100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

अंतरराष्ट्रीय संबंधों में नैतिकता

Lokesh Pal March 13, 2025 01:49 104 0

संदर्भ

अमेरिका और यूक्रेन के राष्ट्रपति के बीच हाल ही में हुई वार्ता ने वैश्विक ध्यान आकर्षित किया है, जिससे यह सवाल उठ रहा है कि क्या नेताओं के लिए ऐसी स्थिति से निपटने का यह सही तरीका है, जो लोगों के जीवन को प्रभावित करती है। क्या नेताओं को अंतरराष्ट्रीय संबंधों की नैतिकता पर फिर से विचार करना चाहिए?

अंतरराष्ट्रीय संबंधों में नैतिकता के बारे में

  • अंतरराष्ट्रीय संबंधों में नैतिकता उन नैतिक सिद्धांतों को संदर्भित करती है, जो वैश्विक क्षेत्र में राज्यों और उनके नेताओं के व्यवहार का मार्गदर्शन करते हैं।
  • नेताओं को राष्ट्रीय हितों, रणनीतिक दूरदर्शिता और नैतिक कूटनीति के बीच संतुलन बनाना चाहिए।
  • युद्ध, शांति वार्ता और वैश्विक कूटनीति में नैतिकता की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो जाती है।

अंतरराष्ट्रीय संबंधों में नैतिकता के सिद्धांत

  • यथार्थवाद: यथार्थवाद अंतरराष्ट्रीय संबंधों को सत्ता के लिए संघर्ष के रूप में देखता है, जहाँ राज्य अपने स्वार्थ हेतु कार्य करते हैं। नैतिक विचार राष्ट्रीय सुरक्षा और अस्तित्व के लिए पीछे रह जाते हैं।
    • उदाहरण: अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शीतयुद्ध का सत्ता संघर्ष, सुरक्षा अनिवार्यता के रूप में रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण, अमेरिका-चीन रणनीतिक प्रतिस्पर्द्धा।
  • उदारवाद: उदारवाद का मानना ​​है कि अंतरराष्ट्रीय सहयोग, संस्थाएँ और लोकतांत्रिक मूल्य अधिक नैतिक वैश्विक व्यवस्था की ओर ले जा सकते हैं। यह अंतरराष्ट्रीय मामलों में मानवाधिकारों, कूटनीति और कानून के शासन को बढ़ावा देता है।
    • उदाहरण: संयुक्त राष्ट्र का गठन, यूरोपीय संघ का मानवाधिकारों पर जोर, अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संधियाँ।
  • रचनावाद: रचनावाद का तर्क है कि अंतरराष्ट्रीय संबंध केवल सत्ता या भौतिक हितों के बजाय सामाजिक मानदंडों, मूल्यों और पहचानों द्वारा आकार लेते हैं। नैतिक मूल्य समय के साथ विकसित होते हैं और राज्य के व्यवहार को प्रभावित करते हैं।
    • उदाहरण: उपनिवेशवाद के विरुद्ध वैश्विक आंदोलन, जलवायु परिवर्तन के प्रति अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण में परिवर्तन, परमाणु प्रसार के विरुद्ध मानदंडों का उदय।
  • न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत: न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत, युद्ध के औचित्य का मूल्यांकन करने के लिए एक नैतिक ढाँचा प्रदान करता है। इसे ‘जूस एड बेलम’ (युद्ध में जाने का औचित्य),’ जूस इन बेलो’ (युद्ध के दौरान नैतिक आचरण) और ‘जूस पोस्ट बेलम’ (युद्ध के बाद न्याय) में विभाजित किया गया है।
    • उदाहरण: मानवीय आधार पर कोसोवो में नाटो का हस्तक्षेप, युद्ध में नैतिक आचरण स्थापित करने वाले जिनेवा अभिसमय, इराक और अफगानिस्तान में अमेरिकी हस्तक्षेप पर बहस।
  • विश्वव्यापीकरण: विश्वव्यापीकरण इस बात पर जोर देता है कि सभी मनुष्य एक ही नैतिक समुदाय से संबंधित हैं और राष्ट्रीय सीमाओं को नैतिक दायित्वों को सीमित नहीं करना चाहिए।
    • उदाहरण: अंतरराष्ट्रीय शरणार्थी सहायता कार्यक्रम, पेरिस समझौते जैसी जलवायु न्याय पहल, संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्य (SDG)।
  • उपयोगितावाद: उपयोगितावाद का तर्क है कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में नैतिक निर्णयों से समग्र प्रसन्नता को अधिकतम करना चाहिए और पीड़ा को कम करना चाहिए।
    • उदाहरण: सत्तावादी शासनों पर आर्थिक प्रतिबंधों को समग्र पीड़ा को कम करते हुए सरकारों पर दबाव डालने के लिए आवश्यक माना जाता है, राहत प्रभाव को अधिकतम करने के उद्देश्य से मानवीय सहायता।
  • नैतिकता: नैतिकता का तर्क है कि नैतिक निर्णय परिणामों के बजाय कर्तव्य और सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांतों पर आधारित होने चाहिए।
    • उदाहरण: यातना के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र अभिसमय के तहत यातना का निषेध, आतंकवाद विरोधी अभियानों में न्यायेतर हत्याओं का विरोध।
  • सामुदायिकता: सामुदायिकता का तर्क है कि नैतिक दायित्व सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांतों के बजाय सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और राष्ट्रीय संदर्भों द्वारा आकार लेते हैं।
    • उदाहरण: पश्चिमी लोकतंत्र की चीन द्वारा अस्वीकृति, स्वदेशी अधिकार बनाम राष्ट्रीय कानूनों पर बहस।

अंतरराष्ट्रीय संबंधों में नैतिकता के प्रति भारत का योगदान

  • गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व: संप्रभुता, गैर-आक्रामकता और संघर्षों का शांतिपूर्ण समाधान।
  • भारत, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में, वर्ष 1961 में गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) का संस्थापक सदस्य था।
    • उदाहरण: कोरियाई युद्ध (वर्ष 1950- 1953) तथा स्वेज संकट (वर्ष 1956) जैसे संघर्षों में मध्यस्थता करने में भारत की भूमिका ने शांति और तटस्थता के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया।
  • पंचशील: शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पाँच सिद्धांत
    • भारत ने चीन के साथ मिलकर वर्ष 1954 में पंचशील सिद्धांतों को लागू किया, जो नैतिक अंतरराष्ट्रीय संबंधों की आधारशिला बन गए।
      • प्रादेशिक अखंडता और संप्रभुता के लिए परस्पर सम्मान।
      • परस्पर अनाक्रमण।
      • आंतरिक मामलों में परस्पर हस्तक्षेप न करना।
      • समानता और परस्पर लाभ।
      • शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व।
    • उदाहरण: पंचशील ने बांडुंग सम्मेलन (वर्ष 1955) को प्रभावित किया तथा कई नव स्वतंत्र राष्ट्रों के लिए मार्गदर्शक ढाँचा बन गया।
  • वसुधैव कुटुंबकम्: भारतीय दर्शन से प्राप्त वसुधैव कुटुंबकम् का विचार दुनिया को एक परिवार के रूप में देखता है तथा वैश्विक सहयोग और नैतिक कूटनीति पर जोर देता है।
    • उदाहरण: भारत की G20 प्रेसीडेंसी (वर्ष 2023) की थीम “एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य” थी, जिसमें समावेशी विकास और नैतिक अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर ध्यान केंद्रित किया गया था।
      • भारत की वैक्सीन मैत्री पहल (2021) ने मानवीय नैतिकता को प्राथमिकता देते हुए 100 से अधिक देशों को कोविड-19 टीके उपलब्ध कराए।
  • उपनिवेशवाद के उन्मूलन और नस्लवाद-विरोधी समर्थन: न्याय, समानता और आत्मनिर्णय का अधिकार।
    • भारत एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के उपनिवेशवाद के उन्मूलन के लिए मुखर समर्थक था, तथा उपनिवेशित राष्ट्रों के लिए आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थन करता था।
    • उदाहरण: भारत ने इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया जैसे देशों में स्वतंत्रता आंदोलनों का समर्थन किया और दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद को समाप्त करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के प्रयासों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • नैतिक विदेश नीति और सॉफ्ट पॉवर
    • भारत की विदेश नीति अहिंसा, सहिष्णुता और आपसी सम्मान जैसे नैतिक सिद्धांतों द्वारा निर्देशित रही है, जो इसकी प्राचीन दार्शनिक परंपराओं में निहित हैं।
    • उदाहरण: योग, बॉलीवुड और इसके लोकतांत्रिक मूल्यों सहित भारत द्वारा सॉफ्ट पॉवर’ के उपयोग ने इसके वैश्विक प्रभाव को बढ़ाया है और नैतिक सिद्धांतों को बढ़ावा दिया है।
  • अनुच्छेद 51: वैश्विक नैतिकता के प्रति संवैधानिक प्रतिबद्धता
    • भारतीय संविधान का अनुच्छेद-51 (राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत) राज्य को निर्देश देता है:
      • अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देना।
      • राष्ट्रों के बीच न्यायपूर्ण और सम्मानजनक संबंध बनाए रखें।
      • अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रति सम्मान को बढ़ावा देना।
      • मध्यस्थता के माध्यम से विवादों के निपटारे को प्रोत्साहित करना।
    • उदाहरण: संयुक्त राष्ट्र सुधारों के लिए भारत का मजबूत समर्थन निष्पक्ष वैश्विक शासन के प्रति उसकी संवैधानिक प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
  • नो फर्स्ट यूज सिद्धांत: भारत “नो फर्स्ट यूज” (No First Use- NFU) परमाणु नीति का पालन करता है, जो यह सुनिश्चित करता है कि परमाणु हथियारों का उपयोग केवल आत्मरक्षा के लिए किया जाए।
    • उदाहरण: भारत एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति है, जो संयुक्त राष्ट्र में अप्रसार और वैश्विक निरस्त्रीकरण पर चर्चा के लिए प्रतिबद्ध है।

अंतरराष्ट्रीय संबंधों में प्रमुख नैतिक सिद्धांत

  • संप्रभुता और गैर-हस्तक्षेप: राज्यों को अन्य राष्ट्रों के आंतरिक मामलों में तब तक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, जब तक कि मानवाधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन या वैश्विक शांति के लिए खतरा न हो।
    • उदाहरण: संयुक्त राष्ट्र चार्टर संप्रभुता पर जोर देता है, लेकिन रवांडा (वर्ष 1994) या कोसोवो (वर्ष 1999) जैसे हस्तक्षेप नैतिक प्रश्न उठाते हैं कि हस्तक्षेप कब तक उचित है।
  • मानव अधिकार: राज्यों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों का नैतिक दायित्व है कि वे मानवाधिकारों की रक्षा करें, भले ही यह राष्ट्रीय हितों के साथ टकराव हो।
    • उदाहरण: मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (वर्ष 1948) एक वैश्विक मानक निर्धारित करती है, लेकिन सीरिया जैसे संघर्षों में उल्लंघन सिद्धांत और व्यवहार के बीच अंतर को उजागर करते हैं।
  • न्याय और निष्पक्षता: विशेषतः व्यापार, जलवायु परिवर्तन और संसाधन वितरण से संबंधित अंतरराष्ट्रीय समझौतों और नीतियों का लक्ष्य समान परिणाम होना चाहिए।
    • उदाहरण: जलवायु न्याय के अंतर्गत विकसित राष्ट्र, सामान्य लेकिन विभेदित उत्तरदायित्व (CBDR) सिद्धांत के अनुसार उत्सर्जन के लिए अधिक जिम्मेदार हैं।
  • शांति और अहिंसा: युद्ध केवल अंतिम उपाय होना चाहिए और तब भी, इसे नैतिक रूप से संचालित किया जाना चाहिए, नागरिकों को कम-से-कम नुकसान पहुँचाना चाहिए (जूस इन बेलो)।
    • उदाहरण: इराक युद्ध (वर्ष 2003) की अक्सर ‘न्यायपूर्ण युद्ध’ के नैतिक मानदंडों को पूरा करने में विफल रहने के लिए आलोचना की जाती है।
  • वैश्विक सहयोग और एकजुटता: जलवायु परिवर्तन, गरीबी और महामारी जैसी वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने के लिए राष्ट्रों को मिलकर कार्य करना चाहिए।
    • उदाहरण: कोविड-19 महामारी ने वैक्सीन वितरण और स्वास्थ्य सेवा सहायता में वैश्विक सहयोग की आवश्यकता को उजागर किया।
  • पर्यावरण प्रबंधन: पर्यावरण की रक्षा करना और भावी पीढ़ियों के लिए सतत् विकास सुनिश्चित करना।
    • उदाहरण: क्योटो प्रोटोकॉल और पेरिस समझौता जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रयास हैं, हालाँकि इनका प्रवर्तन एक चुनौती बना हुआ है।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही: भ्रष्टाचार, गोपनीयता और जवाबदेही की कमी अंतरराष्ट्रीय संबंधों में विश्वास और नैतिक शासन को कमजोर करती है।
    • उदाहरण: अफ्रीकी नेताओं के विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) के मामले लेकिन पश्चिमी नेताओं पर मुकदमा चलाने में अनिच्छा प्रकट करना।
  • राष्ट्रों की समानता: शक्ति की परवाह किए बिना सभी राष्ट्रों को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर समान अवसर और प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए।
    • उदाहरण: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की वीटो शक्ति की अक्सर अमेरिका, रूस और चीन जैसे शक्तिशाली देशों का पक्ष लेने के लिए आलोचना की जाती है।
  • गैर-भेदभाव: राष्ट्रों और अंतरराष्ट्रीय नेताओं को नस्ल, धर्म, लिंग या राष्ट्रीयता के आधार पर भेदभाव से बचना चाहिए।
    • उदाहरण: शरणार्थी सम्मेलन (वर्ष 1951) का उद्देश्य बिना किसी भेदभाव के शरणार्थियों के अधिकारों की रक्षा करना है।

अंतरराष्ट्रीय संबंधों में नैतिक मुद्दे

  • मानवाधिकार उल्लंघन और चयनात्मक हस्तक्षेप: राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय संगठन अक्सर मानवाधिकार मानदंडों को चुनिंदा रूप से लागू करते हैं, कुछ संकटों में हस्तक्षेप करते हैं, जबकि अन्य को अनदेखा करते हैं।
    • यूक्रेन युद्ध के लिए रूस (वर्ष 2022) पर अमेरिका और यूरोपीय संघ के प्रतिबंध लेकिन यमन पर सऊदी अरब के विरुद्ध सीमित कार्रवाई।
    • UNHCR के अनुसार, वर्ष 2023 तक विश्व में 114 मिलियन से अधिक जबरन विस्थापित किए गए लोग होंगे, जिनमें से कई मानवाधिकारों के हनन के कारण विस्थापित हुए हैं।
  • सैन्य हस्तक्षेप के लिए युद्ध नैतिकता और औचित्य: यह तय करने में नैतिक दुविधाएँ उत्पन्न होती हैं कि कब सैन्य हस्तक्षेप उचित है और क्या नागरिक हताहतों को ‘सहवर्ती क्षति’ माना जा सकता है।
    • इराक पर अमेरिकी आक्रमण (वर्ष 2003), सामूहिक विनाश के हथियार (WMD) के झूठे दावों पर उचित ठहराया गया, जिससे नैतिक चिंताएँ पैदा हुईं।
    • ब्राउन यूनिवर्सिटी के “युद्ध की लागत” परियोजना के अनुसार, अमेरिका द्वारा 9/11 के बाद के युद्धों में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभावों के कारण 4.5 मिलियन मौतें हुईं।
  • जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण न्याय: ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार विकसित देश, उत्तरदायित्त्व निभाने या कमजोर देशों को पर्याप्त सहायता प्रदान करने में अनिच्छुक रहे हैं।
    • पेरिस जलवायु समझौता (2015) – विकासशील देशों ने हानि और क्षति कोष के तहत वित्तीय सहायता की माँग की, लेकिन योगदान अपर्याप्त रहा।
    • चीन (30%) और अमेरिका (14%) वैश्विक CO2 उत्सर्जन का लगभग 44% हिस्सा हैं, जबकि अफ्रीका केवल 4% योगदान देता है, फिर भी उसे असंगत जलवायु आपदाओं का सामना करना पड़ता है।
  • आर्थिक शोषण और असमान व्यापार नीतियाँ: विकसित देश अनुचित व्यापार समझौतों, ऋण जाल और संसाधन निष्कर्षण के माध्यम से विकासशील अर्थव्यवस्थाओं का शोषण करते हैं।
    • IMF और विश्व बैंक संरचनात्मक समायोजन कार्यक्रम (SAP) ने प्रायः अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देशों में आर्थिक कठिनाइयों को जन्म दिया है।
    • UNCTAD के अनुसार, अवैध वित्तीय प्रवाह और अनुचित व्यापार के कारण अफ्रीका को वार्षिक रूप से 88.6 बिलियन डॉलर का नुकसान होता है।
  • शरणार्थी संकट और प्रवास नीतियाँ: विस्थापित व्यक्तियों को शरण प्रदान करना राष्ट्रों की नैतिक जिम्मेदारी है, लेकिन नीतियाँ अक्सर मानवीय आवश्यकताओं पर राष्ट्रीय सुरक्षा को प्राथमिकता देती हैं।
    • सीरियाई शरणार्थी संकट (वर्ष 2015) – यूरोप में 1.3 मिलियन से अधिक शरणार्थी आए, लेकिन कई राज्यों ने प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया।
    • UNHCR (2023) की रिपोर्ट है कि वर्ष 2023 के अंत तक विश्व में 117.3 मिलियन से अधिक लोगों को जबरन विस्थापित किया गया, जिसमें 36.4 मिलियन शरणार्थी शामिल हैं।
  • साइबर नैतिकता और डिजिटल निगरानी: सरकारें और निगम बड़े पैमाने पर निगरानी, ​​हैकिंग और ‘फेक न्यूज’ अभियान चलाते हैं, जिससे नैतिक चिंताएँ बढ़ती हैं।
    • रूसी साइबर हमले – अमेरिका और यूरोप में चुनावों को निशाना बनाया गया, जिससे विदेशी हस्तक्षेप के बारे में नैतिक चिंताएँ बढ़ती हैं।
    • विश्व आर्थिक मंच (वर्ष 2023) ने साइबर खतरों को शीर्ष 10 वैश्विक जोखिमों में सूचीबद्ध किया, जिसमें हैकिंग की घटनाओं से वैश्विक अर्थव्यवस्था को वार्षिक रूप से 6 ट्रिलियन डॉलर से अधिक का नुकसान होता है।
  • संयुक्त राष्ट्र की प्रभावशीलता और जवाबदेही: संघर्ष समाधान में पक्षपातपूर्ण, अप्रभावी होने के लिए संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की अक्सर आलोचना की जाती है।
    • नरसंहारों को रोकने में विफलता – रवांडा (1994) और म्याँमार (2017) में संयुक्त राष्ट्र की निष्क्रियता के कारण बड़े पैमाने पर अत्याचार हुए।
    • 90% से अधिक संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन अफ्रीका और एशिया में तैनात किए गए हैं, जिनकी अक्सर कम वित्तपोषित और राजनीतिक रूप से प्रभावित होने के लिए आलोचना की जाती है।

अंतरराष्ट्रीय नैतिकता के प्रमुख स्रोत

  • दार्शनिक और धार्मिक परंपराएँ: अंतरराष्ट्रीय संबंधों में नैतिक सिद्धांत दर्शन और धार्मिक शिक्षाओं से प्रभावित होते हैं जो न्याय, शांति तथा मानवीय गरिमा की वकालत करते हैं।
    • कांट का स्पष्ट आदेश: कूटनीति में नैतिक कर्तव्यों और सार्वभौमिक नैतिकता पर जोर देता है।
  • अंतरराष्ट्रीय कानून और संधियाँ: कानूनी ढाँचे राष्ट्रों के लिए बाध्यकारी नैतिक दिशा-निर्देश स्थापित करते हैं।
    • जिनेवा अभिसमय (वर्ष 1949): युद्ध आचरण के लिए नैतिक मानक निर्धारित करता है।
  • वैश्विक संस्थाएँ और संगठन: अंतरराष्ट्रीय संगठन वैश्विक मानक निर्धारित करके और कानून लागू करके नैतिक मानदंडों को आकार देते हैं।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO): चिकित्सा में वैश्विक स्वास्थ्य समानता और नैतिकता सुनिश्चित करता है।
  • प्रथागत अंतरराष्ट्रीय प्रथाएँ: वैश्विक संबंधों में नैतिक व्यवहार अक्सर स्थापित परंपराओं और कूटनीतिक मानदंडों पर आधारित होता है।
    • राजनयिक प्रतिरक्षा: अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के तहत विदेशी राजनयिकों की सुरक्षा करता है।
  • मानवाधिकार घोषणाएँ और नैतिक ढाँचे: अंतरराष्ट्रीय संबंधों में नैतिक मानदंड मानवाधिकार ढाँचों से प्राप्त होते हैं।
    • मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (वर्ष 1948): वैश्विक मानवाधिकार मानकों को परिभाषित करता है।
  • सार्वजनिक राय और नागरिक समाज आंदोलन: वैश्विक नैतिकता गैर-सरकारी संगठनों, मीडिया और जमीनी स्तर के आंदोलनों से प्रभावित होती है, जो न्याय और जवाबदेही की वकालत करते हैं।
    • युद्ध और नरसंहार के विरुद्ध वैश्विक विरोध: राजनयिक निर्णयों को प्रभावित करना (उदाहरण के लिए, 2003 में इराक युद्ध विरोधी विरोध प्रदर्शन)।

अंतरराष्ट्रीय नैतिकता में अंतरराष्ट्रीय संगठनों की भूमिका

  • संयुक्त राष्ट्र (UN): वैश्विक शांति और मानवाधिकार
    • अंतरराष्ट्रीय शांति तथा सुरक्षा बनाए रखता (संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद) है।
    • मानवाधिकारों को बढ़ावा देता (संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद, मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा) है।
    • मानवीय सहायता प्रदान करता (UNHCR, WFP, UNICEF) है।
    • उदाहरण: संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन – दक्षिण सूडान, माली और डीआर कांगो में तैनात।
      • तथ्य: वर्ष 2023 तक, विश्व में संयुक्त राष्ट्र के 12 मिशनों में 87,000 से अधिक शांति सैनिक तैनात हैं।
  • अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ): कानूनी मध्यस्थता और न्याय
    • अंतरराष्ट्रीय कानून के आधार पर राज्यों के बीच विवादों का निपटारा करता है।
    • वैश्विक नैतिक मुद्दों (जैसे, नरसंहार, युद्ध अपराध) पर कानूनी राय प्रदान करता है।
    • उदाहरण: रूस के विरुद्ध ICJ का फैसला (वर्ष 2022) – यूक्रेन ने नरसंहार के दावे के तहत युद्ध को गलत तरीके से उचित ठहराने के लिए रूस पर मुकदमा दायर किया।
    • वर्ष 1945 में अपनी स्थापना के बाद से ICJ के समक्ष 196 से अधिक मामले लाए गए हैं।
  • अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC): युद्ध अपराध और जवाबदेही
    • नरसंहार, युद्ध अपराध और मानवता के खिलाफ अपराधों के लिए व्यक्तियों पर मुकदमा चलाया जाता है।
    • यह सुनिश्चित करता है कि नेताओं को मानवाधिकार उल्लंघन के लिए जवाबदेह ठहराया जाए।
    • उदाहरण: व्लादिमीर पुतिन के लिए गिरफ्तारी वारंट (वर्ष 2023) – यूक्रेन में कथित युद्ध अपराधों के लिए।
  • विश्व व्यापार संगठन (WTO): नैतिक व्यापार और आर्थिक न्याय
    • निष्पक्ष व्यापार प्रथाओं को बढ़ावा देता है और देशों के बीच विवादों का समाधान करता है।
    • विकासशील देशों को आर्थिक शोषण से बचाता है।
    • उदाहरण: WTO बनाम अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध: वर्ष 2018- 2019 में टैरिफ विवादों में मध्यस्थता।
    • WTO में 166 सदस्य देश हैं और 600 से अधिक व्यापार विवाद इसके समक्ष लाए गए हैं, जिनमें वर्ष 1995 में इसकी स्थापना के बाद से 350 से अधिक निर्णय जारी किए गए हैं।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO): स्वास्थ्य संबंधी नैतिक शासन
    • वैश्विक स्वास्थ्य नीतियों और महामारी के प्रति प्रतिक्रियाओं का समन्वय करता है।
    • दवाओं और टीकों का समान वितरण सुनिश्चित करता है।
    • उदाहरण: COVAX पहल – COVID-19 महामारी के दौरान कम आय वाले देशों के लिए टीके सुनिश्चित करना।
      • WHO के 194 सदस्य देश हैं और इसने कोविड-19 महामारी के विरुद्ध 1 अरब से अधिक लोगों के टीकाकरण संबंधी प्रयासों का नेतृत्व किया है।
  • अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक: आर्थिक स्थिरता और नैतिकता
    • संघर्षरत अर्थव्यवस्थाओं को वित्तीय सहायता और विकास ऋण प्रदान करता है।
    • नैतिक ऋण देने और गरीबी में कमी को बढ़ावा देता है।
    • उदाहरण: श्रीलंका (वर्ष 2023) की अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिए IMF द्वारा बेलआउट।
      • IMF के पास लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर की ऋण देने की क्षमता है और उसने कई देशों की मदद की है।
  • गैर-सरकारी संगठन और नागरिक समाज: समर्थन और नैतिक जवाबदेही
    • नैतिक उल्लंघनों के लिए सरकारों को जवाबदेह ठहराना।
    • वैश्विक मुद्दों पर मानवीय सहायता और अनुसंधान प्रदान करना।
    • उदाहरण: मानवाधिकारों के हनन पर एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट नीतिगत बदलावों को प्रभावित करती है।

अंतरराष्ट्रीय नैतिकता के माध्यम से सतत् विकास को बढ़ावा देना

  • मानवाधिकारों का पालन: भेदभाव रहित और समानता सुनिश्चित करना समावेशी और सतत् विकास को बढ़ावा देता है।
    • उदाहरण: बिना भेदभाव के गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना SDG 4 (गुणवत्तापूर्ण शिक्षा) के साथ संरेखित है।
  • पर्यावरण प्रबंधन: कार्बन उत्सर्जन को कम करने और जैव विविधता को संरक्षित करने जैसे स्थिरता के नैतिक सिद्धांत, SDG 13 (जलवायु कार्रवाई) और SDG 14 (पानी के नीचे जीवन) में योगदान करते हैं।
  • नैतिक शासन: संस्थाओं में पारदर्शिता, जवाबदेही और अखंडता को बढ़ावा देना SDG 16 (शांति, न्याय और मजबूत संस्थान) का समर्थन करता है।
  • निष्पक्ष व्यापार व्यवहार: निष्पक्ष वेतन और सुरक्षित कार्य स्थितियों सहित नैतिक व्यापार व्यवहारों का पालन करना SDG 8 (सभ्य कार्य और आर्थिक विकास) को आगे बढ़ाता है।
  • लैंगिक समानता: लैंगिक समानता सिद्धांतों को अपनाने से महिलाओं और लड़कियों को सशक्त बनाया जाता है, जो SDG 5 (लैंगिक समानता) में प्रत्यक्ष रूप से योगदान देता है।
  • नैतिक निवेश: जिम्मेदार निवेश, सतत् परियोजनाओं में धन लगाता है, जो SDG 7 (सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा) और SDG 9 (उद्योग, नवाचार और बुनियादी ढाँचा) का समर्थन करता है।
  • नैतिक उपभोग: जिम्मेदार उपभोग पैटर्न को बढ़ावा देना SDG 12 (जिम्मेदार उपभोग और उत्पादन) के साथ संरेखित है।

अंतरराष्ट्रीय संबंधों में नैतिकता को मजबूत करने की दिशा में आगे की राह

  • अंतरराष्ट्रीय कानूनी तंत्र को मजबूत करना: उल्लंघनकर्ताओं को जवाबदेह ठहराने के लिए अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) और अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) की प्रवर्तन शक्ति को बढ़ाना।
    • वैश्विक संघर्ष समाधानों में राजनीतिक पूर्वाग्रह को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की वीटो प्रणाली में सुधार करना।
  • नैतिक कूटनीति और संघर्ष समाधान को बढ़ावा देना: संयुक्त राष्ट्र और क्षेत्रीय निकायों द्वारा मध्यस्थता प्रयासों के माध्यम से सैन्य हस्तक्षेपों पर शांतिपूर्ण वार्ता को प्रोत्साहित करना।
    • नैतिक संवाद को बढ़ावा देने के लिए ट्रैक-II कूटनीति (गैर-सरकारी संघर्ष समाधान) की भूमिका को मजबूत करना।
  • निष्पक्ष वैश्विक आर्थिक नीतियों को सुनिश्चित करना: नैतिक ऋण देने को प्राथमिकता देने और आर्थिक शोषण को कम करने के लिए IMF और विश्व बैंक जैसी संस्थाओं में सुधार करना।
    • उचित व्यापार समझौतों को बढ़ावा देना, जो विकासशील देशों को लाभ पहुँचाते हैं और ऋणग्रस्तता को रोकते हैं।
  • जलवायु और पर्यावरण नैतिकता को संबोधित करना: सुनिश्चित करना कि विकसित देश जलवायु न्याय के लिए पेरिस समझौते और हानि तथा क्षति कोष के तहत अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करें।
    • नवीकरणीय ऊर्जा तथा सतत् विकास में नैतिक निवेश को प्रोत्साहित करना।
  • मानवाधिकारों और शरणार्थी सुरक्षा को मजबूत बनाना: सुनिश्चित करना कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद मानवाधिकार उल्लंघनों के खिलाफ निष्पक्ष कार्रवाई करना।
    • राष्ट्रों के बीच समान जिम्मेदारी-साझाकरण सुनिश्चित करके वैश्विक शरणार्थी संरक्षण ढाँचे को मजबूत करना।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही को प्रोत्साहित करना: साइबर युद्ध, गलत सूचना तथा डिजिटल निगरानी के दुरुपयोग को रोकने के लिए सख्त नियम लागू करना।
    • वैश्विक नैतिक उल्लंघनों को उजागर करने के लिए गैर-सरकारी संगठनों और खोजी पत्रकारिता जैसे स्वतंत्र निगरानी संस्थाओं को बढ़ावा देना।

निष्कर्ष

अंतरराष्ट्रीय संबंधों में नैतिकता शांति, न्याय और वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक है। अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को मजबूत करना, नैतिक कूटनीति को बढ़ावा देना और वैश्विक जवाबदेही सुनिश्चित करना अधिक निष्पक्ष, न्यायपूर्ण और सतत् वैश्विक व्यवस्था के निर्माण में मदद कर सकता है।

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.