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Q. हमारे वर्तमान कृषि मॉडल की कमियों पर चर्चा कीजिए और बहु-फसल प्रणाली इन चिंताओं को कैसे दूर कर सकती है। किसानों को फसल विविधीकरण की ओर बढ़ने में सक्षम बनाने हेतु आप कौन से नीतिगत उपाय सुझाएंगे? (250 शब्द, 15 अंक)

 उत्तर:

दृष्टिकोण:

  • प्रस्तावना: भारत में वर्तमान कृषि मॉडल के एक सिंहावलोकन के साथ शुरुआत कीजिए, जो अर्थव्यवस्था और आजीविका में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालता है।  
  • मुख्य विषयवस्तु:
    • प्रमुख चुनौतियों जैसे मानसून पर निर्भरता, मशीनीकरण का अभाव, छोटे खेतों का आकार आदि पर विस्तार से चर्चा कीजिए।
    • समझाएं कि कुशल संसाधन के माध्यम से बहु-फसलीय खेती विविधीकरण, मृदा की गुणवत्ता, उत्पादकता में बढ़ोतरी जैसे लाभों को संबोधित कर सकती है।
    • सरकारी सहायता, बेहतर ऋण और बीमा की पहुंच आदि जैसे विशिष्ट नीतिगत हस्तक्षेप का सुझाव दीजिए।
  • निष्कर्ष: भारत में सतत कृषि विकास के लिए बहु-फसल प्रणाली अपनाने के महत्व पर जोर देते हुए निष्कर्ष निकालिए।

 

प्रस्तावना:

भारत में वर्तमान कृषि मॉडल में कई सीमाएँ हैं जो इसके सतत विकास और उत्पादकता में बाधा डालती हैं। इन मुद्दों को संबोधित करने और बहु-फसल प्रणाली की ओर परिवर्तन करने से कृषि एवं सम्बद्ध क्षेत्र में महत्वपूर्ण लाभ हासिल किया जा सकता है।

मुख्य विषयवस्तु:

भारत में वर्तमान में कृषि मॉडल की सीमाएँ

  • मानसून पर निर्भरता: भारतीय कृषि सिंचाई के लिए मानसून पर अत्यधिक निर्भर है। जलवायु परिवर्तन के कारण अनियमित मानसून पैटर्न की वजह से सूखा, बाढ़ और अप्रत्याशित जल उपलब्धता होती है, जिससे फसल उत्पादकता पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
  • मशीनीकरण और आधुनिक प्रौद्योगिकी का अभाव: कृषि क्षेत्र मशीनीकरण व प्रौद्योगिकी के  अभाव से ग्रस्त है, जिसके परिणामस्वरूप फसल की उत्पादकता और उपज कम है। कृषि से जुड़े उपकरणों की उच्च लागत और सीमित ऋण सुविधाएं आधुनिक प्रौद्योगिकियों को अपनाने में बाधा डालती हैं।
  • खंडित भूमि जोत और छोटे खेतों का आकार: छोटी और खंडित भूमि जोत का प्रचलन कृषि से जुड़ी अर्थव्यवस्थाओं को बाधित करता है, जिससे बड़े पैमाने पर कृषि पद्धतियों को लागू करना और आधुनिक तकनीक को अपनाना मुश्किल हो जाता है।
  • ऋण और बीमा तक पहुंच का अभाव: कई किसान उच्च-ब्याज दरों, अपर्याप्त संपार्श्विक और जटिल कागजी कार्रवाई के कारण औपचारिक वित्तीय संस्थानों से ऋण प्राप्त करने के लिए संघर्ष करते हैं। इस कारण वे अक्सर अनौपचारिक स्रोतों से उच्च-ब्याज पर ऋण का सहारा ले लेते हैं।
  • पर्यावरणीय क्षरण और मृदा की गुणवत्ता: हरित क्रांति के इनपुट-संचालित दृष्टिकोण के कारण मिट्टी की गुणवत्ता और पर्यावरणीय स्थिरता में महत्वपूर्ण गिरावट आई है। कृषि रसायनों के अत्यधिक उपयोग ने मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट के साथ जल प्रदूषण में योगदान दिया है।

इन चिंताओं को दूर करने में बहु-फसल प्रणालियों की भूमिका

  • फसलों का विविधीकरण: बहु-फसली खेती से एक ही फसल पर निर्भरता कम हो सकती है, जिससे मानसून परिवर्तनशीलता और बाजार में उतार-चढ़ाव से जुड़े जोखिम कम हो सकते हैं।
  • बेहतर मृदा स्वास्थ्य और जैव विविधता: यह बेहतर मृदा स्वास्थ्य और जैव विविधता को बढ़ावा देता है, जिससे टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ावा मिलता है।
  • उत्पादकता में वृद्धि: बहु-फसली खेती से समग्र कृषि उत्पादकता और आय में वृद्धि हो सकती है, खासकर छोटे और सीमांत किसानों के लिए।
  • संसाधनों का कुशल उपयोग: पानी और भूमि जैसे उपलब्ध संसाधनों का कुशल उपयोग, विशेष रूप से खंडित भूमि जोतों में लाभकारी साबित हो सकता है।

फसल विविधीकरण की ओर परिवर्तन के लिए नीतिगत उपाय

  • सरकारी सहायता और सब्सिडी: बहु-फसल के लिए उपयुक्त बीज, उर्वरक और उपकरणों के लिए सब्सिडी प्रदान करने वाली नीतियों को लागू करना चाहिए।
  • ऋण तक पहुंच और बीमा योजनाएं: ऋण लेने संबंधी प्रक्रियाओं को सरल बनाकर और सरकारी योजनाओं के कवरेज का विस्तार करके किसानों की ऋण और बीमा तक पहुंच बढ़ाने की आवश्यकता है।
  • प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रम: किसानों को बहु-फसल और टिकाऊ कृषि पद्धतियों के लाभों के बारे में सूचित करने के लिए शैक्षिक कार्यक्रम आयोजित करना चाहिए।
  • अनुसंधान और विकास: बहु-फसलीय और स्थानीय जलवायु चुनौतियों के प्रति प्रतिरोधी फसल किस्मों के विकास के लिए अनुसंधान एवं विकास में निवेश करने की आवश्यकता है।
  • बुनियादी ढांचे का विकास: विविध फसल पैटर्न का समर्थन करने के लिए सिंचाई से जुड़े बुनियादी ढांचे और जल प्रबंधन प्रणालियों में सुधार करना चाहिए।
  • बाजार तक पहुंच और आपूर्ति श्रृंखला में सुधार: विभिन्न फसलों के लिए ठोस आपूर्ति श्रृंखला और बाजार पहुंच विकसित करना, साथ ही यह सुनिश्चित करना कि किसानों को उचित मूल्य मिले।
  • प्रौद्योगिकी का एकीकरण: सटीक खेती, मृदा स्वास्थ्य निगरानी और बहु-फसल प्रणालियों में कुशल संसाधन उपयोग के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने की जरूरत है।

निष्कर्ष:

बहु-फसल प्रणाली की ओर परिवर्तन भारतीय कृषि में मौजूदा चुनौतियों का एक व्यवहार्य समाधान प्रदान कर सकता है। इन नीतिगत उपायों को लागू करने से न केवल कृषि क्षेत्र की लचीलापन और स्थिरता बढ़ेगी बल्कि भारत में लाखों किसानों की आजीविका में भी सुधार होगा।

 

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