Q. भारत में लैंगिक समानता पर व्यापक चर्चा में पुरुषों के अधिकारों पर अक्सर कम ध्यान दिया जाता है। विशेष रूप से घरेलू हिंसा, मानसिक स्वास्थ्य और पैतृक अधिकारों जैसे क्षेत्रों में पुरुषों के सामने आने वाली विधिक, सामाजिक और संस्थागत चुनौतियों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए। लैंगिक न्याय के प्रति संतुलित दृष्टिकोण सुनिश्चित करने के लिए नीतिगत सुधार और संस्थागत उपाय सुझाएँ। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • चर्चा कीजिए कि भारत में लैंगिक समानता पर होने वाली व्यापक चर्चा में पुरुषों के अधिकारों पर अक्सर कम ध्यान दिया जाता है।
  • पुरुषों द्वारा सामना की जाने वाली कानूनी, सामाजिक और संस्थागत चुनौतियों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए, विशेषकर घरेलू हिंसा, मानसिक स्वास्थ्य और पैतृक अधिकार जैसे क्षेत्रों में। 
  • लैंगिक न्याय के प्रति संतुलित दृष्टिकोण सुनिश्चित करने के लिए नीतिगत सुधार और संस्थागत उपाय सुझाइये।

उत्तर

पुरुषों के अधिकारों का तात्पर्य कानूनी और सामाजिक अधिकारों से है, जो विशेष रूप से पुरुषों द्वारा सामना किए जाने वाले मुद्दों को संबोधित करते हैं। भारत में, जबकि महिला सशक्तिकरण पर ध्यान देना आवश्यक है, पुरुषों की चुनौतियों पर अक्सर ध्यान नहीं दिया जाता है, जैसे कि धारा 498 A IPC के तहत घरेलू हिंसा के मामलों में झूठे आरोप , मानसिक स्वास्थ्य सहायता की कमी और सीमित पैतृक अधिकार। साझा पालन-पोषण कानूनों के बारे में हाल की बहस लैंगिक न्याय के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता को उजागर करती है।

Enroll now for UPSC Online Course

भारत में लैंगिक समानता पर होने वाली व्यापक चर्चा में पुरुषों के अधिकारों पर अक्सर कम ध्यान दिया जाता है।

  • घरेलू हिंसा के शिकार के रूप में पुरुषों की सीमित मान्यता: पुरुषों को घरेलू दुर्व्यवहार के शिकार के रूप में कानूनी मान्यता नहीं मिलती है, जिससे सुरक्षा की माँग करना या दुर्व्यवहार के मामलों की रिपोर्ट करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। 
    • उदाहरण के लिए: जीवनसाथी द्वारा भावनात्मक, वित्तीय या शारीरिक दुर्व्यवहार के शिकार पुरुषों को सामाजिक कलंक का सामना करना पड़ता है और घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम, 2005 जैसे मौजूदा ढाँचों के तहत उनके पास कानूनी सहारा नहीं होता है।
  • मानसिक स्वास्थ्य चर्चा में कम प्रतिनिधित्व: पुरुषों से भावनाओं को दबाने की सामाजिक अपेक्षाएँ, उनके मानसिक स्वास्थ्य की उपेक्षा करती हैं जिससे आत्महत्या की दर बढ़ती है और मनोवैज्ञानिक समस्याओं का इलाज नहीं हो पाता। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2022 के लिए NCRB के आंकड़ों से पता चलता है, कि आत्महत्याओं की घटनाओं में पुरुषों की हिस्सेदारी 72.5% है, जो लैंगिक संवेदनशील मानसिक स्वास्थ्य नीतियों की आवश्यकता पर बल देता है।
  • पारिवारिक कानूनों और पैतृक अधिकारों में पक्षपात: तलाक या अलगाव कानून मातृ अभिरक्षा के पक्ष में होते हैं, पिता की भूमिका को कम करते हैं और बच्चे के पालन-पोषण में उन्हें समान अधिकारों से वंचित करते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: गार्जियन एंड वार्ड्स एक्ट, 1890, मातृ अभिरक्षा को प्राथमिकता देता है जब तक कि माँ को अयोग्य न माना जाए।
  • लिंग-विशिष्ट कानूनों का दुरुपयोग: धारा 498A (दहेज उत्पीड़न) जैसे लिंग-विशिष्ट कानूनों का कभी-कभी दुरुपयोग किया जाता है, जिससे निर्दोष पुरुषों की प्रतिष्ठा पर आघात होता है, उन्हें वित्तीय नुकसान का सामना करना पड़ता है और भावनात्मक रूप से वे कमजोर हो जाते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: राजेश शर्मा बनाम यूपी राज्य वाद (2017) में, उच्चतम न्यायलय  ने धारा 498A के दुरुपयोग पर ध्यान दिया और झूठे आरोपों के खिलाफ सुरक्षा उपाय पेश किए।
  • संस्थागत उपेक्षा और निवारण तंत्र का अभाव: पुरुषों के पास शिकायतों के समाधान के लिए समर्पित संस्थान या हेल्पलाइन नहीं हैं, जिससे उनके मुद्दों को कानूनी और सामाजिक ढांचे में  नहीं शामिल किया जाता और उन्हें मदद नहीं मिल पाती है। 
    • उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय महिला आयोग के विपरीत, शिकायतों के समाधान या पुरुषों के अधिकारों की वकालत करने के लिए कोई समकक्ष संस्था मौजूद नहीं है।
  • लैंगिक पूर्वाग्रह को मजबूत करने वाली रूढ़ियाँ: सामाजिक रूढ़ियाँ पुरुषों को अपराधी के रूप में चित्रित करती हैं, संस्थागत दृष्टिकोण को प्रभावित करती हैं और कार्यस्थल पर दुर्व्यवहार या यौन उत्पीड़न जैसे मामलों में निष्पक्ष व्यवहार को सीमित करती हैं। 
    • उदाहरण के लिए: विशाखा दिशा-निर्देश केवल महिलाओं के साथ कार्यस्थल पर होने वाले उत्पीड़न को कवर करते हैं, जिससे पुरुष पीड़ितों को भारतीय कानून के तहत समान सुरक्षा नहीं मिलती है।
  • यौन शोषण के पुरुष पीड़ितों के लिए समर्थन की कमी: यौन शोषण के वयस्क पुरुष पीड़ितों को कानूनी ढाँचे के अंतर्गत मान्यता नहीं दी जाती है, जिससे उन्हें वैधानिक उपचार या संस्थागत सहायता नहीं मिल पाती है। 
    • उदाहरण के लिए: IPC की धारा 375 बलात्कार को केवल महिला के दृष्टिकोण से परिभाषित करती है, जिससे यौन उत्पीड़न के पुरुष पीड़ितों के पास कोई सहारा नहीं रह जाता।

पुरुषों के सामने आने वाली चुनौतियाँ, विशेषकर घरेलू हिंसा, मानसिक स्वास्थ्य और पितृत्व अधिकार जैसे क्षेत्रों में।

पहलू घरेलू हिंसा मानसिक स्वास्थ्य पैतृक अधिकार
कानूनी प्रावधान भारतीय दंड संहिता की धारा 498 A महिलाओं को पतियों और ससुराल वालों द्वारा की जाने वाली क्रूरता से सुरक्षा प्रदान करती है। मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 सभी नागरिकों के लिए अधिकार-आधारित मानसिक स्वास्थ्य सहायता सुनिश्चित करता है। संरक्षक एवं प्रतिपाल्य अधिनियम, 1890 , तथा हिन्दू अल्पसंख्यक एवं संरक्षकता अधिनियम, 1956, बच्चों की हिरासत के लिए मातृ पक्ष को प्राथमिकता देते हैं।
कानूनी चुनौती घरेलू हिंसा के पुरुष पीड़ितों के लिए स्पष्ट प्रावधानों का अभाव है। उदाहरण के लिए: पुरुषों को मौजूदा कानूनों के तहत शिकायत दर्ज कराने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। पुरुषों के विशिष्ट मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने वाले
लिंग-संवेदनशील कार्यान्वयन का अभाव । उदाहरण के लिए: अनुपचारित मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं के कारण पुरुषों में आत्महत्या की दर में वृद्धि ।
न्यायालय अक्सर हिरासत के मामलों में माताओं का पक्ष लेते हैं , तब भी जब पिता अधिक सक्षम होते हैं।
उदाहरण के लिए: सीमित संयुक्त कस्टडी के फैसले।
सामाजिक प्रावधान कमजोर प्रतीत होने से संबंधित कलंक के कारण, सामाजिक मानदंड दुर्व्यवहार की रिपोर्ट करने से हतोत्साहित करते हैं । उदाहरण के लिए: उपहास का डर पुरुषों को रोकता है। कल्चरल कंडीशनिंग पुरुषों को मदद लेने से हतोत्साहित करती है। उदाहरण के लिए: “मैन अप” जैसे वाक्यांश मानसिक संघर्षों को महत्त्वहीन बनाते हैं। पिताओं को ऐसी सामाजिक अपेक्षाओं का सामना करना पड़ता है कि वे देखभाल करने वाले की बजाय
वित्तीय प्रदाता बनें। उदाहरण के लिए: रूढ़िबद्ध धारणा बच्चों के पालन-पोषण में उनकी भूमिका को कम करती है ।
सामाजिक चुनौती सामाजिक ध्यान अक्सर पुरुषों को अपराधी मानता है और उन्हें संभावित पीड़ितों के रूप में अनदेखा करता है।
उदाहरण के लिए: मीडिया  के आख्यानों में शायद ही कभी पुरुष पीड़ितों की बात की जाती है।
मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता अभियान मुख्य रूप से महिलाओं और बच्चों को लक्षित करते हैं। उदाहरण के लिए: CSR के तहत आयोजित की जाने वाली पहलें अक्सर वयस्क पुरुष जनसांख्यिकी की उपेक्षा करती है। पैतृक लगाव को पहचानने में कमी भावनात्मक संघर्षों को जन्म देती है। उदाहरण के लिए: तलाक के बाद बच्चों से अलगाव ।
संस्थागत प्रावधान पुरुषों के लिए कुछ हेल्पलाइन मौजूद हैं।
उदाहरण के लिए: मेन्स राइट्स एसोसिएशन
सरकार और गैर सरकारी संगठन मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम चलाते हैं।
उदाहरण के लिए: NIMHANS.
उभरते मामलों में न्यायिक विवेक के तहत संयुक्त अभिरक्षा या मुलाकात के अधिकार प्रदान किए जाने लगे हैं।
संस्थागत चुनौती सीमित बुनियादी ढाँचा या सेवाएँ।
उदाहरण के लिए: महिलाओं की तुलना में पुरुषों के लिए कम आश्रय स्थल मौजूद हैं।
पुरुषों के लिए विशेष रूप से तैयार की गई मानसिक स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव।
उदाहरण के लिए: थेरेपी सेवाएँ पुरुषों से जुड़े कलंक को प्रभावी ढंग से संबोधित नहीं कर सकती हैं।
पारिवारिक न्यायालयों पर काम का बोझ बहुत अधिक है, जिससे कस्टडी विवादों के
समाधान में देरी हो रही है । उदाहरण के लिए:  अक्सर होने वाले कस्टडी विवाद

लैंगिक न्याय के प्रति संतुलित दृष्टिकोण सुनिश्चित करने के लिए नीतिगत सुधार

  • लिंग-तटस्थ कानून: घरेलू हिंसा अधिनियम और IPC की धारा 498 A जैसे मौजूदा कानूनों में संशोधन करके उन्हें लिंग-तटस्थ बनाया जाना चाहिए, ताकि घरेलू हिंसा और झूठे आरोपों के खिलाफ पुरुषों के लिए समान सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। 
    • उदाहरण के लिए: कनाडा और UK जैसे देशों में, घरेलू हिंसा कानून लिंग-तटस्थ हैं, जो लिंग की परवाह किए बिना व्यक्तियों की रक्षा करते हैं।
  • चाइल्ड कस्टडी से संबंधित पैतृक अधिकार: साझा पालन-पोषण कानून लागू करना चाहिए जो यह सुनिश्चित करे कि पिता को अलगाव या तलाक के बाद बच्चे की देखभाल और मुलाकात के संबंध में समान अधिकार हों। यह बच्चे के सर्वोत्तम हितों को बढ़ावा देगा। 
    • उदाहरण के लिए: साझा पालन-पोषण की अवधारणा ऑस्ट्रेलिया में अच्छी तरह से लागू की गई है, जो कस्टडी से संबंधित निर्णयों में माता-पिता दोनों को बराबर मानती है।
  • पुरुषों के मानसिक स्वास्थ्य सहायता के लिए प्रावधान: कार्यस्थल कल्याण कार्यक्रमों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को एकीकृत करके और जागरूकता अभियान बनाकर
    पुरुषों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करने वाली समर्पित नीतियाँ स्थापित करनी चाहिए। 

    • उदाहरण के लिए: जापान ने तनाव कम करने के उद्देश्य से कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम शुरू किया है, जिसमें लिंग-विशिष्ट चिंताओं को भी शामिल किया जा सकता है।
  • झूठे आरोपों पर कार्रवाई करना: घरेलू हिंसा, दहेज उत्पीड़न और यौन उत्पीड़न के मामलों में झूठे आरोपों को रोकने और दंडित करने के लिए कड़े तंत्र लागू करने चाहिए ताकि कानूनों का दुरुपयोग रोका जा सके।

Check Out UPSC CSE Books From PW Store

लैंगिक न्याय के प्रति संतुलित दृष्टिकोण सुनिश्चित करने के लिए संस्थागत उपाय

  • पुरुष कल्याण आयोगों की स्थापना: कानूनी सहायता और परामर्श सहित पुरुषों से जुड़े अन्य मुद्दों को संबोधित करने के लिए महिला आयोगों के समान राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर वैधानिक निकाय बनाए जाने चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: यूनाइटेड किंगडम में एक ‘मेन एंड बॉयज कोएलिशन’ (Men and Boys Coalition) है जो मानसिक स्वास्थ्य और पैतृक अधिकारों जैसे मुद्दों की वकालत करता है।
  • विशेष हेल्पलाइन और आश्रय: घरेलू हिंसा या दुर्व्यवहार के पुरुष पीड़ितों के लिए तत्काल सहायता तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिए लिंग-तटस्थ हेल्पलाइन और आश्रय स्थापित करने चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: भारत में MAVA (मेन अगेंस्ट वायलेंस एंड एब्यूज) पहल दुर्व्यवहार के पुरुष पीड़ितों को सहायता प्रदान करती है।
  • न्यायिक प्रशिक्षण और संवेदनशीलता: न्यायपालिका और कानून प्रवर्तन अधिकारियों को लिंग-तटस्थ दृष्टिकोण और पुरुषों द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियों के संबंध में प्रशिक्षित करना चाहिए ताकि घरेलू हिंसा, हिरासत और दुर्व्यवहार से जुड़े मामलों में निष्पक्ष व्यवहार सुनिश्चित किया जा सके। 
    • उदाहरण के लिए: केरल में पुलिस के लिए नियमित संवेदनशीलता कार्यशालाओं के परिणामस्वरूप लिंग-आधारित शिकायतों का अधिक संतुलित तरीके से निपटारा हुआ है।
  • समावेशी कार्यस्थल नीतियाँ: संगठनों को समावेशी कार्यस्थल नीतियाँ अपनाने के लिए बाध्य करना चाहिए जो पितृत्व अवकाश, पुरुषों द्वारा सामना किए जाने वाले यौन उत्पीड़न और मानसिक स्वास्थ्य सहायता जैसे मुद्दों का समाधान करने पर केंद्रित हों। 
    • उदाहरण के लिए: स्वीडन की पैतृक अवकाश नीति पिताओं को समान अवकाश प्रदान करती है, जिससे घर में साझा पालन-पोषण और लैंगिक समानता को बढ़ावा मिलता है।

लैंगिक न्याय के प्रति संतुलित दृष्टिकोण सुनिश्चित करने के लिए पुरुषों के अधिकारों को समान गंभीरता से लेना अति आवश्यक है। लैंगिक-तटस्थ कानून, मानसिक स्वास्थ्य सहायता में वृद्धि, और सामाजिक रूढ़ियों को खत्म करने के लिए जागरूकता अभियान महत्त्वपूर्ण कदम हैं। जैसा कि मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने कहा था, ‘किसी भी जगह अन्याय हर जगह न्याय के लिए खतरा है।’ एक सही मायने में समावेशी प्रणाली सभी लिंगों का उत्थान करती है समाज में निष्पक्षता और सद्भाव को बढ़ावा देती है।

To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

Need help preparing for UPSC or State PSCs?

Connect with our experts to get free counselling & start preparing

To Download Toppers Copies: Click here

Aiming for UPSC?

Download Our App

      
Quick Revise Now !
AVAILABLE FOR DOWNLOAD SOON
UDAAN PRELIMS WALLAH
Comprehensive coverage with a concise format
Integration of PYQ within the booklet
Designed as per recent trends of Prelims questions
हिंदी में भी उपलब्ध
Quick Revise Now !
UDAAN PRELIMS WALLAH
Comprehensive coverage with a concise format
Integration of PYQ within the booklet
Designed as per recent trends of Prelims questions
हिंदी में भी उपलब्ध

<div class="new-fform">






    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.