उत्तर:
दृष्टिकोण:
- परिचय: भारतीय संविधान की विशिष्टता पर जोर देते हुए ‘बुनियादी संरचना सिद्धांत‘ अवधारणा का परिचय दीजिये।
- मुख्य विषयवस्तु:
- भारतीय संविधान के मूल संरचना सिद्धांत की व्याख्या कीजिये।
- केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामले में इसकी उत्पत्ति का संदर्भ बताइये।
- बुनियादी संरचना सिद्धांत के महत्व पर चर्चा कीजिये।
- बताएं कि सिद्धांत संवैधानिक अखंडता को कैसे बनाए रखता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि मूल सिद्धांतों में बदलाव नहीं किया जा सकता है। 39वें संविधान संशोधन का उदाहरण देते हुए न्यायपालिका और विधायिका के बीच शक्ति संतुलन में इसकी भूमिका पर प्रकाश डालिए।
- इस सिद्धांत के माध्यम से संविधान के आदर्शों के संरक्षण पर जोर दीजिये।
- निष्कर्ष: बदलते परिदृश्यों के बीच नागरिकों के अधिकारों और संविधान के मूल सिद्धांतों की सुरक्षा में इसके महत्व को दोहराते हुए निष्कर्ष निकालिए।
|
परिचय:
‘बुनियादी संरचना सिद्धांत‘ भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रतिपादित एक न्यायिक सिद्धांत है, जो भारतीय संविधान के लोकतांत्रिक आदर्शों को प्रस्तुत करते हैं। इन प्रावधानों को संसद द्वारा संवैधानिक संशोधन के माध्यम से बदला या संक्षिप्त नहीं किया जा सकता है। यह सिद्धांत भारतीय संविधान के लिए अद्वितीय है और इसकी अखंडता और दीर्घायु सुनिश्चित करता है।
मुख्य विषयवस्तु:
बुनियादी संरचना सिद्धांत
- उत्पत्ति:
- इस सिद्धांत को पहली बार 1973 में केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामले के ऐतिहासिक फैसले में सुनाया गया था।
- प्रमुख पहलू:
- न्यायालय ने माना कि यद्यपि संसद के पास अनुच्छेद 368 के तहत संविधान में संशोधन करने की व्यापक शक्तियाँ हैं, लेकिन उसके पास इसकी “बुनियादी संरचना” को नष्ट करने या बदलने की शक्ति नहीं है।
- बुनियादी संरचना सिद्धांत अभी तक अपरिभाषित है:
- यद्यपि न्यायालय ने “बुनियादी संरचना” को परिभाषित नहीं किया है।
- हालांकि पिछले कुछ वर्षों में और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए बाद के फैसलों ने संविधान की कुछ विशेताओं को ‘आधारभूत संरचना’ के रूप में निर्धारित किया है, जैसे:
- संविधान की सर्वोच्चता
- धर्मनिरपेक्ष चरित्र
- लोकतंत्र
- कानून का शासन
- न्यायिक समीक्षा
- संघवाद
- भारत की एकता और संप्रभुता
बुनियादी संरचना सिद्धांत का महत्व:
- मौलिक अधिकारों के संरक्षक:
- बुनियादी संरचना सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि संविधान के भाग III के तहत निहित मौलिक अधिकारों को निरस्त नहीं किया जा सकता है, भले ही संसद, अपनी घटक शक्ति से संविधान में संशोधन कर दे।
- उदाहरण के लिए, इंदिरा नेहरू गांधी बनाम राज नारायण मामले (1975) में, न्यायालय ने प्रधानमंत्री के चुनाव को न्यायिक समीक्षा से छूट देने वाले खंड को रद्द करने के लिए बुनियादी संरचना सिद्धांत को लागू किया।
- संवैधानिक अखंडता बनाए रखना:
- यह सिद्धांत संविधान को बदलने में संसद की बेलगाम शक्ति के खिलाफ एक जाँच के रूप में कार्य करता है, जिससे संविधान की अखंडता बनी रहती है।
- संसद, संविधान में संशोधन की आड़ में, इसके मूल सिद्धांतों को नहीं बदल सकती।
- न्यायपालिका और विधायिका के बीच शक्ति संतुलन:
- यह शक्ति का संतुलन स्थापित करता है जहां न्यायपालिका संशोधनों की समीक्षा करती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे संविधान के मूल आदर्शों पर आघात न करें, जबकि संसद बदलती जरूरतों के अनुसार संविधान को अनुकूलित करने की शक्ति बरकरार रखती है।
- गौरतलब है कि जब 39वें संविधान संशोधन ने राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव को न्यायिक समीक्षा से परे रखने की कोशिश की तो उस वक्त सर्वोच्च न्यायालय ने बुनियादी ढांचे की प्रधानता पर जोर देते हुए इसे रद्द कर दिया।
- संविधान के आदर्शों का संरक्षण:
- अपने मूल सिद्धांतों को संरक्षित करके, सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि जिन आदर्शों जैसे – न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व पर संविधान की स्थापना की गई थी वे अनुल्लंघनीय बने रहें।
निष्कर्ष:
हालांकि संविधान में बुनियादी संरचना सिद्धांत का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं है, लेकिन यह संविधान की आधारशिला बन गया है। नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करके और यह सुनिश्चित करके कि संविधान अपने संस्थापक सिद्धांतों के प्रति सच्चा है, यह सिद्धांत उभरते सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्यों के बीच भारतीय संविधान की पवित्रता और अदम्य भावना को कायम रखता है।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Latest Comments