प्रश्न की मुख्य माँग
- मणिपुर जैसे क्षेत्रों में विभिन्न पहचानों को समायोजित करने में भारतीय संविधान की कमियों का आकलन कीजिए।
- बेहतर एकीकरण को सुगम बनाने के लिए वैकल्पिक तरीकों का परीक्षण कीजिए।
|
उत्तर
सामाजिक सद्भाव और सतत विकास के लिए मणिपुर जैसे राज्यों में विविध पहचानों का एकीकरण आवश्यक है। मैतेई, नागा और कुकी सहित अन्य नृजातीय समूहों के जटिल मिश्रण के साथ मणिपुर, पहचान प्रतिनिधित्व और संसाधन साझाकरण के मामले में गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है। समावेशी नीतियों, सांस्कृतिक स्वायत्तता और न्यायसंगत सामाजिक-आर्थिक विकास को सुनिश्चित करने से नृजातीय तनाव को कम करने और एकता को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है, जिससे इस रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण क्षेत्र में एक प्रत्यास्थ एवं एकजुट समाज का निर्माण हो सकता है।
Enroll now for UPSC Online Course
मणिपुर जैसे क्षेत्रों में पहचान को समायोजित करने में भारतीय संविधान की कमियाँ
- सांस्कृतिक स्वायत्तता के अपर्याप्त प्रावधान: छठी अनुसूची के प्रावधानों के माध्यम से संविधान सांस्कृतिक संरक्षण को कुछ हद तक मान्यता प्रदान करता है, फिर भी मणिपुर जैसे क्षेत्रों में इस स्तर की स्वायत्तता का अभाव है, जिससे स्थानीय पहचान और राष्ट्रीय एकीकरण के मध्य तनाव उत्पन्न होता है।
- आदिवासी भूमि अधिकारों को बनाए रखने में चुनौतियाँ: जबकि अनुच्छेद 371C विशेष उपबंध प्रदान करता है, यह मणिपुर में आदिवासी भूमि अधिकारों की पूरी तरह से रक्षा नहीं करता है, जिससे भूमि अतिक्रमण और पारंपरिक रीति-रिवाजों के क्षरण का भय उत्पन्न होता है।
- उदाहरण के लिए: कुकी और नागा समुदायों जैसे नृजातीय समूहों को अक्सर अपनी भूमि को संरक्षित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे क्षेत्रीय तनाव बढ़ता है।
- भाषा मान्यता का अभाव: हालांकि अनुच्छेद 29 अल्पसंख्यक भाषाओं की रक्षा करता है परंतु मणिपुर जैसे क्षेत्रों में इसका क्रियान्वयन अक्सर नहीं हो पाता है, जहां एकसाथ कई भाषाएँ बोली जाती हैं परन्तु शिक्षा और शासन में उनका कम प्रतिनिधित्व है।
- उदाहरण के लिए: व्यापक उपयोग के बावजूद, मैतेई जैसी भाषाओं को राष्ट्रीय स्तर पर पर्याप्त रूप से बढ़ावा नहीं दिया जाता है, जिससे स्थानीय वक्ताओं के बीच असंतोष उत्पन्न होता है।
- राजनीतिक प्रतिनिधित्व से संबंधित मुद्दे: अनुसूचित जनजातियों के लिए संविधान में किये गये प्रावधानों का उद्देश्य उनके प्रतिनिधित्व को बढ़ाना है, फिर भी राजनीतिक निर्णयन की प्रक्रिया में कई स्वदेशी समूह स्वयं को हाशिए पर महसूस करते हैं।
- पारंपरिक शासन मॉडल में लचीलापन: संविधान एक केंद्रीकृत शासन संरचना प्रदान करता है जो शायद पारंपरिक जनजातीय शासन के साथ संरेखित न हो, जिससे स्वायत्तता को लेकर संघर्ष होता है ।
- उदाहरण के लिए: मणिपुर के जनजातीय क्षेत्रों में पारंपरिक परिषदें, राज्य शासन प्रणालियों के साथ सह-अस्तित्व के लिए संघर्ष करती हैं, जिससे अधिकार को लेकर संघर्ष होता है।
- सुभेद्य समुदायों के लिए सामाजिक-आर्थिक प्रावधानों का अभाव: हालाँकि संविधान सामाजिक-आर्थिक अधिकार प्रदान करता है परंतु मणिपुर में सुभेद्य समुदायों के लिए विशिष्ट प्रावधानों की अनुपस्थिति ने विकासात्मक सहायता में बाधा उत्पन्न की है ।
- उदाहरण के लिए: मणिपुर के सुदूर इलाकों में अनुसूचित जनजाति समुदायों को शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा का पूरा लाभ नहीं मिल पाता है, जिससे उनका विकास प्रभावित होता है।
- अंतर-सामुदायिक संघर्षों के लिए अपर्याप्त तंत्र: भारतीय संविधान में अंतर-नृजातीय तनावों के प्रबंधन के लिए विशिष्ट संघर्ष समाधान तंत्र का अभाव है, जैसा कि मणिपुर जैसे क्षेत्रों में देखा गया है, जहाँ नृजातीय संघर्ष अक्सर सामाजिक सद्भाव को बाधित करते हैं।
बेहतर एकीकरण को सुगम बनाने के लिए वैकल्पिक दृष्टिकोण
- सांस्कृतिक स्वायत्तता में बढ़ोत्तरी: छठी अनुसूची के प्रावधानों को मणिपुर में लागू करने से सांस्कृतिक संरक्षण को बढ़ावा मिल सकता है और स्थानीय संसाधनों के प्रबंधन में स्वायत्तता मिल सकती है, जिससे शासन को पारंपरिक प्रथाओं के साथ संरेखित किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिए: मेघालय में छठी अनुसूची के प्रावधानों को लागू करने से स्थानीय शासन को सांस्कृतिक पहचान को प्रभावी ढंग से संरक्षित करने की सुविधा प्राप्त हुई है।
- जनजातीय समूहों के राजनीतिक प्रतिनिधित्व में सुधार: मणिपुर की विधानसभा में छोटे समुदायों के लिए सीटें आरक्षित करने से यह सुनिश्चित हो सकता है कि नीति-निर्माण प्रक्रिया में विविध पहचानों को उचित प्रतिनिधित्व मिले।
- शिक्षा में स्थानीय भाषाओं को बढ़ावा देना: शिक्षण संस्थानों में मैतेई और कुकी जैसी स्थानीय भाषाओं को मान्यता देने और बढ़ावा देने से भाषाई समावेशन और सांस्कृतिक गौरव को सशक्त किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिए: कर्नाटक जैसे राज्यों ने क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने वाली भाषा नीतियाँ लागू की हैं, जो मणिपुर के लिए एक मॉडल के रूप में काम कर सकती हैं।
- संघर्ष समाधान तंत्र की स्थापना: एक अनुकूलित संघर्ष समाधान ढाँचा बनाने से विभिन्न समुदायों के प्रतिनिधियों को शामिल करते हुए निष्पक्ष समाधान सुनिश्चित करके बार-बार होने वाले नृजातीय तनावों की समस्या का समाधान किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिए: त्रिपुरा के शांति समझौते ने जनजातीय और गैर-जनजातीय संघर्षों का सफलतापूर्वक समाधान किया है। मणिपुर में भी इस तरह के समाधानों को लागू किया जा सकता है।
- पारंपरिक शासन को राज्य प्रणालियों के साथ एकीकृत करना: औपचारिक राज्य प्रशासन के भीतर पारंपरिक शासन संरचनाओं, जैसे कि ग्राम परिषदों को मान्यता देना और एकीकृत करना सांस्कृतिक विभाजन को कम सकता है।
- उदाहरण के लिए: नागालैंड के ग्राम परिषद अधिनियम ने पारंपरिक शासन को राज्य की नीतियों के साथ संरेखित करने में मदद की है, जिससे सांस्कृतिक स्वायत्तता को बढ़ावा मिला है।
- दूरदराज के समुदायों के लिए सामाजिक-आर्थिक कार्यक्रम विकसित करना: दूरदराज के जनजातीय समुदायों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और रोजगार पर केंद्रित सामाजिक-आर्थिक पहलें, विकास संबंधी असमानताओं को दूर कर सकती है और एकीकरण को बढ़ावा दे सकती है।
- उदाहरण के लिए: गुजरात में वनबंधु कल्याण योजना, जनजातीय विकास में सहायता करती है और इस तरह की योजना को मणिपुर के आदिवासी क्षेत्रों में भी लागू किया जा सकता है।
- अंतर-समुदाय संवाद कार्यक्रमों को बढ़ावा देना: अंतर-सामुदायिक संवाद शुरू करने से विभिन्न नृजातीय समूहों के बीच अंतर को कम किया जा सकता है और उनके बीच की आपसी समझ को बढ़ावा दिया जा सकता है जिससे एकता को बढ़ावा मिलेगा और संघर्षों में कमी आएगी।
Check Out UPSC CSE Books From PW Store
मणिपुर जैसे क्षेत्रों में विभिन्न पहचानों को समायोजित करने में भारतीय संविधान की कमियों को सुधारने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। बेहतर एकीकरण को बढ़ावा देने के लिए बेहतर राजनीतिक प्रतिनिधित्व, सांस्कृतिक स्वायत्तता और संघर्ष समाधान तंत्र अति महत्त्वपूर्ण हैं। वैकल्पिक शासन मॉडल को शामिल करके और सामाजिक-आर्थिक कार्यक्रमों को बढ़ावा देकर, भारत यह सुनिश्चित कर सकता है कि विविध पहचानों का सम्मान किया जाए, जिससे इसके बहुसांस्कृतिक ढाँचे के भीतर एकता को बढ़ावा मिले। यह दृष्टिकोण एक समावेशी और एकजुट समाज के निर्माण में महत्त्वपूर्ण होगा।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Latest Comments