भारत का अपवाह तंत्र |
भारतीय अपवाह तंत्र में अनेक छोटी-बड़ी नदियाँ शामिल हैं। ये तीन बड़ी भू-आकृतिक इकाइयों की उद्-विकास प्रक्रिया (महान हिमालय, प्रायद्वीपीय पठार एवं पश्चिमी घाट) तथा वर्षण की प्रकृति और लक्षणों के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुई हैं।
मूल शब्दावली
- अपवाह तंत्र : निश्चित वाहिकाओं के माध्यम से हो रहे जल प्रवाह को अपवाह कहते हैं। इन वाहिकाओं के जाल को अपवाह तंत्र कहा जाता है।
- नदी का उद्गम स्रोत: जहाँ से नदी निकलती है।
- संगम: वह स्थान जहाँ दो या दो से अधिक नदियाँ मिलती है।
- वितरिका नदी: मुख्य नदी से निकलने वाली छोटी नदी जो फिर कभी इससे नहीं मिलती है। इसके कारण मुख्य नदी के पानी की मात्रा में कमी आ जाती है।
वितरिका सामान्यतः डेल्टा पर मिलती है और इनका जलोढ़ पंख और शंकु बनाने में अत्यधिक योगदान होता है।
- सहायक नदी: एक छोटी नदी या धारा जब किसी बड़ी नदी से मिलकर इसके जल की मात्रा को बढाती है तो उसे सहायक नदी कहते है।
- नदी मुहाना: वह स्थान जहाँ नदी का प्रवाह ख़त्म होता है या यह समुद्र से मिलती है।
- जलग्रहण क्षेत्र: वह सम्पूर्ण क्षेत्र, जिस पर वर्षा होती है और यह नदी बेसिन का कार्य करता है।
- नदी रूपरेखा: यह नदी स्त्रोत से मुहाने तक विभिन्न बिंदुओं पर नदी की गहराई का प्रतिनिधित्व करता है। प्रायद्वीपीय नदियाँ लगभग अपने अपरदन के निम्न स्तर तक पहुँच चुकी हैं।
- विसर्जन/Discharge: समय के साथ नदी में बहने वाले जल की मापी गयी मात्रा। इसे क्यूसेक (क्यूबिक फीट प्रति सेकंड) या क्यूमेक्स (क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड) में मापा जाता है।
- जल-संभर/जल विभाजक: एक जल निकासी बेसिन को दूसरे बेसिन से अलग करने वाली सीमा रेखा को जल-संभर क्षेत्र कहा जाता है।
अपवाह का स्वरूप
संरचना (भूगर्भशास्त्र) | वर्तमान जलवायु और पर्वतीय-जलवायु | टेक्टोनिक इतिहास | एक जियोमोर्फिक एजेंट और एन्थ्रोपोसेंस के रूप में मानव |
लिथोलॉजी या चट्टानों के प्रकारचट्टानों के लक्षण | उष्णकटिबंधीय, तापमान या ध्रुवीय वातावरण
आंतरिक (भूतापीय) और बाहरी (सौर) |
भूमि की सामान्य ऊंचाई में परिवर्तन और परिणामी वासनात्मक परिवर्तन
ढलान ढाल और आकारिकी |
पानी और तलछट का पता लगाना
जल निकासी आधार के इंटरलिंकिंग |
- एक क्षेत्र में धाराओं की ज्यामितीय व्यवस्था को अपवाह स्वरूप कहा जाता है। एक क्षेत्र में अपवाह पैटर्न को नियंत्रित करने वाले कारक निम्न हैं:
- स्थलाकृति: किसी क्षेत्र की प्राकृतिक और कृत्रिम आकृति किसी अपवाह तंत्र को अत्यधिक प्रभावित करती है।
- प्रवणता/ढाल: नदी के प्रवाह की दिशा आमतौर पर प्रवणता द्वारा निर्देशित होती है क्योंकि पानी का प्रवाह गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा नियंत्रित होता है। ऐसी बहुत सी नदियाँ हैं जिनका प्रवाह विशेष रूप से प्रवणता द्वारा निर्धारित होता है।
- संरचनात्मक नियंत्रण: नदी के मार्ग में पड़ने वाले चट्टानो के परतों की व्यवस्था, नदी की दिशा को प्रभावित कर सकती है। प्रवाह की सामान्य दिशा होने के बावजूद, एक उभरी हुई चट्टान के कारण नदी अपनी दिशा बदल सकती है।
- चट्टानों की प्रकृति: जैसे-जैसे नदी अपने मार्ग का अपरदन करती जाती है, नदी के मार्गों की गहराई को निर्धारित करने में आधार की प्रकृति महत्वपूर्ण होती जाती है। यदि नदी अपने रास्ते में अधिक प्रतिरोधी चट्टानों से टकराती है, तो ढाल के साथ होने के बावजूद नदी को अपनी दिशा बदलनी पड़ सकती है।
- विवर्तनिकी गतिविधियाँ: विवर्तनिकी हलचल नदी के आकार, जलीय गतिविधियों , इनके बनने और निक्षेपण को प्रभावित करते हैं।
- उस क्षेत्र का भूवैज्ञानिक इतिहास
भारत में अपवाह तंत्र के प्रतिरूप
वृक्षाकार/डेंड्रिटिक प्रतिरूप: यह अपवाह तंत्र पेड़ की शाखाओं की तरह दिखता है, इस लिये इसे वृक्षाकार/ डेंड्रिटिक अपवाह तंत्र के रूप में जाना जाता है। उदाहरण के लिए उत्तर भारत के मैदानी भाग की नदियां।
अरीय अपवाह प्रतिरूप: ये तब बनते हैं जब नदियाँ एक पहाड़ी से निकलकर सभी दिशाओं में प्रवाहित होती हैं। उदाहरण के लिए, अमरकंटक से निकलने वाली नदियाँ।
केंद्राभिमुखी : केंद्राभिमुखी अपवाह स्वरूप तब बनता है जब बहुत सी नदियाँ अपने जल को सभी दिशाओं से ग्रहण कर एक झील या एक तालाब में छोड़ देती हैं। उदाहरण के लिए, मणिपुर में लोकटक झील।
जालीनुमा प्रतिरूप : जाल स्वरूप जल अपवाह तंत्र तब बनता है जब मुख्य नदियों की प्राथमिक सहायक नदियाँ एक दूसरे के समानांतर बहती हैं और द्वितीयक सहायक नदियाँ उन्हें समकोण पर मिलती हैं। उदाहरण के लिए, हिमालयी क्षेत्र के ऊपरी भाग में स्थित नदियाँ और सिंहभूम के पुराने वलित पर्वत (छोटानागपुर पठार) अर्थात दामोदर नदी प्रणाली।
आयताकार प्रतिरूप: आयताकार अपवाह तंत्र में, मुख्य धारा और इसकी सहायक नदियाँ दोनों समकोण पर काटती हैं। एक आयताकार अपवाह प्रतिरूप अत्यधिक कठोर चट्टानों में मिलता है। उदाहरण के लिए भारत के विंध्य पर्वत में मिलने वाली धाराएँ।
अपवाह तंत्र के प्रतिरूप के प्रकार
नदी के प्रतिरूप के आकार और निर्माण के आधार पर विभिन्न जल अपवाह तंत्र प्रतिरूप मिलते हैं।
A) प्रतिकूल अपवाह तंत्र
अपवाह का एक ऐसा तंत्र जो क्षेत्र की स्थलाकृति और भूविज्ञान के संगत नहीं होता है। ये दो प्रकार के होते है-
- पूर्वगामी असंगत अपवाह तंत्र: नदी के लगातार अपरदन से, नदी की सतह कम होने की बजाय इस स्थलाकृति के उत्थान के कारण अपनी पूर्व स्थिति पर बनी रहती है। सिंधु, सतलुज, गंगा, सरयू (काली), अरुण (कोसी की एक सहायक नदी), तिस्ता और ब्रह्मपुत्र कुछ महत्वपूर्ण प्राचीन नदी हैं, जो महान हिमालय के ऊपर से निकलती हैं।
- अध्यारोपित अपवाह तंत्र: नदी के लगातार अपरदन के कारण स्थल की कमजोर चट्टानें अपरदित हो जाती है और नदी कठोर चट्टानों पर स्वतंत्र रूप से बहने लगती है। दामोदर, सुबर्णरेखा, चंबल, बनास अध्यारोपित अपवाह तंत्र के कुछ अच्छे उदाहरण हैं।
B) अनुकूल अपवाह तंत्र
अपवाह का एक ऐसा पैटर्न है,जो क्षेत्र की स्थलाकृति और भूविज्ञान के संगत होता है।
अनुवर्ती नदियां : वह नदियां जिसकी प्रवाह-दिशा भूमि के मूल ढाल के अनुरूप रहती है।
परवर्ती नदियां: दुर्बल या अल्प अपरदनात्मक प्रतिरोध प्रदान करने वाले संस्तरों पर विकसित होने वाली सहायक नदी जो क्षेत्रीय संरचना के साथ समायोजित (adjusted) होती है।
प्रत्यानुवर्ती नदियां: वह नदी जो शैल-समूह की नति की विपरीत दिशा में और मूल अनुवर्ती नदी के बहाव की भी विपरीत दिशा में बहती है ।
नवानुवर्ती नदियां: वह नदी जो अधःस्थ शैल समूहों के अनुनतिक किसी मूल अनुवर्ती नदी की दिशा में बहती है, परन्तु उसका विकास बाद में होता है और वह प्रायः किसी परवर्ती सरिता (subsequent river) की सहायक बन जाती है ।
भारत की मुख्य नदी प्रणाली
Indian River System
नदी प्रणाली
सिंधु नदी प्रणाली ब्रह्मपुत्र नदी प्रणाली गंगा नदी प्रणाली यमुना नदी प्रणाली नर्मदा नदी प्रणाली तापी नदी प्रणाली गोदावरी नदी प्रणाली कृष्णा नदी प्रणाली कावेरी नदी प्रणाली महानदी नदी प्रणाली |
कुल लंबाई
3180 km 2900 km 2510 km 1376 km 1312 km 724 km 1465 km 1400 km 805 km 851 km |
भारत में लंबाई
1114 km 916 km 2510 km 1376 km 1312 km 1724 km 1465 km 1400 km 805 km 851 km |
भारतीय अपवाह तंत्र का वर्गीकरण
- जल विसर्जन के आधार पर
-
- अरब सागर – अपवाह तंत्र
- बंगाल की खाड़ी – अपवाह तंत्र
अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली अपवाह प्रणालियों को एक जल-विभाजक रेखा द्वारा अलग किया जाता है जिसमें पश्चिमी घाट, अरावली और यमुना-सतलुज को शामिल किया जाता है।
सभी अपवाह तंत्रों का 90% जल केवल बंगाल की खाड़ी में गिरता है और शेष अरब सागर और आतंरिक अपवाह तंत्र का हिस्सा बनता है।
उत्पत्ति, प्रकृति और विशेषताओं के आधार पर:
- हिमालयी अपवाह तंत्र
- प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र
- हिमालयी अपवाह प्रायद्वीपीय अपवाह की तुलना में बहुत छोटा है|
- इन दोनों अपवाह प्रणालियों के बीच सीमांकन स्पष्ट नहीं है, क्योंकि चंबल, बेतवा, सिंध, केन और सोन हिमालयी नदियों की सहायक नदियाँ हैं।
हिमालयी अपवाह तंत्र |
इस तंत्र में हिमालय और ट्रांस हिमालय से उत्पन्न होने वाली नदियां शामिल होती है। इस में 3 मुख्य नदी तंत्र शामिल होते है-
- गंगा नदी तंत्र
- सिंधु नदी तंत्र
- ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र
- ये सभी नदियां बर्फ के पिघलने और वर्षा होने के कारण बनती है इसलिए इन्हें बारहमासी नदियां कहा जाता है।
हिमालयी नदियों की विभिन्न भौगोलिक विशेषताएं हैं:–
- इसके ऊपरी क्षेत्र में (युवा अवस्था): गार्ज, वी-आकार की घाटियाँ, तीव्र ढाल, झरने आदि मिलते है।
- मैदानी क्षेत्रों या मध्य भाग (परिपक्व अवस्था) : मैदानों में प्रवेश करते समय, वे सपाट घाटियों, गोखुर झीलों, बाढ़ के मैदानों, अव्यवस्थित चैनल और नदी के मुहाने के पास डेल्टा जैसी स्थलाकृतियों का निर्माण करते हैं। मैदानी इलाकों में वे एक मजबूत चक्रीय प्रवृत्ति प्रदर्शित करते हैं और अपने मार्गों को अक्सर परिवर्तित करते रहते हैं।
हिमालयी अपवाह तंत्र की उत्पत्ति
- प्रमुख हिमालयी नदियाँ हिमालय के निर्माण से पहले भी मौजूद थीं अर्थात यूरेशियन प्लेट के साथ भारतीय प्लेट के टकराने से पूर्व ।
- ये नदियाँ तब टेथिस सागर में गिरती थी और इनका स्त्रोत वर्तमान तिब्बत क्षेत्र था।
- सिंधु, सतलुज, ब्रह्मपुत्र| आदि की गहरी घाटियों से संकेत मिलता है कि ये नदियाँ हिमालय से भी पुरानी हैं।
- ये नदियाँ हिमालय के निर्माण के दौरान भी प्रवाहित हो रहीं थी तथा ऊर्ध्वाधर अपरदन के कारण इन नदियों के तल कम होते चले गए (ऊर्ध्वाधर कटाव का महत्वपूर्ण योगदान रहा और यह हिमालय के बढ़ने की तुलना में अधिक तेज था) जिससे गहरी घाटियों का निर्माण हुआ।
- हिमालय की कई नदियां पूर्ववर्ती अपवाह का विशिष्ट उदाहरण हैं।
सिंधु नदी तंत्र |
इस नदी प्रणाली में सिंधु और उसकी सहायक नदियाँ जैसे झेलम, चेनाब, रवि, ब्यास, सतलुज (पंचनद) आदि शामिल हैं। यह दुनिया की सबसे बड़ी नदी द्रोणियों में से एक है। जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और पंजाब (भारत) राज्यों में सिंधु द्रोणियों का एक तिहाई से अधिक हिस्सा स्थित है। बाकी हिस्सा पाकिस्तान में है।
- इंडस जिसे सिंधु के नाम से भी जाना जाता है भारत में हिमालयी नदियों की सबसे पश्चिमी नदी है।
- सिंधु की उत्पत्ति कैलाश पर्वत श्रृंखला में 4,164 मीटर की ऊंचाई पर स्थित तिब्बती क्षेत्र में बोखर चू के निकट एक हिमनद से हुई है।
- जम्मू और कश्मीर में प्रवेश करने के बाद, यह लद्दाख और ज़ास्कर श्रेणियों के बीच बहती है।
- यह लेह में ज़ास्कर नदी से मिलती है।
- सिंधु को हिमालय, लद्दाख, ज़ास्कर और कैलाश के हिमनद से जल की प्राप्ति होती है।
- यह 3600 किमी लंबी और दुनिया की सबसे बड़ी नदियों में से एक है।
- तिब्बत में सिंधु को सिंगी खंबन (शेर मुख) के नाम से जाना जाता है।
- सिंधु दरदिस्तान क्षेत्र में चिल्लड़ के पास पाकिस्तान में प्रवेश करती है।
- ऊपरी भाग में सिंधु की प्रमुख सहायक नदियाँ शयोक, गिलगित, ज़ास्कर, हुंजा, नुबरा, शिगार, गास्टिंग और द्रास हैं।
- निचले भाग में सतलुज, ब्यास, रावी, चिनाब और झेलम सिंधु की प्रमुख सहायक नदियाँ हैं।
- अंत में सिंधु पाकिस्तान में कराची के पास अरब सागर में गिरती है।
झेलम नदी
- झेलम कश्मीर घाटी के दक्षिण-पूर्वी हिस्से में पीर पंजाल में स्थित वेरीनाग झरने से निकलती है।
- यह पाकिस्तान में प्रवेश करने से पहले श्रीनगर और वुलर झील से बहते हुए तंग व गहरे महाखड्ड से गुजरती है तथा पाकिस्तान में झंग के पास चेनाब से मिलती है।
- बांध: मंगला बांध, उरी बांध, किशनगंगा पनबिजली संयंत्र।
चेनाब नदी
- चेनाब सिंधु की सबसे बड़ी सहायक नदी है। यह दो सरिताओं चंद्र और भागा के मिलने से बनती है, जो हिमाचल प्रदेश में केलांग के पास तांडी में मिलती है।
- इसलिए इसे चंद्रभागा के नाम से भी जाना जाता है। पाकिस्तान में प्रवेश करने से पहले नदी 1,180 किमी तक बहती है।
- बांध: सलाल बांध, पाकल डल बांध, रतले जल विद्युत संयंत्र, डलहस्ती जल विद्युत संयंत्र।
रावी नदी
- रावी सिंधु की एक और महत्वपूर्ण सहायक नदी है। यह हिमाचल प्रदेश के कुल्लू पहाड़ियों में रोहतांग के पश्चिम से निकलती है और राज्य की चंबा घाटी से होकर बहती है।
- पाकिस्तान में प्रवेश करने और सराय सिंधु के पास चिनाब में मिलने से पहले यह पीर पंजाल के दक्षिण-पूर्वी भाग व धौलाधार के बीच प्रदेश से प्रवाहित होती हैं।
- बांध: रणजीत सागर बांध, चमेरा बांध
ब्यास नदी
- ब्यास सिंधु की एक और महत्वपूर्ण सहायक नदी है जिसका उद्गम समुद्र तल से 4,000 मीटर की ऊंचाई पर रोहतांग दर्रे के पास ब्यास कुंड से हुआ है।
- यह नदी कुल्लू घाटी से होकर बहती है और धौलाधार श्रेणी में काती और लारगी में महाखड्ड बनाती है।
- यह पंजाब के मैदानों में प्रवेश करती है जहाँ यह हरिके के पास सतलुज से मिलती है।
- बांध: पौंग बांध, पंडोह बांध
सतलुज नदी
- सतलुज की उत्पत्ति तिब्बत में 4,555 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मानसरोवर के पास राक्षस ताल से हुई है जहाँ इसे लॉगचेन खंबाब के नाम से जाना जाता है।
- यह भारत में प्रवेश करने से पहले लगभग 400 किमी तक सिंधु के समानांतर बहती है और रोपड़ में एक महाखड्ड बनाती है।
- यह हिमालय पर्वतमाला पर शिपकीला से गुजरते हुए पंजाब के मैदानों में प्रवेश करती है। यह एक पूर्ववर्ती नदी है।
- यह एक बहुत महत्वपूर्ण सहायक नदी है क्योंकि यह भाखड़ा नांगल परियोजना की नहर प्रणाली को जल उपलब्ध करवाती है।
सिंधु जल संधि
19 सितंबर 1960 को भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के बीच हुई सिंधु जल संधि के अनुसार भारत और पाकिस्तान सिंधु नदी प्रणाली के जल का उपयोग करते हैं।
संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्थायी विवाद आयोग का गठन किया गया। जो एक तंत्र के साथ जल बंटवारे में होने वाले विवादों को सुलझाने के लिए सौहार्दपूर्ण ढंग से कार्य करता है।
इस संधि के अनुसार भारत कुल पानी का केवल 20 प्रतिशत उपयोग कर सकता है।
1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हस्ताक्षरित संधि के तहत तीन नदियों (अर्थात् रावी, सतलज और ब्यास (पूर्वी नदियों) ) के सारे जल का उपयोग भारत कर सकता था।
जबकि पश्चिमी नदियों का पानी – सिंधु, झेलम और चिनाब का सारा पानी पाकिस्तान को मिला है। इनका निर्दिष्ट घरेलू और कृषि उपयोग में भारत भी कर सकता है जैसा कि संधि में प्रावधान किया गया है।
भारत को पश्चिमी ‘नदियों पर नदी’ (ROR) परियोजनाओं के माध्यम से पनबिजली उत्पादन का भी अधिकार दिया गया है जो रचना और संचालन के लिए विशिष्ट मानदंडों के अधीन है।
वर्तमान विकास |
- भारत को विशेष उपयोग के लिए आवंटित पूर्वी नदियों के पानी का उपयोग करने के लिए भारत ने निम्न बांधों का निर्माण किया है:
- सतलुज पर भाखड़ा बांध,
- ब्यास पर पोंग और पंडोह बांध और
- रावी पर थीन बांध (रंजीत सागर)।
- 2016 में पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर में बनाई जा रही भारत की किशनगंगा और रतले पनबिजली परियोजनाओं पर अपनी चिंताओं के विषय में विश्व बैंक से संपर्क किया था।
- भारत ने तब तटस्थ विशेषज्ञों से संयंत्र का निरीक्षण करने का अनुरोध किया| भारत ने कहा कि पाकिस्तान द्वारा उठाए गए बिंदु तकनीकी हैं और इसमें मध्यस्थता की आवश्यकता नहीं है।
- विश्व बैंक ने संधि के तकनीकी प्रावधानों पर दोनों देशों के बीच बातचीत के बाद भारत को परियोजनाओं के साथ आगे बढ़ने की अनुमति दी।
गंगा नदी तंत्र
- गंगा नदी प्रणाली भारत में सबसे बड़ी है और इसमें कई बारहमासी और गैर-बारहमासी नदियाँ मिलती हैं जो क्रमशः उत्तर में हिमालय और दक्षिण में प्रायद्वीप से निकलती हैं।
- गंगा अपने द्रोणी और सांस्कृतिक महत्व के दृष्टिकोण से भारत की सबसे महत्वपूर्ण नदी है।
- गंगा द्रोणी में 11 राज्य शामिल हैं। उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और दिल्ली।
- इसकी उत्पत्ति उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में गौमुख (3,900 मीटर) के पास गंगोत्री हिमनद से हुई है। यहां पर इसे भागीरथी के नाम से जाना जाता है।
- यह मध्य और लघु हिमालय को काट कर तंग महाखड्डों से होकर गुजरती है।
- देवप्रयाग में भागीरथी अलकनंदा से मिलती है। इसके बाद इसे गंगा के नाम से जाना जाता है। हरिद्वार में गंगा मैदानी इलाकों में प्रवेश करती है।
- यह प्रयागराज (इलाहाबाद) में यमुना से मिलती है।
- गंगा नदी की लंबाई 2,525 किमी है। गंगा बेसिन अकेले भारत में लगभग 8.6 लाख वर्ग किमी क्षेत्र को आच्छादित करता है।
- महत्वपूर्ण बांध: भागीरथी नदी (गंगा की एक सहायक नदी) पर निर्मित टिहरी बांध, फरक्का बैराज उस बिंदु के करीब है जहां नदी का मुख्य प्रवाह बांग्लादेश में प्रवेश करता है।
- गंगा के मैदान पर बड़ी संख्या में शहर स्थित हैं। जिसमें सबसे उल्लेखनीय है सहारनपुर, मेरठ, आगरा, अलीगढ़ कानपुर, बरेली, लखनऊ, इलाहाबाद, वाराणसी (हिन्दुओं का पवित्र शहर या काशी), पटना, भागलपुर, मुर्शिदाबाद, कोलकाता, हावड़ा और ढाका प्रमुख हैं।
- बांग्लादेश में इसे पद्मा के नाम से जाना जाता है। पद्मा नदी के जमुना (ब्रह्मपुत्र नदी) से मिलने के बाद इसे मेघना के नाम से जाना जाता है जो हुगली नदी के साथ मिलकर दुनिया की सबसे बड़ी डेल्टा बनाती है जो भारत और बांग्लादेश दोनों में स्थित है । इसे सुंदरबन डेल्टा के नाम से जाना जाता है।
गंगा में बाईं ओर से मिलने वाली महत्वपूर्ण सहायक नदियाँ
- रामगंगा
- गोमती
- घाघरा
- गंडक
- कोसी
- महानंदा
गंगा में दाईं ओर से मिलने वाली महत्वपूर्ण सहायक नदियाँ:
- सोन
- यमुना
अलकनंदा नदी
- बद्रीनाथ से ऊपर सतोपंथ ग्लेशियर में अलकनंदा का उद्गम स्रोत स्थित है।
- अलकनंदा, धौली और विष्णु गंगा धाराओं से मिलकर बनती है, जो जोशीमठ या विष्णु प्रयाग में मिलती हैं।
- अलकनंदा की अन्य सहायक नदियाँ जैसे पिंडर कर्णप्रयाग में मिलती हैं जबकि मंदाकिनी या काली गंगा इसे रुद्रप्रयाग में मिलती हैं।
रामगंगा नदी
- रामगंगा तुलनात्मक रूप से गैरसेन के पास गढ़वाल पहाड़ियों में एक छोटी नदी है।
- यह शिवालिक को पार करने के बाद दक्षिण पश्चिम दिशा में अपना रास्ता बदलती है और नजीबाबाद के पास उत्तर प्रदेश के मैदानी इलाके में प्रवेश करती है।
- अंत में, यह कन्नौज के पास गंगा में मिलती है।
गोमती नदी
- गोमत ताल / फुलहार झील से उत्पन्न – पीलीभीत जिला|
- यह लखनऊ और जौनपुर शहरों से बहते हुए सैदपुर में गंगा से मिलती है।
यमुना नदी
- यमुना गंगा की सबसे पश्चिमी और सबसे लंबी सहायक नदी है। बंदरपूछ श्रेणी (6,316 किमी) के पश्चिमी ढलान पर यमुनोत्री ग्लेशियर में इसका उद्गम स्रोत है।
- यह प्रयागराज (इलाहाबाद) में गंगा से मिलती है। इसके दाहिने किनारे पर चंबल, सिंध, बेतवा और केन इससे मिलती हैं जो प्रायद्वीपीय पठार से निकलती है जबकि हिंडन, रिंद,सेंगर, वरुणा, आदि इसे अपने बाएं किनारे पर मिलती हैं।
- इसका अधिकांश जल पश्चिमी और पूर्वी यमुना नहरों और आगरा नहर में सिंचाई के लिए उपयोग होता है।
- यमुना नदी पर लखवार-व्यासी बांध परियोजना, इसमें भारत में उत्तराखंड के देहरादून जिले के कलसी ब्लॉक में लखवार शहर के पास, लखवाड़ बांध और पॉवर स्टेशन, व्यासी डैम, हाथीयारी पावर स्टेशन और कटापथर बैराज शामिल हैं।
चंबल नदी
- चंबल मध्य प्रदेश के मालवा पठार में महू के पास से निकलती है और राजस्थान में कोटा से होकर बहती है। जहां गांधीसागर बांध बनाया गया है।
- कोटा से यह बूंदी, सवाई माधोपुर और धौलपुर तक जाती है और अंत में यमुना में मिल जाती है। चंबल अपनी उत्खात् भूमि वाली भू-आकृति के लिए प्रसिद्ध है, जिसे चंबल खड्ड(Ravine) कहा जाता है।
चंबल पर बांध
- गांधी सागर बांध राजस्थान-मध्य प्रदेश सीमा पर स्थित चंबल नदी पर बने चार बांधों में से एक है।
- राणा प्रताप सागर बांध गांधी सागर बांध के निकट स्थित है।
- जवाहर सागर बांध, राणा प्रताप सागर बांध के निकट स्थित है।
- श्रृंखला में चौथा कोटा बैराज राजस्थान में कोटा शहर के निकट स्थित है।
बनास
- बनास चंबल की एक सहायक नदी है।
- इसकी उत्पत्ति अरावली पर्वतमाला के दक्षिणी भाग से हुई है।
- यह सवाई माधोपुर के पास राजस्थान- मध्य प्रदेश की सीमा पर चंबल से मिलती है।
सिंध
- सिंध मध्य प्रदेश के विदिशा पठार से निकलती है।
- यमुना से मिलने से पहले यह 415 किमी की दूरी तय करती है।
बेतवा
- बेतवा भोपाल जिले (विंध्य श्रेणी) से निकलती है और हमीरपुर के पास यमुना में मिलती है।
- धसान इसकी महत्वपूर्ण सहायक नदी है।
केन
- केन नदी मध्य प्रदेश के बारनेर रेंज से निकलती है जो चीला के पास यमुना में मिलती है।
गंडक नदी
- गंडक,काली गंडक और त्रिशूल गंगा की दो धाराएँ से मिलकर बनती हैं।
- यह नेपाल हिमालय में धौलागिरि व माउंट एवरेस्ट के बीच से निकलती है और नेपाल को अपवाहित करती है।
- यह बिहार के चंपारण जिले में गंगा के मैदान में प्रवेश करती है और पटना के पास सोनपुर में गंगा से मिलती है।
घाघरा नदी
- घाघरा मापचाचुंगों (Mapchachungo) हिमनद से निकलती है।
- यह तिला, सेती व बेरी नामक सहायक नदियों का जलग्रहण करने के उपरांत यह शीशापानी में एक गहरे महाखड्ड का निर्माण करते हुए पर्वत से बाहर निकलती है।
- शारदा नदी (काली या काली गंगा) इससे मैदान मे मिलती है और अंततः छपरा में यह गंगा नदी में विलीन हो जाती है।
शारदा नदी
- शारदा या सरयू नदी नेपाल हिमालय में मिलाम ग्लेशियर से बहती है जहाँ इसे गौरिगंगा के नाम से जाना जाता है।
- यह भारत-नेपाल सीमा के साथ बहती हुई, जहाँ इसे काली या चौकइ कहा जाता है, घाघरा में मिलती है।
कोसी नदी
- कोसी तिब्बत में माउंट एवरेस्ट के उत्तर से निकलती है जहां इसकी मुख्यधारा अरुण की उत्पत्ति होती है।
- नेपाल में मध्य हिमालय को पार करने के बाद इसमें पश्चिम से सोन, कोसी और पूर्व से तमुर कोसी मिलती है।
- यह अरुण नदी के साथ मिलकर सप्तकोसी बनाती है। कोसी नदी जिसे ‘बिहार का शोक’ भी कहा जाता है अक्सर अपने अपवाह मार्ग को बदलने के लिए कुख्यात है।
- कोसी अपने साथ भारी मात्रा में अवसाद लाती है और इसे मैदानों में जमा करती है। जिससे मार्ग अवरुद्ध हो जाता है और परिणामस्वरूप नदी अपने मार्ग को बदल लेती है।
महानंदा नदी
- महानंदा, दार्जिलिंग पहाड़ियों में गंगा की एक और महत्वपूर्ण सहायक नदी है।
- यह पश्चिम बंगाल में गंगा की अंतिम सहायक नदी के रूप में मिलती है।
सोन नदी
- सोन इसकी प्रमुख दाहिनी ओर से मिलने वाली सहायक नदी है। सोन गंगा की एक बड़ी दक्षिणी सहायक नदी है जो अमरकंटक के पठार से निकलती है।
- रोहतास पठार के किनारे पर झरने की एक श्रृंखला बनाने के बाद यह पटना के पश्चिम में आरा नामक स्थान पर गंगा में विलीन हो जाती है।
दामोदर नदी
- दामोदर छोटानागपुर पठार के पूर्वी किनारे पर बहती है और भ्रंश घाटी से बहती हुई हुगली नदी में गिरती है।
- बराकर इसकी प्रमुख सहायक नदी है।
- कभी इसे बंगाल के ‘शोक’ के रूप में जाना जाता था। अब दामोदर को बहुउद्देशीय परियोजना दामोदर घाटी निगम (DVC) के संदर्भ में जाना जाता है।
ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र
ब्रह्मपुत्र नदी प्रणाली (3848 किमी) दुनिया की सबसे लंबी नदियों में से एक है। इसे तिब्बत में यारलुंग त्संग्पो नदी के रूप में जाना जाता है साथ ही भारत में ब्रह्मपुत्र, लोहित, सियांग और दिहांग के नाम से और बांग्लादेश में इसे जमुना के नाम से जाना जाता है ।
- ब्रह्मपुत्र दुनिया की सबसे बड़ी नदियों में से एक है, जिसका उद्गम मानसरोवर झील के पास कैलाश पर्वत के चेमायुंगडुंग ग्लेशियर से होता है ।
- यहाँ से यह नदी तिब्बत के दक्षिणी क्षेत्र में लगभग 1,200 किमी पूर्व की ओर बहती है जहाँ इसे सांग्पो के नाम से जाना जाता है, जिसका अर्थ है “शोधक”।
- यह नमचा बरवा (7,755 मीटर) के पास मध्य हिमालय में एक गहरे महाखड्डका निर्माण करती हुई यह एक प्रक्षुब्ध व तेज बहाव वाली नदी का रूप से बाहर निकलती है।
- यह अरुणाचल प्रदेश के सादिया कस्बे के पश्चिम से भारत में प्रवेश करती है। सांग्पो नदी भारत में प्रवेश करने के पश्चात सिशंग या दिहंग के नाम से जानी जाती है।
- जब यह नदी भारत में दक्षिण-पश्चिम की ओर बहती है तब दिबांग या सिकांग और लोहित नदियां इससे मिलती है, इसके बाद इसे ब्रह्मपुत्र के नाम में जाना जाता है।
- ब्रह्मपुत्र असम घाटी में 750 किमी लंबी यात्रा करती है तथा अपनी कई सहायक नदियों से जल प्राप्त करती है।
- इसकी प्रमुख बाईं सहायक नदियाँ में बुढ़ी दिहिंग और धनसरी(दक्षिण) आती है, जबकि महत्वपूर्ण दाहिनी सहायक नदियाँ में सुबनसिरी, कामेग, मानस और संकोश का नाम महत्वपूर्ण हैं।
- सुबनसिरी एक प्राचीन नदी है जिसका उद्गम तिब्बत में है तथा यह एक पूर्ववर्ती नदी है।
- ब्रह्मपुत्र धुबरी के पास बांग्लादेश में प्रवेश करती है और दक्षिण की ओर बहती है।
- बांग्लादेश में तिस्ता नदी दाहिने ओर से मिलती है। जहाँ से ब्रह्मपुत्र नदी को जमुना के नाम से जाना जाता है।
- आखिर में जमुना नदी पद्मा नदी में मिल जाती है और पद्मा नदी के नाम से बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
- ब्रह्मपुत्र नदी बाढ़, मार्ग परिवर्तन एवं तटीय अपरदन के लिए जानी जाती है।
ब्रह्मपुत्र नदी में बाढ़ और तटीय अपरदन का एक महत्वपूर्ण कारण यह भी माना जाता है की इसकी अधिकांश सहायक नदियां बड़ी हैं और इसके जलग्रहण क्षेत्र में भारी वर्षा होती हैं,जिसके कारण इनमें अत्यधिक अवसाद बहकर आ जाते है।
ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियाँ
- ब्रह्मपुत्र नदी की महत्वपूर्ण सहायक नदियाँ निम्न हैं:–
- बाई ओर की सहायक नदियां: धनसिरी, कापिली, बराक|
- दाहिने ओर की सहायक नदियां: सुबनसिरी, जिया भोरेली, मानस, संकोश, तिस्ता और रैडक।
- धनसिरी: नागा पहाड़ियों से इसका उद्गम हुआ है।
- संकोश: यह भूटान की मुख्य नदी है असम के धुबरी में ब्रह्मपुत्र से मिलती है।
- मानस: नदी का उद्गम तिब्बत से होता है मानस ब्रह्मपुत्र की महत्वपूर्ण सहायक नदी है ।
- सुबनसिरी: यह मिकिर पहाड़ियों और अबोर पहाड़ियों के बीच से बहती है और बाद में ब्रह्मपुत्र में मिलती है।
- तिस्ता: कंचनजंगा से निकलती है और रंगित और रंगपो जैसी सहायक नदियां इस से आकर मिलती है, आखिर में तिस्ता बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र नदी से मिल जाती है।
- बराक: मणिपुर से इसका उद्गम होता है। यह सुरमा नदी के नाम से बांग्लादेश में प्रवेश करती है जो बाद में चांदपुर में जाकर पद्मा नदी से मिल जाती है।
प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र
- प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र हिमालय की जल निकास तंत्र से पुराना है ।
- यह तथ्य नदियों की प्रौढ़ावस्था और नदी घाटियों के चौड़ा और उथला होने से प्रमाणित होता है।
- पश्चिमी घाट जो की पश्चिमी तट के पास है प्रायद्वीपीय नदियों के जल को बांटने का कार्य करता हैं जिससे यह जल एक ओर तो बंगाल की खाड़ी और दूसरी ओर अरब सागर में बंट जाता है।
- नर्मदा और तापी को छोड़कर अधिकांश प्रमुख प्रायद्वीपीय नदियाँ पश्चिम से पूर्व की ओर बहती हैं।
- प्रायद्वीप के उत्तरी भाग में बहने वाले चंबल, सिंध, बेतवा, केन, सोन, गंगा नदी तंत्र से संबंधित हैं।
प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र का विकास
- अतीत में हुई तीन प्रमुख भूगर्भीय घटनाओं ने प्रायद्वीपीय भारत की वर्तमान जल अपवाह तंत्र को आकार दिया है:-
- शुरुआती अवधि के दौरान प्रायद्वीप के पश्चिमी दिशा में झुकाव के कारण समुद्र का अपनी जलमग्नता से नीचे चले जाना। आम तौर पर इसने नदी के दोनों तरफ के जल का विभाजन किया है।
- हिमालय में उभार आने से प्रायद्वीपीय खंड के उत्तरी दिशा में झुकाव हुआ और जिसके फलस्वरूप यह गर्त बन गया। नर्मदा और तापी इसी गर्त से बहती है और अपने अवसाद से मूल दरारों को भरने का काम करती है। इसलिए इन दो नदियों में जलोढ़ और डेल्टा अवसादों की कमी है।
- इसी अवधि के दौरान प्रायद्वीपीय ब्लॉक के उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्वी दिशा की ओर थोड़ा सा झुकने के कारण ही सम्पूर्ण अपवाह व्यवस्था का बंगाल की खाड़ी की ओर प्रवाह हुआ है।
प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ
प्रायद्वीपीय नदी प्रणाली को निम्न वर्गों में वर्गीकृत किया गया है:
पूर्व की ओर बहने वाली नदियां
- महानदी, सुवर्णरेखा, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी प्रायद्वीपीय भारत की प्रमुख नदियाँ हैं।
- गोदावरी, कृष्णा, कावेरी पश्चिमी घाट से निकलती है, जबकि सुवर्णरेखा रांची के पठार से निकलती है।
- ये सभी नदी बंगाल की खाड़ी में गिरती है जबकि सुवर्णरेखा डेल्टा बनाती है।
पश्चिम की ओर बहने वाली नदियां
- नर्मदा, तापी, साबरमती, माही नदियाँ पश्चिम में बहने वाली प्रमुख नदियाँ हैं, जो अरब सागर में गिरती हैं और ज्वारनदमुख बनाती हैं।
सह्याद्रि में पश्चिम की ओर बहने वाली नदियाँ:
- हालाँकि सह्याद्रि की ये पश्चिम में बहने वाली नदियाँ भारत के घाटियों के कुल क्षेत्रफल का लगभग 3% हिस्सा बनाती हैं, लेकिन इनमें देश का लगभग 18% जल संसाधन मौजूद है।
- लगभग छह सौ छोटी धाराएँ पश्चिमी घाट से निकलती हैं और पश्चिम की ओर बहती हुई अरब सागर में गिरती हैं।
- पश्चिमी घाट के पश्चिमी ढलान, दक्षिण-पश्चिम मानसून से भारी वर्षा प्राप्त करते हैं और इतनी बड़ी संख्या में जलधाराओं को जल की प्रतिपूर्ति करता हैं।
- शरावती नदी द्वारा बनाया गया जोग या गर्सोप्पा जलप्रपात (289 मीटर) भारत का सबसे प्रसिद्ध जलप्रपात है।
महानदी
- महानदी का बेसिन छत्तीसगढ़ और ओडिशा राज्यों और तुलनात्मक रूप से छोटे हिस्सों मे झारखंड, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में भी फैला हुआ है, जो 1.4 लाख वर्ग किमी क्षेत्र को सिंचित करने के बाद अरब सागर में गिरती हैं और ज्वारनदमुख बनाती हैं।
- इसका ऊपरी जलमार्ग “छत्तीसगढ़ के मैदान” नामक तश्तरी के आकार के बेसिन में स्थित है।
- इसका बेसिन उत्तर में मध्य भारत की पहाड़ियों, दक्षिण और पूर्व में पूर्वी घाटों और पश्चिम में मैकाल श्रेणी से घिरा है।
- महानदी (महान नदी) छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले से निकलती है।
- महानदी प्रायद्वीपीय नदियों की प्रमुख नदियों में से एक है, जल क्षमता और बाढ़-लाने की क्षमता में यह गोदावरी के बाद दूसरे स्थान पर है।
- चिल्का झील में सीधे बहने वाली अन्य छोटी सरिताएं भी महानदी बेसिन का हिस्सा हैं।
- संबलपुर में नदी पर हीराकुंड बांध (भारत के सबसे बड़े बांधों में से एक) द्वारा 35 मील (55 किमी) लंबी मानव निर्मित झील बनाई गई है।
- यह कटक के पास ओडिशा के मैदानों में प्रवेश करती है और बाद में बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
- पुरी इसके मुहाने पर स्थित एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है।
- ब्राह्मणी नदी महानदी की सहायक नदी नहीं है। यह एक मौसमी नदी है जो ओडिशा में बहती है। महानदी और बैतरणी नदियों के साथ यह धामरा में बंगाल की खाड़ी में प्रवेश करने से पहले एक बड़ा डेल्टा बनाती है
- कछुए का निवास: इस नदी का डेल्टा ऑलिव रिडले समुद्री कछुओं के लिए घोंसले के रूप में कार्य करता है।
- महानदी की प्रमुख सहायक नदियाँ हैं शिवनाथ, जोंक, हसदेओ, मैंड, इब, ओंग, तेल, इत्यादि।
- शिवनाथ नदी: शिवनाथ नदी महानदी की सबसे लंबी सहायक नदी है। यह कोटाल में पहाड़ियों के कई छोटे समूहों के साथ एक अविभाजित क्षेत्र में उत्पन्न होती है और 383 किलोमीटर बहकर खरगंद में अपने बाएं किनारे पर महानदी से मिलती है।
- जोंक नदी: जोंक नदी 762 मीटर की ऊंचाई पर ओडिशा के कालाहांडी जिले के खारियार पहाड़ियों से निकलती है। शिवरीनारायण में महानदी में शामिल होने के लिए यह 196 किलोमीटर बहती है।
- हसदेओ नदी: यह छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले से निकलती है और महुआडीह में महानदी से मिलने के पहले 333 किलोमीटर की दूरी तय करती है।
- मांद नदी: मांद नदी का उद्गम ओडिशा के सरगुजा जिले में 686 मीटर की ऊँचाई पर है और 241 किलोमीटर बहकर चन्दरपुर में महानदी से मिलती है।
- इब नदी: इब की उत्पत्ति छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के पंडरापाट में होती है और हीराकुंड बांध में गिरने से पहले 251 किलोमीटर बहती है। यह एक बरसाती नदी है।
- ओंग नदी: इसका उद्गम 457 मीटर की ऊँचाई पर एक पहाड़ी पर है, जो जोंक नदी के मार्ग पर स्थित है और सोनपुर में महानदी से मिलने के लिए 204 किलोमीटर बहती है।
- तेल नदी: तेल नदी का उद्गम ओडिशा के कोरापुट में है। यह सोनपुर में महानदी से मिलने के लिए 296 किलोमीटर की दूरी तय करती है।
गोदावरी नदी
- गोदावरी सबसे बड़ी प्रायद्वीपीय नदी प्रणाली है। इसे दक्षिण गंगा भी कहा जाता है।
- यह महाराष्ट्र के नासिक जिले से निकलती है और बंगाल की खाड़ी में जल का विसर्जन करती है।
- गोदावरी की सहायक नदियाँ महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और आंध्र प्रदेश राज्यों से होकर गुजरती हैं।
- यह 1,465 किलोमीटर लंबी है, यह 3.13 लाख वर्ग किमी जलग्रहण क्षेत्र में फैली है जो अपने जलग्रहण क्षेत्र का 49% महाराष्ट्र में , 20%मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में और शेष आंध्र प्रदेश में स्थित है।
- पेनगंगा, इंद्रावती, प्राणहिता और मंजरा इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ हैं।
- गोदावरी पोलावरम के दक्षिण में पहुँचती है, जहाँ यह एक आकर्षक जलप्रपात बनाती है।
- इसके केवल डेल्टा क्षेत्रों में ही नौगम्य सुविधाएं मौजूद है। राजामुंद्री के बाद नदी एक बड़े डेल्टा का निर्माण करती हुई कई शाखाओं में विभाजित हो जाती है।
कृष्णा नदी
- कृष्णा दूसरी सबसे बड़ी पूर्वी की ओर बहने वाली प्रायद्वीपीय नदी है जो सह्याद्री में महाबलेश्वर के पास से निकलती है। इसकी कुल लंबाई 1,401 किमी है।
- कोयना, तुंगभद्रा और भीमा इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ हैं।
- कृष्णा नदी के कुल जलग्रहण क्षेत्र का 27 प्रतिशत महाराष्ट्र में, 44 प्रतिशत कर्नाटक में और 29 प्रतिशत आंध्र प्रदेश में हैं।
कावेरी नदी
- कावेरी नदी की उत्पत्ति कर्नाटक के कोगाडु जिले के ब्रह्मगिरी पहाड़ियों से हुई है।
- इसकी लंबाई 800 किमी है और यह 81,155 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला है।
- चूंकि ऊपरी क्षेत्र दक्षिण-पश्चिम मानसून के मौसम (गर्मी) के दौरान और निचला क्षेत्र पूर्वोत्तर मानसून के मौसम (सर्दियों) के दौरान वर्षा प्राप्त करता है, इस नदी में प्रायद्वीपीय नदियों की अपेक्षा तुलनात्मक रूप से जल में कम उतार-चढ़ाव देखा जाता है।
- कावेरी बेसिन लगभग 3 प्रतिशत केरल में, 41 प्रतिशत कर्नाटक में और 56 प्रतिशत तमिलनाडु में पड़ता है।
- इसकी महत्वपूर्ण सहायक नदियाँ काबीनी, भवानी और अमरावती है।
पूर्व में बहने वाली छोटी नदियाँ
- सुवर्णरेखा
- बैतरणी
- ब्राह्मणी
- वंशधारा
- पेन्नार
- पलार
- वैगई
नर्मदा नदी
- नर्मदा का उद्गम स्थल अमरकंटक पठार के पश्चिमी तट पर लगभग 1,057 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
- दक्षिण में सतपुड़ा और उत्तर में विंध्य श्रेणी के बीच रिफ्ट घाटी में बहते हुए, यह जबलपुर के पास संगमरमर की चट्टानों में आकर्षक जलप्रपात बनाती है।
- लगभग 1,312 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद, यह भरूच के दक्षिण में अरब सागर से मिलती है, यहाँ यह 27 किमी लंबा चौड़ा ज्वारनदमुख बनाती है। इसका जलग्रहण क्षेत्र लगभग 98,796 वर्ग किमी है।
- नर्मदा बहुउद्देशीय परियोजना के तहत इस नदी पर अन्य बांधो के साथ सरदार सरोवर परियोजना का निर्माण किया गया है।
तापी नदी
- तापी पश्चिम की ओर बहने वाली एक महत्वपूर्ण नदी है। यह मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के मुलताई से निकलती है।
- नर्मदा की तरह यह सतपुड़ा श्रेणी के दक्षिण में एक भ्रंश घाटी से हो कर बहती है। यह 724 किमी लंबी और इसका जल प्रवाह क्षेत्रफल 65,145 वर्ग किमी है।
- इसका लगभग 79 प्रतिशत बेसिन महाराष्ट्र में, 15 प्रतिशत मध्य प्रदेश में और शेष 6 प्रतिशत गुजरात में है।
- साबरमती और माही गुजरात की दो प्रसिद्ध नदियाँ हैं। वे अरावली श्रेणी से निकलती हैं और अरब सागर के खंभात की खाड़ी में प्रवाहित होती हैं।
हिमालयी और प्रायद्वीपीय नदी प्रणाली के बीच महत्वपूर्ण अंतर:-
विशेषताएँ | हिमालयी नदी | प्रायद्वीपीय नदी |
उत्पत्ति का स्थान
प्रवाह की प्रकृति
जल निकासी का प्रकार
नदी की प्रकृति
जलग्रहण क्षेत्र
नदी की आयु |
हिमालय के पहाड़ (ग्लेशियरों से ढके)।
बारहमासी; ग्लेशियर और वर्षा से पानी प्राप्त करते हैं।
मैदानों में वृक्ष के समान पैटर्न के लिए एंटीकेडेंट और परिणामस्वरूप।
लंबे समय तक, बीहड़ पहाड़ों के माध्यम से बहने वाले सिर वार्ड कटाव और नदी के कब्जे का अनुभव करते हैं; मैदानी क्षेत्रों में, पाठ्यक्रम बंद करना और स्थानांतरण करना। बहुत बड़ा बेसिन।
युवा और युवा, सक्रिय और गहरी घाटियों में |
प्रायद्वीपीय पठार और केंद्रीय उच्चभूमि।
मौसमी; मॉनसून वर्षा पर निर्भर।
सुपर लगाया,
ट्रेवेलिस, रेडियल और आयताकार पैटर्न के परिणामस्वरूप कायाकल्प हुआ। छोटी, अच्छी तरह से घाटियों के साथ निश्चित पाठ्यक्रम।
अपेक्षाकृत छोटे बेसिन।
श्रेणीबद्ध प्रोफ़ाइल वाली पुरानी नदियाँ, और लगभग उनके आधार स्तरों तक पहुँच चुकी हैं। |
झील
- एक विशाल जल निकाय जो भूमि से घिरा हुआ होता है, उसे झील कहा जाता है।
- अधिकांश झीलें स्थायी होती हैं, जबकि कुछ में केवल बरसात के मौसम में पानी होता है।
- झीलें हिमनदों और बर्फ की चादरों, हवा, नदी और मानवीय गतिविधियों से बनती हैं।
झीलों के प्रकार
गोखुर (Ox-bow Lake) झील: इस प्रकार झील का निर्माण तब होता है जब एक बहती हुई नदी मुख्य धारा से कट जाती है। इस झील का आकार धनुष जैसा दिखता है।
अनूप झील/ लैगून: अनूप अथवा लैगून किसी विस्तृत जलस्रोत जैसे समुद्र या महासागर के किनारे पर बनने वाला एक उथला जल क्षेत्र होता है जो किसी पतली स्थलीय भाग या अवरोध (रोध, रोधिका, भित्ति आदि) द्वारा सागर से अंशतः अथवा पूर्णतः अलग होता है। इसका निर्माण अधिकांशतः अपतट रोधिका, रोध, प्रवालभित्ति अथवा प्रवाल वलय द्वारा तटवर्ती जल को मुख्य सागर से पृथक् कर देने से बनता है। चिल्का झील, पुलिकट झील, कोलेरु झील आदि लैगून झील के उदाहरण हैं।
हिमनद झील: हिमनद के पिघलने से बनने वाली झील को हिमनद झील कहा जाता है। हिमालय क्षेत्र की अधिकांश झीलें हिमाच्छादित झीलें हैं। वुलर झील (जम्मू और कश्मीर) भारत की सबसे बड़ी ताजे पानी की झील है। इसका निर्माण विवर्तनिक गतिविधि के कारण हुआ था।
मानव निर्मित झीलें: ये झील मानव गतिविधियों द्वारा बनाई गई होती हैं। गोविंद सागर एक मानव निर्मित जलाशय है जो हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिला में स्थित है।
झील के लाभ
- एक झील नदी के प्रवाह को नियंत्रित करके बाढ़ को रोकने में मदद करती है।
- शुष्क मौसम के दौरान, एक झील नदी के समान प्रवाह को बनाए रखने में मदद करती है।
- झीलों का उपयोग जल विद्युत उत्पादन के लिए भी किया जा सकता है।
- पर्यटन विकास।
- यह जलीय पारिस्थितिकी तंत्र बनाए रखती है।
नदी का प्रदूषण
- जल की बढ़ती घरेलू, नगरपालिका, औद्योगिक और कृषि मांग स्वाभाविक रूप से जल की गुणवत्ता को प्रभावित करती है।
- परिणामस्वरूप अधिक से अधिक नदी के जल का उपयोग किया जा रहा है, जिससे उनमें जल की मात्रा कम हो जाती है।
- अशोधित सीवेज और औद्योगिक अपशिष्टों के भारी मात्रा को नदियों में डाला जाना भी प्रदूषण का कारण है।
- इससे न केवल पानी की गुणवत्ता प्रभावित होती है, बल्कि नदी की आत्म-सफाई की क्षमता भी प्रभावित होती है।
राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (NRCP)
- पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय, (NRCD) देश में नदियों, झीलों और आर्द्रभूमि का संरक्षण करने के लिए, राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (NRCP) के अन्तंर्गत केंद्र प्रायोजित योजनाओं को लागू कर रहा है।
- नदी कार्य योजना का उद्देश्य नदियों में पहचान किए गए प्रदूषित हिस्सों में प्रदूषण उन्मूलन योजनाओं के कार्यान्वयन के माध्यम से नदियों की जल गुणवत्ता में सुधार करना है।
- NPCA का उद्देश्य सतत संरक्षण योजनाओं के कार्यान्वयन के माध्यम से जलीय पारिस्थितिक तंत्र (झीलों और आर्द्रभूमि) का संरक्षण करना है और इन्हें समान नीति और दिशानिर्देशों के साथ शासित करना है।
नमामि गंगे कार्यक्रम
- नमामि गंगे कार्यक्रम एक एकीकृत संरक्षण मिशन है, जिसे प्रदूषण और संरक्षण और राष्ट्रीय नदी गंगा के कायाकल्प के प्रभावी उन्मूलन के दोहरे उद्देश्यों को पूरा करने के लिए जून 2014 में केंद्र सरकार द्वारा ‘फ्लैगशिप कार्यक्रम’ के रूप में मंजूरी दी गई थी।
- यह जल संसाधन विभाग, नदी विकास और गंगा कायाकल्प, जल शक्ति विभाग के तहत संचालित किया जा रहा है।
- यह कार्यक्रम राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG), और इसके समकक्ष राज्य संगठनों यानी राज्य कार्यक्रम प्रबंधन समूह (SPMGs) द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
- NMCG ,राष्ट्रीय गंगा परिषद (2016 में राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (NRGBI) की जगह) का कार्यान्वयन विभाग है।
- इसमें 20,000 करोड़ रुपये की केंद्रीय रूप से वित्त पोषित और गैर कालातीत राशि (non-lapsable corpus) है और लगभग 288 परियोजनाएं शामिल हैं।
- कार्यक्रम के मुख्य स्तंभ हैं:
- सीवेज ढांचे का उपचार और औद्योगिक प्रवाह निगरानी,
- नदी विकास और नदी तलहटी की सफाई,
- जैव विविधता और वनीकरण,
- जन जागरूकता
अन्य पहलें
- गंगा कार्य योजना: यह पहली नदी कार्य योजना थी, जिसे 1985 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा लाया गया था, ताकि पानी की गुणवत्ता में सुधार, अवरोधन और घरेलू सीवेज का उपचार किया जा सके।
- राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना गंगा नदी कार्य योजना का विस्तार है। इसका उद्देश्य गंगा कार्य योजना चरण -2 के तहत गंगा नदी की सफाई करना है।
- राष्ट्रीय नदी गंगा बेसिन प्राधिकरण (NRGBA): इसका गठन भारत सरकार ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा -3 के तहत वर्ष 2009 में किया था।
- इसने ही गंगा को भारत की ‘राष्ट्रीय नदी’ घोषित किया।
- स्वच्छ गंगा निधि: यह गंगा की सफाई, अपशिष्ट उपचार संयंत्रों की स्थापना और नदी की जैव विविधता के संरक्षण के लिए 2014 में बनाई गई थी।
- भुवन-गंगा वेब ऐप: यह गंगा नदी में होने वाले प्रदूषण की निगरानी में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करता है।
- अपशिष्ट निपटान पर प्रतिबंध: 2017 में, राष्ट्रिय हरित प्राधिकरण (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) ने गंगा में किसी भी कचरे के निपटान पर प्रतिबंध लगा दिया।