Q. "विश्व का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम होने के बावजूद, भारत गहन तकनीकी नवाचार से जूझ रहा है। इस नवाचार अंतर के पीछे आर्थिक, नीतिगत और सामाजिक-सांस्कृतिक कारकों का विश्लेषण कीजिए और भारत को 'मार्केट स्किमर्स' से 'वैश्विक इनोवेटर्स' में विकसित करने के लिए बहुआयामी रणनीतियों का सुझाव दीजिये।" (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • इस बात का परीक्षण कीजिए कि विश्व का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम होने के बावजूद भारत, डीप टेक इनोवेशन में क्यों संघर्ष कर रहा है।
  • इस नवाचार अंतराल के पीछे आर्थिक, नीतिगत और सामाजिक-सांस्कृतिक कारकों का विश्लेषण कीजिए।
  • भारत को ‘मार्केट स्किमर्स’  से ‘वैश्विक नवप्रवर्तकों’ के रूप में विकसित करने के लिए बहुआयामी रणनीतियों का सुझाव दीजिये।

उत्तर

भारत में वैश्विक स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम है, जिसमें वर्ष 2024 तक 1,57,000 से अधिक DPIIT-मान्यता प्राप्त स्टार्टअप और 100+ यूनिकॉर्न हैं। हालाँकि, डीप टेक इनोवेशन जिसमें AI, बायोटेक और क्वांटम कंप्यूटिंग की उपलब्धियाँ शामिल हैं, सीमित है। ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स 2024 में भारत को 39वाँ स्थान दिया गया है जो R&D व्यय, जोखिम उठाने की क्षमता और स्वदेशी तकनीकी प्रगति में अंतर को दर्शाता है ।

डीप टेक इनोवेशन संबंधित चुनौतियाँ

  • मार्केट स्किमिंग माइंडसेट: उच्च घरेलू माँग और कम नवाचार दबाव के कारण भारतीय स्टार्टअप मौलिक तकनीकी सफलताओं की तुलना में त्वरित विस्तार और बाजार पर कब्जा करने को प्राथमिकता देते हैं।
  • अल्पकालिक इन्वेस्टमेंट होराइजन: भारतीय उद्यम पूंजीपति 5-7 वर्षों के भीतर रिटर्न चाहते हैं जो दीर्घावधि की डीप टेक परियोजनाओं को हतोत्साहित करता है, जिसके लिए विस्तारित R&D चक्र की आवश्यकता होती है। 
    • उदाहरण के लिए: भारतीय निवेशक ताइवान के विपरीत सेमीकंडक्टर R&D की तुलना में फिनटेक और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म में निवेश करना पसंद करते हैं।   
  • कमज़ोर अकादमिक-उद्योग संबंध: विश्वविद्यालयों और उद्योगों के बीच संरचित सहयोग की कमी अकादमिक शोध को बाज़ार में उपलब्ध डीप टेक उत्पादों में व्यावसायिक रूप से बदलने से रोकती है। 
    • उदाहरण के लिए: इजराइल के विपरीत, जहाँ सैन्य-नागरिक टेक ट्रांसफर डीप टेक नवाचार को बढ़ावा देता है।
  • निर्यात-संचालित प्रतिस्पर्धा का अभाव: भारतीय कंपनियां, सीमित वैश्विक पहुँच के साथ बड़े घरेलू बाजार में फलती-फूलती हैं जिससे अत्याधुनिक नवाचार की आवश्यकता कम हो जाती है। 
    • उदाहरण के लिए: माइक्रोमैक्स, जो कभी भारत का शीर्ष स्मार्टफोन ब्रांड था, दक्षिण कोरियाई कंपनियों जैसे सैमसंग के विपरीत स्वामित्व अनुसंधान एवं विकास की कमी के कारण वैश्विक बाजारों में ध्वस्त हो गया।
  • डीप टेक के लिए कम सरकारी सहायता: चीन और दक्षिण कोरिया के विपरीत, भारत में AI, सेमीकंडक्टर और क्वांटम कंप्यूटिंग जैसे हाई-टेक क्षेत्रों में राज्य समर्थित रणनीतिक निवेश का अभाव है।
    • उदाहरण के लिए: चीन के सरकारी मार्गदर्शन कोष (GGF) अरबों डॉलर की पूंजी प्रदान करते हैं, जिससे Huawei जैसी फर्म वैश्विक नेतृत्व की ओर अग्रसर होती हैं।

नवाचार अंतराल के पीछे आर्थिक, नीतिगत और सामाजिक-सांस्कृतिक कारक

आर्थिक कारक

  • कम R&D निवेश: भारत का R&D व्यय सकल घरेलू उत्पाद का ~0.7% है , जो दक्षिण कोरिया (4.5%) जैसे नवाचार नेतृत्वकर्ता की तुलना में काफी कम है। 
    • उदाहरण के लिए: दक्षिण कोरिया के निर्यात-संचालित समूह (सैमसंग, Lg) को राज्य द्वारा सहायता प्राप्त उच्च R&D अधिदेशों से लाभ हुआ जिससे अत्याधुनिक नवाचार को बढ़ावा मिला।
  • सेवा-आधारित विकास पर ध्यान: भारतीय अर्थव्यवस्था में हार्डवेयर और डीप टेक के बजाय
    IT सेवाओं का प्रभुत्व है, जिससे आधारभूत तकनीकी प्रगति सीमित हो रही है। 

    • उदाहरण के लिए: इंफोसिस और TCS सॉफ्टवेयर आउटसोर्सिंग के माध्यम से उच्च राजस्व अर्जित करते हैं, जबकि ताइवान की टीएसएमसी ने विश्व स्तरीय सेमीकंडक्टर विनिर्माण का निर्माण किया है।

नीतिगत कारक

  • अपर्याप्त प्रौद्योगिकी उद्भवन पारिस्थितिकी तंत्र: भारत में राज्य द्वारा सहायता प्राप्त औद्योगिक अनुसंधान संस्थानों का अभाव है जो शैक्षणिक अनुसंधान को वाणिज्यिक अनुप्रयोगों से जोड़ते हैं।
    • उदाहरण के लिए: जर्मनी का फ्राउनहोफर संस्थान प्रतिवर्ष 7,000 से अधिक पेटेंटों को सक्षम बनाता है, जबकि भारत की CSIR प्रयोगशालाएं वित्त पोषण और व्यावसायीकरण संबंधी बाधाओं से जूझती हैं।
  • असंगत नीति समर्थन: भारत की खंडित नीतियों (PLI योजनाएं, राष्ट्रीय क्वांटम मिशन) में दीर्घकालिक रणनीतिक प्रतिबद्धता और अंतर-एजेंसी समन्वय का अभाव है। 
    • उदाहरण के लिए: ब्राजील की एम्ब्रेयर (Embraer) लगातार सैन्य-वाणिज्यिक प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के कारण वैश्विक एयरोस्पेस नेता बन गई जबकि भारत में डीप टेक फंडिंग छिटपुट रही।

सामाजिक-सांस्कृतिक कारक

  • जोखिम से बचाने वाली उद्यमशीलता संस्कृति: सिलिकॉन वैली के विपरीत जहाँ डीप टेक विफलताओं से सीख ली जाती है, भारतीय निवेशक और संस्थापक कम जोखिम वाले, उच्च रिटर्न वाले उपक्रमों को वरीयता प्रदान करते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: एलन मस्क की SpaceX, अपनी पूंजी के कारण कई असफलताओं से बच गई जबकि भारतीय स्पेस-टेक स्टार्टअप निजी क्षेत्र के सीमित वित्तपोषण के कारण संघर्ष कर रहे हैं।
  • डीप टेक में रोल मॉडल की कमी: भारत की स्टार्टअप सफलता की कहानियाँ वैज्ञानिक नवाचार के इर्द-गिर्द नहीं, बल्कि सॉफ्टवेयर और प्लेटफ़ॉर्म-आधारित व्यवसायों के इर्द-गिर्द केंद्रित हैं। 
    • उदाहरण के लिए: स्टीव जॉब्स और जेन्सन हुआंग वैश्विक डीप टेक संस्थापकों को प्रेरित करते हैं परंतु भारत, फिनटेक और ई-कॉमर्स उद्यमियों को गौरवान्वित करता है।

भारत को वैश्विक नवप्रवर्तक में बदलने के लिए बहुआयामी रणनीतियाँ

  • धैर्यपूर्ण पूंजी की उपलब्धता बढ़ाना: भारत को उभरती प्रौद्योगिकियों की सहायता करने के लिए 10-15 वर्ष के निवेश चक्र की पेशकश करते हुए दीर्घकालिक डीप टेक वेंचर फंड स्थापित करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: चीन का 563 ट्रिलियन युआन का AI और सेमीकंडक्टर फंड स्टार्टअप्स को अल्पकालिक लाभप्रदता दबाव के बिना मूनशॉट तकनीक विकसित करने में सक्षम बनाता है।
  • अकादमिक-उद्योग सहयोग को मजबूत करना: अनुसंधान और औद्योगिक व्यावसायीकरण के बीच सेतु बनाने के लिए विश्वविद्यालयों के भीतर प्रौद्योगिकी हस्तांतरण कार्यालय बनाना चाहिये तथा अनुप्रयुक्त अनुसंधान एवं विकास के लिए वित्तपोषण सुनिश्चित करना चाहिए।
  • निर्यातोन्मुख नवाचार को बढ़ावा देना: निर्यात से जुड़े प्रोत्साहनों को लागू करना चाहिए और भारतीय फर्मों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए मजबूर करना चाहिए ताकि उच्च मूल्य वाले अनुसंधान एवं विकास में निवेश को बढ़ावा मिले। 
    • उदाहरण के लिए: दक्षिण कोरिया के शेबोल मॉडल (Chaebol Model)  ने निर्यात प्रदर्शन से जुड़ी सब्सिडी के माध्यम से सैमसंग को एक स्थानीय कंपनी से वैश्विक तकनीकी महाशक्ति में बदल दिया।
  • अग्रणी प्रौद्योगिकियों के लिए राष्ट्रीय केन्द्रों का निर्माण: AI, क्वांटम कंप्यूटिंग और एयरोस्पेस जैसे क्षेत्रों में राज्य द्वारा सहायता प्राप्त उत्कृष्टता केन्द्रों (COE) की स्थापना करना, अनुदान, प्रयोगशालाएं और मार्गदर्शन प्रदान करना।
  • वैज्ञानिक जोखिम लेने की संस्कृति को बढ़ावा देना: पुरस्कारों, मीडिया कथाओं और वित्तपोषण प्रतियोगिताओं के माध्यम से वैज्ञानिकों और डीप टेक संस्थापकों को राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि दिलाना।

भारत को “मार्केट स्किमर” से “वैश्विक नवप्रवर्तक” में बदलने के लिए उच्च अनुसंधान एवं विकास निवेश, सुव्यवस्थित विनियामक ढाँचे  और जोखिम-सहनशील उद्यमशीलता संस्कृति के एक समन्वित दृष्टिकोण की आवश्यकता है। उद्योग-अकादमिक सहयोग को मजबूत करना, AI, क्वांटम कंप्यूटिंग और बायोटेक का लाभ उठाना और डीप-टेक स्टार्टअप को बढ़ावा देना भारत को वैश्विक नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित कर सकता है। नेशनल रिसर्च फाउंडेशन और स्टार्टअप इंडिया जैसी योजनाओं के माध्यम से इस विजन को आगे बढ़ाना चाहिए।

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