उत्तर:
प्रश्न को हल कैसे करें
- परिचय
- भारत के पशुधन क्षेत्र के बारे में संक्षेप में लिखिये
- मुख्य विषय- वस्तु
- सकल घरेलू उत्पाद में भारत के पशुधन क्षेत्र की भूमिका पर विचार करते हुए इसके आर्थिक योगदान को लिखिये
- भारत के पशुधन क्षेत्र की रोजगार में भूमिका पर विचार करते हुए इसके आर्थिक योगदान को लिखिये
- पोषण सुरक्षा में भारत के पशुधन क्षेत्र की भूमिका पर विचार करते हुए उसके आर्थिक योगदान को लिखिये
- निष्कर्ष
- इस संबंध में उचित निष्कर्ष लिखिये
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परिचय
20वीं पशुधन जनगणना के अनुसार, भारत में लगभग 1386 मिलियन पशुधन और मुर्गीपालन के विशाल संसाधन हैं। पशुधन क्षेत्र का तात्पर्य कृषि उद्देश्यों के लिए पालतू पशुओं के पालन-पोषण और प्रजनन से है; जो 2014-15 से 2020-21 (स्थिर कीमतों पर) के दौरान 7.9% की सीएजीआर से बढ़ी, और कुल कृषि जीवीए (स्थिर कीमतों पर) में इसका योगदान 2014-15 में 24.3% से बढ़कर 2020-21 में 30.1% हो गया है। .
मुख्य विषय- वस्तु
भारत के पशुधन क्षेत्र का आर्थिक योगदान, सकल घरेलू उत्पाद में इसकी भूमिका पर विचार करना
- जीडीपी योगदान: भारत की कुल जीडीपी में पशुधन का योगदान लगभग 4.11% और कृषि जीडीपी में 25.6% है, यह क्षेत्र ग्रामीण भारत के आर्थिक आधार को मजबूत करता है। उदाहरण के लिए, अकेले डेयरी क्षेत्र ने ही भारत को विश्व स्तर पर सबसे बड़ा दूध उत्पादक बनने के लिए प्रेरित किया है।
- बाजार के उतार–चढ़ाव के प्रति लचीलापन: उदाहरण के लिए, डेयरी भारत में सबसे बड़ी कृषि वस्तु होने के कारण राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में 5% का योगदान देती है । फसल-आधारित कृषि की तुलना में यह कम अस्थिर रहता है, जिसका प्रमाण आर्थिक उतार-चढ़ाव के बीच अमूल की स्थिर वृद्धि है।
- मूल्य–संवर्धित उत्पाद: मदर डेयरी जैसे ब्रांडों ने डेयरी उत्पादों में विविधता लाने की दिशा में अग्रणी भूमिका निभाई है, तथा प्रोबायोटिक दही जैसे उत्पाद पेश किए हैं, जिससे इस क्षेत्र की लाभप्रदाता में वृद्धि हुई है।
- निर्यात क्षमता: वर्ष 2022-23 के दौरान 25,648.10 करोड़ रुपये मूल्य के 1,175,869.13 मीट्रिक टन भैंस मांस उत्पादों के निर्यात के साथ, भारत वैश्विक मांस बाजार में एक मजबूत उपस्थिति प्रदर्शित करता है, जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के आर्थिक लाभों को प्राप्त करने के लिए अपने पशुधन क्षेत्र का लाभ उठाता है।
- किसानों के लिए जोखिम न्यूनीकरण: पशुधन कृषि जोखिम के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करता है; उदाहरण के लिए, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में कृषि आय अधिक है तथा संकट भी कम है, जिसका आंशिक कारण उनकी एकीकृत फसल-पशुधन कृषि प्रणालियां हैं।
भारत के पशुधन क्षेत्र का आर्थिक योगदान, रोजगार में इसकी भूमिका पर विचार
- ग्रामीण रोजगार: पशुधन ग्रामीण रोजगार के लिए महत्वपूर्ण है, जो 20 मिलियन से अधिक लोगों को रोजगार देता है। डेयरी सहकारी क्षेत्र की दिग्गज कंपनी अमूल इस क्षेत्र में रोजगार का प्रमाण है, जो लाखों डेयरी किसानों के साथ सीधे तौर पर जुडी हुई है।
- पशुधन के माध्यम से सशक्तिकरण: 2011-12 के रोजगार और बेरोजगारी सर्वेक्षण के अनुसार, 12 मिलियन ग्रामीण महिलाएं पशुधन पालन में संलग्न हैं, जो उन्हें वित्तीय और सामाजिक रूप से सशक्त बनाती हैं।
- सहायक और सेवा उद्योग: यह क्षेत्र ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण पशु चिकित्सा देखभाल और चारा उत्पादन जैसे संबंधित क्षेत्रों में रोजगार सृजन की सुविधा प्रदान करता है। यह प्राथमिक खेती से आगे बढ़कर सेवाओं और उद्योगों के पारिस्थितिकी तंत्र को शामिल करता है।
- मौसमी श्रम अवशोषण: पशुधन खेती गैर-कृषि मौसम के दौरान ग्रामीण श्रमिकों के लिए एक बफर के रूप में कार्य करती है, जिससे लगातार आय मिलती है। इसके अतिरिक्त, मनरेगा जैसी योजनाएं मौसमी रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए पशुधन से संबंधित गतिविधियों को एकीकृत करती हैं।
- आय वृद्धि: पशुधन छोटे कृषक परिवारों की आय में महत्वपूर्ण योगदान देता है – सभी ग्रामीण परिवारों के लिए औसत 14% की तुलना में 16% – जो ग्रामीण आय बढ़ाने में इसकी भूमिका को व्यक्त करता है।
पोषण सुरक्षा में इसकी भूमिका को ध्यान में रखते हुए भारत के पशुधन क्षेत्र का आर्थिक योगदान:
- पशु प्रोटीन का प्रावधान: 156 मिलियन टन से अधिक दूध के साथ भारत का मजबूत उत्पादन अमूल जैसे कम्पनियों के माध्यम से डेयरी उत्पादों की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करता है, जिससे विभिन्न सामाजिक-आर्थिक स्तरों पर प्रोटीन का सेवन बढ़ता है।
- पौष्टिक खाद्य पदार्थों तक पहुंच: ऑपरेशन फ्लड से प्रेरित डेयरी क्षेत्र ने भारत को विश्व स्तर पर दूध उत्पादन में अग्रणी स्थान पर पहुंचा दिया है, जिससे इसकी आबादी की पोषण सुरक्षा में प्रत्यक्ष रूप से वृद्धि हुई है।
- सूक्ष्म पोषक तत्वों की उपलब्धता: 75 बिलियन अंडों का उत्पादन, पोल्ट्री उद्योग को आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध कराने में एक प्रमुख घटक के रूप में स्थापित करता है, जिसे राष्ट्रीय पोल्ट्री विकास कार्यक्रम जैसी पहलों का समर्थन प्राप्त है ।
- विविध आहार तक आर्थिक पहुंच: पशुधन खेती से ग्रामीण आय में वृद्धि होती है, जैसा कि पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में देखा गया है, जिससे परिवारों को 8.89 मिलियन टन तक पर्याप्त मांस उत्पादन के कारण शाकाहारी मुख्य भोजन से परे अपने आहार में विविधता लाने की अनुमति मिलती है।
- सतत पोषण पद्धतियां: चारे के लिए गन्ने के उप–उत्पादों के उपयोग जैसी पद्धतियों के माध्यम से शून्य अपशिष्ट पर भारत का जोर सतत पशुधन पालन को समर्थन देता है, जैसा कि सुगुना फूड्स जैसे संगठनों के सहकारी प्रयासों में देखा जा सकता है ।
- बढ़ी हुई खाद्य सुरक्षा: खाद्य सुरक्षा में पशुधन का योगदान मध्याह्न भोजन योजना जैसे कार्यक्रमों में स्पष्ट है, जहां अंडे और दूध मुख्य घटक हैं, भारत में इनके पर्याप्त उत्पादन के कारण स्कूल जाने वाले बच्चों में कुपोषण से निपटने में मदद मिलती है।
निष्कर्ष
पशुधन क्षेत्र की क्षमता को अधिकतम करने के लिए राष्ट्रीय पशुधन मिशन जैसे कार्यक्रमों का प्रभावी कार्यान्वयन आवश्यक है। गोकुल मिशन, राष्ट्रीय पशुधन मिशन और डेयरी प्रसंस्करण एवं अवसंरचना विकास निधि का संयोजन महत्वपूर्ण है। यह सतत विकास, रोजगार और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करेगा, जिससे भारत की सामाजिक–आर्थिक प्रगति में इस क्षेत्र की आधारभूत भूमिका को मजबूती मिलेगी ।
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