Q. डिजिटल क्रांति ने ग्रामीण भारत में प्रौद्योगिकी तक पहुँच का काफी विस्तार किया है, फिर भी लर्निंग आउटकम एक चुनौती बनी हुए हैं। भारत में शैक्षिक असमानताओं को दूर करने में प्रौद्योगिकी की भूमिका का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • चर्चा कीजिए कि किस प्रकार डिजिटल क्रांति ने ग्रामीण भारत में प्रौद्योगिकी तक पहुँच  को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ाया है।
  • प्रौद्योगिकी तक पहुँच  में विस्तार के बावजूद शिक्षण परिणामों में चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
  • भारत में शैक्षिक असमानताओं को दूर करने में प्रौद्योगिकी की भूमिका का विश्लेषण कीजिए।

उत्तर

डिजिटल क्रांति का तात्पर्य पारंपरिक तकनीकों से डिजिटल तकनीकों की ओर परिवर्तन से है, जिसका शिक्षा सहित विभिन्न क्षेत्रों पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। भारत के रजिस्ट्रार जनरल के अनुसार, डिजिटल क्रांति ने मार्च 2024 तक भारत के 95.15% गांवों को 3G / 4G कनेक्टिविटी और 398.35 मिलियन ग्रामीणों को इंटरनेट सेवा प्रदान करने में सहायता की। हालांकि शैक्षिक असमानताएं, संसाधन आवंटन और शैक्षणिक उपलब्धि में असमानताएँ, शिक्षण परिणामों को चुनौती देती रहती हैं।

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डिजिटल क्रांति से ग्रामीण भारत में प्रौद्योगिकी तक पहुँच  का विस्तार

  • स्मार्टफोन की पहुँच  में वृद्धि: 2024 तक ग्रामीण परिवारों में स्मार्टफोन धारकों का प्रतिशत 84% तक बढ़ जाएगा, जिससे शिक्षा के लिए बेहतर कनेक्टिविटी और डिजिटल पहुँच  संभव होगी।
  • डिजिटल उपकरणों का व्यापक उपयोग: महामारी के कारण वीडियो लेशन, डिजिटल वर्कशीट और ऑनलाइन प्रशिक्षण सत्र जैसे आभासी उपकरणों का व्यापक उपयोग हुआ। 
    • उदाहरण के लिए: COVID-19 के दौरान, कई शिक्षकों ने व्हाट्सएप जैसे ऐप का उपयोग करके वर्चुअल कक्षाएं संचालित कीं, जिससे दूरदराज के गांवों में भी छात्रों को लाभ हुआ।
  • बेहतर इंटरनेट कनेक्टिविटी: किफायती डेटा योजनाओं के प्रसार ने ग्रामीण क्षेत्रों में ऑनलाइन शैक्षिक सामग्री को अधिक सुलभ बना दिया।
  • शिक्षा क्षेत्र में AI का प्रवेश: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस उपकरण लोकप्रियता प्राप्त कर रहे हैं, व्यक्तिगत शिक्षण अनुभव प्रदान कर रहे हैं और भाषा संबंधी बाधाओं को तोड़ रहे हैं। 
    • उदाहरण के लिए: AI-संचालित अनुवाद उपकरण अब छात्रों को अपनी क्षेत्रीय भाषाओं में शैक्षिक सामग्री तक पहुँचने की अनुमति देते हैं, जिससे सामग्री अधिक समावेशी हो जाती है।
  • तकनीकी एकीकरण के लिए सरकारी पहल: DIKSHA और PM e-Vidya जैसे कार्यक्रमों ने ग्रामीण स्कूलों में छात्रों के लिए ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म और डिजिटल संसाधन पेश किए। 
    • उदाहरण के लिए: DIKSHA योजना  के तहत, शिक्षकों ने ग्रामीण छात्रों के लिए सुलभ लेक्चर्स और अन्य संसाधन अपलोड किए, जिससे लॉकडाउन के दौरान शिक्षा में निरंतरता को बढ़ावा मिला।

प्रौद्योगिकी तक पहुँच  के बावजूद शिक्षण परिणामों में व्याप्त चुनौतियाँ

  • डिवाइस स्वामित्व असमानता: स्मार्टफोन की पर्याप्त उपलब्धता के बावजूद, कई ग्रामीण परिवारों के पास केवल एक डिवाइस है, जिसका उपयोग अक्सर वयस्कों द्वारा काम के लिए किया जाता है। 
    • उदाहरण के लिए: माताएँ, जो प्रारंभिक शिक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, अक्सर अपने बच्चों की शिक्षा में सहायता के लिए स्मार्टफोन तक पहुँच से वंचित रहती हैं।
  • कम डिजिटल साक्षरता: कई छात्रों और अभिभावकों में शिक्षण के लिए डिजिटल उपकरणों का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के कौशल की कमी है, जिससे प्रौद्योगिकी के लाभ सीमित हो जाते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: अगस्त 2021 में ASER की रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 8% बच्चे और शहरी क्षेत्रों में 25% बच्चे नियमित रूप से ऑनलाइन पढ़ाई करते हैं।
  • गुणवत्तापूर्ण सामग्री की कमी: जबकि उपकरणों तक पहुँच में वृद्धि हुई है, उच्च गुणवत्ता वाली, सांस्कृतिक रूप से प्रासंगिक और आयु-उपयुक्त सामग्री की उपलब्धता सीमित बनी हुई है। 
    • उदाहरण के लिए: ग्रामीण स्कूल अक्सर पुरानी या अप्रासंगिक सामग्रियों पर निर्भर रहते हैं जो स्थानीय शिक्षण आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल रहती हैं।
  • असमान शिक्षक प्रशिक्षण: कई शिक्षकों में क्लासरुम लर्निंग में प्रौद्योगिकी को प्रभावी ढंग से एकीकृत करने के लिए उचित प्रशिक्षण का अभाव है, जिससे शिक्षण परिणामों पर इसका प्रभाव कम हो जाता है।
  • बुनियादी ढाँचे  में असमानता: कई ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली और इंटरनेट कनेक्शन की कमी है, जिससे लगातार डिजिटल शिक्षा प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।

भारत में शैक्षिक असमानताओं को दूर करने में प्रौद्योगिकी की भूमिका

  • भौगोलिक बाधाओं को कम करना: प्रौद्योगिकी, दूरस्थ क्षेत्रों में छात्रों को ऑनलाइन कक्षाओं, डिजिटल संसाधनों और आभासी शिक्षण प्लेटफार्मों के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने में सक्षम बनाती है।
  • समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देना: AI-संचालित उपकरण और बहुभाषी अनुप्रयोग भाषा संबंधी बाधाओं को तोड़ते हैं, जिससे छात्रों को उनकी मूल भाषाओं में शैक्षिक सामग्री सुलभ हो जाती है। 
    • उदाहरण के लिए: Google Translate और Bolo जैसे ऐप ने ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों को क्षेत्रीय भाषाओं में सीखने में मदद की है, जिससे उनकी समझ बढ़ी है।
  • व्यक्तिगत शिक्षण के अवसर: डिजिटल प्लेटफॉर्म अनुकूली शिक्षण अनुभव प्रदान करते हैं जो व्यक्तिगत छात्र की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं, और पारंपरिक कक्षा शिक्षण में अंतराल को शाम करते हैं।
  • वंचित समुदायों को सशक्त बनाना: प्रौद्योगिकी वंचित समुदायों, जैसे अशिक्षित माताओं को उनके बच्चों की शिक्षा में सहायता करने के लिए उपकरण प्रदान करती है, जिससे पीढ़ीगत शैक्षिक अंतराल को कम किया जा सके। 
    • उदाहरण के लिए: महामारी के दौरान शिक्षण सामग्री वितरित करने के लिए व्हाट्सएप के उपयोग ने ग्रामीण परिवारों की माताओं को अपने बच्चों की पढ़ाई में सहायता करने के लिए सशक्त बनाया।
  • शिक्षक-छात्र अनुपात में सुधार: समग्र शिक्षा योजना का लक्ष्य 20:1 का छात्र-शिक्षक अनुपात प्राप्त करना है, जिसमें प्रौद्योगिकी शिक्षकों द्वारा बार-बार किये जाने वाले कार्यों को स्वचालित करने में सहायक होगी, जिससे उन्हें कमजोर छात्रों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलेगी।
    • उदाहरण के लिए: DIKSHA का मंच, रेडी-टू-यूज लेशन प्लान उपलब्ध कराता है, जिससे कम स्टाफ वाले ग्रामीण स्कूलों में शिक्षकों को इंटरैक्टिव शिक्षण पर अधिक ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है।

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प्रौद्योगिकी के माध्यम से ग्रामीण शिक्षा को सशक्त बनाने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें शिक्षक प्रशिक्षण, स्थानीयकृत सामग्री और सामुदायिक जुड़ाव के साथ अभिनव उपकरणों का मिश्रण हो। डिजिटल विभाजन को कम करने, समावेशी शिक्षण पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने और AI-संचालित व्यक्तिगत शिक्षा का लाभ उठाकर, भारत क्लासरूम्स को अवसरों के केंद्रों में बदल सकता है। सुधार की अगली लहर के लिए ‘डिजिटल क्लासरूम, ब्राइटर फ्यूचर्स’  के सिद्धांत पर ध्यान केंद्रित करना अति आवश्यक है।

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