Q. जाँच कीजिए कि भारत की असंतुलित उर्वरक सब्सिडी नीति ने मृदा स्वास्थ्य संकट में कैसे योगदान दिया है। एक सतत मृदा प्रबंधन ढाँचा बनाने के लिए प्रौद्योगिकी, नीति सुधार और किसान शिक्षा को शामिल करते हुए एक बहुआयामी दृष्टिकोण का सुझाव दीजिये। इस संदर्भ में सार्वजनिक-निजी भागीदारी की भूमिका पर चर्चा भी कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग 

  • परीक्षण कीजिए कि भारत की असंतुलित उर्वरक सब्सिडी नीति ने मृदा स्वास्थ्य संकट में किस प्रकार योगदान दिया है।
  • एक संधारणीय मृदा प्रबंधन ढाँचा बनाने के लिए प्रौद्योगिकी, नीति सुधार और किसान शिक्षा को शामिल करते हुए एक बहुआयामी दृष्टिकोण का सुझाव दीजिए।
  • इस संदर्भ में सार्वजनिक-निजी भागीदारी की भूमिका पर चर्चा कीजिए।

उत्तर

मृदा स्वास्थ्य,  संधारणीय कृषि के लिए मौलिक है, फिर भी भारत की 42% भूमि अत्यधिक रासायनिक उर्वरक उपयोग के कारण निम्नीकरण की समस्या का सामना कर रही है। उर्वरक सब्सिडी नीति जो अधिकांशतः यूरिया पर केंद्रित है, ने असंतुलित NPK अनुपात को जन्म दिया है जिससे कार्बनिक कार्बन, उत्पादकता में कमी आई है और नाइट्रेट अपवाह के साथ भूजल दूषित हो रहा है

मृदा स्वास्थ्य संकट में असंतुलित उर्वरक सब्सिडी नीति का योगदान

  • अत्यधिक नाइट्रोजन का उपयोग: यूरिया-केंद्रित सब्सिडी के कारण NPK असंतुलन (4:2:1 के बजाय 7.7:3.1:1) हुआ है, जिससे मृदा की उर्वरता कम हुई है और फसल की पैदावार कम हुई है। 
    • उदाहरण के लिए: पंजाब की गेहूं-चावल की फसल प्रणाली में नाइट्रोजन-भारी उर्वरक उपयोग के कारण पैदावार में कमी देखी गई है, जिससे जैविक कार्बन और सूक्ष्म पोषक तत्वों में कमी आई है।
  • सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी: जैविक खाद की कीमत पर रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग ने जिंक और आयरन जैसे आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्वों को कम कर दिया है, जिससे मृदा की उत्पादकता प्रभावित हुई है। 
    • उदाहरण के लिए: भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान (भोपाल) द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि अत्यधिक यूरिया के उपयोग के कारण 50% भारतीय मिट्टी में जिंक की कमी है।
  • मृदा अम्लीकरण और लवणीकरण: असंतुलित उर्वरक के उपयोग से मृदा का pH कम हो जाता है और लवणता बढ़ जाती है, जिससे समय के साथ भूमि अनुपजाऊ हो जाती है। 
    • उदाहरण के लिए: उत्तर प्रदेश में, लगातार यूरिया-भारी उर्वरक के कारण pH 5.5 से नीचे चला गया है जिससे पौधों द्वारा पोषक तत्वों का अवशोषण कम हो गया है।
  • भूजल संदूषण: अत्यधिक यूरिया के उपयोग से होने वाला नाइट्रोजन अपवाह, भूजल में नाइट्रेट प्रदूषण का कारण बनता है जिससे स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न होता है। 
    • उदाहरण के लिए: केंद्रीय भूजल बोर्ड की 2020 की रिपोर्ट में पंजाब के भूजल में नाइट्रेट का उच्च स्तर पाया गया, जो सुरक्षित पेयजल सीमा से अधिक है।
  • कार्बनिक कार्बन की मात्रा में कमी: कार्बनिक पदार्थों के बिना सिंथेटिक उर्वरकों पर लंबे समय तक निर्भरता ने मृदा संरचना और सूक्ष्मजीवों के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण
    कार्बनिक कार्बन को कम कर दिया है।

    • उदाहरण के लिए: हरियाणा के चावल-गेहूँ बेल्ट में एक अध्ययन में पाया गया कि दो दशकों में कार्बनिक कार्बन की मात्रा 0.6% से घटकर 0.3% हो गई, जिससे मृदा उर्वरता कम हो गई।

संधारणीय मृदा प्रबंधन के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण

  • AI-आधारित मृदा परीक्षण: पोर्टेबल AI-सक्षम मृदा परीक्षण किट, मृदा पोषक तत्व की स्थिति के संबंध में रियलटाइम जानकारी प्रदान कर सकते हैं, जिससे सटीक उर्वरक अनुप्रयोग सुनिश्चित होता है। 
    • उदाहरण के लिए: KRISHI-RASTAA मृदा परीक्षण प्रणाली, एक IoT-आधारित कृषि विज्ञान परामर्शी उपकरण , 30 मिनट के भीतर 12 प्रमुख मृदा परीक्षण करता है  जिससे उर्वरक अनुशंसाओं में सुधार होता है।
  • संतुलित उर्वरक सब्सिडी: यूरिया-प्रधान सब्सिडी से पोषक तत्व-आधारित सब्सिडी में बदलाव से संतुलित उर्वरक उपयोग को बढ़ावा मिल सकता है और मृदा की गुणवत्ता को बहाल किया जा सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: फॉस्फोरस और पोटेशियम उर्वरकों के लिए पोषक तत्व-आधारित सब्सिडी (NBS) योजना ने किसानों पर उनकी लागत का बोझ कम कर दिया है, जिससे संतुलित उपयोग को बढ़ावा मिला है।
  • एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन (INM): जैविक खाद, जैवउर्वरक और रासायनिक उर्वरकों के संयोजन से दीर्घकालिक मृदा उर्वरता और सूक्ष्मजीव स्वास्थ्य सुनिश्चित होता है। 
    • उदाहरण के लिए: सिक्किम की जैविक खेती पहल, जिसने रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता को लगभग खत्म कर दिया, ने मृदा की संरचना में सुधार किया और कार्बनिक पदार्थ की मात्रा में वृद्धि की।
  • किसान जागरूकता कार्यक्रम: मृदा स्वास्थ्य कार्ड, परिशुद्ध कृषि और जैविक संशोधनों पर किसानों को प्रशिक्षण देकर मृदा प्रबंधन प्रथाओं का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जा सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA) संतुलित उर्वरक और मृदा संरक्षण तकनीकों को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता अभियान चलाता है।
  • मृदा स्वास्थ्य कार्ड अनुकूलन: समय पर मृदा परीक्षण रिपोर्ट और व्यक्तिगत फसल अनुशंसाएँ सुनिश्चित करने से अंगीकरण की दर और प्रभावशीलता में सुधार हो सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: आंध्र प्रदेश सरकार ने मृदा स्वास्थ्य कार्ड रिकॉर्ड को डिजिटल बनाने के लिए निजी फर्मों के साथ भागीदारी की, जिससे किसानों के बीच इसे अपनाने में वृद्धि हुई।

संधारणीय मृदा प्रबंधन में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) की भूमिका

  • नवाचार के लिए एग्रीटेक स्टार्टअप: निजी एग्रीटेक फर्म किसानों के लिए लागत प्रभावी मृदा परीक्षण समाधान और AI-संचालित सलाहकार प्लेटफ़ॉर्म विकसित कर सकती हैं। 
    • उदाहरण के लिए: कृषि प्रौद्योगिकी स्टार्टअप कृषितंत्र ने ICAR के साथ साझेदारी कर पोर्टेबल AI-आधारित मृदा परीक्षण किट विकसित की है  जिससे प्रयोगशाला परीक्षण पर निर्भरता कम होगी।
  • मृदा प्रयोगशालाओं के लिए कॉर्पोरेट फंडिंग: निजी क्षेत्र के वित्तपोषण से ग्रामीण क्षेत्रों में विकेन्द्रीकृत मृदा परीक्षण प्रयोगशालाएँ (STL) स्थापित करने में मदद मिल सकती है, जिससे लघु किसानों के लिए पहुँच बढ़ सकती है। 
    • उदाहरण के लिए: IFFCO (भारतीय कृषक उर्वरक सहकारी लिमिटेड) ने कई STL को वित्त पोषित किया है, जिससे दूरदराज के क्षेत्रों में मृदा परीक्षण सेवाओं में सुधार हुआ है।
  • संधारणीय उर्वरक मॉडल के लिए PPP: उर्वरक कंपनियों, शोध संस्थानों और सरकार के बीच सहयोगी परियोजनाएं साइट-विशिष्ट पोषक तत्व प्रबंधन को बढ़ावा दे सकती हैं। 
    • उदाहरण के लिए: फर्टिलाइजर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (FAI), ICAR के साथ साझेदारी में विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों के लिए संतुलित उर्वरक मॉडल विकसित कर रहा है।
  • परामर्श सेवाओं के लिए डिजिटल प्लेटफार्म: निजी फ़र्म मृदा स्वास्थ्य डेटा को मौसम पूर्वानुमानों के साथ एकीकृत करने वाले मोबाइल ऐप विकसित कर सकती हैं, जिससे किसानों को रियलटाइम निर्णय लेने में मदद मिलेगी। 
    • उदाहरण के लिए: भारतएग्री ऐप SHC डेटा के आधार पर व्यक्तिगत उर्वरक सिफारिशें प्रदान करता है, जिससे कृषि उत्पादकता बढ़ती है।
  • स्थिरता मानदंडों के साथ अनुबंध खेती: PPP अनुबंध खेती मॉडल को प्रोत्साहित कर सकते हैं जो संतुलित उर्वरक और मृदा संरक्षण प्रथाओं को अनिवार्य बनाते हैं।
    उदाहरण के लिए: पंजाब में पेप्सिको इंडिया की अनुबंध खेती पहल के तहत किसानों को एकीकृत मृदा उर्वरता प्रबंधन (ISFM) का पालन करना होगा, जिससे नाइट्रोजन का अत्यधिक उपयोग कम होगा।

पोषक तत्व आधारित दृष्टिकोण के साथ उर्वरक सब्सिडी में सुधार, परिशुद्ध कृषि का लाभ उठाना और सार्वजनिक-निजी भागीदारी को मजबूत करना, मृदा की जीवन शक्ति को बहाल कर सकता है। स्मार्ट सब्सिडी, रियलटाइम मृदा की निगरानी और किसान प्रशिक्षण द्वारा समर्थित एकीकृत मृदा प्रबंधन, दीर्घकालिक उत्पादकता सुनिश्चित करेगा। नीति नवाचार, प्रौद्योगिकी और जागरूकता का तालमेल एक प्रत्यास्थ और संधारणीय कृषि भविष्य को बढ़ावा देने के लिए महत्त्वपूर्ण है ।

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