मूल अधिकार (उड़ान) |
- भारतीय संविधान के भागIII में अनुच्छेद 12-35तक मूल अधिकारों का प्रावधान है।
- मूल अधिकार,अमेरिकी संविधान (अधिकार का बिल–Bill of Rights) से प्रेरित हैं + व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए ‘मूल’ तत्व:भौतिक,बौद्धिक, नैतिक और आध्यात्मिक + भारत का मैग्ना कार्टा + न्यायोचित + हर व्यक्ति के लिए मूल अधिकारों की गारंटी लेकिन युक्तियुक्त प्रतिबंध के साथ + राजनीतिक लोकतंत्र के आदर्श + कार्यपालिका की निरंकुशता और विधायिका के कानूनों की मनमानी पर सीमाएं + मूल अधिकारों और डीपीएसपी के बीच संतुलन संविधान की आधारभूत ढांचा का का हिस्सा है।
मूल रूप से सात मूल अधिकार: |
- समता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18)
- स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22)
- शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24)
- धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28)
- सांस्कृतिक और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद29-30)
- संपत्ति का अधिकार (अनुच्छेद 31)àअब अनुच्छेद 300A- 44वां संशोधन अधिनियम, 1978 (कानूनी अधिकार)
- सांविधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32)
44वें संशोधन अधिनियम, 1978 के द्वारा संपत्ति के अधिकार को मूल अधिकारों की सूची से हटाने के बाद वर्तमान में छ: मूल अधिकार हैं।
मूल अधिकारों की विशेषताएं |
- कुछ केवल भारतीय नागरिक के लिए उपलब्ध हैं- अनुच्छेद 15, अनुच्छेद 16, अनुच्छेद 19, अनुच्छेद 29 और अनुच्छेद 30
- असीमित नहीं हैं लेकिन वाद-योग्य होते हैं, उचित प्रतिबंधों के अधीन।
- राज्य की मनमानी कार्रवाई के खिलाफ उपलब्ध हैं।
- कुछ नकारात्मक विशेषता रखते हैं तो कुछ सकारात्मक।
- मूल अधिकार स्थायी नहीं हैं, इन्हें संसद द्वारा संशोधित किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 358à अनुच्छेद 19 को केवल युद्ध या बाह्य आक्रमण के आधार पर लगाए गए आपातकाल के दौरान निलंबित किया जा सकता है। इसे सशस्त्र विद्रोह के कारण लगाए गए आपातकाल के आधार पर निलंबित नहीं किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 359à अनुच्छेद 19 के अलावा, संविधान के भाग 3 में वर्णित किन अधिकारों का कितने समय व किस क्षेत्र में निलंबन होगा, इसके लिए राष्ट्रपति आदेश जारी करेगा। हालाँकि अनुच्छेद 20 और 21 को राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान निलंबित नहीं किया जा सकता है।
- मूल अधिकारों के क्रियान्वयन की सीमाएँà अनुच्छेद 31A (संपत्ति आदि के अधिग्रहण के लिए प्रदान करने वाले कानूनों की रक्षा), अनुच्छेद 31B (9वीं अनुसूची में शामिल होने वाले कुछ अधिनियमों और विनियमों का विधिमान्यीकरण) और अनुच्छेद 31C (कुछ नीति-निदेशक तत्वों को प्रभावी करने वाले कानूनों की रक्षा) + सेना विधि (मार्शल लॉ) लागू होने पर मूल अधिकारों का निर्बंधन (अनुच्छेद 34)।
- ज़्यादातर मूल अधिकार स्वयं प्रवर्तित हैं। वहीं कुछ मूल अधिकारों को विधि या कानून के द्वारा प्रभावी बनाया जाता है। इस तरह के कानून भारत की एकता हेतु संसद द्वारा बनाये जाते हैं, न कि राज्यों के विधानमंडल द्वारा। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि पूरे देश में एकता बनी रहे।
मूल अधिकार |
समता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18)
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• विधि के समक्ष समानता एवं विधियो का समान संरक्षण – (अनुच्छेद 14)
• धर्म, मूलवंश,जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध- (अनुच्छेद 15) • लोक नियोजन के विषय में अवसर की समानता – (अनुच्छेद 16) • अस्पृश्यता का अंत- (अनुच्छेद 17) • उपाधियों का अंत – (अनुच्छेद 18) |
स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22) |
• स्वतंत्रता के संबंधित छह अधिकारों का संरक्षण: (i) वाक और अभिव्यक्ति (ii) सम्मेलन (iii) संघ (iv) संचरण (v) निवास और (vi) पेशा (वृत्ति)- अनुच्छेद 19
• अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण- अनुच्छेद 20 • प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण- अनुच्छेद 21 • प्रारंभिक शिक्षा का अधिकार – अनुच्छेद 21A • कुछ दशाओं में गिरफ्तारी और निरोध से संरक्षण – अनुच्छेद 22 |
शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24)
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धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28) |
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सांस्कृतिक और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29-30)
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सांविधानिक उपचारें का अधिकार (अनुच्छेद 32) | • मूल अधिकारों के प्रवर्तन कराने के लिए सर्वोच्च न्यायालय जाने का अधिकार (संविधान के मूल ढांचे के सिद्धांत) – अनुच्छेद 32 |
मूल अधिकार और सांविधानिक प्रावधान |
अनुच्छेद | व्याख्या |
अनुच्छेद 12 |
• अनुच्छेद 12 में “राज्य” शब्द को परिभाषित किया है जिसमें सरकार और संसद + सरकार और राज्यों की विधायिका + सभी स्थानीय प्राधिकरण अर्थात नगरपालिकाएं, पंचायत, जिला बोर्ड, सुधार संस्था आदि+ अन्य सभी प्राधिकरण, अर्थात् वैधानिक या गैर-वैधानिक प्राधिकरण जैसे एलआईसी (LIC), ओएनजीसी (ONGC), सेल (SAIL) आदि।
• उच्चतम न्यायालय के अनुसार : एक निजी निकाय या राज्य के एक उपकरण के रूप में काम करने वाली संस्था भी अनुच्छेद 12 के तहत राज्य की परिभाषा के अंतर्गत आती है। |
अनुच्छेद 13 |
• अनुच्छेद 13 – सभी “विधि” जो किसी भी मूल अधिकार के साथ असंगत या अपमानजनक हैं, शून्य हो जाएंगे।
• शब्द “विधि” निरूपित करता है: संसद या राज्य विधानसभाओं द्वारा बनाए गई स्थायी विधियाँ + राष्ट्रपति या राज्य के राज्यपालों द्वारा जारी किए गए अध्यादेश जैसी अस्थायी विधियाँ + प्रत्यायोजित विधान की प्रकृति में सांविधानिक साधन जैसे – आदेश, नियम,उपविधि,विनियमन या अधिसूचना + विधि के गैर विधायी स्रोत जैसे रूढ़ि या प्रथा जो विधि का प्रभाव रखती हो। • इन्हें मूल अधिकारों के उल्लंघन के रूप में अदालतों में चुनौती दी जा सकती है और इसलिए इसे शून्य घोषित किया जा सकता है। • अनुच्छेद 13 न्यायिक पुनरावलोकन प्रदान करता है। • अनुच्छेद 13 घोषित करता है कि संविधान संशोधन कोई विधि नहीं है इसलिए इसे चुनौती नहीं दी जा सकती है। हालाँकि, सर्वोच्च न्यायालय ने केशवानंद भारती मामले (1973) में कहा कि मूल अधिकारों के हनन के आधार पर चुनौती दी जा सकती है। यदि वह संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ हो तो उसे अवैध घोषित किया जा सकता है। |
अनुच्छेद 14 |
• विधि के समक्ष समानता का अधिकार (ब्रिटिश धारणा + नकारात्मक धारणा) + विधियों का समान संरक्षण (अमेरिकी अवधारणा + सकारात्मक धारणा)।
• अनुच्छेद 14: राज्य किसी भी व्यक्ति को विधि के समक्ष समानता या राज्य क्षेत्र में विधियों के समान संरक्षण से इनकार नहीं करेगा। • विधि के समक्ष समानता (ब्रिटिश धारणा): किसी भी व्यक्ति के पक्ष में किसी विशेष विशेषाधिकारों की अनुपस्थिति + साधारण विधि या साधारण विधि न्यायलय के तहत सभी व्यक्तियों के लिए समान व्यवहार + कोई व्यक्ति विधि से ऊपर नहीं है। • विधियों का समान संरक्षण (अमेरिकी अवधारणा):विधियों द्वारा प्रदत्त विशेषाधिकारों और अध्यारोपित दायित्वों दोनों में समान परिस्थियों क अंतर्गत व्यवहार समता + समान विधि के अंतर्गत सभी व्यक्तियों के लिए समान नियम + बिना भेदभाव के सभी के साथ समान व्यवहार। • सभी व्यक्तियों को प्रदान किए गए हैं (नागरिकों और विदेशियों) और इसमें विधिक व्यक्ति (सांविधानिक निगम, कंपनियां, पंजीकृत संस्थाएं या किसी अन्य प्रकार के विधिक व्यक्ति) शामिल हैं। • विधि का शासन: विधि के समक्ष समानताàविधि का शासन à ए वी डायसी • विधि का शासन à संविधान की मूल विशेषता • समता के अपवाद: Ø भारत के राष्ट्रपति और राज्यपाल + विदेशी संप्रभु और राजनयिक + यूएनओ (UNO) और उसकी अन्य संस्था। Ø अनुच्छेद 31C (उच्चतम न्यायालय का कहना है कि ‘जहां अनुच्छेद 31C आता है, वहाँ से अनुच्छेद 14 चला जाता है’) Ø अनुच्छेद 361A : संसद या राज्य विधायिका की किसी भी कार्यवाही की सत्य कार्यवाही से संबन्धित विषय-वस्तु का समाचार पत्र मैं करता है तो उस पर किसी भी प्रकार का दीवानी या फ़ौजदारी का मुकदमा, देश क किसी भी न्यायालय में नहीं चलाया जा सकेगा। Ø अनुच्छेद 105: संसद के सदस्यों को संसदीय विशेषाधिकार। Ø अनुच्छेद 194: राज्य की विधायिका या उसकी समिति के सदस्यों को विशेषाधिकार। |
अनुच्छेद 15 |
• अनुच्छेद 15: कुछ आधारों पर विभेद का प्रतिषेधàराज्य केवल धर्म, जाति, मूल वंश,लिंग या जन्म स्थान के आधार पर किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं करेगा।
• यह प्रावधान राज्य और निजी व्यक्तियों दोनों द्वारा भेदभाव पर रोक लगाता है। • अनुच्छेद 15 (3) और 15 (4) देश में आरक्षण का मूलभूत आधार हैं। • विभेद से प्रतिषेध के इस सामान्य नियम के चार अपवाद: राज्य को महिलाओं और बच्चों के लिए कोई विशेष प्रावधान करने की अनुमति है। + राज्य सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों या अनुसूचित जाति एवं जनजाति की उन्नति के लिए विशेष उपबंध कर सकता है। + राज्य सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों या अनुसूचित जाति एवं जनजाति की उन्नति के लिए शैक्षणिक संस्थानों (निजी संस्थान जो राज्य से अनुदान प्राप्त करते हैं या नहीं तथा अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को छोड़कर) में प्रवेश के लिए कोई विशेष नियम बना सकता है + नागरिकों के किसी भी आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की उन्नति के लिए। शैक्षणिक संस्थानों में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण: अनुच्छेद 15(C)में अपवादà 93वाँ संशोधन अधिनियम = अधिनियमित केंद्रीय शैक्षणिक संस्थान (प्रवेश में आरक्षण) अधिनियम, 2006à IIT और IIM सहित सभी केंद्रीय उच्च शैक्षणिक संस्थानों में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27% आरक्षण का प्रावधान। शैक्षणिक संस्थानों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए आरक्षण: उपर्युक्त अपवाद (C) को 2019 के 103वें संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ा गया था à केंद्र सरकार ने 2019 में आदेश जारी किया था à आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिए 10% आरक्षण का प्रावधान। |
अनुच्छेद 16 |
लोक नियोजन में समता के संबंध में चार अपवाद: 1. संसद, राज्य या केंद्रशासित प्रदेश या स्थानीय प्राधिकरण या अन्य प्राधिकरण में नियुक्ति के लिए निवास की शर्त का उल्लेख कर सकती है।(अभी केवल आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में)। 2. राज्य किसी भी पिछड़े वर्ग के पक्ष में नियुक्तियों या पदों के आरक्षण का प्रावधान कर सकता है जो राज्य सेवाओं में पर्याप्त रूप से प्रतिनिधित्व नहीं करता है। 3. विधि के अनुरूप किसी संस्था (धार्मिक या संप्रदाय से संबंधित) या इसके कार्यकारी परिषद के सदस्य की धार्मिक आधार पर व्यवस्था की जा सकती है। 4. राज्य à किसी भी आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के नागरिक की नियुक्ति के पक्ष में 10% तक आरक्षण का प्रावधान करने की अनुमति दी गई।
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अनुच्छेद 17
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अनुच्छेद 18
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स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19): अनुच्छेद 19 स्वतंत्रता के संबंधित छह अधिकारों का संरक्षण करता है। यह हैं: |
- मूल रूप से अनुच्छेद19 में 7 अधिकार थे à 44वें संशोधन अधिनियम,1978 के द्वारा संपत्ति के अधिकार को हटा दिया गया था। जो अब अनुच्छेद 300A के अंतर्गत आता है।
- वाक और अभिव्यक्ति कीस्वतंत्रता का अधिकार
- शांतिपूर्वक और निरायुध सम्मेलन का अधिकार
3.सगम या संघ या सहकारी संस्था बनाने काअधिकार
- भारत के राज्यक्षेत्र में सवत्रर् अबाध संचरण का अधिकार
- भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भी भाग में निवास करने और बसने का अधिकार
- कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारबार करने का अधिकार
- इन छह अधिकारों की रक्षा केवल राज्य के खिलाफ मामले में कर सकते हैं न कि निजी मामले में। केवल नागरिकों को [विदेशी और कानूनी लोगों जैसे कंपनी या परिषदों के लिए]
- राज्य इन 6 अधिकारों पर अनुच्छेद 19 में वर्णित आधारों पर ही उचित प्रतिबंध लगा सकता है।
वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार अनुच्छेद19 (1): |
उच्चतम न्यायालय ने वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में निम्नलिखित को शामिल किया है:
1. अपने विचारों के साथ-साथ दूसरों के विचारों को प्रसारित करने का अधिकार 2. प्रेस की स्वतंत्रता 3. व्यावसायिक विज्ञापनों की स्वतंत्रता 4. फोन टेपिंग के विरुद्ध अधिकार 5. प्रसारित करने का अधिकार, यानी सरकार का इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर कोई एकाधिकार नहीं है। 6. किसी राजनीतिक दल या संगठन द्वारा आयोजित बंद के खिलाफ अधिकार 7. सरकारी गतिविधियों के बारे में जानने का अधिकार 8. शांति का अधिकार 9. अखबार पर पूर्ण प्रतिबंध के खिलाफ अधिकार 10. प्रदर्शन और विरोध का अधिकार लेकिन हड़ताल करने का अधिकार नहीं
उचित प्रतिबंध: भारत की संप्रभुता और अखंडता + राज्य की सुरक्षा + विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध + सार्वजनिक आदेश + शिष्टता + नैतिकता +न्यायालय की अवहेलना + मानहानि + अपराध में संलिप्तता। |
वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार अनुच्छेद 19 (2): |
उचित प्रतिबंध:
Ø किसी भी कानून या कानूनी प्रक्रिया के निष्पादन का विरोध करना Ø किसी व्यक्ति की संपत्ति पर जबरन कब्जा करना Ø किसी आपराधिक कार्य की चर्चा हो Ø किसी व्यक्ति को गैरकानूनी काम करने के लिए मजबूर करना Ø सरकार या उसके कर्मचारियों को उनकी विधायी शक्तियों के प्रयोग हेतु धमकाना |
संगम या संघ बनाने का अधिकार अनुच्छेद 19 (3): |
ट्रेड यूनियन के लिए उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि: Ø मोलभाव या सौदेबाजी का कोई अधिकार नहीं है। Ø हड़ताल करने का कोई अधिकार नहीं है। Ø हड़ताल के अधिकार को उपर्युक्त औद्योगिक कानून के द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। Ø तालाबंदी करने का कोई अधिकार नहीं है। |
अबाध संचरण का अधिकार अनुच्छेद 19 (4): |
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निवास करने का अधिकार अनुच्छेद19 (5): |
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व्यापार या कारबार करने का अधिकार अनुच्छेद19 (6): |
Ø किसी पेशे या व्यवसाय के लिए आवश्यक व्यावसायिक / तकनीकी योग्यताओं को जरूरी ठहरा सकता है। Ø किसी भी व्यापार, व्यवसाय, उद्योग या सेवा को पूर्ण या आंशिक रूप से स्वयं जारी रख सकता है।
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अनुच्छेद20 |
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कोई पूर्वपद प्रभाव कानून नहीं: कोई व्यक्ति किसी अपराध के लिए तब तक दोषी नहीं ठहराया जाएगा जब तक कि उसने कार्य करने के समय, जो अपराध के रूप में आरोपित है, किसी प्रव्रत विधि का अतिक्रमण नहीं किया है या उससे अधिक शक्ति का भागी नहीं होगा, जो उस अपराध के लिए जाने के समय प्रव्रत विधि के अधीन अधिरोपित कि जा सकती थी। | |
दोहरी क्षति नहीं: किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक से अधिक बार दंडित नहीं किया जाएगा।
नोट: केवल न्यायालय या न्यायिक न्यायाधिकरण के समक्ष कार्यवाही पर अर्थात् निकायों के लिए जो प्रकृति में न्यायिक हैं। |
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स्व-अभिशंसन नहीं: किसी भी अपराध के लिए अभियुक्त किसी व्यक्ति को खुद के खिलाफ गवाह बनने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा (मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्य दोनों के लिए। इसका विस्तार दीवानी सुनवाई पर नहीं हो सकता है या जो सुनवाई आपराधिक प्रकृति की न हों) | |
अनुच्छेद21 |
Ø अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षण मनमानी कार्यकारी कार्रवाई के खिलाफ सुरक्षा उपलब्ध है न कि विधानमंडलीय प्रक्रिया के विरुद्ध। Ø व्यक्तिगत स्वतंत्रता = केवल व्यक्ति या व्यक्ति के शरीर से संबंधित स्वतंत्रता।
मेनका गांधी केस (1978): अनुच्छेद 21 की व्यापक व्याख्या – Ø व्यक्ति के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को विधि द्वारा वंचित नहीं किया जा सकता है बशर्ते उस विधि द्वारा निर्धारित प्रक्रिया उचित, निष्पक्ष और न्यायपूर्ण हो। Ø जीवन का अधिकार = मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार Ø व्यक्तिगत स्वतंत्रता = व्यापक आयाम और इसमें कई प्रकार के अधिकार शामिल हैं जो किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का गठन करते हैं। |
अनुच्छेद 21A |
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अनुच्छेद 22 |
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अनुच्छेद 23 |
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अनुच्छेद 24 |
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अनुच्छेद 25
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अनुच्छेद 26
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अनुच्छेद 25 | अनुच्छेद 26 |
अन्तःकरण की स्वतन्त्रता और धर्म के अबाध अनुकरण एवं प्रसार का अधिकार | धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतन्त्रता |
अनुच्छेद 25 व्यक्तिगत अधिकारों की गारंटी देता है। | अनुच्छेद 26 धार्मिक संप्रदायों एवं उसके अनुभागों को अधिकार प्रदान करता है। |
अनुच्छेद 25 व्यक्तिवादी धार्मिक स्वतन्त्रता की रक्षा करा है। | अनुच्छेद 26 समूहिक रूप से धार्मिक अधिकारों की रक्षा करता है। |
अनुच्छेद 25 के तहत प्राप्त अधिकार लोक व्यवस्था,नैतिकता,स्वास्थ्य, मूल अधिकारों से जुड़े अन्य प्रावधान के उल्लंघन और धर्मांतरण के मामले मे लागू नहीं होगा। | अनुच्छेद 25 की तरह ही अनुच्छेद 26 भी लोक व्यवस्था, नैतिकता, स्वस्थ्य मूल अधिकारों से जुड़े अन्य प्रावधान के उल्लंघन और धर्मांतरण के मामले मे लागू नहीं होगा। |
अनुच्छेद 27
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केवल कर के एकत्रण पर रोक है, शुल्क पर नहीं। |
अनुच्छेद 28
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1. पूर्णतः राज्य पोषित संस्थाएं- धार्मिक निर्देश पूर्णतः निषेध 2. राज्य द्वारा प्रशासित किन्तु न्यास द्वारा स्थापित – धार्मिक शिक्षा की अनुमति 3. राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थान 4. राज्य द्वारा वित्त सहायता प्राप्त करने वाले संस्थान
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अनुच्छेद 29
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1. भाषा के संरक्षण में भाषा के संरक्षण के लिए आंदोलन करने का अधिकार भी शामिल है। 2. इस अनुच्छेद में दी गई व्यवस्था केवल अल्पसंख्यकों तक ही सीमित नहीं है। क्योंकि “नागरिकों के अनुभाग” का अभिप्राय अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक दोनों से है। |
अनुच्छेद 30
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Ø सभी अल्पसंख्यकों को अपनी रुचि के शैक्षणिक संस्थानों को स्थापित करने और उनके प्रशासन का अधिकार होगा। Ø किसी अल्पसंख्यक वर्ग द्वारा स्थापित और प्रशासित शिक्षा संस्था की संपत्ति के अनिवार्य अर्जन के लिए उपबंध करने वाली विधि बनाते समय, राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि ऐसी संपत्ति के अर्जन के लिए विधि द्वारा नियत या उसके अधीन अवधारित रकम इतनी हो कि उस खंड के अधीन प्रत्याभूत अधिकार निर्बंधित या निराकृत न हो जाए। (44वां संविधान संशोधन) Ø सहायता देने में राज्य अल्पसंख्यक द्वारा प्रबंधित किसी भी शैक्षणिक संस्थान के साथ भेदभाव नहीं करेगा। Ø अनुच्छेद 30 के तहत सुरक्षा की गारंटी केवल अल्पसंख्यकों (धार्मिक एवं भाषायी) तक ही सीमित है ।
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अनुच्छेद 32
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सर्वोच्च न्यायालय | उच्च न्यायालय |
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रिट – प्रकार और क्षेत्र |
- उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय जारी कर सकते हैं: बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus), परमादेश (Mandamus), प्रतिषेध (Prohibition), उत्प्रेषण ( Certiorari) और अधिकार-प्रच्छा (Quo-Warranto)। ये रिट अँग्रेजी कानून से ली गई हैंà इन्हें ‘विशेषाधिकार रिट’ कहा जाता है = इन्हें ‘न्याय का झरना’ भी कहा जाता है।
बंदी प्रत्यक्षीकरण |
o अर्थ: “को प्रस्तुत किया जा” + न्यायलय गिरफ्तारी का आदेश जारी करने वाले अधिकारी को आदेश जारी करता है कि वह बंदी को न्यायाधीश के सामने उपस्थिति दर्ज करें।
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परमादेश
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प्रतिषेध |
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उत्प्रेषण |
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अधिकार पृच्छा |
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अनुच्छेद 33 |
अनुच्छेद 33: संसद को सशस्त्र बलों, अर्ध-सैन्य बलों, पुलिस बलों, खुफिया एजेंसियों और अन्य बलों के मूल अधिकारों पर युक्तियुक्त प्रतिबंध लगाने का अधिकार देता है।
• अनुच्छेद 33 के तहत कानून बनाने की शक्ति केवल संसद को है न कि राज्य विधान मंडलों को • इस तरह के संसद द्वारा बनाए गए कानून को किसी न्यायलय में किसी मूल अधिकार के उल्लंघन के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती है। • अनुच्छेद 33 के तहत निर्मित संसदीय कानून, जहां तक मूल अधिकारों को लागू करने का संबंध है, कोर्ट मार्शल (सैन्य कानून के तहत स्थापित अधिकरण) को उच्चतम न्यायलय या उच्च न्यायलयों के रिट अधिकार क्षेत्र से बाहर करता है। |
अनुच्छेद 34 |
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अनुच्छेद 35 |
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सेना विधि | राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352) |
यह केवल मौलिक अधिकारों को प्रभावित करता है। | यह न केवल मौलिक अधिकारों बल्कि केंद्र-राज्य संबंधों, केंद्र और राज्यों के बीच राजस्व और विधायी शक्तियों के वितरण को प्रभावित करता है तथा संसद के कार्यकाल को बढ़ा भी सकता है। |
यह सरकार और अदालतों को निलंबित करता है। सेना द्वारा सिविल प्रशासन का संचालन किया जाता है। | यह सरकार और अदालतों को निलंबित नहीं करता है। |
किसी भी क्षेत्र में कानून व्यवस्था को सुधारने हेतु सेना विधि को लागू किया जाता है, जो किसी कारण खराब हो गयी होती है। | इसे केवल तीन आधारों पर लागू किया जा सकता है-युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह। |
इसे देश के किसी भाग या क्षेत्र में लगाया जाता है। | इसे पूरे देश में या इसके किसी भी हिस्से में लगाया जाता है। |
संविधान में इसका कोई विशेष प्रावधान नहीं है अर्थात भारतीय संविधान में सेना विधि (मार्शल ला) को परिभाषित नहीं किया गया है। यह संविधान में निहित रूप में है। | संविधान में इसका विशिष्ट और विस्तृत प्रावधान है। यह संविधान में स्पष्ट रूप से है। |
मूल अधिकारों के अपवाद |
- संपदाओं आदि के अर्जन हेतु प्रावधान करने वाली विधियों की व्यावृत्ति(बचाव)
- कुछ विधियों व विनियमों का विधिमान्यीकरण: नौवीं अनुसूची
- कुछ निदेशक तत्वों को प्रभावी करने वाली विधियों की व्यावृत्ति(बचाव)
मूल अधिकारों की आलोचना | मूल अधिकारों का महत्व |
अत्यधिक(व्यापक) सीमाएं + कोई सामाजिक और आर्थिक अधिकार नहीं + स्पष्टता का अभाव + स्थायित्व का अभाव + आपातकाल के दौरान स्थगन+ महंगा उपचार + निवारक निरोध + प्रतिमान दर्शन नहीं (No consistent philosophy) | देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था की आधारशिला(Bedrock) + व्यक्तिगत स्वतंत्रता के रक्षक + व्यक्ति की गरिमा और सम्मान सुनिश्चित करना + भारतीय राज्य की धर्मनिरपेक्ष छवि को मजबूत करना + अल्पसंख्यक के हितों की रक्षा करना। |
भाग III के अतिरिक्त अधिकार |
- विधि के प्राधिकार के बिना करों का अधिरोपण न किया जाना – अनुच्छेद 265 (भाग XII)
- विधि के प्राधिकार के बिना व्यक्तियों को संपत्ति से वंचित न किया जाना – अनुच्छेद 300क (भाग XII)
- भारत के राज्यक्षेत्र में व्यापार, वाणिज्य और समागम की स्वतन्त्रता- अनुच्छेद 301 (भाग XIII)
मूल अधिकार | राज्य की नीति-निदेशक तत्व | मूल कर्तव्य |
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