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Q. भारत में खनिज संसाधनों के वितरण पर चर्चा करें और उन प्रमुख पर्यावरणीय चिंताओं पर प्रकाश डालें जिनसे खनन क्षेत्र अक्सर जूझते हैं। (15 अंक, 250 शब्द)

उत्तर:

प्रश्न का समाधान कैसे करें?

  • भूमिका
    • खनिज संसाधनों को परिभाषित करें। साथ ही, भारत के खनिज संसाधनों के बारे में संक्षेप में लिखें।
  • मुख्य भाग
    • भारत में खनिज संसाधनों का वितरण प्रदान करें।
    • उन प्रमुख पर्यावरणीय चिंताओं पर चर्चा करें जिनसे खनन क्षेत्र जूझ रहे हैं।
  • निष्कर्ष
    • इस संबंध में उचित निष्कर्ष दीजिए।

 

भूमिका

खनिज संसाधन ऐसे प्राकृतिक पदार्थ होते हैं जो भूगर्भ  में पाए जाते हैं एवं  इनका आर्थिक मूल्य होता है तथा जिनका  विभिन्न औद्योगिक और सामाजिक उद्देश्यों, जैसे धात्विक और गैर-धात्विक खनिजों के लिए निष्कर्षण किया जाता   है। भारत के पास समृद्ध खनिज संसाधन हैं, जिसमें 20,000 से अधिक ज्ञात भंडार और 60 से अधिक खनिजों के पुनर्प्राप्त करने योग्य भंडार हैं। हालांकि, खानों का परिचालन अत्यधिक संकेन्द्रित है, जिसमें 11 राज्य (आंध्र प्रदेश, ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, और कर्नाटक) में 90% संचालित खान हैं।

मुख्य भाग

भारत में खनिज संसाधनों का वितरण:

भारत में खनिज संसाधनों के वितरण को तीन प्रमुख खनिज पेटियों (belt ) में वर्गीकृत किया जा सकता है:

  • उत्तर-पूर्वी पठारी क्षेत्र:
    • इस क्षेत्र में झारखंड में छोटा नागपुर, ओडिशा के पठारी क्षेत्र, पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्से और छत्तीसगढ़ का एक हिस्सा शामिल है।
    • यह इस्पात उत्पादन में प्रयुक्त कच्चे माल, जैसे लौह अयस्क, कोयला, मैंगनीज और बॉक्साइट के समृद्ध भंडार के लिए जाना जाता है।
    • इस क्षेत्र में अभ्रक भी प्रचुर मात्रा में है, जो विनिर्माण उद्योग में योगदान देता है।
    • इन खनिजों की उपस्थिति के कारण क्षेत्र में कई इस्पात मिलों की स्थापना हुई है।
  • दक्षिण-पश्चिमी पठारी क्षेत्र:
    • कर्नाटक, गोवा, तमिलनाडु के ऊंचे क्षेत्र एवं केरल राज्य दक्षिण-पश्चिमी पठारी क्षेत्र का हिस्सा  हैं।
    • यह क्षेत्र बॉक्साइट एवं लौह अयस्क और मैंगनीज जैसी लौह धातुओं से समृद्ध है।
    • चूना पत्थर इस क्षेत्र में पाया जाने वाला एक अन्य महत्वपूर्ण खनिज है, जो सीमेंट उत्पादन जैसे उद्योगों में प्रयुक्त होता है।
  • उत्तर-पश्चिमी पठारी क्षेत्र:
    • राजस्थान में अरावली पर्वत और गुजरात के कुछ हिस्से, विशेष रूप से धारवाड़ चट्टानों वाले क्षेत्र, उत्तरी पश्चिमी पठारी क्षेत्र का निर्माण करते हैं।
    • इस क्षेत्र में जस्ता और तांबा जैसी मूल्यवान धातुएँ प्रचुर मात्रा में पाई जाती हैं।
    • राजस्थान बलुआ पत्थर, ग्रेनाइट और संगमरमर के प्रचुर भंडार के लिए जाना जाता है, जो इसे निर्माण परियोजनाओं के लिए एक पसंदीदा स्थान बनाता है।
    • उत्तरी भारत में हिमालय क्षेत्र तांबा, सीसा, जस्ता, कोबाल्ट और टंगस्टन जैसे खनिजों का भी भंडार है।

प्रमुख पर्यावरणीय चिंताएँ जिनसे खनन क्षेत्र जूझ रहे हैं:

  • वनोन्मूलन :खनन कार्यों के कारण अक्सर विस्तृत स्तर पर वनों की कटाई होती है जिसके परिणामस्वरूप खनन गतिविधियों के लिए जंगलों को साफ़ किया जाता है, जो स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित करता है एवं कार्बन अवशोषण  क्षमता को कम करता है। उदाहरण के लिए, छत्तीसगढ़ राज्य में, कोयला खनन के लिए मार्गों का निर्माण करने लिए हरित वनों  के विशाल हिस्से को साफ कर दिया गया है।
  • भूदृश्य क्षति: खनन किसी क्षेत्र की प्राकृतिक स्थलाकृति को बदल देता है, जिससे मृदा अपरदन, प्राकृतिक आवासों का नुकसान और भूदृश्य अवनयन जैसे परिवर्तन होते हैं, जो स्थानीय पर्यावरण और समुदायों को प्रभावित करते हैं।जैसा कि झारखंड के सिंहभूम क्षेत्र में देखा गया  है।
  • वायु प्रदूषण: खनन गतिविधियां वायु में विभिन्न प्रदूषकों, जैसे कि धूल, सूक्ष्मकण , एवं संभावित हानिकारक गैसों , को मुक्त करती हैं, जो वायु  की गुणवत्ता को काफी कम कर देती हैं एवं  खनन क्षेत्रों में मानव और पशु आबादी दोनों के लिए स्वास्थ्य संबंधी जोखिम उत्त्पन्न  करती हैं।जैसा कि झारखंड के झरिया में कोयला खनन कार्यों से स्पष्ट होता  है।
  • जल प्रदूषण : खनन से निकलने वाला जल ,जिसमें विषाक्त रासायनिक तत्व और भारी धातुएं शामिल होती हैं, जो पास के जल स्रोतों में प्रवेश करता  है एवं  भूजल और सतही जल स्रोतों दोनों को दूषित करता है और इस प्रकार, जलीय जीवन के साथ-साथ उन पर निर्भर समुदायों के लिए भी खतरा उत्त्पन्न  करता है। उदाहरण के लिए, केरल के पश्चिमी घाट में एक अध्ययन में खनन गतिविधियों के परिणामस्वरूप जल प्रदूषण और जलीय पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रतिकूल प्रभावों को स्पष्ट किया गया।
  • जैव विविधता की हानि:खनन कार्यों के परिणामस्वरूप अक्सर निवास स्थान का विनाश और विखंडन के साथ देशी वनस्पतियों और जीवों का विस्थापन या विनाश होता है, जिससे प्रभावित क्षेत्रों में जैव विविधता की हानि होती है और संभावित रूप से लुप्तप्राय प्रजातियों पर खतरा उत्त्पन्न होता है ।उदाहरण के लिए, पश्चिमी घाट में, खनन गतिविधियों के कारण कई महत्वपूर्ण वन्यजीव आवासों में ह्यस हुआ है , जिसमें इस क्षेत्र के अद्वितीय मिरिस्टिका दलदल भी शामिल हैं।
  • ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन: खनन गतिविधियाँ मशीनरी और परिवहन के लिए जीवाश्म ईंधन के उपयोग के साथ-साथ कोयला खदानों से मीथेन के निकलने से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करती हैं, जो वैश्विक जलवायु परिवर्तन और इसके संबंधित प्रभावों में योगदान करती हैं। भारत कोयले के खनन से ग्लोबल वायु प्रदूषण में तीसरे स्थान पर है, जिससे वर्ष 2020 में लगभग 22 MtCO2e(Million tonnes of carbon dioxide equivalents ) का अनुमानित उत्सर्जन हुआ और 2050 तक 45 MtCO2e तक पहुंचने का अनुमान है।

निष्कर्ष

भारत के पास विशाल और विविध खनिज संपदा है, जो देश के विशिष्ट क्षेत्रों में केंद्रित है। फिर भी, इन संसाधनों के दोहन से अक्सर पर्यावरण को काफी नुकसान होता है। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो अपने प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र और इसकी बढ़ती अर्थव्यवस्था दोनों के स्थायी कल्याण की रक्षा के लिए जिम्मेदार खनन पद्धतियों , मजबूत नियामक उपायों और सतत  संसाधन प्रबंधन को एकीकृत करता है।

 

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