कार्रवाई को बढ़ावा देना।
  • भारत की डिजिटल ताकत का लाभ उठाना: भारत के डिजिटल स्टैक (जैसे- UPI, बायोमेट्रिक्स, जनधन तकनीक) को अफ्रीकी देशों में दोहराया जा सकता है।
    • UPI और RuPay सेवाएँ मॉरीशस में पहले से ही चल रही हैं, केन्या, नामीबिया, घाना और मोजांबिक जैसे देश इसमें रुचि दिखा रहे हैं।
  • औद्योगीकरण और मूल्य संवर्द्धन के लिए समर्थन: भारत को कृषि, फार्मास्यूटिकल्स और विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में उच्च मूल्य-वर्द्धित निवेश बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
    • भारतीय कंपनियाँ विनिर्माण आधार स्थापित करके, कृषि मशीनीकरण, खाद्य प्रसंस्करण और कोल्ड स्टोरेज अवसंरचना को बढ़ावा देकर योगदान दे सकती हैं।

निष्कर्ष 

भारत-अफ्रीका संबंधों में आपसी विकास को बढ़ावा देने, वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने और दक्षिण-दक्षिण सहयोग को बढ़ावा देने की अपार संभावनाएँ हैं। मौजूदा चुनौतियों का समाधान करके और व्यापार, सुरक्षा तथा विकास में रणनीतिक सहयोग पर ध्यान केंद्रित करके, दोनों क्षेत्र एक लचीली एवं समावेशी साझेदारी का निर्माण कर सकते हैं, जो उनकी आबादी को लाभ पहुँचाए और एक संतुलित वैश्विक व्यवस्था में योगदान दे।

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