Q. उन विभिन्न रणनीतियों पर चर्चा कीजिए जिन्हें भारत बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर उत्पन्न करने हेतु अपना सकता है। संभावित चुनौतियों का विश्लेषण कीजिए एवं उन्हें दूर करने के नीतिगत उपाय सुझाएं। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य मांग:

  • व्यापक पैमाने पर रोज़गार के अवसर पैदा करने के लिए भारत द्वारा अपनाई जा सकने वाली विभिन्न रणनीतियों पर चर्चा करें।
  • इस संबंध में संभावित चुनौतियों का विश्लेषण करें।
  • इनसे निपटने के लिए नीतिगत उपाय सुझाएँ।

 

Answer:

हर वर्ष 12 मिलियन से ज़्यादा लोग नौकरी के लिए आवेदन करते हैं, ऐसे में भारत में स्थायी रोज़गार समाधान की ज़रूरत सबसे ज़्यादा है। 2 लाख करोड़ रुपये के रोज़गार पैकेज जैसी सरकार की पहलों का लक्ष्य लाखों नौकरियाँ पैदा करना है, फिर भी ‘कम मज़दूरी’ और ‘कौशल में कमी’ जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं।

व्यापक रोजगार अवसर सृजित करने की रणनीतियाँ:

  • बुनियादी ढांचे के विकास में निवेश: बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचा से जुड़ी परियोजनाएं महत्वपूर्ण रोजगार पैदा कर सकती हैं, खासकर निर्माण और संबंधित क्षेत्रों में। उदाहरण के लिए: MoRT&H के अनुसार, भारतमाला परियोजना का लक्ष्य सड़क निर्माण, कनेक्टिविटी में सुधार और देश भर में आर्थिक गतिविधि के माध्यम से 22 मिलियन नौकरियां सृजित करना है।
  • मेक इन इंडियाके माध्यम से विनिर्माण को बढ़ावा देना: बड़े कार्यबल को अवशोषित करने के लिए विनिर्माण क्षेत्र का विस्तार करना महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए: MoL&E के अनुसार उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजना से इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स और टेक्सटाइल में विनिर्माण को बढ़ावा देकर 60 लाख नौकरियां पैदा होने की उम्मीद है।
  • MSME क्षेत्र को मजबूती: सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, जो रोजगार का सबसे बड़ा स्रोत है। उदाहरण के लिए: प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY) ने अपनी स्थापना के बाद से 20 लाख करोड़ रुपये के ऋण वितरित किए हैं, उद्यमशीलता को बढ़ावा दिया है और 2 करोड़ से अधिक नौकरियां पैदा की हैं।
  • कृषि और संबद्ध क्षेत्र में वृद्धि: कृषि प्रसंस्करण और ग्रामीण उद्यमों में निवेश से ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार पैदा हो सकते हैं। उदाहरण के लिए: पीएम-किसान संपदा योजना का लक्ष्य खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को बढ़ाकर और कृषि अपव्यय को कम करके 5 लाख से अधिक रोजगार सृजित करना है।
  • डिजिटल और सेवा क्षेत्र का विस्तार: IT और सेवा क्षेत्र में रोजगार सृजन की अपार संभावनाएं हैं, खासकर डिजिटल परिवर्तन के साथ। उदाहरण के लिए: डिजिटल इंडिया पहल से वर्ष 2025 तक MeitY के अनुसार IT सेवाओं, डिजिटल भुगतान समाधान और ई-गवर्नेंस के माध्यम से 1 करोड़ रोजगार सृजित होने की उम्मीद है।

चुनौतियों पर काबू पाने के लिए नीतिगत उपाय:

  • उद्योग-अकादमिक संबंध: उद्योग की जरूरतों के अनुरूप कौशल विकास कार्यक्रम तैयार करना और रोजगार क्षमता बढ़ाना। उदाहरण के लिए: कौशल भारत मिशन प्रासंगिकता और नौकरी की तत्परता सुनिश्चित करने के लिए उद्योग निकायों के सहयोग से क्षेत्र-विशिष्ट प्रशिक्षण कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे में सुधार: उद्योगों को आकर्षित करने और रोजगार सृजित करने के लिए ग्रामीण बुनियादी ढांचे में निवेश कुया जा रहा है। उदाहरण के लिए: पीएम ग्राम सड़क योजना का उद्देश्य ग्रामीण सड़क संपर्क में सुधार करना, वस्तुओं की आवाजाही को सुविधाजनक बनाना और स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा देना है।
  • नियामक ढांचे का सरलीकरण: उद्यमशीलता और रोजगार सृजन को प्रोत्साहित करने के लिए व्यावसायिक विनियमन और श्रम कानूनों को कारगर बनाने की दिशा में प्रयास किया जा रहा है। उदाहरण के लिए: 2020 में श्रम संहिताओं की शुरूआत श्रम कानूनों को सरल और आधुनिक बनाने, औपचारिक रोजगार और औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने का प्रयास करती है।
  • संतुलित क्षेत्रीय विकास: असमानताओं को दूर करने और समावेशी विकास को बढ़ावा देने के लिए क्षेत्रीय विकास रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। उदाहरण के लिए: उत्तर-पूर्व औद्योगिक विकास योजना (NEIDS) पूर्वोत्तर राज्यों में व्यवसायों को वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करती है, इन अविकसित क्षेत्रों में औद्योगीकरण और रोजगार सृजन को बढ़ावा देती है।
  • सतत औद्योगिक प्रथाओं को बढ़ावा: उद्योगों को पर्यावरण की दृष्टि से सतत प्रथाओं को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, ताकि पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बिना दीर्घकालिक रोज़गार सृजन सुनिश्चित किया जा सके। उदाहरण के लिए: जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) हरित प्रौद्योगिकियों और उद्योगों को बढ़ावा देती है, जिसका लक्ष्य नवीकरणीय ऊर्जा और सतत विकास क्षेत्रों में रोज़गार सृजन करना है।

बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन की दिशा में भारत की यात्रा के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जो आर्थिक विकास को कौशल विकास, बुनियादी ढांचे में निवेश और पर्यावरणीय स्थिरता के साथ संतुलित करता है। क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करके, सम्बंधित विनियमों को सरल बनाकर और डिजिटल और हरित अर्थव्यवस्थाओं जैसे अभिनव क्षेत्रों को बढ़ावा देकर, भारत एक मजबूत और समावेशी नौकरी आधारित बाजार बना सकता है, जिससे आने वाले वर्षों में अपने बढ़ते कार्यबल के लिए समृद्धि सुनिश्चित हो सके।

 

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