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Q. फर्जी खबरों के खिलाफ संघर्ष में, गलत सूचना का मुकाबला करने और मुक्त भाषण एवं अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार की सुरक्षा के बीच संतुलन कैसे हासिल किया जा सकता है? (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • फर्जी खबरों (फेक न्यूज) के संदर्भ में गलत सूचना से मुकाबला करने और वाक् स्वतंत्रता एवं अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार की सुरक्षा के बीच संतुलन हासिल करने में आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
  • चर्चा कीजिए कि गलत सूचना से मुकाबला करने और वाक् स्वतंत्रता अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार की सुरक्षा के बीच संतुलन कैसे प्राप्त किया जा सकता है।

 

उत्तर:

डिजिटल युग में फर्जी खबरें (फेक न्यूज) एक बड़ी चुनौती बनकर उभरी हैं, जिसमें जनता को गुमराह करने और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को बाधित करने की क्षमता है। हालाँकि, गलत सूचना को संबोधित करने में, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत गारंटीकृत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को संतुलित करना आवश्यक है। चुनौती नागरिकों के असहमति व्यक्त करने या राय व्यक्त करने के अधिकार का उल्लंघन किए बिना गलत सूचना का मुकाबला करने में है अर्थात् यह सुनिश्चित करने में है कि नियामक उपाय वैध भाषण का दमन न करें।

गलत सूचना की समस्या का मुकाबला करने और वाक् स्वतंत्रता की सुरक्षा के बीच संतुलन हासिल करने में चुनौतियाँ

  • परिभाषाओं में अस्पष्टता: “फर्जी समाचार” या “भ्रामक सूचना” जैसे शब्दों के लिए स्पष्ट परिभाषाओं का अभाव कानूनी अस्पष्टता उत्पन्न करता है, जिससे वाक् स्वतंत्रता संबंधी अधिकारों का उल्लंघन किए बिना सामग्री को विनियमित करना मुश्किल हो जाता है।
  • सरकारी अतिक्रमण की संभावना: गलत सूचना से निपटने के उद्देश्य से किए गए विनियामक उपाय अक्सर सरकारी अतिक्रमण का कारण बन  जाते हैं, जहाँ अधिकारी फर्जी खबरों (फेक न्यूज) पर अंकुश लगाने के परिप्रेक्ष्य में असहमति की मुद्दों को दबा सकते हैं।
  • स्व-सेंसरशिप: अस्पष्ट विनियमन और कानूनी कार्रवाई के डर से व्यक्तियों में स्व-सेंसरशिप की प्रवृत्ति उत्पन्न हो सकती है विशेष रूप से मीडिया, राजनीतिक व्यंग्य या सक्रियता में, जिससे रचनात्मकता और खुले विचार-विमर्श पर असर पड़ता है। उदाहरण के लिए: व्यंग्यकार और हास्य कलाकार अस्पष्ट कानूनों के तहत नतीजों के डर से सरकारी नीतियों पर टिप्पणी करने से बच सकते हैं।
  • डिजिटल प्लेटफॉर्म पर प्रभाव: डिजिटल प्लेटफॉर्म पर कानूनी समस्याओं से बचने के लिए पहले से ही सामग्री हटाने का दबाव हो सकता है भले ही सामग्री किसी कानून का उल्लंघन न करती हो, जिससे ऑनलाइन उपलब्ध राय की विविधता प्रभावित हो सकती है। उदाहरण के लिए: ट्विटर और फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म अपनी ‘सेफ हॉर्बर’ सुरक्षा खो सकते हैं , जो उन्हें उपयोगकर्ता-जनित सामग्री के प्रति उत्तरदायित्व से बचाती है।
  • राय और तथ्य के बीच अंतर करने में कठिनाई: वाक्‌ स्वतंत्रता ,व्यक्तियों को राय व्यक्त करने की अनुमति प्रदान करती है जो सदैव सत्यापित तथ्यों के साथ संरेखित नहीं हो सकता है, जिससे गलत सूचना और व्यक्तिगत अभिव्यक्ति के बीच अंतर करना मुश्किल हो जाता है
  • खोजी पत्रकारिता पर नकारात्मक प्रभाव: गलत सूचना पर नियामक नियंत्रण ,अनजाने में खोजी पत्रकारिता को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है जिसमें अक्सर शक्तिशाली संस्थाओं के संबंध में असुविधाजनक सच्चाइयों को उजागर करना शामिल होता है।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ वाक् स्वतंत्रता को संतुलित करना: हालाँकि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े खतरों को रोकने के लिए फर्जी खबरों (फेक न्यूज) पर अंकुश लगाना आवश्यक है परंतु अति उत्साही दृष्टिकोण वाक् स्वतंत्रता सहित नागरिक स्वतंत्रता को कमजोर कर सकता है।

गलत सूचना का मुकाबला करने और वाक् स्वतंत्रता की सुरक्षा के बीच संतुलन कैसे प्राप्त किया जा सकता है:

  • स्पष्ट कानूनी परिभाषाएँ: कानून में स्पष्ट और विशिष्ट परिभाषाएँ होनी चाहिए कि फर्जी ख़बरें क्या होती हैं जो जानबूझकर फैलाई गई गलत सूचना और वैध राय के बीच अंतर स्पष्ट करना। उदाहरण के लिए: भारत यूरोपीय संघ के डिजिटल सेवा अधिनियम के समान एक रूपरेखा अपना सकता है, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन किये बिना स्पष्ट रूप से अवैध सामग्री को रेखांकित करता है।
  • स्वतंत्र तथ्य-जाँच तंत्र: सामग्री की तथ्य-जाँच के लिए स्वतंत्र, गैर-सरकारी निकायों की स्थापना से सरकारी पूर्वाग्रह का जोखिम कम हो सकता है और पारदर्शिता सुनिश्चित हो सकती है।
  • आनुपातिक विनियमन: विनियामक कार्रवाई आनुपातिक होनी चाहिए और इसका परिणाम व्यापक प्रतिबंध या सामग्री को हटाना नहीं होना चाहिए। जवाबदेही और स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है।
  • न्यायिक निगरानी: सामग्री हटाने के अनुरोधों के लिए न्यायिक निगरानी सुनिश्चित करने से मनमाने निर्णयों को रोकने में मदद मिलती है और व्यक्तियों के स्वतंत्र अभिव्यक्ति के अधिकारों की रक्षा होती है।
  • मीडिया साक्षरता को बढ़ावा देना: गलत सूचना का दीर्घकालिक समाधान मीडिया साक्षरता में सुधार करने में निहित है, जिससे जनता को स्वतंत्र रूप से समाचार स्रोतों और सूचना का आलोचनात्मक मूल्यांकन करने में सक्षम बनाया जा सके।
    उदाहरण के लिए: डिजिटल इंडिया जैसे सरकारी कार्यक्रमों को मीडिया साक्षरता अभियान में शामिल किया जा सकता है, जिससे नागरिकों को फर्जी खबरों (फेक न्यूज) की पहचान करने और उनसे बचने का तरीका सिखाया जा सके।
  • सामग्री हटाने में पारदर्शिता: प्लेटफार्मों और नियामक निकायों को इस संदर्भ में पारदर्शी होना चाहिए कि सामग्री को क्यों चिह्नित या हटाया गया है, तथा जनता का विश्वास बनाने के लिए स्पष्ट कारण बताए जाने चाहिए।
  • हानिकारक गलत सूचना और हानिरहित झूठ के बीच अंतर: कानून को हानिकारक गलत सूचना (जैसे, फर्जी चिकित्सा सलाह) पर अंकुश लगाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जबकि हानिरहित झूठ या राय को वाक् स्वतंत्रता के तहत संरक्षित रहने की अनुमति दी जानी चाहिए।

फर्जी खबरों (फेक न्यूज) के खिलाफ लड़ाई में, गलत सूचना की समस्या का मुकाबला करना और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की रक्षा के बीच संतुलन हासिल करना, लोकतांत्रिक मूल्यों को संरक्षित करने के लिए आवश्यक है। पारदर्शी तथा  सुपरिभाषित नियम जो सरकारी अतिक्रमण का कारण न बनें, मीडिया साक्षरता और न्यायिक निगरानी के साथ मिलकर राष्ट्रीय सुरक्षा और नागरिक स्वतंत्रता दोनों की रक्षा कर सकते हैं । यह संतुलित दृष्टिकोण यह सुनिश्चित करेगा कि गलत सूचना की समस्या का मुकाबला करने के साथ-साथ भारत के डिजिटल युग में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी बनी रहे।

 

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