प्रश्न की मुख्य माँग
- भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश द्वारा प्रस्तुत अवसरों की रूपरेखा लिखिए।
- उन कारणों पर चर्चा कीजिए कि क्यों बड़ी कार्यशील आयु वाली जनसंख्या के बावजूद भारत के प्रजनन दर में गिरावट आ रही है और विनिर्माण क्षेत्र में चुनौतियाँ आ रही हैं।
- अधिकांश आबादी के वृद्ध होने से पहले भारत की इस जनसांख्यिकीय स्थिति का लाभ उठाने के लिए आवश्यक उपायों का विश्लेषण कीजिए तथा इसकी तुलना चीन के विकास पथ से कीजिए।
- चीन के अनुभव को संदर्भ बिंदु के रूप में उपयोग करते हुए, भारत के सम्मुख अपनी जनसांख्यिकीय स्थिति का लाभ उठाने में आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालिए।
- इस जनसांख्यिकीय क्षमता का पूर्ण उपयोग करने के लिए उपयुक्त राह सुझाइए।
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उत्तर
भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश जिसका 62% कार्यशील आयु वर्ग है, वर्ष 2055 तक बहुत बड़ा आर्थिक लाभ और विकास क्षमता प्रदान करता है, जब औसत आयु 27 से बढ़कर लगभग 39 हो जाएगी । घटती प्रजनन क्षमता और सीमित रोजगार के अवसर इस स्थिति का लाभ उठाने के लिए रणनीतिक नीतियों तथा निवेश की आवश्यकता को उजागर करते हैं।
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भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश द्वारा प्रस्तुत अवसर
- आर्थिक विकास की संभावना: युवा और बढ़ते कार्यबल के साथ, भारत उत्पादकता, नवाचार और उपभोग में वृद्धि के माध्यम से आर्थिक विकास को गति दे सकता है।
- बढ़ी हुई वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता: एक विशाल कार्यबल लागत प्रभावी श्रम प्रदान करता है, जिससे भारत विदेशी निवेश और आउटसोर्सिंग के लिए एक आकर्षक गंतव्य बन जाता है।
- उदाहरण के लिए: भारत अपने युवा, अंग्रेजी बोलने वाले कार्यबल के कारण BPO सेवाओं के लिए शीर्ष गंतव्यों में से एक बन चुका है।
- मानव पूँजी का विकास: शिक्षा और कौशल विकास में निवेश, जनसांख्यिकीय लाभांश को कुशल कार्यबल में बदल सकता है, जिससे नवाचार और उद्यमशीलता को बढ़ावा मिलता है।
- उदाहरण के लिए: स्किल इंडिया जैसी पहल ने 20 मिलियन से अधिक व्यक्तियों को प्रशिक्षित किया है , जिसका लक्ष्य भविष्य के लिए तैयार कार्यबल का निर्माण करना है।
- घरेलू खपत में वृद्धि: युवा आबादी की एक बड़ी संख्या घरेलू माँग को बढ़ाती है, जिससे उपभोक्ता वस्तुओं, आवास और प्रौद्योगिकी जैसे विभिन्न क्षेत्रों को बढ़ावा मिलता है।
- उदाहरण के लिए: खुदरा क्षेत्र, जिसका मूल्य $1.3 ट्रिलियन है, भारत के सबसे तेजी से बढ़ते उद्योगों में से एक है, जिसे एक बड़े युवा उपभोक्ता आधार का समर्थन प्राप्त है।
- सामाजिक विकास और गरीबी में कमी: रोजगार और आय का सृजन करके, जनसांख्यिकीय लाभांश गरीबी के स्तर को कम कर सकता है और जीवन स्तर को बढ़ा सकता है।
- उदाहरण के लिए: दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना (DDU-GKY) ने 1 मिलियन से अधिक ग्रामीण युवाओं को कौशल प्रशिक्षण और रोजगार के अवसर प्रदान किए हैं, जिससे कई परिवारों को गरीबी से बाहर निकलने में मदद मिली है।
जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ उठाने में आने वाली चुनौतियाँ
- प्रजनन दर में गिरावट: प्रजनन दर में गिरावट से कार्यशील आयु वर्ग की आबादी की वृद्धि दर कम हो जाती है , जिससे भारत का जनसांख्यिकीय लाभ कम हो सकता है।
- उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के अनुसार, हाल के वर्षों में भारत की कुल प्रजनन दर (TFR) घटकर 2.0 हो गई है ।
- श्रम बल में कम भागीदारी: भारत की श्रम बल भागीदारी दर कम बनी हुई है, विशेषकर महिलाओं के बीच , जो आर्थिक उत्पादन को सीमित करती है।
- उदाहरण के लिए: आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) 2022-23 के अनुसार, महिला श्रम बल भागीदारी दर बढ़कर 37.0% हो गई, फिर भी यह अभी भी 50% के वैश्विक औसत से पीछे है।
- कुशल कार्यबल की कमी: बड़ी आबादी के बावजूद, कौशल अंतर, विनिर्माण और प्रौद्योगिकी जैसे उच्च माँग वाले क्षेत्रों में रोजगार को सीमित करता है।
- उदाहरण के लिए: यह अनुमान लगाया गया है कि भारत में केवल 2.3% कार्यबल ने औपचारिक कौशल प्रशिक्षण प्राप्त किया है, जबकि UK में यह 68% है।
- विनिर्माण क्षेत्र में धीमी वृद्धि: विनिर्माण क्षेत्र ने बढ़ते कार्यबल के साथ तालमेल नहीं रखा है, जिससे रोजगार के अवसर कम हो रहे हैं।
- उदाहरण के लिए: विनिर्माण, सकल घरेलू उत्पाद का केवल 15% हिस्सा है, जो चीन जैसे देशों की तुलना में काफी कम है।
- अवसंरचना संबंधी व्यवधान: अपर्याप्त लॉजिस्टिक्स और विद्युत आपूर्ति जैसे अवसंरचनात्मक मुद्दे औद्योगिक विकास और रोजगार सृजन में बाधा डालते हैं।
- उदाहरण के लिए: विश्व बैंक लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन सूचकांक 2024 के अनुसार, भारत वैश्विक स्तर पर लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन में 38वें स्थान पर है, जो इस चुनौती को उजागर करता है।
- सेवा क्षेत्र पर निर्भरता: हालाँकि सेवाओं में वृद्धि हुई है, वे विनिर्माण क्षेत्र जितनी नौकरियाँ सृजित नहीं करते हैं , जिससे आर्थिक समावेशिता सीमित हो जाती है।
- उदाहरण के लिए: आईटी क्षेत्र में लगभग 4.5 मिलियन लोग कार्यरत हैं, जो कुल कार्यबल का एक छोटा-सा अंश है, जो श्रम-प्रधान उद्योगों की आवश्यकता को उजागर करता है।
जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ उठाने के लिए आवश्यक उपाय
- विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देना: भारत को कार्यबल का उचित तरीके से उपयोग करने के लिए अपनी विनिर्माण क्षमता को बढ़ाना चाहिए, जैसा कि चीन ने अपने जनसांख्यिकीय लाभांश चरण के दौरान किया था।
- उदाहरण के लिए: मेक इन इंडिया पहल वर्ष 2025 तक सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण की हिस्सेदारी को 25% तक बढ़ाने पर केंद्रित है।
- कौशल विकास कार्यक्रमों को बढ़ावा देना: चीन के लक्षित व्यावसायिक कार्यक्रमों की तरह, भारत को व्यावहारिक कौशल और उद्योग-विशिष्ट प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: कौशल भारत मिशन, हालाँकि, एक सरकारी पहल थी, जिसका उद्देश्य वर्ष 2022 तक भारत में 400 मिलियन से अधिक लोगों को प्रशिक्षित करना था, जो उद्योग की माँगों को पूरा करे।
- अवसंरचना में निवेश: भारत को उद्योग के विकास को सुविधाजनक बनाने और विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए अवसंरचना क्षेत्र में पर्याप्त निवेश की आवश्यकता है।
- उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP), 2025 तक ₹102 लाख करोड़ के निवेश का प्रस्ताव करती है ।
- व्यावसायिक वातावरण में सुधार: नियमों को सरल बनाने और प्रशासनिक बाधाओं को कम करने से औद्योगिक विस्तार को बढ़ावा मिल सकता है, जैसा चीन में हुए सुधारों के दौरान हुआ था।
- उदाहरण के लिए: भारत ने वर्ष 2014 के 142वें स्थान से वर्ष 2020 में 63वें स्थान पर रहते हुए अपनी ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंक में सुधार किया, जो प्रगति को दर्शाता है।
- महिला कार्यबल भागीदारी को प्रोत्साहित करना: कार्यबल में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने वाली नीतियाँ, पूर्वी एशिया में किए गए प्रयासों के समान जनसांख्यिकीय लाभांश को बढ़ा सकती हैं।
- उदाहरण के लिए: स्टैंड-अप इंडिया योजना, महिला उद्यमिता को बढ़ावा देती है और समावेशी विकास को बढ़ावा देती है।
इस जनसांख्यिकीय स्थिति का लाभ उठाने में चुनौतियाँ
- कृषि पर अत्यधिक निर्भरता: भारत के कार्यबल का एक पर्याप्त हिस्सा कृषि क्षेत्र में संलग्न है, जिससे इसकी उत्पादकता सीमित हो रही है।
- उदाहरण के लिए: भारत का लगभग 46% कार्यबल कृषि में कार्यरत है।
- अपर्याप्त सामाजिक बुनियादी ढाँचा: अपर्याप्त शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा व्यय कार्यबल की उत्पादकता तथा भागीदारी को सीमित करता है, जिससे समग्र आर्थिक विकास प्रभावित होता है।
- उदाहरण के लिए: भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद का केवल 1.3% स्वास्थ्य सेवा पर खर्च करता है, जो वर्ष 2022 में चीन के 7% से काफी कम है, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है।
- आय असमानता और क्षेत्रीय असमानताएँ: असमान विकास और क्षेत्रीय आय असमानताएँ आर्थिक समावेशिता को सीमित करती हैं।
- उदाहरण के लिए: भारत के कुछ राज्यों में प्रति व्यक्ति आय, राष्ट्रीय औसत से काफी कम है।
- प्रशासनिक और कानूनी बाधाएँ: प्रशासनिक जड़ता और राज्यों में असंगत कार्यान्वयन के कारण अनुबंधों का क्रियान्वयन अच्छे तरीके से नहीं हो पाता है और अनुपालन लागत भी बढ़ जाती है।
- उदाहरण के लिए: ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग में सुधार के बावजूद, विश्व बैंक के आँकड़ों से पता चलता है कि भारत अनुबंधों को लागू करने के मामले में निचले पायदान पर है , जिसके परिणामस्वरूप व्यवसायों के लिए कानूनी समाधान में देरी होती है।
- विदेशी निवेश आकर्षित करने में सीमाएँ: नीतिगत अनिश्चितता और बौद्धिक संपदा संबंधी चिंताएँ विदेशी निवेशकों को रोकती हैं, जबकि कुछ क्षेत्रों में विदेशी स्वामित्व पर प्रतिबंध, भारत में विदेशी निवेश के आकर्षण को और अधिक सीमित करते हैं।
- उदाहरण के लिए: खुदरा क्षेत्र में, जटिल FDI नियम कई वैश्विक कंपनियों को मजबूती से स्थापित होने से रोकते हैं।
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जनसांख्यिकीय क्षमता का दोहन करने हेतु आगे की राह
- शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को मजबूत करना: गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा उत्पादकता बढ़ा सकती है, जिससे स्वस्थ और कुशल कार्यबल बनाने में मदद मिलती है।
- उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020, शिक्षण परिणामों और रोजगार क्षमता में सुधार पर केंद्रित है।
- औपचारिक रोजगार को प्रोत्साहित करना: औपचारिक रोजगार का विस्तार करने से नौकरी की सुरक्षा और सामाजिक लाभ सुनिश्चित हो सकते हैं, जिससे बेरोजगारी कम हो सकती है।
- उदाहरण के लिए: पेंशन कवरेज बढ़ाने की EPFO पहल औपचारिक क्षेत्र के रोजगार को प्रोत्साहित करती है ।
- उद्यमशीलता को बढ़ावा देना: स्टार्टअप और MSME को बढ़ावा देने से विविध रोजगार अवसर उत्पन्न हो सकते हैं और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिल सकता है।
- उदाहरण के लिए: स्टार्टअप इंडिया योजना ने 50,000 से अधिक स्टार्टअप का समर्थन किया है, जो एक उद्यमशील पारिस्थितिकी तंत्र का पक्षधर है।
- समावेशी विकास पर ध्यान केंद्रित करना: क्षेत्रीय असमानताओं को कम करने और समावेशी विकास को बढ़ावा देने से जनसांख्यिकीय लाभांश के प्रभाव को अधिकतम किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिए: आकांक्षी जिला कार्यक्रम अविकसित क्षेत्रों को लक्षित करता है, जिसका लक्ष्य संतुलित विकास है।
- अनुसंधान और नवाचार में निवेश: अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देने से ज्ञान संचालित अर्थव्यवस्था का निर्माण हो सकता है।
- उदाहरण के लिए: भारत का अटल नवाचार मिशन अनुसंधान को बढ़ावा देता है, जिसका लक्ष्य दीर्घकालिक संधारणीय विकास है ।
भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश, आर्थिक विकास हेतु अपार संभावनाएँ प्रदान करता है , बशर्ते सही नीतियाँ लागू की जाएँ। शिक्षा, कौशल विकास और औद्योगिक विस्तार में रणनीतिक निवेश के साथ, भारत अपने पूर्ण जनसांख्यिकीय लाभ को प्राप्त कर सकता है, समावेशी और सतत् विकास को सुगम बना सकता है और वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र का दर्जा प्राप्त कर सकता है।
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