Q. "भारत में कृषि की सफलता का एकमात्र संकेतक उपज नहीं हो सकता।" इस कथन के आलोक में, चर्चा कीजिए कि केवल उपज पर ध्यान केंद्रित करने से मृदा स्वास्थ्य कैसे कमजोर हो सकता है। कृषि प्रदर्शन की अधिक समग्र समझ का आकलन करने के लिए कुछ बेहतर संकेतक सुझाएँ। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • इस बात पर प्रकाश डालियें, कि उपज भारत में कृषि सफलता का एकमात्र संकेतक नहीं हो सकती है। 
  • चर्चा कीजिए कि केवल उपज पर ध्यान केंद्रित करने से मृदा  स्वास्थ्य कैसे ख़राब हो सकता है। 
  • कृषि प्रदर्शन की अधिक समग्र समझ का आकलन करने के लिए कुछ बेहतर संकेतक सुझाएं।

उत्तर

भारत की कृषि सफलता को अक्सर प्रति हेक्टेयर उपज से मापा जाता है, यह एक ऐसा पैमाना है जो बढ़ती आबादी के लिए खाद्यान्न पर्याप्तता सुनिश्चित करने के लिए हरित क्रांति के दौरान केंद्रीय  पैमाना बन गया। हालाँकि, वर्ष 2023-24 में खाद्य उत्पादन 332 मिलियन टन को पार कर गया, इसलिए ध्यान अधिक सतत परिणामों पर चला गया है। अब विशेषज्ञों का तर्क है कि अकेले खाद्यान्न  उपज पोषण सुरक्षा, पर्यावरणीय स्थिरता और किसानों की भलाई की विविध आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकती है।

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भारत में खाद्यान्न उपज कृषि की सफलता का एकमात्र संकेतक क्यों नहीं हो सकती

  • पोषण गुणवत्ता की उपेक्षा: उच्च पैदावार अक्सर पोषण घनत्व की कीमत पर आती है, जिससे मुख्य फसलों में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी हो जाती है।
    • उदाहरण के लिए: ICAR ने पाया कि अधिक उपज देने वाली चावल की किस्मों में जिंक एवं आयरन की मात्रा में क्रमशः 33% तथा 27% की गिरावट आई है, जिससे प्रच्छन्न भुखमरी के बारे में चिंता बढ़ गई है।
  • इनपुट लागत में वृद्धि: अधिक पैदावार की चाहत में अधिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों की आवश्यकता होती है, जिससे किसानों के लिए आनुपातिक आय लाभ के बिना उत्पादन लागत बढ़ जाती है।
  • पर्यावरणीय क्षरण: पैदावार को अधिकतम करने के लिए गहन खेती से मृदा की गुणवत्ता ख़राब हो सकती है एवं जल की उपलब्धता कम हो सकती है, जिससे कृषि कम सतत हो सकती है।
    • उदाहरण के लिए: केंद्रीय भूजल बोर्ड ने कहा कि पंजाब एवं हरियाणा जैसे राज्यों में उच्च उपज वाले चावल तथा गेहूं की मोनोक्रॉपिंग के कारण भूजल की गंभीर कमी का सामना करना पड़ता है।
  • जैव विविधता का नुकसान: कुछ अधिक उपज देने वाली किस्मों पर जोर देने से पारंपरिक फसलों का नुकसान हुआ है, जिससे कृषि लचीलापन कम हो गया है।
    • उदाहरण के लिए: हरित क्रांति के बाद से भारत में  लगभग 104,000 चावल की किस्में समाप्त हो गई हैं, जिससे सूखे एवं बाढ़ के प्रति क्षेत्र-विशिष्ट लचीलापन कम हो गया है।
  • किसानों के लिए आर्थिक व्यवहार्यता में कमी: अतिरिक्त उपज पर सीमांत रिटर्न अक्सर उच्च निवेश को उचित नहीं ठहराता है, जिससे किसानों की लाभप्रदता प्रभावित होती है।
  • फसल विविधता पर प्रभाव: उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करने से मोनोकल्चर प्रथाओं को बढ़ावा मिला है, जिससे भारतीय आहार में पोषक तत्वों से भरपूर फसलों की विविधता कम हो गई है।
    • उदाहरण के लिए: बाजरा जैसे मोटे अनाज का क्षेत्रफल वर्ष 1950 के दशक के बाद से 10 मिलियन हेक्टेयर कम हो गया है, भले ही ये फसलें अधिक जलवायु-लचीली एवं पोषक तत्वों से भरपूर हैं।
  • अल्पकालिक लाभ, दीर्घकालिक जोखिम: उपज-उन्मुख खेती दीर्घकालिक मृदा के स्वास्थ्य पर अल्पकालिक उत्पादन को प्राथमिकता देती है, जिससे समय के साथ उत्पादकता में गिरावट आती है।
    • उदाहरण के लिए: NITI आयोग इस बात पर प्रकाश डालता है, कि रासायनिक तत्वों  के अत्यधिक उपयोग एवं मृदा क्षरण के कारण कई क्षेत्रों में भारत की कृषि उत्पादकता स्थिर हो गई है।

उपज पर विशेष ध्यान देने से मृदा स्वास्थ्य कैसे ख़राब हो सकता है:

  • गहन खेती से मिट्टी का क्षरण: अधिकतम पैदावार के लिए लगातार उच्च तीव्रता वाली खेती से मिट्टी का क्षरण हो सकता है, जिससे ऊपरी मिट्टी की उर्वरता कम हो सकती है।
    • उदाहरण के लिए: ICAR का अनुमान है कि भारत में अस्थिर कृषि पद्धतियों के कारण प्रतिवर्ष 5.3 बिलियन टन मिट्टी नष्ट हो जाती है।
  • मृदा  में कार्बनिक पदार्थ की कमी: उच्च उपज वाली कृषि  के परिणामस्वरूप अक्सर मृदा  में कार्बनिक पदार्थ कम हो जाते हैं, जिससे इसकी संरचना एवं नमी बनाए रखने पर असर पड़ता है।
    • उदाहरण के लिए: किसानों को जारी किए गए मृदा स्वास्थ्य कार्ड से मृदा  में जैविक कार्बन के स्तर में गिरावट का पता चलता है, खासकर पंजाब जैसे क्षेत्रों में, जहां गहन मोनोक्रॉपिंग प्रचलित है।
  • रासायनिक उर्वरकों से मृदा लवणता में वृद्धि: उपज बढ़ाने के लिए रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से मृदा में लवणता में वृद्धि हो सकती है, जिससे समय के साथ भूमि कम उपजाऊ हो जाती है।
    • उदाहरण के लिए: ICAR ने बताया कि लगभग 6.7 मिलियन हेक्टेयर भारतीय भूमि लवणता से प्रभावित है, जिससे कृषि उत्पादकता कम हो गई है।
  • रासायनिक उपयोग के कारण माइक्रोबियल असंतुलन: कीटनाशकों एवं उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग मिट्टी में प्राकृतिक माइक्रोबियल संतुलन को बाधित करता है, जिससे इसकी दीर्घकालिक उर्वरता प्रभावित होती है।
  • अधिक सिंचाई से संघनन: अधिक पैदावार के लिए अक्सर बार-बार सिंचाई की आवश्यकता होती है, जिससे मृदा  संकुचित हो जाती है, जिससे जड़ के विकास एवं जल के प्रवेश में बाधा आती है।
  • मोनोक्रॉपिंग से पोषक तत्वों का असंतुलन: उपज को अधिकतम करने के लिए एक ही फसल को बार-बार उगाने से मृदा में पोषक तत्वों का असंतुलन हो जाता है, जिससे अधिक रासायनिक इनपुट की आवश्यकता होती है।
    • उदाहरण के लिए, मृदा स्वास्थ्य मिशन की रिपोर्ट है, कि उत्तरी भारत में धान-गेहूं चक्र के कारण फास्फोरस एवं पोटेशियम की कमी हो गई है, जिससे मृदा के स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है।
  • मृदा जल-धारण क्षमता में गिरावट: उपज-अधिकतम करने की प्रथाएँ मृदा में कार्बनिक सामग्री को कम करती हैं, जिससे जल धारण  में गिरावट आती है, जिससे फसलें सूखे के प्रति संवेदनशील हो जाती हैं।
    • उदाहरण के लिए: NITI आयोग के आकलन में पाया गया कि महाराष्ट्र में मिट्टी में कम जैविक सामग्री फसल की पैदावार को प्रभावित करने वाले आवर्ती सूखे के पीछे एक प्रमुख कारक है।

कृषि प्रदर्शन की समग्र समझ के लिए बेहतर संकेतक

  • प्रति हेक्टेयर पोषण उत्पादन: यह न केवल उत्पादित खाद्यान्न  की मात्रा को मापता है बल्कि इसके पोषण मूल्य को भी मापता है, जिससे खाद्य सुरक्षा को अधिक व्यापक रूप से,  संबोधित किया जाता है।
    • उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन अब दालों एवं बाजरा के उत्पादन को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, जो पोषक तत्वों से भरपूर हैं।
  • मृदा स्वास्थ्य मेट्रिक्स: मूल्यांकन में मिट्टी के कार्बनिक कार्बन एवं माइक्रोबियल गतिविधि को शामिल करने से दीर्घकालिक मृदा की उर्वरता सुनिश्चित होती है।
    • उदाहरण के लिए: मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना संतुलित उर्वरक उपयोग को बढ़ावा देते हुए 125 मिलियन कृषकों के लिए मृदा स्वास्थ्य मापदंडों का आकलन करती है।
  • जल-उपयोग दक्षता: जल उत्पादकता जैसे उपाय फसल की उपज की प्रति इकाई आवश्यक जल की मात्रा को ट्रैक करते हैं, जिससे स्थायी जल उपयोग को बढ़ावा मिलता है।
    • उदाहरण के लिए: प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) का लक्ष्य सूखाग्रस्त क्षेत्रों में जल प्रबंधन में सुधार करके, प्रति बूंद अधिक फसल प्राप्त करना है।
  • फार्म जैव विविधता सूचकांक: फार्म स्तर पर फसल विविधता का आकलन करने से कीटों एवं जलवायु परिवर्तन  के खिलाफ पारिस्थितिकी तंत्र के लचीलेपन को बढ़ाने में मदद मिलती है।
    • उदाहरण के लिए: तेलंगाना की सागु बागू परियोजना फसल विविधता को बढ़ावा देती है एवं इसका लक्ष्य वास्तविक समय डेटा निगरानी के माध्यम से कृषि में जैव विविधता को बढ़ाना है।
  • आय विविधीकरण मेट्रिक्स: अंतरफसल एवं पशुधन जैसे कृषि आय स्रोतों के विविधीकरण पर नजर रखना, किसानों के लिए आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करता है।
    • उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY) एकीकृत कृषि प्रणालियों का समर्थन करती है, जिससे किसानों को एक ही फसल पर निर्भरता कम करने की अनुमति मिलती है।

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जबकि उपज भारत की कृषि उपलब्धियों की आधारशिला रही है, इसकी सीमाओं के लिए पोषण गुणवत्ता, पर्यावरणीय स्थिरता एवं मिट्टी के स्वास्थ्य पर व्यापक ध्यान देने की आवश्यकता है। एक समग्र दृष्टिकोण जिसमें पोषण संबंधी उत्पादन, मिट्टी मेट्रिक्स तथा आय विविधता शामिल है, कृषि की वास्तविक सफलता को बेहतर ढंग से कैप्चर करेगा, एवं भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक सतत तथा लचीली खाद्य प्रणाली सुनिश्चित करेगा।

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