Q. भारत के जनसांख्यिकीय परिवर्तन में क्षेत्रीय भिन्नताएँ देखने को मिलती हैं, जिसमें दक्षिणी राज्य उत्तरी राज्यों की तुलना में तेजी से वृद्ध होती आबादी का सामना कर रहे हैं। इस जनसांख्यिकीय विभाजन की चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये और जनसंख्या स्थिरीकरण एवं बुजुर्गों की देखभाल संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिए व्यापक नीतिगत उपाय सुझाएँ। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत के जनसांख्यिकीय परिवर्तन के कारणों पर प्रकाश डालिए, जिसमें स्पष्ट क्षेत्रीय भिन्नताएं दिखाई देती हैं, जिसमें उत्तरी राज्यों की तुलना में दक्षिण राज्यों की आबादी अधिक तेजी से वृद्ध हो रही है।
  • दक्षिणी राज्यों और उत्तरी राज्यों के बीच इस जनसांख्यिकीय विभाजन की चुनौतियों का विश्लेषण कीजिए।
  • जनसंख्या स्थिरीकरण और वृद्धों की देखभाल की चिंताओं को दूर करने के लिए व्यापक नीतिगत उपाय सुझाइये।

उत्तर

भारत का जनसांख्यिकीय परिवर्तन महत्वपूर्ण क्षेत्रीय असमानताओं को दर्शाता है, जिसमें उत्तरी राज्यों की तुलना में दक्षिणी राज्यों की आबादी तेजी से वृद्ध हो रही है। यह भिन्नता प्रजनन दर, स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच और सामाजिक-आर्थिक विकास में भिन्नताओं से उत्पन्न होती है, जिससे इन क्षेत्रों में जनसंख्या स्थिरीकरण और बुजुर्गों की देखभाल के संबंध में अलग-अलग चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।

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जनसांख्यिकीय परिवर्तन में क्षेत्रीय विविधताओं के कारण

  • विभेदक प्रजनन दर: प्रभावी परिवार नियोजन और उच्च महिला साक्षरता के कारण दक्षिणी राज्यों में  कुल प्रजनन दर (TFR) कम हो गई है। 
    • उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (वर्ष 2019-21) के अनुसार, केरल का TFR 1.8 है , जबकि बिहार का TFR 3.0 है।
  • स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच और गुणवत्ता: दक्षिणी राज्यों में बेहतर स्वास्थ्य सेवा बुनियादी ढाँचे ने वहाँ की जीवन प्रत्याशा में वृद्धि की है, जबकि उत्तरी राज्यों को स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे मृत्यु दर और जनसांख्यिकीय प्रोफाइल प्रभावित हो रही है। 
    • उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने उत्तर प्रदेश (65 वर्ष) की तुलना में तमिलनाडु (72 वर्ष) में उच्च जीवन प्रत्याशा की रिपोर्ट की है ।
  • शैक्षिक उपलब्धि: उच्च साक्षरता दर, विशेष रूप से दक्षिण राज्य की में महिलाओं के बीच, कम प्रजनन क्षमता और देरी से प्रसव का कारण बनती है, जिससे जनसांख्यिकीय उम्र बढ़ने में तेजी आती है। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2011 की जनगणना  के आँकड़ों के अनुसार, केरल में महिला साक्षरता दर 92% है, जबकि राजस्थान में यह 52% है
  • आर्थिक विकास: दक्षिणी राज्यों की आर्थिक प्रगति ने नगरीकरण और जीवनशैली में परिवर्तन को बढ़ावा दिया है, जिससे परिवार के आकार और उम्र बढ़ने के पैटर्न पर असर पड़ा है। 
    • उदाहरण के लिए: सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने मध्य प्रदेश की तुलना में कर्नाटक में प्रति व्यक्ति आय अधिक होने का संकेत दिया है।
  • सांस्कृतिक कारक: उत्तरी राज्यों में सांस्कृतिक मानदंड बड़े परिवारों के पक्ष में होते हैं, जिससे प्रजनन दर प्रभावित होती है और दक्षिण की तुलना में जनसांख्यिकीय परिवर्तन धीमा होता है। 
    • उदाहरण के लिए: स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा किए गए अध्ययनों से उत्तरी क्षेत्रों में कम उम्र में विवाह और उच्च प्रजनन दर के प्रचलन पर प्रकाश डाला गया है।

जनसांख्यिकीय विभाजन से उत्पन्न चुनौतियाँ

  • आर्थिक असंतुलन: दक्षिण में वृद्ध होती आबादी के कारण पेंशन प्रणाली और स्वास्थ्य सेवा पर दबाव पड़ सकता है, जबकि उत्तर की युवा जनसांख्यिकी के लिए रोजगार सृजन और शिक्षा में निवेश की आवश्यकता है
  • श्रम शक्ति असमानताएँ: दक्षिणी राज्यों में उम्र बढ़ने के कारण श्रमिकों की कमी हो सकती है, जबकि उत्तरी राज्यों में बढ़ती युवा आबादी के कारण बेरोजगारी की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: श्रम और रोजगार मंत्रालय ने केरल की तुलना में बिहार में युवाओं में उच्च बेरोजगारी दर की रिपोर्ट की है।
  • स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर दबाव: दक्षिण में बढ़ती बुजुर्ग आबादी के कारण अधिक वृद्धावस्था देखभाल की जरूरत है, जबकि उत्तर में मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सेवाओं की जरूरत है। 
    • उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल 2020 दक्षिणी राज्यों में गैर-संचारी रोगों की अत्यधिक संख्या को दर्शाता है।
  • प्रवासन पैटर्न: रोजगार के लिए युवा आबादी, उत्तरी राज्यों से दक्षिण की ओर पलायन कर सकती है जिससे संभावित रूप से सामाजिक-आर्थिक तनाव और संसाधन आवंटन की चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। 
    • उदाहरण के लिए: गृह मंत्रालय के प्रवासन डेटा से पता चलता है कि उत्तर प्रदेश से महाराष्ट्र की ओर पर्याप्त अंतरराज्यीय प्रवासन हुआ है।
  • राजनीतिक प्रतिनिधित्व: जनसांख्यिकीय परिवर्तन राजनीतिक गत्यात्मकता को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे वृद्ध होती आबादी की समस्या से प्रभावित दक्षिणी राज्यों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व संभावित रूप से अधिक आबादी वाले उत्तरी राज्यों की तुलना में कम हो सकता  है। 
    • उदाहरण के लिए: जनसंख्या परिवर्तन के आधार पर परिसीमन आयोग द्वारा किये जाने वाले समायोजन, संसदीय सीट आवंटन को प्रभावित कर सकते हैं ।

जनसंख्या स्थिरीकरण और बुजुर्गों की देखभाल के लिए नीतिगत उपाय

जनसंख्या स्थिरीकरण

  • उन्नत परिवार नियोजन कार्यक्रम: प्रजनन दर को कम करने और जनसंख्या स्थिरीकरण को बढ़ावा देने के लिए उत्तरी राज्यों में लक्षित परिवार नियोजन पहलों को लागू करना। 
    • उदाहरण के लिए: मिशन परिवार विकास (वर्ष 2016) कार्यक्रम उत्तर प्रदेश और बिहार के उच्च प्रजनन क्षमता वाले जिलों पर केंद्रित है।
  • शिक्षा और सशक्तिकरण: छोटे परिवार के मानदंडों को प्रोत्साहित करने और बच्चे के जन्म में देरी करने के लिए महिला शिक्षा और सशक्तिकरण में निवेश करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (वर्ष 2015) योजना का उद्देश्य महिला साक्षरता और सशक्तिकरण में सुधार करना है।
  • आर्थिक विकास पहल: प्रवासन दबाव को कम करने और जनसांख्यिकीय प्रोफाइल को संतुलित करने के लिए उत्तरी राज्यों में आर्थिक अवसरों को बढ़ावा देना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (वर्ष 2015) रोजगार क्षमता बढ़ाने के लिए कौशल विकास प्रदान करती है।
  • स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढाँचे में सुधार: प्रजनन निर्णयों को प्रभावित करते हुए शिशु और मातृ मृत्यु दर को कम करने के लिए उत्तरी राज्यों में स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों को मजबूत बनाना होगा। 
    • उदाहरण के लिए: आयुष्मान भारत (वर्ष 2018) योजना का उद्देश्य पूरे भारत में व्यापक स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करना है।

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वृद्धों की देखभाल

  • वृद्धावस्था स्वास्थ्य सेवाएँ: वृद्धावस्था आबादी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए दक्षिणी राज्यों में वृद्धावस्था देखभाल सुविधाओं और प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन करना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: बुजुर्गों के स्वास्थ्य देखभाल के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (2010), वरिष्ठ नागरिकों को समर्पित स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने पर केंद्रित है।
  • सामाजिक सुरक्षा में वृद्धि: वृद्धों के वित्तीय कल्याण के लिए पेंशन योजनाओं और सामाजिक सुरक्षा जाल को मजबूत करना होगा। 
    • उदाहरण के लिए: इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना (2007) गरीबी रेखा से नीचे के वरिष्ठ नागरिकों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
  • समुदाय-आधारित सहायता प्रणालियाँ: बुजुर्गों को सामाजिक जुड़ाव और सहायता प्रदान करने के लिए सामुदायिक केंद्र और सहायता समूह विकसित करने चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: वरिष्ठ नागरिकों के लिए एकीकृत कार्यक्रम (1992) का उद्देश्य बुनियादी सुविधाएँ प्रदान करके बुज़ुर्गों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है।
  • नीति एकीकरण और समन्वय: यह सुनिश्चित करना होगा कि वृद्धावस्था से संबंधित नीतियाँ स्वास्थ्य, आवास और परिवहन सहित सभी क्षेत्रों में एकीकृत हों। 
    • उदाहरण के लिए: वृद्ध व्यक्तियों पर राष्ट्रीय नीति (वर्ष 1999) में वृद्धों की देखभाल के लिए एक व्यापक रूपरेखा  दी गई है।

भारत की क्षेत्रीय जनसांख्यिकीय असमानताओं को दूर करने के लिए उत्तर में जनसंख्या स्थिरीकरण और दक्षिण में वृद्धों की बेहतर देखभाल पर ध्यान केंद्रित करते हुए नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता है। क्षेत्र-विशिष्ट रणनीतियों को लागू करके , भारत संतुलित विकास को बढ़ावा दे सकता है और विविध जनसांख्यिकीय परिदृश्यों में अपने सभी नागरिकों का कल्याण सुनिश्चित कर सकता है ।

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