उत्तर:
दृष्टिकोण:
- भूमिका: भारत में वैवाहिक बलात्कार के मुद्दे का संक्षेप में परिचय दीजिए।
- मुख्य भाग:
- पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण,सोशल स्टिगमा और कानूनी उपायों पर विचार करते हुए भारत में वैवाहिक बलात्कार के पीड़ितों के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
- विवाहित महिलाओं के अधिकारों की रक्षा में मौजूदा कानूनों और सहायता प्रणालियों की पर्याप्तता का मूल्यांकन करें।
- इसके अलावा, पीड़ितों के लिए सहायक वातावरण बनाने हेतु सुधार का सुझाव दें।
- निष्कर्ष: कानूनी सुधार, सहायता प्रणालियों और सामाजिक शिक्षा को मिलाकर एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता पर जोर दीजिए ।
|
भूमिका:
वैवाहिक बलात्कार , विवाह होते हुये भी होने वाली यौन हिंसा का एक रूप है , जो भारत में घटित होती है लेकिन इस समस्या का स्वीकरण बहुत कम है। पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण और सामाजिक मानदंडों में निहित इस अपराध के अंतर्गत पति या पत्नी द्वारा अपने साथी के खिलाफ़ बिना सहमति के यौन क्रियाएँ की जाती हैं। वर्तमान कानूनी व्यवस्था 18 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं के लिए वैवाहिक बलात्कार को अपराध नहीं मानती है , जिससे पीड़ितों के लिए न्याय और सहायता प्राप्त करने में चुनौतियाँ सामने आती हैं।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार भारत में 18-49 वर्ष की आयु की लगभग 30% महिलाओं ने पति द्वारा हिंसा का अनुभव किया है । |
भूमिका:
भारत में वैवाहिक बलात्कार से पीड़ित लोगों के सामने आने वाली चुनौतियाँ:
- पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण
- वैवाहिक बलात्कार को कम गंभीरता से लेना: यह मान्यता कि विवाह का अर्थ यौन संबंधों के लिए अपरिवर्तनीय सहमति है , इस धारणा को बढ़ावा देती है कि वैवाहिक बलात्कार हो ही नहीं सकता।
उदाहरण के लिए: आईपीसी की धारा 375 वयस्क महिलाओं के लिए वैवाहिक बलात्कार को छूट देती है, जो इस मान्यता को पुष्ट करती है।
- पीड़ित को दोषी ठहराना: अक्सर पीड़ितों को ही दोषी ठहराया जाता है, तथा सामाजिक अपेक्षाएं वैवाहिक सामंजस्य का भार महिलाओं पर डाल देती हैं।
उदाहरण के लिए: एनएफएचएस-5 के आंकड़ों से पता चलता है कि लगभग 90% पीड़ित कलंक और सामाजिक प्रतिशोध के डर के कारण रिपोर्ट नहीं करते हैं।
- सोशल स्टिगमा
- चुप्पी और शर्म: पीड़ितों को अक्सर शर्म के कारण चुप रहना पड़ता है, क्योंकि उन्हें अपने समुदाय से न्याय और बहिष्कार का डर रहता है।
- सहायता प्रणालियों का अभाव: मजबूत सामुदायिक सहायता प्रणालियों की अनुपस्थिति पीड़ितों के अकेलेपन को बढ़ाती है।
उदाहरण के लिए : घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत सुरक्षा आदेश जैसे सीमित नागरिक उपाय ही उपलब्ध हैं , जो अक्सर अपर्याप्त होते हैं।
- कानूनी उपाय
- अपर्याप्त कानूनी ढांचा: कानूनी व्यवस्था वर्तमान में वैवाहिक बलात्कार को अपराध के रूप में मान्यता नहीं देती है, जिससे पीड़ितों की न्याय तक पहुँच सीमित हो जाती है। उदाहरण के लिए : एनएफएचएस -5 में बताया गया है कि 6% विवाहित महिलाओं ने बताया कि उनके पति उन्हें शारीरिक रूप से यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करते हैं , जो कानूनी खामियों के बावजूद इस मुद्दे की व्यापकता को दर्शाता है।
- न्यायिक चुनौतियाँ: कानून में अस्पष्टता और इस मुद्दे पर विभाजित निर्णय, पीड़ितों के लिए कानूनी कार्रवाई करना मुश्किल बनाते हैं।
उदाहरण के लिए : कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा वैवाहिक बलात्कार अपवाद को अस्वीकार करने सहित हाल की न्यायिक बहसें स्पष्ट कानूनी परिभाषाओं और सुरक्षा की आवश्यकता को उजागर करती हैं।
मौजूदा कानूनों और सहायता प्रणालियों की पर्याप्तता:
- कानूनी सुरक्षा
- घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005: यह नागरिक उपचार प्रदान करता है, लेकिन वैवाहिक बलात्कार को स्पष्ट रूप से अपराध घोषित करने में विफल रहता है। यह अधिनियम वैवाहिक बलात्कार को घरेलू हिंसा का एक रूप मानता है, लेकिन पर्याप्त दंडात्मक उपाय प्रदान नहीं करता है। यह अधिनियम सुरक्षा आदेश और न्यायिक पृथक्करण की अनुमति देता है, लेकिन वैवाहिक बलात्कार के कृत्य को अपराध घोषित नहीं करता है, जिससे इसका निवारक प्रभाव सीमित हो जाता है।
- दहेज निषेध अधिनियम, 1961: यह दहेज देने और लेने दोनों पर रोक लगाता है, तथा इस प्रथा में शामिल व्यक्तियों पर दंड लगता है । हालाँकि यह कानून विवाहित होते हुए वित्तीय शोषण को लक्षित करता है , लेकिन यह यौन हिंसा की समस्या को संबोधित करने में विफल रहता है, जिससे वैवाहिक बलात्कार के पीड़ितों के लिए सुरक्षा में कमी आती है।
- भारतीय दंड संहिता की धारा 498A: पतियों और उनके रिश्तेदारों द्वारा शारीरिक और मानसिक शोषण सहित क्रूरता को अपराध मानती है। यह धारा प्रताड़ित महिलाओं के लिए कुछ कानूनी उपाय प्रदान करती है, लेकिन यह वैवाहिक बलात्कार को स्पष्ट रूप से कवर नहीं करती है, जिसके लिए इसे एक अलग अपराध के रूप में मान्यता देने की आवश्यकता होती है।
- न्यायिक मिसालें: कुछ अदालती फैसलों ने इस मुद्दे को संबोधित करने का प्रयास किया है, लेकिन व्यापक कानूनी सुधार का अभाव है ।
उदाहरण के लिए : संबंधित मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट के चल रहे विचार और पिछले उच्च न्यायालय के फैसले अपराध को पहचानने की दिशा में संभावित बदलाव दिखाते हैं।
- समर्थन प्रणालियाँ:
- परिवार की भूमिका: परिवार के सदस्य पीड़ितों को महत्वपूर्ण भावनात्मक समर्थन और व्यावहारिक सहायता प्रदान कर सकते हैं। हालाँकि, पितृसत्तात्मक व्यवस्था में, परिवार का समर्थन सामाजिक मानदंडों के कारण कम हो सकता है जो पीड़ित को कलंकित करते हैं।
उदाहरण के लिए : परिवारजन,पीड़ितों पर चुप रहने या दुर्व्यवहार करने वाले के साथ समझौता करने का दबाव डाल सकते हैं , जिससे सहायता प्रणाली कमज़ोर हो जाती है।
- दोस्तों की भूमिका: दोस्त पीड़ितों को अपने अनुभव साझा करने और मदद मांगने के लिए एक सुरक्षित स्थान प्रदान कर सकते हैं । उनका समर्थन महत्वपूर्ण हो सकता है लेकिन सामाजिक मानदंडों को चुनौती देने की उनकी समझ और इच्छा के कारण यह सीमित हो सकता है।
- परामर्श चैनल: पेशेवर परामर्श तक पहुँच पीड़ितों को आघात से निपटने और उनके कानूनी एवं व्यक्तिगत विकल्पों को समझने में मदद कर सकती है। हालाँकि, परामर्श सेवाओं की उपलब्धता और प्रभावशीलता सीमित है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में। परामर्श सेवाओं को अक्सर कम धन और कम कर्मचारी मिलते हैं, जिससे पीड़ितों को अपर्याप्त सहायता मिलती है।
- एनजीओ और वकालत समूह: एनजीओ और वकालत समूह जागरूकता बढ़ाने , सहायता सेवाएँ प्रदान करने और कानूनी सुधारों की वकालत करने के लिए काम करते हैं । ये संगठन महत्वपूर्ण हैं, लेकिन अक्सर राज्य से धन और मान्यता की चुनौतियों का सामना करते हैं।
केस स्टडीज:
- ऋषिकेश साहू मामला
- कानूनी चुनौती: श्री ऋषिकेश साहू ने आरोपों को खारिज करने के लिए वैवाहिक बलात्कार अपवाद का हवाला दिया, लेकिन कर्नाटक उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए इस याचिका को खारिज कर दिया कि अपवाद प्रतिगामी है और समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है।
- सर्वोच्च न्यायालय की भागीदारी: सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के निर्णय पर रोक लगा दी है, लेकिन यह मामला इस मुद्दे पर न्यायिक स्पष्टता की आवश्यकता को उजागर करता है।
- आरआईटी फाउंडेशन और दिल्ली उच्च न्यायालय
- विभाजित निर्णय: दिल्ली उच्च न्यायालय ने वैवाहिक बलात्कार अपवाद की संवैधानिकता पर विभाजित निर्णय दिया, जिससे न्यायिक असंगति और सर्वोच्च न्यायालय से निर्णायक निर्णय की आवश्यकता स्पष्ट हो गई।
|
बचे लोगों के लिए सहायक वातावरण बनाने हेतु सुधार:
- कानूनी सुधार
- वैवाहिक बलात्कार का अपराधीकरण: भारत में वैवाहिक बलात्कार पर चर्चा को प्रोत्साहित करने और इस मुद्दे पर गहराई से चर्चा करने तथा आईपीसी में संशोधन की सिफारिश करने के लिए एक समिति गठित करने की आवश्यकता है।
उदाहरण के लिए : अमेरिका, ब्रिटेन तथा अन्य देशों जैसे अंतर्राष्ट्रीय उदाहरणों का अनुसरण करना , जहां वैवाहिक बलात्कार को मान्यता दी गई है तथा दण्डित किया गया है।
- स्पष्ट न्यायिक दिशानिर्देश: पीड़ितों को सहायता प्रदान करने तथा कानून का सुसंगत अनुप्रयोग सुनिश्चित करने के लिए स्पष्ट न्यायिक दिशानिर्देश स्थापित करें।
- सहायता प्रणालियों को मजबूत बनाना
- उन्नत सहायता सेवाएँ: वैवाहिक बलात्कार के पीड़ितों के लिए विशेष रूप से
परामर्श, कानूनी सहायता और आश्रय सहित व्यापक सहायता सेवाएँ विकसित करें । उदाहरण के लिए : समर्पित हॉटलाइन और सहायता केंद्रों को लागू करने से तत्काल और निरंतर सहायता मिल सकती है।
- सामुदायिक शिक्षा कार्यक्रम: वैवाहिक बलात्कार से जुड़े सामाजिक दृष्टिकोण को बदलने और कलंक को कम करने के लिए व्यापक शैक्षिक अभियान शुरू करें ।
निष्कर्ष:
भारत में वैवाहिक बलात्कार के मुद्दे को संबोधित करने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें कानूनी सुधार, मजबूत समर्थन प्रणाली और सामाजिक शिक्षा का संयोजन शामिल है। वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करके और पीड़ितों को मजबूत समर्थन प्रदान करके, भारत सभी महिलाओं के लिए न्याय और समानता सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा सकता है, जिससे एक ऐसे समाज का मार्ग प्रशस्त होगा जो प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा और अधिकारों को बनाए रखता है।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Latest Comments