संविधान की प्रमुख विशेषताएं (उड़ान) |
- 42वें संवैधानिक संशोधन (1976) को ‘मिनी संविधान‘ के रूप में भी जाना जाता है।
- केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973): इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की 13 सदस्यीय संविधान पीठ के फैसले के अनुसार संसद द्वारा किसी भी स्थिति में संविधान की ‘मूलभूत संरचना’ में बदलाव नहीं किया जा सकता हैं।
संविधान की प्रमुख विशेषताएं |
- सबसे लंबा लिखित संविधान- भारतीय संविधान, विश्व के सभी लिखित संविधानों में सबसे लंबा है।
- वर्तमान में, इसमें एक प्रस्तावना, लगभग 470 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियाँ शामिल हैं।
- संविधान सभा में कानून से संबन्धित प्रबुद्धों का प्रभुत्व।
- केंद्र और राज्यों दोनों के लिए एक संविधान।
संविधान के विभिन्न स्रोत: |
क्र. सं. | स्रोत | ग्रहण किए गए प्रावधान |
1 | भारत शासन अधिनियम, 1935ई. | संघीय तंत्र, राज्यपाल का कार्यालय, न्यायपालिका, लोक सेवा आयोग, आपातकालीन प्रावधान और प्रशासनिक विवरण।
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2 | ब्रिटेन का संविधान | संसदीय सरकार पद्धति, विधि का शासन, एकल नागरिकता, मंत्रिमंडल (कैबिनेट) प्रणाली, संसदीय विशेषाधिकार, द्विसदन प्रणाली और रिट जारी करने का अधिकार।
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3 | संयुक्त राज्य अमेरिका का संविधान | मौलिक अधिकार, स्वतंत्र न्यायपालिका, राष्ट्रपति पर महाभियोग, न्यायिक समीक्षा, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को पद से हटाना और उप-राष्ट्रपति का पद ।
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4 | आयरलैंड का संविधान | राज्य के नीति निदेशक तत्व, राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया और राज्य सभा के सदस्यों का नामांकन ।
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5 | कनाडा का संविधान | मजबूत केंद्र के साथ संघीय व्यवस्था, अवशिष्ट शक्तियों का केंद्र में निहित होना, केंद्र द्वारा राज्य के राज्यपालों की नियुक्ति और सर्वोच्च न्यायलय का परामर्शदायी अधिकार ।
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6 | आस्ट्रेलिया का संविधान
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समवर्ती सूची और संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक । |
7 | जर्मनी का वाइमर संविधान | आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों का निलंबन ।
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8 | यूएसएसआर (USSR) का संविधान
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मौलिक कर्तव्य और प्रस्तावना में न्याय (सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक) का आदर्श । |
9 | फ़्रांस का संविधान | गणतंत्रात्मक व्यवस्था और प्रस्तावना में स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व के आदर्श ।
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10 | दक्षिण अफ्रीका का संविधान
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संविधान में संशोधन की प्रक्रिया और राज्यसभा के सदस्यों के चुनाव की प्रक्रिया । |
11 | जापान का संविधान | विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया ।
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संविधान के भाग | स्रोत |
संविधान का संरचनात्मक भाग | भारत शासन अधिनियम, 1935 |
संविधान का दार्शनिक हिस्सा (मौलिक अधिकार और राज्य के नीति निदेशक तत्व) | संयुक्त राज्य अमेरिका का संविधान और आयरलैंड का संविधान |
संविधान का राजनीतिक हिस्सा | ब्रिटेन का संविधान |
- कठोरता और लचीलापन- भारतीय संविधान न तो कठोर है और न ही लचीला है, बल्कि दोनों का मिश्रण है।
- एकात्मकता की ओर झुकाव के साथ संघीय व्यवस्था:
संघीय व्यवस्था की विशेषताएं | दो सरकारों की व्यवस्था, शक्तियों का विभाजन, लिखित संविधान, द्विसदन प्रणाली, संविधान की सर्वोच्चता आदि।
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एकात्मक प्रणाली की विशेषताएं | मजबूत केंद्र, एकल संविधान, एकल नागरिकता, एकीकृत न्यायपालिका, अखिल भारतीय सेवाएं, आपातकालीन प्रावधान आदि। |
- शासन कीसंसदीय व्यवस्था– भारतीय संविधान ने अमेरिका की अध्यक्षीय प्रणाली के बजाय ब्रिटिश संसदीय प्रणाली को प्राथमिकता दी है। शासन की संसदीय व्यवस्था की विशेषताएं: राष्ट्रपति नाम मात्र की कार्यपालिका है तथा प्रधानमंत्री तथा उसका मंत्रिमंडल वास्तविक कार्यपालिका है+ बहुमत पार्टी का शासन +प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के नेतृत्व में सरकार + विधायिका में मंत्रियों की सदस्यता + निचला सदन (लोकसभा) का विघटन।
- संसदीय संप्रभुता और न्यायिक सर्वोच्चता में समन्वय– संसद की संप्रभुता का विचार ब्रिटिश संसद से आया है जबकि न्यायिक सर्वोच्चता का विचार अमेरिकी प्रणाली से जुड़ा है। भारतीय संविधान के निर्माताओं ने संसदीय संप्रभुता के ब्रिटिश सिद्धांत और न्यायिक सर्वोच्चता के अमेरिकी सिद्धांत के बीच एक उचित समन्वय को प्राथमिकता दी है।
- एकीकृत और स्वतंत्र न्यायपालिका – सुप्रीम कोर्ट देश की एकीकृत न्यायिक प्रणाली के शीर्ष पर है। इसके बाद राज्य स्तर पर उच्च न्यायालय हैं। उच्च न्यायालय के नीचे अधीनस्थ न्यायालय तथा अन्य निचली अदालतें हैं, जैसे जिला अदालत आदि। सर्वोच्च न्यायालय अपील, नागरिकों के मौलिक अधिकारों का गारंटर और संविधान का संरक्षक है।
- मौलिक अधिकार– भारतीय संविधान का भाग III (अनुच्छेद 12 से अनुच्छेद 35) सभी नागरिकों को छह मौलिक अधिकारों की गारंटी देता है →(1) समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से अनुच्छेद 18) + (2) स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से 22) + (3) शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 और 24) + (4)धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28) + (5) संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29 और 30) + (6) संवैधानिक उपचार का अधिकार (अनुच्छेद 32)। यदि किसी भारतीय नागरिक के मौलिक अधिकार का उल्लंघन किया जाता है तो अनुच्छेद 32 के अंतर्गत हर नागरिक को यह अधिकार प्राप्त है कि वह अपने मौलिक अधिकारों के उल्लंघन किए जाने पर सीधे उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए सरकार को आदेश और निर्देश दे सकते हैं। न्यायालय कई प्रकार के विशेष आदेश जारी करते हैं जिन्हें प्रादेश या रिट कहते हैं; जो इस प्रकार हैं – बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, निषेध आदेश, अधिकार पृच्छा और उत्प्रेषण रिट।
- राज्य के नीति निदेशक तत्व– राज्य के नीति निदेशक तत्वों का भारतीय संविधान के भाग IV में उल्लेख किया गया है। राज्य के नीति निदेशक तत्व(DPSP) सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र के आदर्शों को बढ़ावा देने के लिए हैं। हालांकि मौलिक अधिकारों के विपरीत, राज्य के नीति निदेशक तत्व ‘वाद योग्य नहीं’ हैं। इसका तात्पर्य यह है कि DPSP संविधान का एक हिस्सा हैं, जिन्हें न्यायपालिका द्वारा लागू नहीं कराया जा सकता है।
नोट– मिनर्वा मिल्स मामला (1980): इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारतीय संविधान की स्थापना मौलिक अधिकारों और DPSP के बीच संतुलन की आधारशिला पर की गई है। – मूल संरचना। |
- मौलिक कर्तव्य– मौलिक कर्तव्यों को भारतीय संविधान में स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों के बाद ही जोड़ा गया था। 86वें संवैधानिक संशोधन (2002) के द्वारा एक और मौलिक कर्तव्य को जोड़ा गया। मौलिक कर्तव्यों को भी न्यायपालिका द्वारा लागू नहीं कराया जा सकता है।
- धर्मनिरपेक्ष राज्य– ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द को भारतीय संविधान की प्रस्तावना में 42वें संवैधानिक संशोधन (1976) द्वारा जोड़ा गया था। भारतीय संविधान धर्मनिरपेक्षता की सकारात्मक अवधारणा का प्रतीक है, क्योंकि यह किसी धर्म को भारत के धर्म के तौर पर मान्यता नहीं देता है।
- सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार – 61वें संवैधानिक संशोधन (1988) के द्वारा मतदान करने की उम्र को 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया था।
- एकल नागरिकता– भारत का संविधानपूरे भारत के लिए एकल नागरिकता की व्यवस्था करता है।
- स्वतंत्र निकाय– भारत में लोकतांत्रिक प्रणाली को मजबूत करने हेतु संविधान में कुछ स्वतंत्र निकायों की व्यवस्था की गई है; ये हैं: चुनाव आयोग + नियंत्रक और लेखा परीक्षक + संघ लोक सेवा आयोग + राज्य लोक सेवा आयोग।
- आपातकालीन प्रावधान – राष्ट्रीय आपातकाल(अनुच्छेद-352), राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद-356 और अनुच्छेद-365) और वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद-360)। आपातकाल के दौरान, संघीय संरचना बिना किसी औपचारिक संशोधन के परिवर्तित हो जाती है। देश की पूरी सत्ता केंद्र सरकार के अधीन आ जाती है।
- त्रिस्तरीय सरकार – 73वें तथा 74वें संवैधानिक संशोधन (1992) के माध्यम से देश में तीन स्तरीय सरकार का प्रावधान किया गया है, जो विश्व के किसी भी संविधान में नहीं है। 73वें संवैधानिक संशोधन (1992) के माध्यम से भारतीय संविधान में एक नए भाग 9वें तथा नई 11वीं अनुसूची जोड़कर पंचायतों को मान्यता प्रदान की गई। इसी प्रकार 74वें संवैधानिक संशोधन (1992) के माध्यम से भारतीय संविधान में एक नए भाग 9-A तथा नई 12वी अनुसूची जोड़कर नगरपालिकाओं (शहरी स्थानीय सरकार) को मान्यता प्रदान की गई।
- सहकारी समितियां – 97वें संवैधानिक संशोधन (2011) के माध्यम से सहकारी समितियों को संवैधानिक दर्जा और संरक्षण दिया गया। इसने सहकारी समितियों को बनाने को मौलिक अधिकार दिया (अनुच्छेद-19) + राज्य के नीति निदेशक तत्वों में सहकारी समितियों हेतु प्रावधान जोड़ा (अनुच्छेद 43-B) + संविधान में एक नया भाग IX-B जोड़ा गया, जिसका नाम था “सहकारी समितियाँ ”(अनुच्छेद 243-ZH से अनुच्छेद 243-ZT ) ।
भारतीय संविधान की महत्वपूर्ण अनुसूचियां |
क्रम संख्या | विषय |
पहली | राज्यों के नाम और उनके क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र + केंद्र शासित प्रदेशों के नाम और उनका विवरण |
दूसरी | भारत के राष्ट्रपति, राज्यों के राज्यपाल,लोकसभा, राज्यों में विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, भारत के कैग; राज्य सभा और राज्यों में विधान परिषद के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को प्राप्त होने वाले वेतन, भत्ते और पेंशन का उल्लेख किया गया है। |
तीसरी | विभिन्न पदाधिकारियों जैसे केंद्रीय मंत्री, संसद के चुनाव के लिए उम्मीदवार, सांसद, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, भारत के कैग, राज्य विधानसभा के लिए चुनाव के उम्मीदवार, राज्य विधानसभाओं के सदस्य द्वारा पद-ग्रहण के समय ली जाने वाली शपथ का उल्लेख है। |
चौथी | राज्यों तथा संघीय क्षेत्रों की राज्य सभा में प्रतिनिधित्व का विवरण दिया गया है। |
पाँचवी | अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजाति के प्रशासन और नियंत्रण का उल्लेख। |
छठी | असम, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम राज्यों के जनजाति क्षेत्रों के प्रशासन के बारे में प्रावधान। |
सातवीं | केंद्र एवं राज्यों के बीच शक्तियों का संघ सूची, राज्य सूची एवं समवर्ती सूची के रूप में बंटवारे का विवरण। |
आठवीं | भारत की 22 आधकारिक भाषाओँ का उल्लेख किया गया है (जबकि मूल रूप से 14 भाषाएं थीं) । |
नवीं | राज्य द्वारा संपत्ति के अधिग्रहण की विधियों का तथा जमींदारी व्यवस्था के उन्मूलन का उल्लेख किया गया है। संविधान में यह अनुसूची प्रथम संविधान संशोधन अधिनियम, 1951 के द्वारा जोड़ी
गई थी। |
दसवीं | दल-बदल से संबंधित प्रावधानों का उल्लेख है। यह संविधान में 52वें संशोधन(1985)के द्वारा जोड़ी गई थी। |
ग्यारहवीं | पंचायती-राज से संबन्धित। यह अनुसूची संविधान में 73वें संवैधानिक संशोधन (1993ई.) के द्वारा जोड़ी गई थी। |
बाहरहवीं | नगरपालिकाओं (शहरी स्थानीय सरकार) से संबन्धित। यह अनुसूची संविधान में 74वें संवैधानिक संशोधन (1993) के द्वारा जोड़ी गई थी। |
3. प्रस्तावना |
हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथ-निरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को :
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए, तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर,19 49 ई. (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हजार छह विक्रमी) को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।
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- अमेरिकी संविधान: पहला संविधान जिसकी शुरुआत प्रस्तावना से हुई है।
- भारतीय संविधान की प्रस्तावना 13 दिसंबर 1946 को पंडित नेहरू द्वारा पेश किए गए उद्देश्य प्रस्ताव पर आधारित है, जिसे संविधान सभा ने 22 जनवरी 1947 को अपनाया था।
- 42वें संविधान संशोधन द्वारा संशोधन: अभी तक प्रस्तावना में एक ही बार संशोधन किया गया हैं| इस संशोधन में तीन शब्द- समाजवादी, पंथ-निरपेक्ष और अखण्डता जोड़े गए थे।
- प्रस्तावना में संविधान के मूल दर्शन के साथ-साथ उन आधारभूत राजनीतिक, नैतिक और धार्मिक मूल्यों को समाहित किया गया है जिन पर हमारा संविधान आधारित है।
- प्रस्तावना संविधान सभा के प्रगतिशील दृष्टिकोण और संविधान निर्माताओं के सपनों और आकांक्षाओं को प्रदर्शित करती है।
- प्रस्तावना न तो विधायिका की शक्ति का स्रोत है और न ही विधायिका की शक्तियों को प्रतिबंधित करती है।
- यह न तो वाद-योग्य है और न ही इसे न्यायालय द्वारा लागू किया जा सकता है।
- प्रस्तावना संयुक्त राज्य अमेरिका की स्वतंत्रता की घोषणा के सदृश है – मो. हिदायतुल्लाह|
- संविधान के सभी हिस्सों को पारित करने के बाद प्रस्तावना को पारित किया गया था ताकि यह संविधान के अनुरूप बन सके।
- “हम भारत के लोग” से तात्पर्य है कि संविधान का निर्माण भारत के लोगों के द्वारा और भारतीय लोगों के लिए किया गया है। यह “लोकप्रिय संप्रभुता की अवधारणा” पर ज़ोर देता है।
प्रस्तावना के घटक |
संविधान की शक्ति का स्रोत | इसकी शक्ति का श्रोत भारत के लोग हैं |
भारतीय राज्य की प्रकृति | प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथ-निरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य |
संविधान का उद्देश्य | न्याय (रूस की क्रांति से), स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व (तीनों फ्रांस की क्रांति से) |
संविधान के अंगीकरण की तिथि | 26 नवंबर 1949 |
प्रस्तावना का महत्व |
भारतीय लोकतांत्रिक गणराज्य की कुंडली + संविधान का दर्शन + भारतीय संविधान का सारांश + हमारे संविधान का पहचान पत्र (एन. ए. पालकीवाला) + संविधान निर्माताओं के मस्तिष्क की कुंजी + यह कानूनों की संवैधानिकता की व्याख्या के लिए न्यायपालिका की मार्गदर्शक है।
प्रस्तावना के मुख्य शब्द |
संप्रभु |
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समाजवादी |
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पंथ-निरपेक्ष |
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लोकतान्त्रिक |
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प्रत्यक्ष लोकतंत्र के साधन
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1. जनमत संग्रह (Referendum) | जनमत संग्रह एक प्रत्यक्ष मतदान है, जिसके माध्यम से किसी प्रस्ताव पर लोगो से सीधे मतदान के लिए कहा जाता है। | |
2. पहल (Initiative) | वह प्रक्रिया जिसके तहत लोग विधायिका के समक्ष किसी कानून के निर्माण का प्रस्ताव रखते है। | |
3. वापस बुलाना (Recall) | मतदाताओं द्वारा किसी प्रतिनिधि या अधिकारी को उसके कार्यकाल पूरा होने से पहले हटाने की प्रक्रिया| | |
4. लोक–राय (Plebiscite) | किसी लोक हित के मुद्दे पर देश के नागरिकों की राय जानने की प्रक्रिया | |
गणराज्य |
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