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Q. धर्मनिरपेक्षता की भारतीय अवधारणा, धर्मनिरपेक्षता के पश्चिमी मॉडल से किस प्रकार भिन्न है? चर्चा कीजिए।   (150 शब्द, 10 अंक)

उत्तर:

दृष्टिकोण:

  • भूमिका: भारतीय और पश्चिमी दोनों संदर्भों में धर्मनिरपेक्षता को परिभाषित कीजिए।
  • मुख्याग:
    • चर्चा कीजिए कि धर्मनिरपेक्षता की भारतीय अवधारणा, पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता मॉडल से किस प्रकार भिन्न है।
    • प्रासंगिक उदाहरण अवश्य प्रदान कीजिए।
  • निष्कर्ष: समावेशी नीतियों और सांप्रदायिक तनावों के समाधान के माध्यम से भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को बढ़ाने के लिए भविष्य के प्रयासों का प्रस्ताव कीजिए।

 

भूमिका:

धर्मनिरपेक्षता, धर्म को राज्य से अलग करने को बढ़ावा देती है । भारतीय संदर्भ में , धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है सभी धर्मों के लिए समान सम्मान, जिसमें राज्य धार्मिक सद्भाव सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय रूप से हस्तक्षेप करता है। उदाहरण के लिए, भारत आधिकारिक तौर पर विभिन्न धार्मिक त्योहार मनाता है। इसके विपरीत, पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता , जैसे कि फ्रांस में, धर्म और राज्य के बीच सख्त अलगाव  है , यह सुनिश्चित करते हुए कि राज्य सभी धर्मों के प्रति तटस्थ रहे , जिसका उदाहरण फ्रांस में सार्वजनिक संस्थानों में धार्मिक प्रतीकों पर प्रतिबंध है।

मुख्याग:

धर्मनिरपेक्षता की भारतीय और पश्चिमी अवधारणा के बीच अंतर

  • परिभाषा और दर्शन:
    • भारतीय धर्मनिरपेक्षता: धर्मनिरपेक्षता सभी के लिए समान सम्मान और समर्थन पर जोर देती है । राज्य सक्रिय रूप से विभिन्न धार्मिक प्रथाओं का समर्थन करता है।
      उदाहरण के लिए: भारत द्वारा हज सब्सिडी (2018 में बंद) और कैलाश मानसरोवर यात्रा जैसी तीर्थयात्राओं के लिए धन मुहैया कराया जाना ।
    • पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता: राज्य की तटस्थता सुनिश्चित करते हुए, धर्म और राज्य के बीच सख्त अलगाव की वकालत करता है ।
      उदाहरण के लिए: अमेरिका का पहला संशोधन , जो सरकार द्वारा धर्म की स्थापना पर रोक लगाता है।
  • ऐतिहासिक संदर्भ:
    • भारतीय संदर्भ: धार्मिक सहिष्णुता की ऐतिहासिक प्रथाओं से प्रभावित, विविध धार्मिक समुदायों वाले बहुलवादी समाज को प्रबंधित करने की आवश्यकता से उभरा। उदाहरण के लिए: सम्राट अशोक के धार्मिक सद्भाव और सह-अस्तित्व को बढ़ावा देने वाले शिलालेख।
    • पश्चिमी संदर्भ: ज्ञानोदय में निहित , राज्य के मामलों पर
      धार्मिक प्रभुत्व के खिलाफ़ प्रतिक्रिया । उदाहरण के लिए: फ्रांसीसी क्रांति , जिसने राज्य पर चर्च के प्रभाव के जवाब में धर्मनिरपेक्षता की स्थापना की।
  • राज्य की भूमिका:
    • भारतीय मॉडल: राज्य ,समानता सुनिश्चित करने और भेदभाव को रोकने के लिए
      धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप कर सकता है । उदाहरण के लिए: हिंदू विवाह अधिनियम, 1955, जिसने हिंदू व्यक्तिगत कानूनों में सुधार किया।
    • पश्चिमी मॉडल: राज्य आम तौर पर धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने से बचता है और एक स्पष्ट सीमा बनाए रखता है।
      उदाहरण के लिए: सार्वजनिक स्कूलों में चर्च और राज्य के पृथक्करण पर अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट का फैसला।
  • कानूनी ढांचा:
    • भारतीय संविधान: अनुच्छेद 25-28 धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं , जबकि धार्मिक प्रथाओं के धर्मनिरपेक्ष पहलुओं में
      राज्य के हस्तक्षेप की अनुमति देते हैं । उदाहरण के लिए: राज्य द्वारा मंदिर के वित्त का विनियमन
    • पश्चिमी संविधान: धर्म की स्थापना पर रोक लगाता है और धर्म के मुक्त अभ्यास की रक्षा करता है।
      उदाहरण के लिए: चर्च और राज्य के पृथक्करण पर 1905 का फ्रांसीसी कानून , जो राज्य की तटस्थता पर जोर देता है।
  • सामजिक एकता:
    • भारतीय धर्मनिरपेक्षता: सार्वजनिक क्षेत्र में
      धार्मिक विविधता को समायोजित करके सामाजिक एकीकरण का लक्ष्य रखती है । उदाहरण के लिए: दिवाली, ईद और क्रिसमस जैसे विभिन्न धार्मिक त्योहारों के लिए सार्वजनिक अवकाश ।
    • पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता: सार्वजनिक क्षेत्र में
      धार्मिक पहचान को कम करके सामाजिक सामंजस्य की कोशिश करती है । उदाहरण के लिए: फ्रांस में सार्वजनिक स्कूलों में धार्मिक प्रतीकों को पहनने पर प्रतिबंध (2004 का कानून)।
  • कार्यान्वयन और चुनौतियाँ:
    • भारतीय परिदृश्य: सांप्रदायिकता और धर्म के राजनीतिकरण जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है । उदाहरण के लिए: 2002 में गुजरात में हुए सांप्रदायिक दंगों ने भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने की कमज़ोरियों को उजागर किया।
    • पश्चिमी परिदृश्य: धर्मनिरपेक्ष असहिष्णुता और धार्मिक स्वतंत्रता पर बहस जैसे मुद्दों से निपटता है । उदाहरण के लिए: बुर्किनी प्रतिबंध पर विवाद फ्रांस में धर्मनिरपेक्षता और धार्मिक अभिव्यक्ति के बीच चल रहे तनाव को दर्शाता है।

निष्कर्ष:

भारतीय धर्मनिरपेक्षता समान सम्मान और कभी-कभी राज्य के मध्यक्षेप को बढ़ावा देकर धार्मिक विविधता का अनोखे ढंग से प्रबंधन करती है, जो पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता के धर्म और राज्य के सख्त पृथक्करण के विपरीत है। भारत में भविष्य के प्रयासों को समावेशी नीतियों को बढ़ावा देने और सांप्रदायिक तनावों को दूर करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए ताकि इसके धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को मजबूत किया जा सके और सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व सुनिश्चित किया जा सके ।

 

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