Q. भारतीय रेलवे ने राष्ट्रीय एकीकरण और आर्थिक प्रगति को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हाल के सुधारों और बुनियादी ढाँचे के विकास के मद्देनजर, भारतीय रेलवे द्वारा अपनी लॉजिस्टिक्स दक्षता बढ़ाने में आने वाली चुनौतियों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। भारतीय रेलवे को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने में ‘3S रणनीति’ (शेयर, स्पीड और सेवा लागत) के महत्त्व पर भी चर्चा कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • इस बात पर प्रकाश डालिये कि किस प्रकार भारतीय रेलवे ने राष्ट्रीय एकीकरण और आर्थिक प्रगति को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • भारतीय रेलवे में लॉजिस्टिक्स दक्षता बढ़ाने के संबंध में हालिया  सुधारों और बुनियादी ढाँचे  के विकास का परीक्षण कीजिए।
  • हालिया सुधारों और बुनियादी ढाँचे के विकास के मद्देनजर, भारतीय रेलवे के सामने अपनी लॉजिस्टिक्स दक्षता बढ़ाने में आने वाली चुनौतियों का विश्लेषण कीजिए।
  • भारतीय रेलवे को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने में ‘3S रणनीति’ (शेयर, स्पीड और सेवा लागत) के महत्त्व पर चर्चा कीजिए।

उत्तर

भारतीय रेलवे प्रणाली को अर्थव्यवस्था की नींव और जीवनदायिनी माना जाता है, जो वार्षिक रूप से 1.5 बिलियन टन से अधिक माल का परिवहन करती है। समर्पित गुड्स कॉरिडोर और वंदे भारत ट्रेनों सहित अन्य हालिया सुधारों का उद्देश्य लॉजिस्टिक्स को आधुनिक बनाना है। हालाँकि, वैश्विक व्यापार और आपूर्ति श्रृंखला नेटवर्क में इसकी भूमिका को मजबूत करने के लिए विभिन्न चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक है।

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राष्ट्रीय एकता और आर्थिक प्रगति को बढ़ावा देने में भूमिका

  • क्षेत्रीय संपर्क बढ़ाना: भारतीय रेलवे, दूरदराज और शहरी क्षेत्रों को जोड़कर भौगोलिक विभाजन को कम करता है, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और आर्थिक अंतरनिर्भरता को बढ़ावा देता है। यह एकीकरण राष्ट्रीय एकता और क्षेत्रीय विकास को मजबूत करता है। 
    • उदाहरण के लिए: जम्मू डिवीजन परियोजना से छह दशकों के बाद कश्मीर तक निर्बाध रेल संपर्क संभव होगा, जिससे क्षेत्र में आर्थिक अवसरों और पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।
  • व्यापार सुविधा के माध्यम से आर्थिक विकास को बढ़ावा देना: माल और कच्चे माल का कुशलतापूर्वक परिवहन करके, भारतीय रेलवे भारत की औद्योगिक और कृषि आपूर्ति श्रृंखलाओं की रीढ़ की हड्डी के रूप में कार्य करता है, जिससे परिवहन लागत कम होती है और उत्पादकता बढ़ती है। 
    • उदाहरण के लिए: दक्षिण तटीय रेलवे जोन से माल ढुलाई में सुधार करके आंध्र प्रदेश और आसपास के क्षेत्रों में व्यापार, कृषि और पर्यटन को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
  • किफायती और सुलभ परिवहन प्रदान करना: यात्रा के एक किफायती साधन के रूप में, भारतीय रेलवे प्रतिदिन लाखों यात्रियों को सुगम परिवहन की सुविधा प्रदान करता है और सामाजिक समावेशन व शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच को बढ़ावा देता है। 
    • उदाहरण के लिए: बेहतर गति और आराम प्रदान करने वाली वंदे भारत ट्रेनें, यात्रा को और अधिक कुशल बनाती हैं जिससे शहरों में छात्रों, पेशेवरों और चिकित्सा रोगियों को लाभ होता है।
  • कार्बन फुटप्रिंट को कम करना और सतत विकास को बढ़ावा देना: रेलवे ट्रैक का विद्युतीकरण और हरित प्रौद्योगिकियों में निवेश, जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करता है, जो भारत के संधारणीयता संबंधी लक्ष्यों के साथ संरेखित है और साथ ही परिचालन दक्षता में सुधार करता है। 
    • उदाहरण के लिए: ट्रैक विद्युतीकरण पहल और सौर ऊर्जा संचालित स्टेशन, उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी लाते हैं तथा रेलवे परिचालन में नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाने को बढ़ावा देते हैं।
  • आपदा राहत और संकट प्रतिक्रिया: भारतीय रेलवे आपातकालीन स्थितियों के दौरान आवश्यक आपूर्ति, बचाव कर्मियों और चिकित्सा सहायता को तेजी से पहुँचाकर आपदा राहत में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 
    • उदाहरण के लिए: COVID-19 महामारी के दौरान भारतीय रेलवे ने कोचों को आइसोलेशन वार्ड में बदल दिया और फंसे हुए प्रवासी श्रमिकों के लिए विशेष ‘श्रमिक’ ट्रेनें चलाईं।

लॉजिस्टिक्स दक्षता बढ़ाने के लिए हालिया सुधार और बुनियादी ढाँचे  का विकास

  • नए डिवीजनों और रेलवे जोन का निर्माण: नए रेलवे डिवीजनों और ज़ोनों के निर्माण जैसे संरचनात्मक सुधार, रेल परिचालन को अनुकूलित करके प्रशासनिक दक्षता और क्षेत्रीय आर्थिक विकास को बढ़ाते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: जम्मू डिवीजन और साउथ कोस्ट रेलवे ज़ोन के निर्माण से स्थानीय निर्णय लेने और माल ढुलाई क्षमता में सुधार हुआ है।
  • माल ढुलाई और टर्मिनल इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश: माल ढुलाई कॉरिडोर का विस्तार और टर्मिनलों का आधुनिकीकरण तीव्र माल ढुलाई सुनिश्चित करता है, भीड़भाड़ को कम करता है और रसद दक्षता को बढ़ाता है। 
    • उदाहरण के लिए: डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (DFC) परियोजना माल परिवहन की गति को बढ़ाती है, जिससे माल ढुलाई सेवाओं की विश्वसनीयता में सुधार होता है।
  • प्रौद्योगिकी-संचालित सुरक्षा और परिचालन संवर्द्धन: KAVACH और डिजिटल लॉजिस्टिक्स प्लेटफ़ॉर्म जैसी आधुनिक सुरक्षा प्रणालियों को लागू करने से रेलवे की दक्षता बढ़ती है, जिससे दुर्घटनाएँ और रेल यात्राओं में होने वाली देरी रुकती है। 
    • उदाहरण के लिए: टकराव से बचने के लिए KAVACH प्रणाली, एक सुरक्षा तंत्र है, जिसे रेल सुरक्षा मानकों को बेहतर बनाने के लिए तैनात किया गया है।
  • वित्तीय सुधार और लागत अनुकूलन: माल ढुलाई शुल्क में क्रॉस-सब्सिडी को कम करने के उद्देश्य से बनाई गई नीतियाँ प्रतिस्पर्धी मूल्य निर्धारण सुनिश्चित करती हैं, जिससे अधिक उद्योग रेल परिवहन का उपयोग करने के लिए आकर्षित होते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: 1 लाख करोड़ रुपये के आवंटन के साथ राष्ट्रीय रेल संरक्षण कोष (RRSK), रेलवे के बुनियादी ढाँचे  के उन्नयन और सुरक्षा सुधारों पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • विद्युतीकरण और गति में वृद्धि: पटरियों को उन्नत करके और विद्युतीकरण का विस्तार करके यात्री और मालगाड़ियों की औसत गति बढ़ाने से परिचालन दक्षता और प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ती है। 
    • उदाहरण के लिए: वंदे भारत और तेजस एक्सप्रेस जैसी सुपरफास्ट ट्रेनों ने यात्रा में लगने वाले समय में सुधार किया है, जिससे हवाई और सड़क यात्रा के मुकाबले रेल परिवहन एक पसंदीदा विकल्प बन गया है।

भारतीय रेलवे के सामने अपनी रसद दक्षता बढ़ाने में आने वाली चुनौतियाँ

  • उच्च लॉजिस्टिक्स लागत: भारतीय रेलवे की लॉजिस्टिक्स लागत, सकल घरेलू उत्पाद के 14-18% के बीच है, जो 8% के वैश्विक बेंचमार्क से काफी अधिक है। इससे व्यवसायों पर लागत का बोझ बढ़ता है और प्रतिस्पर्धा कम होती है। 
    • उदाहरण के लिए: विश्व बैंक के लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन सूचकांक (2023) में भारत 38वें स्थान पर है जो प्रगति दर्शाता है, लेकिन भारत अभी भी वैश्विक व्यापार दक्षता में 300 बिलियन डॉलर के प्रतिस्पर्धी अंतर का सामना कर रहा है।
  • कम मालगाड़ी की गति: औसत मालगाड़ी की गति केवल 25 किमी/घंटा है जो टर्मिनल की भीड़, पुराने बुनियादी ढाँचे  और परिचालन अक्षमताओं के कारण अक्सर 13-15 किमी/घंटा तक कम हो जाती है।
    • उदाहरण के लिए: डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (DFC) की दक्षता में सुधार के बावजूद  कई गैर-DFC मार्गों पर मालगाड़ियों की तुलना में यात्री ट्रेनों को प्राथमिकता दिए जाने के कारण अभी भी धीमी गति से आवाजाही होती है।
  • क्रॉस-सब्सिडी का बोझ: यात्री किराया सब्सिडी की भरपाई के लिए माल ढुलाई संचालन पर उच्च क्रॉस-सब्सिडी लागत आती है, जिससे रेल माल ढुलाई, सड़क परिवहन की तुलना में कम प्रतिस्पर्धी हो जाती है।
    • उदाहरण के लिए: कम यात्री किराए से होने वाले नुकसान की भरपाई की आवश्यकता के कारण भारतीय रेलवे पर लगने वाला माल ढुलाई शुल्क, सड़क परिवहन की तुलना में अधिक है।
  • टर्मिनलों पर क्षमता संबंधी बाधाएँ: टर्मिनल की सीमित क्षमता और अकुशल संचालन के कारण प्रतीक्षा समय लंबा हो जाता है और माल को रोका जाता है जिससे समग्र परिवहन दक्षता कम हो जाती है। 
    • उदाहरण के लिए: प्रमुख रेलवे टर्मिनलों पर कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं की कमी के कारण, खराब होने वाले सामानों के परिवहन के लिए KISAN रेल पहल में देरी का सामना करना पड़ता है ।
  • लास्टमाइल कनेक्टिविटी के मुद्दे: एकीकृत मल्टीमॉडल परिवहन समाधानों की कमी, रेल से सड़क या बंदरगाहों तक निर्बाध माल की आवाजाही को प्रभावित करती है, जिससे टर्नअराउंड समय अधिक हो जाता है। 
    • उदाहरण के लिए: सागरमाला परियोजना का उद्देश्य रेलवे को प्रमुख बंदरगाहों के साथ एकीकृत करना है परंतु कुछ बंदरगाहों पर अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा, माल की आवाजाही को धीमा कर देता है।

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भारतीय रेलवे को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने में ‘3S रणनीति’ (शेयर, स्पीड और सर्विस कॉस्ट) का महत्त्व

  • मालगाड़ी की गति बढ़ाना: बेहतर ट्रैक इंफ्रास्ट्रक्चर और ऑटोमेशन के जरिए मालगाड़ी की गति 7-10 किलोमीटर प्रति घंटा बढ़ाने से दक्षता में सुधार होगा और टर्नअराउंड समय कम होगा। 
    • उदाहरण के लिए: बिबेक देबरॉय समिति (2015) ने दक्षता बढ़ाने और मालगाड़ी की गति बढ़ाने के लिए यात्री और मालगाड़ी संचालन को अलग करने की सिफारिश की थी। इसके अनुरूप, वंदे भारत मालगाड़ियाँ शुरू की गई हैं, जिसका लक्ष्य परंपरागत मालगाड़ियों की गति को दोगुना करना है।
  • माल परिवहन में हिस्सेदारी बढ़ाना: रेलवे की हिस्सेदारी 27% से बढ़ाकर 45% करने से सड़क परिवहन पर निर्भरता कम होगी, उत्सर्जन कम होगा और दक्षता बढ़ेगी। 
    • उदाहरण के लिए: डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (DFC) परियोजना ने कुछ मार्गों पर रेलवे की हिस्सेदारी दोगुनी कर दी है, जिससे कोयला और सीमेंट जैसी थोक वस्तुओं के परिवहन की लागत कम हो गई है।
  • सेवा शुल्क में कमी: लॉजिस्टिक्स लागत को GDP के 14-18% से घटाकर 10% से कम करने से भारतीय निर्यात अधिक प्रतिस्पर्धी बनेंगे और औद्योगिक विकास को बढ़ावा मिलेगा। 
    • उदाहरण के लिए: आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 ने इस बात पर प्रकाश डाला कि माल ढुलाई राजस्व द्वारा यात्री किराए के क्रॉस-सब्सिडी को कम करने से भारतीय रेलवे अधिक लागत-प्रतिस्पर्धी बन सकता है।
  • टर्मिनल इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार: फ्रेट टर्मिनल की क्षमता का विस्तार और हैंडलिंग तंत्र का आधुनिकीकरण, विलम्ब को कम करेगा और दक्षता बढ़ाएगा। 
    • उदाहरण के लिए: गति शक्ति मल्टी-मॉडल कार्गो टर्मिनल परियोजना, कार्गो की आवाजाही में सुधार के लिए 100 फ्रेट टर्मिनल विकसित कर रही है।
  • डिजिटल और सुरक्षा तकनीक अपनाना: AI-संचालित लॉजिस्टिक्स ट्रैकिंग, KAVACH सुरक्षा प्रणाली और स्वचालित माल ढुलाई शेड्यूलिंग को लागू करने से रेलवे की दक्षता और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ेगी। 
    • उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय रेल सुरक्षा कोष भी सुरक्षा में सुधार और देरी को कम करने में सहायक रहा है।
  • नीतिगत सुधार और बुनियादी ढाँचे  का विस्तार: राकेश मोहन समिति (2001) और राष्ट्रीय परिवहन विकास नीति समिति (NTDPC, 2014) जैसी रेलवे समितियों की सिफारिशों को लागू करना,सतत लॉजिस्टिक्स विस्तार के लिए महत्त्वपूर्ण है। 
    • उदाहरण के लिए: गति शक्ति विश्वविद्यालय का उद्देश्य लॉजिस्टिक्स प्रबंधन के लिए कुशल जनशक्ति प्रदान करना है, जिससे रेलवे क्षेत्र की परिचालन क्षमता में वृद्धि होगी।

भारतीय रेलवे की लॉजिस्टिक्स दक्षता बढ़ाने के लिए तकनीकी उन्नयन, सुव्यवस्थित संचालन और बेहतर बुनियादी ढाँचे पर ध्यान देने की आवश्यकता है। भविष्य के प्रयासों में सार्वजनिक-निजी सहयोग, डिजिटलीकरण और उच्च गति वाले माल ढुलाई कॉरिडोर में निवेश को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। ये उपाय प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देंगे, लागत कम करेंगे और भारतीय रेलवे को वैश्विक लॉजिस्टिक्स में एक प्रमुख देश के रूप में स्थान देंगे।

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