Q. भारत के नए ‘राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन’ का उद्देश्य औद्योगिक विकास को बढ़ावा देना है। आलोचनात्मक रूप से जाँच कीजिए कि भारत एक विकसित राष्ट्र के दर्जे के लिए एक व्यापक औद्योगिक नीति तैयार करते समय घरेलू रोजगार सृजन, तकनीकी उन्नति, पर्यावरणीय स्थिरता और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को कैसे संतुलित कर सकता है। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • चर्चा कीजिए कि भारत के नए राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन का उद्देश्य औद्योगिक विकास को किस प्रकार बढ़ावा देना है।
  • अध्ययन कीजिए कि भारत घरेलू रोजगार सृजन, तकनीकी उन्नति, पर्यावरणीय संधारणीयता और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता के बीच किस प्रकार संतुलन बना सकता है।
  • सुझाव दीजिए कि भारत विकसित राष्ट्र का दर्जा पाने के लिए एक व्यापक औद्योगिक नीति कैसे तैयार कर सकता है।

उत्तर

विनिर्माण क्षेत्र में 27 मिलियन से अधिक लोग कार्यरत हैं। हालाँकि, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला व्यवधान और स्वचालन प्रवृत्तियों के कारण औद्योगिक विकास के लिए रणनीतिक प्रोत्साहन की आवश्यकता है। मेक इन इंडिया 2.0 के साथ संरेखित राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन का उद्देश्य प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाना, निवेश आकर्षित करना और सकल घरेलू उत्पाद में अपनी हिस्सेदारी को 17% से बढ़ाकर 25% करने का लक्ष्य प्राप्त करना है।

राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन और औद्योगिक विकास

  • MSME और बड़े उद्यमों के लिए सहायता: यह मिशन MSME और बड़ी कंपनियों दोनों को परिचालन बढ़ाने, औद्योगिक उत्पादकता और दक्षता में सुधार करने में मदद करने के लिए नीति और कार्यान्वयन रोडमैप प्रदान करता है।
    • उदाहरण के लिए: MSME के लिए ऋण गारंटी कवर को बढ़ाकर 10 करोड़ रुपये करने से विनिर्माण विस्तार में अधिक निवेश संभव हो सकेगा।
  • क्षेत्र-विशिष्ट विकास रणनीतियाँ: श्रम-प्रधान और हाई-टेक क्षेत्रों, जैसे कि फुटवियर, चर्म, खाद्य प्रसंस्करण और हरित उद्योग के लिए लक्षित पहल, सतत औद्योगिक क्लस्टरों का निर्माण करती हैं।
    • उदाहरण के लिए: खिलौनों के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना घरेलू और निर्यात बाजारों के लिए क्लस्टर विकास, कौशल प्रशिक्षण और पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने पर केंद्रित है।
  • स्वच्छ प्रौद्योगिकी और हरित विनिर्माण: यह नीति सौर PV सेल, EV बैटरी, पवन टर्बाइन और इलेक्ट्रोलाइजर को बढ़ावा देती है, जिससे स्वच्छ ऊर्जा में संधारणीयता और आत्मनिर्भरता सुनिश्चित होती है।
  • विनिर्माण प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाना: वैश्विक प्रतिस्पर्धा का सामना करने और आयात पर निर्भरता कम करने के लिए आपूर्ति श्रृंखला, बुनियादी ढाँचे और उत्पादन दक्षता को मजबूत करना।
    • उदाहरण के लिए: सेमीकंडक्टर के लिए भारत की PLI घरेलू चिप विनिर्माण को बढ़ावा देती है, जिससे बाह्य आपूर्ति श्रृंखला भेद्यतायें कम होती हैं।
  • तकनीकी नवाचार को प्रोत्साहित करना: मिशन वैश्विक बाजार स्थिति में सुधार के लिए
    अनुसंधान एवं विकास प्रोत्साहन, स्वचालन और AI अपनाने को बढ़ावा देता है।

    • उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी संस्थान भारत के खाद्य उद्योग में मूल्य संवर्धन और आधुनिक प्रसंस्करण में सहायता करता है।

औद्योगिक विकास प्राथमिकताओं में संतुलन

a) घरेलू रोजगार सृजन

  • उत्पादन का स्थानीयकरण: कपड़ा, प्लास्टिक के बर्तन और फर्नीचर जैसी श्रम-प्रधान वस्तुओं के घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित करने से आउटसोर्सिंग के कारण होने वाली नौकरियों की कमी की समस्या का समाधान किया  सकता है।
    • उदाहरण के लिए: आयातित तैयार माल पर उच्च टैरिफ लगाने से घरेलू उत्पादन और स्थानीय रोजगार को बढ़ावा मिल सकता है।
  • MSME सशक्तिकरण: ऋण पहुँच का विस्तार, कौशल विकास और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण यह सुनिश्चित करता है कि MSME रोजगार सृजन में महत्त्वपूर्ण योगदान दें।

b) प्रौद्योकीय उन्नति

  • विनिर्माण में AI और स्वचालन: AI-संचालित स्वचालन और उद्योग 4.0 प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित करने से रोजगार को कम किए बिना उत्पादकता में वृद्धि होती है।
    • उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय AI मिशन, प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के लिए सटीक विनिर्माण में इंटेलीजेंट ऑटोमेशन को बढ़ावा देता है।
  • डीप टेक स्टार्टअप को प्रोत्साहित करना: रोबोटिक्स, क्वांटम कंप्यूटिंग और सेमीकंडक्टर डिजाइन में अनुसंधान एवं विकास की सहायता करने से यह सुनिश्चित हो सकता है कि भारत उभरती प्रौद्योगिकियों में सबसे आगे रहे।
    • उदाहरण के लिए: ₹ 10,000 करोड़ का फंड ऑफ फंड्स डीप-टेक क्षेत्रों में नवाचार को सुविधाजनक बनाता है।

c) पर्यावरणीय संधारणीयता

  • हरित औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र: सख्त पर्यावरणीय मानदंडों और हरित प्रोत्साहनों को लागू करने से पारिस्थितिक क्षति के बिना औद्योगिक विकास सुनिश्चित होता है।
    • उदाहरण के लिए: बैटरी अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2022 संधारणीय EV विस्तार के लिए लिथियम-आयन बैटरी के पुनर्चक्रण को अनिवार्य बनाता है।
  • स्वच्छ ऊर्जा के माध्यम से डीकार्बोनाइजेशन: निम्न कार्बन विनिर्माण संक्रमण सुनिश्चित करने के लिए सौर, पवन और हरित हाइड्रोजन उद्योगों को प्रोत्साहित करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: इलेक्ट्रोलाइजर के लिए भारत की PLI योजना हरित हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करती है, जिससे जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम होती है।

d) वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता

  • निर्यातोन्मुख विकास: इलेक्ट्रॉनिक्स, वस्त्र और ऑटो घटकों में लक्षित प्रोत्साहन के साथ वैश्विक बाजारों के लिए विनिर्माण को मजबूत करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: RoDTEP (निर्यातित उत्पादों पर शुल्कों और करों में छूट) योजना भारत की निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाती है।
  • व्यापार रक्षा उपाय: भारतीय निर्माताओं को सस्ते आयात से बचाने के लिए एंटी-डंपिंग शुल्क और गुणवत्ता मानकों को लागू करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: भारत ने घरेलू उत्पादकों को समर्थन देने के लिए चीनी इस्पात पर एंटी-डंपिंग शुल्क लगाया।

विकसित राष्ट्र के लिए एक व्यापक औद्योगिक नीति तैयार करना

  • उच्चस्तरीय संस्थागत ढाँचा: मंत्रालयों और राज्यों में नीति समन्वय और निगरानी के लिए एक केंद्रीकृत औद्योगिक विकास परिषद की स्थापना करनी चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: एक राष्ट्रीय औद्योगिक रणनीति बोर्ड विनिर्माण नीतियों के क्रियान्वयन की कुशलतापूर्वक देखरेख कर सकता है।
  • रणनीतिक व्यापार और निवेश नीतियाँ: उच्च मूल्य विनिर्माण में विदेशी निवेश बढ़ाने के लिए प्रमुख बाजारों के साथ द्विपक्षीय समझौते करने चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: संयुक्त अरब अमीरात के साथ भारत का व्यापार समझौता, प्रमुख औद्योगिक निर्यातों के लिए शुल्क मुक्त पहुंच की सुविधा प्रदान करता है।
  • औद्योगिक कॉरिडोर को मजबूत करना: वैश्विक फर्मों को आकर्षित करने के लिए विश्व स्तरीय लॉजिस्टिक्स, कनेक्टिविटी और बुनियादी ढाँचे के साथ औद्योगिक कॉरिडोर और SEZ का विस्तार करना चाहिए।
    •  उदाहरण के लिए: दिल्ली-मुंबई औद्योगिक कॉरिडोर (DMIC) उच्च तकनीक विनिर्माण के लिए एकीकृत आपूर्ति श्रृंखला को उन्नत करता है।
  • लक्षित वित्तीय प्रोत्साहन: महत्त्वपूर्ण उद्योगों के घरेलू विनिर्माण के लिए सब्सिडी, कर छूट और ऋण सहायता प्रदान करना।
    • उदाहरण के लिए: भारत की EV बैटरी PLI घरेलू उत्पादन सुनिश्चित करती है, जिससे आयात पर निर्भरता कम होती है।
  • कौशल एवं उद्यमिता विकास: व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों को उन्नत करना चाहिए और MSME व स्टार्टअप्स के अनुकूल परिस्थितयों का निर्माण करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना उद्योग की आवश्यकताओं के अनुरूप कौशल प्रशिक्षण को बढ़ावा देती है।

एक मजबूत औद्योगिक नीति के अंतर्गत स्वचालन को रोजगार सृजन के साथ एकीकृत करना चाहिए व कार्यबल को भविष्य के लिए तैयार करने के लिए AI और कौशल पहल का लाभ उठाना चाहिए। ग्रीन मैन्युफैक्चरिंग और सर्कुलर इकोनॉमी मॉडल विकास को संधारणीयता के साथ एकीकृत कर सकते हैं। R&D, FTA और व्यापार करने में सुगमता  को मजबूत करने से वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ेगी। एक प्रत्यास्थ, समावेशी और तकनीक-संचालित दृष्टिकोण भारत को विकसित राष्ट्र का दर्जा दिला सकता है।

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