प्रश्न की मुख्य माँग
- इस बात पर प्रकाश डालिये कि अम्बेडकर का अस्पृश्यता संबंधी विश्लेषण किस प्रकार सामाजिक भेदभाव से आगे बढ़कर आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक आयामों को भी समाहित करता है।
- इस बात पर प्रकाश डालिये, कि इसके उन्मूलन के लिए उनका दृष्टिकोण न केवल संवैधानिक था बल्कि परिवर्तनकारी भी था।
- भारत में समकालीन जाति आधारित चुनौतियों से निपटने के लिए उनकी अंतर्दृष्टि की प्रासंगिकता का परीक्षण कीजिए।
- आगे की राह लिखिये।
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उत्तर
जैसा कि डॉ. बीआर अंबेडकर ने कहा था अस्पृश्यता एक प्रणालीगत मुद्दा है, जो सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक आयामों में निहित है। उन्होंने संवैधानिक सुरक्षा उपायों और परिवर्तनकारी सुधारों के माध्यम से इसके उन्मूलन की कल्पना की थी। जाति-आधारित आरक्षण पर हाल की बहस जाति असमानता की समकालीन चुनौतियों का समाधान करने और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने में उनकी अंतर्दृष्टि की निरंतर प्रासंगिकता को उजागर करती है ।
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अम्बेडकर का अस्पृश्यता पर विश्लेषण: सामाजिक भेदभाव से परे
- आर्थिक आयाम: अंबेडकर ने अछूतों के आर्थिक रूप से वंचित होने की बात की, जिन्हें मुख्यधारा के व्यवसायों और भूमि स्वामित्व से बाहर रखा गया था, जिससे उन्हें शोषणकारी श्रम करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
- उदाहरण के लिए: दलित ऐतिहासिक रूप से मैला ढोने और चमड़े के काम जैसे कामों में संलग्न रहे हैं, जबकि वैकल्पिक आजीविका तक उनकी पहुँच सीमित है।
- धार्मिक आयाम: उन्होंने अस्पृश्यता का कारण धार्मिक प्रथाओं को बताया जो जाति-आधारित बहिष्कार को वैध बनाती हैं।
- उदाहरण के लिए: मांसाहार से जुड़े होने के कारण दलित समुदायों का सामाजिक बहिष्कार, जैसा कि उनकी रचना द अनटचेबल्स में उजागर किया गया है।
- राजनीतिक आयाम: अंबेडकर ने वंचित समुदायों के हितों की रक्षा और प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए राजनीतिक सुरक्षा उपायों की वकालत की।
- उदाहरण के लिए: पूना पैक्ट वार्ता के दौरान दलितों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र की उनकी सिफारिश ने राजनीतिक सशक्तिकरण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
- ऐतिहासिक विश्लेषण: अंबेडकर ने छुआछूत की जड़ जनजातियों के बीच होने वाले संघर्ष को माना।
- उदाहरण के लिए: नस्लीय और व्यावसायिक सिद्धांतों को खारिज करने से जाति-आधारित हाशियाकरण संबंधी समझ में बदलाव आया।
- प्रणालीगत पृथक्करण: अस्पृश्यता में न केवल व्यक्तिगत भेदभाव शामिल है, बल्कि पूरे समुदाय का पृथक्करण भी शामिल है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी बहिष्कार को कायम रखता है।
- उदाहरण के लिए: दलित बस्तियाँ अक्सर भौगोलिक रूप से उच्च जाति के गाँवों से अलग-थलग होती हैं।
- सांस्कृतिक कलंक: अंबेडकर ने छुआछूत को वंशानुगत और स्थायी प्रथा बनाने में सांस्कृतिक प्रथाओं की भूमिका पर बल दिया।
- उदाहरण के लिए: दलितों को मंदिरों में प्रवेश करने या सार्वजनिक कुओं से पानी भरने से रोकने जैसी प्रथाएँ ग्रामीण भारत में अभी भी जारी हैं।
अम्बेडकर का छुआछूत उन्मूलन का दृष्टिकोण: न केवल संवैधानिक बल्कि परिवर्तनकारी
- संवैधानिक सुरक्षा: अंबेडकर ने संविधान में मौलिक अधिकारों, अनुच्छेद 17 (अस्पृश्यता का उन्मूलन) और सकारात्मक कार्रवाई के प्रावधानों को शामिल करना सुनिश्चित किया।
- उदाहरण के लिए: शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण प्रणाली SC/ST समुदायों को ऐतिहासिक वंचन से उबरने के अवसर प्रदान करती है।
- लोकतांत्रिक सिद्धांत: उन्होंने लोकतंत्र को एक ऐसी जीवन शैली के रूप में देखा जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे पर आधारित हो, जो इसके सरकारी ढाँचे से परे हो।
- उदाहरण के लिए: अंबेडकर का भाईचारे पर बल देना, समावेशी विकास नीतियों की बढ़ती माँग में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है।
- जाति-आधारित धर्म की आलोचना: अंबेडकर ने जातिगत पदानुक्रम को बनाए रखने वाले धार्मिक ग्रंथों की निंदा की और नियमों से अधिक सिद्धांतों पर आधारित धर्म की वकालत की।
- उदाहरण के लिए: लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म में उनका धर्मांतरण, जाति व्यवस्था की धार्मिक नींव को अस्वीकार करने का प्रतीक था।
- आर्थिक सशक्तिकरण: अंबेडकर ने जाति-आधारित गरीबी के चक्र को तोड़ने के लिए
भूमि पुनर्वितरण और शिक्षा तक पहुँच की वकालत की।
- उदाहरण के लिए: स्टैंड-अप इंडिया जैसी योजनाओं के माध्यम से उभर रहे दलित उद्यमी आर्थिक सशक्तिकरण के प्रभाव को उजागर करते हैं।
- अंतर-समुदाय एकजुटता: उन्होंने जातिगत बाधाओं को खत्म करने के लिए अंतर-भोजन, अंतर-विवाह और सामूहिक जीवन को बढ़ावा दिया।
- उदाहरण के लिए: शहरी क्षेत्रों में मिश्रित-जाति आवास को प्रोत्साहित करने वाली नीतियों का उद्देश्य जाति-आधारित पृथक्करण को कम करना है।
- संस्थागत सुरक्षा: अंबेडकर ने निर्णय लेने वाली संस्थाओं में समर्पित कल्याण विभागों व प्रतिनिधित्व पर बल देकर प्रणालीगत असमानताओं को दूर करने पर बल दिया।
- उदाहरण के लिए: सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, संस्थागत मध्यक्षेप के लिए अंबेडकर के दृष्टिकोण को दर्शाता है।
भारत में समकालीन जाति-आधारित चुनौतियों से निपटने के लिए अंबेडकर की अंतर्दृष्टि की प्रासंगिकता
- समान नागरिकता और मौलिक अधिकार: अंबेडकर ने जाति-आधारित भेदभाव को खत्म करने और मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए समान नागरिकता पर बल दिया।
- उदाहरण के लिए: संविधान के अनुच्छेद 17 ने अस्पृश्यता को समाप्त कर दिया, लेकिन हाथ से मैला उठाने की प्रथा और जाति-आधारित अत्याचार जैसी घटनाएँ, अभी भी हो रहे उल्लंघनों को उजागर करती हैं।
- शिक्षा और जागरूकता पर ध्यान: अंबेडकर ने शिक्षा को सशक्तिकरण के साधन और जातिगत पदानुक्रम को चुनौती देने के तरीके के रूप में देखा।
- उदाहरण के लिए: SC छात्रों के लिए पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना जैसी पहल उनके दृष्टिकोण को दर्शाती है, लेकिन वंचित छात्रों के बीच स्कूल छोड़ने की दर को कम करने के लिए इसे और अधिक विस्तारित रूप में लागू करने की आवश्यकता है।
- निर्णय लेने वाले निकायों में प्रतिनिधित्व: अंबेडकर ने व्यवस्थागत पूर्वाग्रह को दूर करने के लिए विधायिकाओं और सार्वजनिक सेवाओं में हाशिए पर स्थित समुदायों के लिए पर्याप्त प्रतिनिधित्व की माँग की।
- उदाहरण के लिए: आरक्षण की नीति ने संसद जैसी संस्थाओं में अनुसूचित जातियों के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने में मदद की है, फिर भी उच्च न्यायपालिका और कॉर्पोरेट नेतृत्व में उनकी भागीदारी सीमित बनी हुई है।
- आर्थिक स्वतंत्रता: अंबेडकर ने जाति-आधारित शोषण को कम करने के लिए आर्थिक निर्भरता को कम करने पर बल दिया।
- उदाहरण के लिए: स्टैंड-अप इंडिया योजना जैसे कार्यक्रम, SC/ST समुदायों के बीच उद्यमशीलता को बढ़ावा देते हैं, जो आर्थिक उत्थान पर उनके बल को दर्शाते हैं, लेकिन ये कार्यक्रम अक्सर खराब वित्तीय साक्षरता और बाजार पहुँच के कारण विफल हो जाते हैं।
- सामाजिक और सांस्कृतिक सुधार: अंबेडकर ने जाति को कायम रखने वाले धार्मिक और सामाजिक मानदंडों को चुनौती देने की सिफारिश की।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 1970 के दशक में दलित पैंथर आंदोलन जैसे आंदोलनों का उद्देश्य अंबेडकर के दृष्टिकोण के अनुरूप जाति उत्पीड़न की समस्या का समाधान करना था, लेकिन आज भी इनके प्रभावशाली बने रहने के लिए निरंतर प्रयासों की आवश्यकता है।
- धर्म और नैतिकता में बदलाव: ‘शास्त्रों की पवित्रता’ को चुनौती देने का अंबेडकर का आह्वान धार्मिक रूढ़िवादिता में निहित जाति-आधारित बाधाओं को तोड़ने में महत्त्वपूर्ण है।
- उदाहरण के लिए: दलितों को मंदिरों में प्रवेश और अनुष्ठानों में उनकी भागीदारी की अनुमति देने के लिए चल रहा संघर्ष धार्मिक प्रथाओं में जाति की निरंतरता को उजागर करता है।
- राष्ट्रीय एकता के लिए बंधुत्व का निर्माण: अम्बेडकर ने एकजुट समाज के लिए आधारभूत सिद्धांतों के रूप में स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्त्व पर बल दिया।
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जाति-आधारित चुनौतियों से निपटने के लिए आगे की राह
- कानूनों का प्रभावी कार्यान्वयन: जातिगत हिंसा से निपटने के लिए SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम जैसे मौजूदा कानूनों के प्रवर्तन को सशक्त बनाना अति महत्त्वपूर्ण है।
- अंतरजातीय जुड़ाव को बढ़ावा देना: अंतरजातीय विवाह और सहयोग को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम सामाजिक बाधाओं को कम कर सकते हैं।
- उदाहरण के लिए: अंतरजातीय विवाह के माध्यम से सामाजिक एकीकरण के लिए डॉ. अंबेडकर योजना, इस संदर्भ में हालाँकि आशा प्रदान करती है, परंतु स्वीकृति को बढ़ावा देने के लिए अधिक धन और सामाजिक जागरूकता की आवश्यकता है।
- शैक्षिक सुधार: वंचित समुदायों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच का विस्तार करना, सामाजिक और आर्थिक अंतर को कम करने के लिए आवश्यक है।
- उदाहरण के लिए: SC/ST छात्रों के लिए पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना ने वंचित समूहों के लिए उच्च शिक्षा को सक्षम बनाया है, लेकिन इसके लिए बेहतर निधि आवंटन और निगरानी की आवश्यकता है।
- समावेशी आर्थिक नीतियाँ: अनुसूचित जातियों/जनजातियों के लिए समान आर्थिक अवसर सुनिश्चित करने हेतु कौशल प्रशिक्षण और बाज़ार पहुँच सहित अन्य योजनाएँ विकसित करना आवश्यक है।
- उदाहरण के लिए: मुद्रा ऋण जैसे कार्यक्रमों में वित्तीय स्वतंत्रता को बढ़ावा देने हेतु अनुसूचित जातियों के उद्यमियों के लिए विशिष्ट आवंटन की आवश्यकता होती है।
- सांस्कृतिक संवेदनशीलता: जातिवादी मानसिकता को बदलने और समानता को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता अभियान चलाने से सामाजिक परिवर्तन लाया जा सकता है।
- उदाहरण के लिए: स्कूलों में संविधान दिवस समारोह जैसी पहल बच्चों को समानता और भेदभाव विरोधी सिद्धांतों के बारे में शिक्षित करती है।
- डिजिटल और तकनीकी समाधान: जाति-आधारित भेदभाव की निगरानी और समाधान के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग, जैसे कि अत्याचारों की रिपोर्टिंग के लिए डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म, जवाबदेही बढ़ा सकते हैं।
- उदाहरण के लिए: ई-शिकायत निवारण पोर्टल जैसी पहल वंचित समुदायों को अधिक प्रभावी ढंग से न्याय पाने में सक्षम बना सकती हैं।
- जमीनी स्तर पर नेतृत्व विकास: वंचित समुदायों के बीच नेतृत्व को प्रोत्साहित करके स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर उनके हितों का प्रतिनिधित्व करने से स्थायी परिवर्तन लाया जा सकता है।
- उदाहरण के लिए: बेहतर शासन भागीदारी के लिए स्किल इंडिया के अंतर्गत आयोजित किए जाने वाले प्रशिक्षण कार्यक्रमों को वंचित पृष्ठभूमि से आने वाले नेतृत्वकर्ताओं को तैयार करने हेतु संशोधित किया जा सकता है।
समकालीन जाति-आधारित चुनौतियों का समाधान करने के लिए अंबेडकर के परिवर्तनकारी दृष्टिकोण को अपनाना आवश्यक है जिसमें संवैधानिक उपायों को सामाजिक सुधार के साथ जोड़ा गया है। शिक्षा, आर्थिक समानता और सामाजिक जागरूकता सुनिश्चित करने से गहन पूर्वाग्रहों को समाप्त करने में मदद मिल सकती है। जैसा कि अंबेडकर ने कहा था, ‘समानता एक कल्पना हो सकती है, लेकिन फिर भी इसे एक शासकीय सिद्धांत के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए,’ एक न्यायपूर्ण और समावेशी समाज के लिए निरंतर प्रयास अति आवश्यक हैं।
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