100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

केंद्र राज्य संबंध (उड़ान)

केंद्र राज्य संबंध (उड़ान)

विधायी संबंध – (अनु. 245 से 255)

केंद्र और राज्य का क्षेत्रीय विस्तार:

• संसद/राज्य विधान मंडल अपने सम्पूर्ण क्षेत्राधिकार या उसके किसी भाग के लिए कानून बना सकते हैं।

• अतिरिक्त क्षेत्रीय विधान (भारतीय नागरिक और विश्व के किसी भी भाग में उनकी संपत्ति के संबंध में) = केवल संसद के द्वारा

• संसद के क्षेत्राधिकार में कुछ संवैधानिक प्रतिबंध भी लगाए गए है।

• चार केंद्र शासित प्रदेशों- अंडमान निकोबार द्वीपसमूह, लक्ष्यद्वीप, दादरा और नगर हवेली तथा दमन दीव की शांति, उन्नति और सुशासन के संबंध में राष्ट्रपति नियम बना सकता है। इस प्रकार बनाए गए नियम संसद के द्वारा बनाए गए किसी अधिनियम के समान ही प्रयोज्य माने जाएंगे। राष्ट्रपति ऐसे नियमों के माध्यम से इन केंद्र शासित प्रदेशों के संबंध में संसद द्वारा पारित किसी अधिनियम को संशोधित या समाप्त भी कर सकता है।

• राज्यपाल को यह शक्ति है कि वह संसद के किसी अधिनियम जो अधिसूचित क्षेत्रों में लागू ना करे या उन्हें कुछ संशोधनों/अपवादों के साथ लागू करे।

• असम के राज्यपाल को ये शक्ति है कि वह संसद के अधिनियमों को असम के जनजातीय क्षेत्रों (स्वायत्त जिलों में) में लागू न करे या कुछ संशोधनों/अपवादों के साथ लागू करे। मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के संबंध में ऐसी ही शक्तियाँ राष्ट्रपति को प्रदान की गयी हैं।

विधायी विषयों का वितरण:

• केंद्रीय सूची – 97 विषय

• राज्य सूची – 66 विषय

• समवर्ती सूची – 47 (वर्तमान में 52)

देश /अधिनियम अवशिष्ट शक्तियाँ
1935 अधिनियम गवर्नर जनरल
वर्तमान भारत में संसद
कनाडा केंद्र
यूएसए राज्यों
किसके द्वारा बनाया गया कानून प्रभावी होगा?

• केंद्रीय सूची >समवर्ती सूची>राज्य सूची

• समान्यतः,केंद्रीय कानून राज्य कानूनों पर प्रभावी होता है। लेकिन इसके कुछ अपवाद भी है।

• यदि राज्य के कानून को राष्ट्रपति की सहमति के आरक्षित किया गया है और राष्ट्रपति ने उस पर अपनी सहमति दी है तो राज्य का ऐसा कानून केंद्रीय कानून पर प्रभावी होगा।

राज्य क्षेत्र में संसदीय विधान

जब राज्यसभा इस संबंध में कोई प्रस्ताव पारित कर दे (अनु. 249):

• राष्ट्र के आवश्यक मामले पर

• इस तरह के प्रस्ताव को सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई का समर्थन मिलना चाहिए।

• यह प्रस्ताव एक वर्ष के लिए ही प्रभावी होगा|

• यह राज्य विधान मंडल को समान विषय पर कानून बनाने से रोकने वाला नहीं होना चाहिए।

राष्ट्रपति शासन के दौरान (अनु. 356):

• उस राज्य के संबंध में राज्य सूची के किसी भी विषय पर कानून बनाने का अधिकार संसद के पास होगा।

• राष्ट्रपति शासन के उपरांत भी ऐसे कानून प्रभावी रहते हैं।

• हालांकि इन क़ानूनों को नए राज्य विधानमंडल के द्वारा निरसत, संशोधित या पुनः लागू किया जा सकता है।

राष्ट्रीय अपातकाल के दौरान (अनु. 352):

• राज्य सूची के विषयों में कानून बनाने की शक्ति संसद द्वारा अधिगृहीत कर ली जाती है।

• राज्य विधानमंडल भी उस विषय पर कानून बना सकता है, लेकिन संसद का कानून प्रभावी होता है।

• आपातकाल समाप्त होने के 6 माह बाद तक यह व्यवस्था बनी रहती है।

राज्यों के अनुरोध पर:

• जब दो या अधिक राज्य विधानमंडल इस संबंध में प्रस्ताव पारित करे।

• यह कानून उन्हीं राज्यों में लागू होगा जिन राज्यों ने ऐसा प्रस्ताव पारित किया है।

• ऐसे कानून को संसद द्वारा ही संशोधित या निरसित किया जा सकता है राज्य विधानमंडल द्वारा नहीं; उदाहरण- वन्यजीव अधिनियम 1972; जल अधिनियम 1974|

अंतराष्ट्रीय समझौतों को लागू किया जाना:

• अंतर्राष्ट्रीय संधि, समझौतों को लागू करने के लिए संसद राज्य सूची के किसी भी विषय पर कानून बना सकती है। उदाहरण जेनेवा समझौता अधिनियम 1960; ट्रिप्स (TRIPS)

राज्य विधानमंडल में केंद्र का नियंत्रण:

• राज्यपाल राज्य विधायिका द्वारा पारित कुछ विधेयकों को राष्ट्रपति की संस्तुति के लिए आरक्षित कर सकता है। राष्ट्रपति को ऐसे विधेयकों पर विशेष वीटो प्राप्त है।

• राज्य सूची के कुछ विषयों पर विधेयक केवल राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से प्रस्तुत किया जा सकता है। उदाहरण – व्यापार और वाणिज्य की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने से संबन्धित विधेयक (अनु. 301)।

• वित्तीय आपातकाल के दौरान राज्य विधायिका द्वारा पारित धन विधेयक या अन्य वित्त विधेयकों को राष्ट्रपति आरक्षित कर सकता है।

प्रशासनिक संबंध (अनु. 256 से 263)

कार्यकारी शक्तियों का वितरण

• विधायी शक्ति के अनुरूप

• समवर्ती सूची में, संसदीय कानून राज्य कानून पर प्रभावी होगा (अपवाद- आरक्षित विधेयक पर राष्ट्रपति की सहमति)

• हालांकि समवर्ती सूची पर बने कानून राज्यों द्वारा लागू किए जाते है।

• राज्यों को केंद्र के निर्देश (अनु. 257)

केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग

राज्य की कार्यकारी शक्ति पर संवैधानिक प्रतिबंध:

• अनु. 256- प्रत्येक राज्य की कार्यकारी शक्ति में संसद द्वारा बनाए गए कानूनों और भारत सरकार के निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित किया जाना चाहिये।

राज्यों की कार्यकारी शक्ति पर दो प्रतिबंध:

1. संसद द्वारा बनाए गए कानूनों का अनुपालन सुनिश्चित करना

2. राज्य में केंद्र की कार्यपालिका शक्ति को बाधित या इसके संबंध में पूर्वाग्रह न रखना।

अखिल भारतीय सेवाएँ (अनु. 312) अनु. 312: संविधान संसद को राज्यसभा के प्रस्ताव पर नई अखिल भारतीय सेवाओं के गठन की शक्ति देता है।

• अखिल भारतीय सेवा पर केंद्र और राज्य दोनों का नियंत्रण होता है। इन पर पूर्ण नियंत्रण केंद्र सरकार का और तत्कालीन नियंत्रण राज्य सरकार का होता है।

एकीकृत न्याय व्यवस्था

• दोहरी राजनीतिक व्यवस्थाकेंद्र और राज्य

• न्यायिक प्रशासन में दोहरी व्यवस्था को नहीं अपनाया गया है

संसद दो या अधिक राज्यों के लिए एक ही उच्च न्यायालय की स्थापना कर सकती है। उदा.: महाराष्ट्र और गोवा के लिए अथवा पंजाब और हरियाणा के लिए|

आपातकाल की अवधि में:

1. राष्ट्रीय आपातकाल (अनु. 352) – केंद्र किसी भी मामले में राज्यों को निर्देशित कर सकती है। इस प्रकार राज्य पूर्णतः केंद्र के नियंत्रणाधीन हो जाते हैं, यद्यपि उन्हें निलंबित नहीं किया जाता है।

2. राष्ट्रपति शासन (अनु. 356) राज्य सरकार की समस्त शक्तियाँ राष्ट्रपति में निहित हो जाती है और राष्ट्रपति, राज्यपाल या किसी अन्य कार्यकारी अधिकारी के माध्यम से उनका संचालन करता है।

3. वित्तीय आपातकाल (अनु. 360) केंद्र वित्तीय परिसंपत्तियों के अधिग्रहण के लिए राज्यों को निर्देशित कर सकता है तथा राज्य में कार्यरत कर्मचारियों एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन में कटौती करने का आदेश दे सकता है।

अन्य प्रावधान:

अनु. 355: बाह्य आक्रमण और आंतरिक अशांति से प्रत्येक राज्य की रक्षा करना + यह सुनिश्चित करना कि राज्य सरकारें संविधान की व्यसथा के अनुरूप कार्य करें।

राज्यपाल राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त + केंद्र के एजेंट के रूप में कार्य करना

राज्य निर्वाचन आयोग: राज्यपाल द्वारा नियुक्त + राष्ट्रपति द्वारा हटाया जाना

संविधानेत्तर युक्तियाँ नीति आयोग + राष्ट्रीय एकता परिषद + क्षेत्रीय परिषदें + उत्तर-पूर्व परिषद

वित्तीय संबंध (अनु. 268 से 293)
  • अनु. 265 कोई कर विधि के प्राधिकार से ही अधिरोपित या संगृहीत किया जाएगा, अन्यथा नहीं।
  • कार्यकारी आदेश द्वारा कोई कर नहीं लगाया जा सकता है।

समेकित निधि (अनु. 266):

• अनु. 266 – भारत और राज्यों के लिए समेकित निधि

• सरकार को प्राप्त सभी राजस्व, बाजार से लिए गए ऋण और स्वीकृत ऋणों पर प्राप्त ब्याज समेकित निधि (Consolidated Fund) में जमा होते हैं। कुछ अपवादों के अतिरिक्त सरकार के सभी व्यय भी इसी निधि से किए जाते हैं।

• बिना संसद की अनुमति के इस निधि से कोई भी धन विनियोजित नहीं किया जा सकता है।

आकस्मिक निधि (अनु. 267) • इस निधि को भारत की आकस्मिक निधि कहा जाता है (विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गयी निधि)| इसके लिए संसद ने भारत की आकस्मिक निधि अधिनियम 1950 को अधिनियमित किया है।

• यह भारत के राष्ट्रपति की ओर से वित्त सचिव (आर्थिक मामलों के विभाग) के नियंत्रण में होती है और इसे कार्यकारी कार्रवाई द्वारा संचालित किया जा सकता है।

कराधान शक्तियों का आवंटन:

• संविधान में कराधान की शक्तियों का स्पष्ट विभाजन किया गया है और केंद्र तथा राज्यों के बीच कराधान को लेकर कुछ प्रतिबंध भी लगाए गए हैं।

• अवशिष्ट शक्ति संसद के पास। इस प्रावधान के तहत, संसद ने उपहार कर, समृद्धि कर और व्यय कर लगाया है।

• समवर्ती सूची में कोई कर प्रविष्टि नहीं हैं। दूसरे शब्दों में, कर कानून के संबंध में कोई समवर्ती क्षेत्राधिकार उपलब्ध नहीं है।

2016 के 101 वें संशोधन अधिनियम के द्वारा जीएसटी के संबंध में लाए गए विशेष प्रावधान इसका अपवाद है। इस संशोधन ने जीएसटी को नियंत्रित करने वाले कानूनों को बनाने के संदर्भ में संसद और राज्य विधानसभाओं को समवर्ती शक्ति प्रदान की है।

राज्यों की सहायतार्थ अनुदान:

विधिक अनुदान विवेकाधीन अनुदान
अनु. 275 संसद को यह अधिकार प्रदान करता है कि वह राज्यों को आवश्यकता पर अनुदान उपलब्ध कराये, हालांकि प्रत्येक राज्य के लिए ऐसा करना आवश्यक नहीं है। अनुदान की यह राशि भारत की समेकित निधि पर भारित होती है। अनु. 282 केंद्र और राज्य दोनों को किसी भी सार्वजनिक उद्देश्य के लिए अनुदान आवंटन का अधिकार देता है, भले ही यह उनके संबंधित विधायी क्षमता के भीतर न हो।
संविधान राज्यों में जनजातियों के उत्थान एवं कल्याण तथा अनुसूचित जनजाति बाहुल्य राज्यों में प्रशासनिक विकास के लिए भी राज्यों को विशेष सहायता प्रदान करने शक्ति संसद को देता है। (इसमें असम भी शामिल है) इन अनुदानों को विवेकाधीन अनुदान भी कहा जाता है, केंद्र इसके लिए बाध्य नहीं है, यह पूर्णतया उसके स्वविवेक पर निर्भर करता है।
अनु. 275 तहत राज्यों को दिया जाने वाला अनुदान वित्त आयोग की अनुसंशा के अनुरूप होता है।

ये अनुदान,राज्यों को योजनागत लक्ष्यों की प्राप्ति में वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने और राज्यों में राष्ट्रीय योजनाओं को प्रभावी करने राज्य की कार्रवाई को प्रभावित करने और समन्वय बनाए रखने में केंद्र की मदद करते हैं।

अन्य अनुदान

• संविधान ने एक तीसरे प्रकार के अनुदान की भी व्यवस्था की है, लेकिन अल्प अवधि के लिए।

• असम, बिहार, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल राज्यों को जूट और जूट उत्पादों पर निर्यात शुल्क के बदले अनुदान का प्रावधान।

• यह प्रावधान संविधान प्रारम्भ होने से 10 वर्ष की अवधि के लिए किया गया था।

• ये अनुदान भारत की समेकित निधि पर भारित होते थे और वित्त आयोग की अनुसंशा पर उपलब्ध कराये गए थे।

राज्यों के हितों का संरक्षण:

निम्नलिखित विधेयकों को केवल राष्ट्रपति की सहमति से ही संसद में प्रस्तुत किया जा सकता है:

1. वे विधेयक जो किसी भी कर या शुल्क को लागू या बदलते हैं जिसमें राज्यों के हित प्रभावित होते हैं।

2. ऐसे विधेयक जो कृषि आय” की अभिव्यक्ति के अर्थ में परिवर्तन करते हों।

3. ऐसे विधेयक जो राज्यों में वितरित या वितरण की जाने वाली राशियों में परिवर्तन करते हों।

4. ऐसे विधेयक जो केंद्र के प्रयोजन हेतु किसी विशिष्ट कर या शुक्ल पर अधिभार अध्यारोपित करते हों।

केंद्र और राज्यों द्वारा ऋण

केंद्र राज्य
• संसद द्वारा निर्धारित सीमा के भीतर समेकित निधि की गारंटी पर ऋण ले सकती है (भारत में + भारत के बाहर से)

• राज्य सरकार को ऋण दे सकती है या राज्य द्वारा लिए गए ऋण के लिए गारंटी दे सकती है।

• राज्य, केंद्र की अनुमति के बिना ऋण नहीं ले सकते हैं। (यदि केंद्र द्वारा दिये गए ऋण का कोई भाग बकाया है)

• राज्य विधानमण्डल निर्धारित सीमा के भीतर राज्य की संचित की गारंटी पर ऋण के लिया जा सकता है (भारत में, भारत के बाहर से नहीं)

संघ की परिसंपत्तियों को राज्य के कर से छूट (अनु. 285) • केंद्र की सभी परिसंपत्तियों को राज्य या उसके विभिन्न निकायों, जैसे- नगरपालिका, जिला बोर्डों, पंचायतों आदि को राज्य या राज्य के किसी प्राधिकरण द्वारा अद्यारोपित सभी प्रकार के करों से छूट प्राप्त होती है। लेकिन संसद यह प्रतिबंध हटा सकती है।

• संपत्ति का उपयोग संप्रभु (जैसे- सशस्त्र सेनाएँ) या वाणिज्यिक प्रयोजनों के लिए किया जाता है।

• केंद्र सरकार द्वारा निगमित निगमों या कंपनियों को राज्य कराधान या स्थानीय कराधान से उन्मुक्ति प्राप्त नहीं होती है। (इनका प्रथक विधिक अस्तित्व होता है)

राज्य की परिसंपत्तियों को केंद्रीय कर से छूट (अनु. 289)

• राज्यों की परिसंपत्तियों एवं आय को भी केंद्रीय कर से छूट प्राप्त होती है। यह आय संप्रभु कार्यों या वाणिज्यिक कार्यों से हो सकती है।

• किन्तु संसद की अनुमति से केंद्र राज्य की वाणिज्यिक आय पर कर लगा सकता है।

• राज्य में स्थित स्थानीय संस्थाओं की परिसंपत्ति और आय केंद्रीय कर से उन्मुक्त नहीं होती है।

• इसी प्रकार, राज्य के स्वामित्व वाले निगमों और कंपनियों की परिसंपत्ति एवं आय पर केंद्र कर लगा सकती है।

1963 में सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी सलाहकार अधिकारिता के तहत सलाह दी थी कि केंद्र, राज्य द्वारा आयातित या निर्यातित वस्तुओं पर कर लगा सकती है या वह राज्य में उत्पादित या विनिर्मित सामान पर उत्पाद शुल्क लगा सकती है।

आपातकाल के प्रभाव

राष्ट्रीय आपातकाल (अनु. 352) वित्तीय आपातकाल (अनु. 360)
• राष्ट्रपति केंद्र और राज्यों के बीच संवैधानिक राजस्व वितरण को परिवर्तित कर सकता है।

• केंद्र से राज्यों को होने वाले वित्तीय अंतरण को कम कर सकता है या समाप्त कर सकता है (कर वितरण और अनुदान दोनों)।

• ऐसे परिवर्तन आपातकाल की समाप्ति वाले वित्तीय वर्ष तक प्रभावी रहेंगे।

केंद्र राज्यों को निर्देश दे सकता है:

1. वित्तीय औचित्य संबंधी सिद्धांतों के पालन का,

2. राज्य की सेवा में लगे सभी वर्गों के कार्मिकों के वेतन और भत्तों की कटौती का,

3. सभी धन विधेयकों या अन्य वित्तीय विधेयकों को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए आरक्षित करने का।

कर राजस्व का वितरण:

अनुच्छेद कर का अध्यारोण संग्रहण विनियोजन विभिन्न कर
268 केंद्र राज्य राज्य शेयरों, चेकों, प्रोमिसियरी नोट्स, बीमा आदि के अंतरण पर लगने वाले स्टांप शुल्क
269 केंद्र केंद्र राज्य अंतर-राज्यीय व्यापार और वाणिज्य से संबंधित कर।

यह राजस्व भारत की समेकित निधि का हिस्सा नहीं होता है।

270

केंद्र केंद्र केंद्र और राज्यों के बीच वितरित केंद्रीय सूची के विषयों पर लगाए गए कर आयकर (कृषि आय के अतिरिक्त), निगम कर, आदि।
271

केंद्र केंद्र केंद्र अनु. 268, 269, 270 के तहत करों पर अधिभार
NA राज्य राज्य राज्य बिक्री कर, एल्कोहल और स्वापक पदार्थों पर उत्पाद शुल्क, चुंगी कर, वृत्ति कर (प्रतिवर्ष अधिकतम 2500 रुपये- संविधान द्वारा लगी गयी सीमा)

केंद्रराज्य सम्बन्धों पर समिति:

 

केंद्र द्वारा राज्यों द्वारा
सरकारिया आयोग (1983) राजमन्नार समिति तमिलनाडु (1969)
पुंछी आयोग (2007) आनंदपुर साहिब प्रस्ताव अकाली दल पंजाब (1973)
प्रथम एवं द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.