Q. भारत में शहरी नियोजन की अपर्याप्तता के पीछे के कारणों की जाँच कीजिये। 'टिकाऊ शहरों' की अवधारणा को शहरी शासन में कैसे एकीकृत किया जा सकता है? (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत में शहरी नियोजन की अपर्याप्तता के पीछे के कारणों की जाँच कीजिये।
  • इस बात पर प्रकाश डालिए कि ‘संधारणीय शहरों’ की अवधारणा को शहरी शासन में कैसे एकीकृत किया जा सकता है।

उत्तर

भारत में शहरी नियोजन को तेजी से शहरीकरण, पुरानी नीतियों एवं कमजोर शासन के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। शहर अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे, पर्यावरणीय गिरावट तथा सामाजिक-आर्थिक असमानताओं जैसे मुद्दों से जूझ रहे हैं। ‘संधारणीय शहरों’ की अवधारणा, पर्यावरण-अनुकूल प्रथाओं, समावेशिता एवं लचीलेपन पर जोर देती है, इन अंतरालों को दूर करने के लिए एक रोडमैप प्रदान करती है। स्मार्ट सिटी मिशन जैसी हालिया पहल शहरी प्रशासन में स्थिरता को एकीकृत करने में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है।

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भारत में शहरी नियोजन की अपर्याप्तता के पीछे कारण

  • विकास में क्षेत्रीय असंतुलन: आर्थिक अवसर कुछ शहरी केंद्रों में केंद्रित हैं, जिससे भीड़भाड़ एवं अनियोजित विकास होता है।
    • उदाहरण के लिए: मुंबई अपने औद्योगिक एवं वित्तीय क्षेत्रों के कारण बड़ी आबादी को आकर्षित करता है, जिसके कारण शहर की 52.5% आबादी झुग्गियों में रहती है।
  • विनियमों का कमजोर प्रवर्तन: नागरिक अधिकारियों द्वारा निगरानी में लापरवाही के कारण रियल एस्टेट एवं औद्योगिक गतिविधियाँ अक्सर पर्यावरण मानदंडों का उल्लंघन करती हैं।
    • उदाहरण के लिए: दिल्ली में निर्माण कार्य अक्सर धूल रोकथाम उपायों की अनदेखी करते हैं, जिससे वायु की गुणवत्ता खराब हो जाती है।
  • अत्यधिक बोझ वाला बुनियादी ढाँचा: मौजूदा सार्वजनिक परिवहन, स्वच्छता एवं आवास प्रणालियाँ बढ़ती शहरी आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए अपर्याप्त हैं।
    • उदाहरण के लिए: बेंगलुरु का सड़क नेटवर्क शहर के यातायात की मात्रा का सामना करने में असमर्थ है, जिससे दैनिक जाम की स्थिति उत्पन्न होती है।
  • अपर्याप्त नगरपालिका क्षमताएँ: प्रभावी शहरी शासन को लागू करने के लिए नगर निगमों में वित्तीय स्वायत्तता एवं तकनीकी विशेषज्ञता का अभाव है।
    • उदाहरण के लिए: कोलकाता नगर निगम अपनी जल निकासी प्रणाली को उन्नत करने के लिए संघर्ष कर रहा है, जिससे मानसून के दौरान लगातार बाढ़ आती है।
  • नागरिक उदासीनता: शहर नियोजन प्रक्रियाओं में सार्वजनिक भागीदारी की कमी के परिणामस्वरूप शहरी नीतियाँ असंबद्ध एवं अप्रभावी होती हैं।
    • उदाहरण के लिए: कई शहरों में, स्मार्ट सिटी परियोजनाओं पर नागरिकों की प्रतिक्रिया न्यूनतम है, जिससे प्राथमिकताएँ गलत हो जाती हैं।
  • पर्यावरणीय क्षरण: शहरी विकास पर्यावरणीय विचारों पर आर्थिक विकास को प्राथमिकता देता है, जिससे प्रदूषण एवं पारिस्थितिक क्षति बढ़ जाती है।
    • उदाहरण के लिए: हैदराबाद की हुसैन सागर झील अनियंत्रित औद्योगिक निर्वहन और शहरी अतिक्रमण के कारण अत्यधिक प्रदूषित है।

शहरी शासन में ‘स्थायी शहरों’ की अवधारणा को एकीकृत करना

  • व्यापक शहरी नियोजन: शहरों को मिश्रित उपयोग वाले जोनिंग, हरित स्थानों एवं लचीले बुनियादी ढाँचे पर जोर देने वाले मास्टर प्लान को अपनाना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: संगठित क्षेत्रों एवं प्रचुर हरियाली के साथ चंडीगढ़ का नियोजित शहर मॉडल एकीकृत शहरी नियोजन का उदाहरण है।
  • सार्वजनिक परिवहन को मजबूत करना: मेट्रो सिस्टम, बस रैपिड ट्रांजिट एवं गैर-मोटर चालित परिवहन में निवेश से वाहन उत्सर्जन को कम किया जा सकता है।
    • उदाहरण के लिए: दिल्ली मेट्रो ने शहर में यातायात की भीड़ एवं वायु प्रदूषण को काफी कम कर दिया है।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP): सहयोगात्मक परियोजनाएँ संधारणीय शहरी बुनियादी ढाँचे के विकास को वित्तपोषित एवं तेज कर सकती हैं।
    • उदाहरण के लिए: बेंगलुरु की नम्मा मेट्रो को PPP के माध्यम से विकसित किया गया था, जिसमें शहर की योजना के साथ कुशल सार्वजनिक परिवहन को एकीकृत किया गया था।
  • हरित निर्माण के लिए प्रोत्साहन: पर्यावरण-अनुकूल भवन डिजाइनों के लिए कर छूट या सब्सिडी की पेशकश सतत रियल एस्टेट प्रथाओं को प्रोत्साहित कर सकती है।
    • उदाहरण के लिए: पुणे नगर निगम वर्षा जल संचयन एवं सौर पैनल वाले भवनों के लिए संपत्ति कर पर छूट प्रदान करता है।
  • स्मार्ट गवर्नेंस उपकरण: शहरी सेवाओं की वास्तविक समय की निगरानी के लिए GIS एवं IoT का उपयोग संसाधन उपयोग को अनुकूलित कर सकता है तथा बर्बादी को कम कर सकता है।
    • उदाहरण के लिए: सूरत शहर कुशल जल आपूर्ति प्रबंधन के लिए GIS-आधारित उपकरणों का उपयोग करता है, जिससे जल की बर्बादी 25% कम हो जाती है।
  • सामुदायिक भागीदारी: निर्णय लेने में निवासियों को शामिल करने से जवाबदेही को बढ़ावा मिलता है एवं समावेशी विकास सुनिश्चित होता है।
    • उदाहरण के लिए: केरल की सहभागी बजटिंग पहल में स्थानीय विकास परियोजनाओं के लिए धन आवंटित करने में नागरिकों को शामिल किया गया है।
  • शहरी हरित पहल: शहरी वानिकी को बढ़ाने एवं खराब पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्स्थापित करने की नीतियाँ वायु गुणवत्ता तथा जैव विविधता में सुधार कर सकती हैं।
    • उदाहरण के लिए: अहमदाबाद की शहरी वन पहल, ‘स्मृति वन’ ने बंजर भूमि को हरे स्थानों में बदल दिया है, जिससे शहरी ताप द्वीपीय प्रभाव कम हो गया है।

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भारत की शहरी नियोजन के लिए एक भविष्य आधारित दृष्टिकोण एक समग्र, नागरिक-केंद्रित दृष्टिकोण अपनाने में निहित है जो स्थिरता, समावेशिता एवं तकनीकी नवाचार को प्राथमिकता देता है। शासन ढाँचे को मजबूत करना, सार्वजनिक-निजी भागीदारी को सुविधाजनक बनाना तथा हरित बुनियादी ढाँचे को एकीकृत करना शहरों को जीवंत, लचीले केंद्रों में बदल सकता है। वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के साथ जुड़कर एवं सामुदायिक भागीदारी का लाभ उठाकर, भारत यह सुनिश्चित कर सकता है कि उसका शहरी विकास न्यायसंगत और संधारणीय हो।

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