प्रश्न की मुख्य माँग
- चर्चा कीजिए कि संवैधानिक प्रावधानों और NFSA 2013 जैसे कानूनी ढाँचे के बावजूद भारत में मातृत्व अधिकारों का क्रियान्वयन अप्रभावी रूप से क्यों किया जाता है।
- कार्यान्वयन में चुनौतियों और केंद्र-राज्य असमानताओं का परीक्षण कीजिए।
- सामाजिक कल्याण उद्देश्यों के साथ राजकोषीय बाधाओं को संतुलित करते हुए बहुआयामी सुधारों का सुझाव दीजिए।
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उत्तर
मातृत्व अधिकार, महिलाओं के लिए वित्तीय और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013 के बावजूद, जो मातृत्व लाभ को अनिवार्य बनाता है, भारत वैश्विक भुखमरी सूचकांक 2023 में 125 देशों में से 111वें स्थान पर है। NFHS-5 (2019-21) से पता चलता है, कि केवल 58% माताओं को पूर्णत: प्रसवपूर्व देखभाल (कम से कम 4 प्रसवपूर्व देखभाल दौरे) प्राप्त हुई। फंड आवंटन, जागरूकता और कार्यान्वयन में अंतराल ऐसे प्रावधानों के प्रभाव को कमजोर करता है।
भारत में मातृत्व अधिकारों का अप्रभावी कार्यान्वयन
- NFSA 2013 का कानूनी उल्लंघन: प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY) सार्वभौमिक कवरेज के बजाय प्रति परिवार केवल एक बच्चे को लाभ सीमित करके NFSA 2013 का खंडन करती है।
- उदाहरण के लिए: NFSA प्रति जन्म ₹6,000 अनिवार्य करता है, परंतु PMKVY केवल ₹5,000 प्रदान करता है, जो कानून का उल्लंघन करता है और महिलाओं के लिए वित्तीय सहायता को कम करता है।
- अपर्याप्त बजट आवंटन: मातृत्व लाभ के लिए बजटीय आवंटन लगातार कम रहा है, जिससे देश भर में प्रभावी कवरेज नहीं हो पाया है।
- उदाहरण के लिए: PMMVY को वर्ष 2023-24 में केवल ₹870 करोड़ प्राप्त हुए जबकि NFSA-अनिवार्य स्तरों पर 90% जन्मों को कवर करने के लिए ₹12,000 करोड़ की आवश्यकता है।
- डिजिटल बहिष्करण और आधार-संबंधी मुद्दे: आधार-लिंक्ड भुगतान, तकनीकी गड़बड़ियां और दस्तावेज़ीकरण संबंधी बाधाओं के कारण, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, पात्र महिलाओं का एक बड़ा वर्ग इससे वंचित रह जाता है।
- सीमित जागरूकता और पहुँच: कई महिलाएँ, खास तौर पर वंचित समुदायों में, अपने मातृत्व अधिकारों के बारे में जागरूकता की कमी है, जिससे आवेदन दर कम हो जाती है।
- उदाहरण के लिए: बिहार और उत्तर प्रदेश में सर्वेक्षणों से पता चलता है कि 40% पात्र महिलाएँ PMMVY के बारे में नहीं जानती थीं, जिसके परिणामस्वरूप निधियों का कम उपयोग हुआ।
- प्रशासनिक लालफीताशाही और भ्रष्टाचार: अत्यधिक कागजी कार्रवाई, शर्तें और बिचौलिए समय पर भुगतान में बाधा उत्पन्न करते हैं, जिससे छूट और लीकेज की समस्याएँ उत्पन्न होती है।
- उदाहरण के लिए: एक अध्ययन के अनुसार मध्य प्रदेश में, 30% आवेदकों को दस्तावेज-संबंधी देरी का सामना करना पड़ा, और कुछ लोगों से आवेदनों को संसाधित करने के लिए रिश्वत माँगी गई।
कार्यान्वयन में चुनौतियाँ और केंद्र-राज्य असमानताएँ
कार्यान्वयन चुनौतियाँ
- शर्तें और जटिल प्रक्रियाएँ: संस्थागत प्रसव और टीकाकरण रिकॉर्ड जैसी सख्त पात्रता शर्तें, स्वास्थ्य सेवा में कमी के कारण उन्हें पूरा करने में असमर्थ महिलाओं को अयोग्य ठहराती हैं।
- उदाहरण के लिए: झारखंड में NFSA द्वारा सार्वभौमिक मातृत्व अधिकार सुनिश्चित करने के बावजूद, 25% महिलाओं को घर पर जन्म देने के लिए लाभ से वंचित किया गया।
- पारदर्शिता और निगरानी का अभाव: महिला एवं बाल विकास मंत्रालय कार्यान्वयन डेटा का सक्रिय रूप से खुलासा नहीं करता है, जिससे जवाबदेही मुश्किल हो जाती है।
- उदाहरण के लिए: RTI प्रश्नों से पता चला है कि वर्ष 2023-24 में PMMVY कवरेज घटकर 9% रह गया है, लेकिन सरकार ने सार्वजनिक रूप से इसके कारणों को नहीं बताया है।
- विभागों के बीच कमजोर समन्वय: स्वास्थ्य, महिला एवं बाल विकास तथा वित्त मंत्रालयों के बीच विखंडित दृष्टिकोण के कारण क्रियान्वयन में अक्षमता आती है।
- उदाहरण के लिए: केंद्रीय वित्त मंत्रालय और राज्य स्तरीय कार्यान्वयन एजेंसियों के बीच प्रक्रियागत बाधाओं के कारण PMMVY निधि में अक्सर विलम्ब होती है ।
केंद्र-राज्य असमानताएँ
- असमान वित्तीय योगदान: जबकि PMMVY केंद्र द्वारा प्रायोजित है, राज्यों को इसे सह-वित्तपोषित करना चाहिए, जिससे असमानताएँ उत्पन्न होती हैं जहाँ गरीब राज्यों को धन आवंटित करने में कठिनाई होती है।
- उदाहरण के लिए: तमिलनाडु अपनी राज्य योजना के तहत प्रति बच्चे ₹18,000 प्रदान करता है, जबकि बिहार और उत्तरप्रदेश सीमित धन के कारण देरी से भुगतान से जूझते हैं।
- राज्यों की उच्च स्वायत्तता बेहतर मॉडल की ओर ले जाती है: कुछ राज्यों ने PMMVY से बेहतर प्रदर्शन करते हुए अधिक उदार और कुशल मातृत्व योजनाएँ प्रारंभ की हैं।
- उदाहरण के लिए: ओडिशा की ममता योजना (प्रति बच्चा 10,000 रुपये) 64% जन्मों को कवर करती है, जबकि PMMVY 2023-24 में देश भर में केवल 9% को कवर करती है।
- डिजिटल और बुनियादी ढाँचे में अंतर: कुछ राज्यों को कमज़ोर डिजिटल बुनियादी ढाँचे के कारण बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे फंड ट्रांसफर में देरी होती है।
- उदाहरण के लिए: ग्रामीण राजस्थान और छत्तीसगढ़ में आधार प्रमाणीकरण विफलता के परिणामस्वरूप हजारों पात्र महिलाओं को लाभ का भुगतान नहीं हो पाया।
बहुआयामी सुधार, राजकोषीय बाधाओं को सामाजिक कल्याण के साथ संतुलित करना
- समानता प्रतिबंधों के बिना सार्वभौमिक कवरेज: NFSA 2013 के अनुसार मातृत्व अधिकारों को सभी जन्मों तक विस्तारित करना चाहिए न कि केवल पहले बच्चे तक।
- उदाहरण के लिए: ओडिशा की ममता योजना सभी बच्चों को कवर करती है, जिससे सुभेद्य परिवारों की महिलाओं के लिए बेहतर वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
- बजटीय आवंटन और सूचीकरण में वृद्धि: मातृत्व लाभ राशि को मुद्रास्फीति और बढ़ती जीवन लागतों से मेल खाने के लिए समय-समय पर संशोधित किया जाना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: तमिलनाडु ने लाभ को बढ़ाकर ₹24,000 करने की योजना बनाई है, ताकि मातृ पोषण और स्वास्थ्य सेवा के लिए वित्तीय पर्याप्तता सुनिश्चित की जा सके।
- आवेदन और डिजिटल प्रक्रियाओं को सरल बनाना: दस्तावेजो की बाधाओं और आधार पर निर्भरता को कम करना चाहिए विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में पहुँच को बेहतर बनाना।
- उदाहरण के लिए: जन धन खातों के माध्यम से सीधे नकद हस्तांतरण, बिना आधार सत्यापन मुद्दों के, देरी और बहिष्करण को रोक सकता है।
- राज्य-केंद्रित कार्यान्वयन को मजबूत करना: राज्यों को कुशल मातृत्व लाभ मॉडल तैयार करने के लिए अधिक लचीलापन और वित्तपोषण स्वायत्तता दी जानी चाहिए।
- उदाहरण के लिए: प्रदर्शन-संबद्ध केंद्रीय कोष से उन राज्यों को पुरस्कृत किया जा सकता है जो मातृत्व योजनाओं को प्रभावी ढंग से क्रियान्वित करते हैं तथा जवाबदेही सुनिश्चित करते हैं।
- जागरूकता और आउटरीच बढ़ाना: आशा कार्यकर्ताओं, आंगनवाड़ी केंद्रों और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से व्यापक जागरूकता अभियान नामांकन दरों को बढ़ा सकता है।
- उदाहरण के लिए: तमिलनाडु के आंगनवाड़ी के नेतृत्व वाले जागरूकता अभियान ने वर्ष 2023-24 में मातृत्व योजना कवरेज को 84% तक बढ़ा दिया।
मातृत्व अधिकारों में कार्यान्वयन अंतराल को कम करने के लिए एक सहक्रियात्मक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें सार्वभौमिक कवरेज, रियलटाइम निगरानी और प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण का इस्तेमाल किया जाए। केंद्र-राज्य राजकोषीय संरेखण, कॉर्पोरेट भागीदारी और सामुदायिक जागरूकता प्रभाव को बढ़ा सकती है। इस संदर्भ में अधिकार-आधारित, डेटा-संचालित मॉडल, प्रौद्योगिकी और सामाजिक लेखा परीक्षा का लाभ उठाते हुए मातृत्व लाभ को नीतिगत इरादे से जमीनी स्तर के सशक्तिकरण में बदल देगा, जिससे समावेशी विकास को बढ़ावा मिलेगा।
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