Q. केरल में मानव-वन्यजीव संघर्ष ने बढ़ती मौतों और आवास विखंडन के कारण ध्यान आकर्षित किया है। इस संघर्ष के प्रमुख कारणों का विश्लेषण कीजिए तथा पारिस्थितिक संतुलन सुनिश्चित करते हुए इसके प्रभाव को कम करने के लिए स्थायी रणनीति सुझाएँ। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • इस संघर्ष के प्रमुख कारणों का विश्लेषण कीजिए।
  • इस संघर्ष के प्रमुख प्रभावों का विश्लेषण कीजिए।
  • पारिस्थितिक संतुलन सुनिश्चित करते हुए इसके प्रभाव को कम करने के लिए स्थायी रणनीति सुझाएँ।

उत्तर

मानव-वन्यजीव संघर्ष (HWC) का तात्पर्य मनुष्यों एवं वन्यजीवों के बीच होने वाली ऐसी अंतःक्रियाओं से है, जो दोनों के लिए नकारात्मक परिणाम उत्पन्न करती हैं। वर्ष 2019-20 तथा वर्ष 2023-24 के बीच केरल में जंगली जानवरों के हमलों में कुल 486 लोग मारे गए हैं। अतिक्रमण और बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के कारण तेजी से हो रहे आवास विखंडन ने संघर्षों को तीव्र कर दिया है, विशेष रूप से हाथियों, तेंदुओं और जंगली सूअरों के साथ संघर्षों को बढ़ा दिया है।

मानव-वन्यजीव संघर्ष के प्रमुख कारण

  • आवास विखंडन: वनों की कटाई, कृषि विस्तार, अतिक्रमण एवं मोनोकल्चर वृक्षारोपण वन्यजीवों की आवाजाही तथा खाद्य पैटर्न को बाधित करते हैं, जिससे वन्यजीव, मानव स्थानों पर चले जाते हैं।
    • उदाहरण के लिए: अरलम फार्म (कन्नूर) एवं चिन्नाक्कनल (इडुक्की) जैसे हाथी गलियारे अब विखंडित हो गए हैं, जिससे मानव-हाथी संघर्ष बढ़ रहे हैं।
  • आक्रामक वनस्पतियों का प्रसार: सेन्ना स्पेक्टेबिलिस जैसी प्रजातियों ने देशज वनस्पतियों को नष्ट कर दिया है, जिससे शाकाहारी जीवों के लिए प्राकृतिक खाद्य स्रोत कम हो गए हैं एवं उन्हें कृषि क्षेत्र की ओर विस्थापित होने को मजबूर कर दिया है।
  • अनियंत्रित मानवीय गतिविधियाँ: पर्यटन विस्तार, मवेशियों का चरना, तथा वन के किनारों के पास खाद्य अपशिष्ट फेंकना वन्यजीवों को आकर्षित करता है, जिससे अक्सर मानव संघर्ष होता है। 
    • उदाहरण के लिए: सबरीमाला तीर्थयात्रा मार्गों में खाद्य अपशिष्ट के कारण जंगली सूअर एवं बंदरों के बीच संघर्ष बढ़ गया है।
  • कानूनी एवं नीतिगत खामियाँ: मुआवजे, वध नीतियों एवं पुनर्वास उपायों पर स्पष्ट विनियमनों की कमी असंगत प्रतिक्रियाओं तथा तनावों को जन्म देती है।
  • पारंपरिक ज्ञान का कम उपयोग: जनजातीय समुदायों की पारंपरिक सह-अस्तित्व की रणनीतियाँ कम हो रही हैं, जिससे वन्यजीवों के हमलों के प्रति उनकी संवेदनशीलता बढ़ रही है।
    • उदाहरण के लिए: केरल सरकार नीतिगत एकीकरण के लिए संघर्ष शमन के जनजातीय तरीकों का दस्तावेजीकरण करने की योजना बना रही है।
  • जलवायु एवं मौसमी बदलाव: सूखा एवं बढ़ता तापमान वन्यजीवों को खाद्य एवं जल के लिए मानव क्षेत्रों में जाने के लिए मजबूर करता है, जिससे संघर्ष का जोखिम बढ़ जाता है।
    • उदाहरण के लिए: केरल में अपेक्षित सूखा एवं अत्यधिक गर्मी के कारण गाँवों तथा खेतों में जानवरों का आना-जाना बढ़ सकता है।

मानव-वन्यजीव संघर्ष के प्रभाव

  • मानव जीवन एवं आजीविका का नुकसान: वन्यजीवों के लगातार हमलों से किसानों की मृत्यु, चोट एवं आर्थिक नुकसान होता है, जिससे संकट तथा विरोध बढ़ता है।
    • उदाहरण के लिए: वायनाड में जंगली हाथियों द्वारा फसल नष्ट करने से किसान आंदोलन कर रहे हैं एवं सख्त वन्यजीव नियंत्रण की माँग कर रहे हैं।
  • वन्यजीव व्यवहार में व्यवधान: लगातार मानव-वन्यजीव संपर्क प्राकृतिक चारागाह एवं प्रवास पैटर्न को बदल देता है, जिससे कुछ प्रजातियाँ अधिक आक्रामक हो जाती हैं।
    • उदाहरण के लिए: खंडित परिदृश्यों में हाथी मानव उपस्थिति से बचने के लिए अधिक निशाचर हो जाते हैं, जिससे अप्रत्याशितता बढ़ जाती है।
  • प्रतिशोध स्वरूप की जाने वाली हत्याओं में वृद्धि: निराश किसान एवं ग्रामीण जहर, जाल तथा अवैध शिकार का सहारा लेते हैं, जिससे कमजोर प्रजातियाँ खतरे में पड़ जाती हैं।
    • उदाहरण के लिए: फसल पर हमला करने की घटनाओं के कारण पलक्कड़ जिले में हाथियों को अवैध रूप से जहर दिया जाना संघर्ष-प्रेरित हत्याओं में वृद्धि को दर्शाता है।
  • कमजोर संरक्षण प्रयास: संघर्ष संरक्षण के लिए सार्वजनिक समर्थन को कम करता है, जिससे संरक्षित क्षेत्रों में वध, आवास विनाश एवं बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं की माँग होती है। 
    • उदाहरण के लिए: बस्तियों के पास वन्यजीव अभ्यारण्यों के प्रति बढ़ता विरोध जैव विविधता संरक्षण नीतियों के लिए खतरा उत्पन्न करता है।

शमन एवं पारिस्थितिकी संतुलन के लिए संधारणीय रणनीतियाँ

  • सहभागी संघर्ष प्रबंधन: स्थानीय समुदायों, आदिवासी समूहों एवं किसानों को संरक्षण योजनाओं में शामिल करना, जिससे वन्यजीव संरक्षण तथा मानव सुरक्षा के बीच संतुलन सुनिश्चित हो सके।
    • उदाहरण के लिए: वायनाड में समुदाय के नेतृत्व में फसल सुरक्षा उपायों ने हाथियों के हमलों को 30% तक कम कर दिया।
  • पर्यावरण के अनुकूल आवास पुनर्स्थापन: मोनोकल्चर बागानों को देशज जंगलों से बदलें, वन्यजीव गलियारे विकसित करना एवं जंगलों के अंदर जल की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
    • उदाहरण के लिए: केरल के वन विभाग ने 5,031 हेक्टेयर बंजर भूमि को पुनर्स्थापित किया एवं गाँवों में वन्यजीवों के प्रवास को कम करने के लिए चेक डैम बनाए।
  • प्रौद्योगिकी एवं बुनियादी ढाँचे का उपयोग: मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए सौर बाड़, सेंसर-आधारित प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली एवं ड्रोन निगरानी तैनात करना।
    • उदाहरण के लिए: नीलांबुर में AI-संचालित हाथी ट्रैकिंग ने जनहानि में 25% की कमी की है।
  • नीति सुधार एवं मुआवजा तंत्र: नियंत्रित पशु आबादी प्रबंधन पर त्वरित प्रतिक्रिया दल, पारदर्शी मुआवजा नीतियाँ एवं कानूनी स्पष्टता स्थापित करना।
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2023 में मानव-वन्यजीव संघर्ष को राज्य विशिष्ट आपदा घोषित करने से शमन उपायों के लिए आपदा निधि सक्षम हो सकेगी।

केरल के मानव-वन्यजीव गतिशीलता के लिए ‘सह-अस्तित्व, संघर्ष नहीं’ मार्गदर्शक सिद्धांत होना चाहिए। पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्रों को मजबूत करना, समुदाय के नेतृत्व में संरक्षण, एवं प्रौद्योगिकी-संचालित निगरानी टकराव को कम कर सकती है। कृषि वानिकी, सहभागी वन तथा आवास पुनर्स्थापन से अतिक्रमण कम होंगे, जबकि त्वरित मुआवजा तंत्र हितधारकों के सहयोग को सुनिश्चित करेगा। पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक विज्ञान के साथ एकीकृत करने वाला एक समग्र ‘वन्यजीवों के साथ रहना’ मॉडल दीर्घकालिक सद्भाव के लिए अनिवार्य है।

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