Q. हाल ही में, महाराष्ट्र में गोंडी-माध्यम विद्यालय के बंद होने से भाषाई अल्पसंख्यकों से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों को लागू करने में चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया है। आदिवासी समुदाय की भाषाई और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा में संवैधानिक सुरक्षा उपायों और सरकारी पहलों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भाषाई अल्पसंख्यकों से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों पर प्रकाश डालिये।
  • परीक्षण कीजिए कि किस प्रकार महाराष्ट्र में गोंडी-माध्यम स्कूल का हाल ही में बंद होना, भाषाई अल्पसंख्यकों से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों के क्रियान्वयन में चुनौतियों को उजागर करता है।
  • जनजातीय समुदायों की भाषाई और सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा में संवैधानिक सुरक्षा उपायों और सरकारी पहलों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिए।
  • आगे की राह लिखिये।

उत्तर

भारतीय संविधान, अनुच्छेद 350A के माध्यम से भाषाई अल्पसंख्यकों के अधिकारों को बरकरार रखता है, जिसमें मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य है। हालाँकि, मैसूर स्थित केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (CIIL) ने कहा कि देश ने पिछले 50 वर्षों में अकेले 220 से अधिक भाषाओं को खो दिया है, जिसमें कई स्वदेशी भाषाओं को औपचारिक शिक्षा सहायता की कमी की समस्या का सामना करना पड़ा है। गोंडी-माध्यम विद्यालयों का बंद होना भाषाई संरक्षण में चल रही इस चुनौती को रेखांकित करता है।

भाषाई अल्पसंख्यकों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद 29: अल्पसंख्यकों को अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति के संरक्षण का अधिकार प्रदान करता है, बलपूर्वक आत्मसातीकरण को रोकता है और शिक्षा व शासन में सांस्कृतिक विविधता सुनिश्चित करता है।
    • उदाहरण के लिए: सर्वोच्च न्यायालय ने T.M.A. Pai फाउंडेशन वाद में भाषाई अल्पसंख्यकों के अधिकारों को बरकरार रखा, जिससे शैक्षणिक संस्थानों के संचालन में उनकी स्वायत्तता मजबूत हुई।
  • अनुच्छेद 350A: राज्यों को बच्चों की मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा की सुविधा प्रदान करने का अधिकार देता है, ताकि भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए बेहतर शिक्षण परिणाम सुनिश्चित हो सके।
    • उदाहरण के लिए: NEP 2020 बहुभाषी शिक्षा को बढ़ावा देता है और प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा के लिए मातृभाषा आधारित शिक्षा की सिफारिश करता है।
  • आठवीं अनुसूची: 22 भाषाओं को मान्यता प्रदान करती है और भाषाई विकास के लिए राज्य का समर्थन सुनिश्चित करती है, फिर भी गोंडी और भीली जैसी प्रमुख जनजातीय भाषाएँ इससे बाहर रह जाती हैं।
    • उदाहरण के लिए: संस्कृत (जिसे लगभग 25,000 लोग बोलते हैं) आठवीं अनुसूची में है, लेकिन गोंडी (जिसे लगभग 29 लाख लोग बोलते हैं) इसमें नहीं है, जो प्रणालीगत बहिष्कार को उजागर करता है।
  • पांचवीं और छठी अनुसूची: जनजातीय क्षेत्रों में स्वायत्त शासन और सांस्कृतिक संरक्षण का प्रावधान करती है  जिसमें शिक्षा और भाषा नीतियों को विनियमित करने की शक्ति भी शामिल है।
    • उदाहरण के लिए: पूर्वोत्तर में स्वायत्त जिला परिषदें जनजातीय भाषाओं को बढ़ावा देती हैं, लेकिन मध्य भारत में ऐसा कोई संरक्षण नहीं है।
  • PESA अधिनियम, 1996: जनजातीय स्वशासन को मान्यता देता है, ग्राम सभाओं को सांस्कृतिक और शैक्षिक मामलों पर निर्णय लेने की सुविधा प्रदान करता है व संवैधानिक संरक्षण को मजबूत करता है।
    • उदाहरण के लिए: मोहगांव ग्राम पंचायत का गोंडी माध्यम स्कूल के लिए प्रस्ताव PESA के अनुरूप था, लेकिन प्रशासनिक नीतियों के कारण इसे खारिज कर दिया गया।

संवैधानिक प्रावधानों को लागू करने में चुनौतियाँ: गोंडी-माध्यम स्कूल बंद करना

  • प्रशासन द्वारा मान्यता न मिलना: स्कूल के बंद होने से कठोर प्रशासनिक प्रक्रियाएँ उजागर होती हैं, जो जनजातीय स्वायत्तता को दरकिनार कर देती हैं, जिसके कारण मातृभाषा में शिक्षा से वंचित होना पड़ता है।
    • उदाहरण के लिए: संवैधानिक प्रावधानों में स्थानीय शासन की अनुमति दिए जाने के बावजूद, स्कूल को बंद करने के लिए शिक्षा के अधिकार (RTE) मानदंडों का हवाला दिया गया।
  • मानक राज्य पूर्वाग्रह: संस्कृत और हिंदी के विपरीत जनजातीय  भाषाओं को संस्थागत उपेक्षा का सामना करना पड़ता है, जो सामाजिक-राजनीतिक अधीनता को दर्शाता है।
    • उदाहरण के लिए: गोंडी माध्यम की पाठ्यपुस्तकों के लिए कोई बड़ी धनराशि नहीं दी जाती, जबकि संस्कृत को राज्य से पर्याप्त संरक्षण प्राप्त होता है।
  • आठवीं अनुसूची की मान्यता का अभाव: आठवीं अनुसूची में शामिल न होने से राज्य-अधिदेशित विकास रूकता है, जिससे जनजातीय  भाषाएँ विलुप्त होने के प्रति सुभेद्य हो जाती हैं।
    • उदाहरण के लिए: NEP 2020 संस्कृत संस्थानों का समर्थन करता है, लेकिन जनजातीय  भाषाओं में समान संरचित ढाँचे का अभाव है।
  • बाजार और रोजगार संबंधी बाधाएँ: जनजातीय भाषाओं को औपचारिक रोजगार से नहीं जोड़ा गया है, जिससे शिक्षा के माध्यम से उनके संरक्षण में बाधा उत्पन्न होती है।
    • उदाहरण के लिए: नौकरी की पात्रता मानदंड हिंदी या अंग्रेजी को प्राथमिकता देते हैं, जिससे जनजातीय  भाषा में शिक्षा कम आकर्षक हो जाती है।
  • मौखिक परम्पराओं का क्षरण: इस विद्यालय के बंद होने से जनजातीय पहचान को खतरा है, जो मौखिक इतिहास और सांस्कृतिक संचरण पर निर्भर है, जिससे भाषाई क्षति हो रही है।
    • उदाहरण के लिए: शहरीकरण और वनों की कटाई ने पहले ही जनजातीय कहानी कहने की परंपराओं को कमजोर कर दिया है, और स्कूल बंद होने से यह समस्या और भी गंभीर हो जाएगी।

संवैधानिक सुरक्षा उपायों की प्रभावशीलता

  • PESA का सीमित क्रियान्वयन: हालाँकि PESA स्वायत्तता प्रदान करता है, लेकिन मोहगांव के स्कूल संबंधी निर्णय जैसे स्थानीय प्रस्तावों को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है, जिससे जमीनी स्तर पर शासन कमजोर होता है।
    • उदाहरण के लिए: कानूनी सहायता के बावजूद, भाषा और शिक्षा पर जनजातीय प्रस्तावों को जिला प्रशासन के निर्णयों द्वारा दरकिनार कर दिया जाता है।
  • अप्रभावी आठवीं अनुसूची समावेशन प्रक्रिया: भाषाओं को जोड़ने की प्रक्रिया राजनीतिक और धीमी है, जिससे जनजातीय भाषाओं के लिए आवश्यक मान्यता में देरी हो रही है।
    • उदाहरण के लिए: बोडो को लम्बे समय तक चली सक्रियता के बाद वर्ष 2003 में इसमें शामिल कर लिया गया, लेकिन गोंडी को अब भी इससे बाहर रखा गया है, जबकि इसके बोलने वालों की संख्या अधिक है।
  • न्यायिक व्याख्या असंगत है: न्यायालयों ने भाषाई अल्पसंख्यक अधिकारों को बरकरार रखा है, लेकिन जनजातीय भाषा संरक्षण को सख्ती से लागू करने में विफल रहे हैं।
    • उदाहरण के लिए: T.M.A. Pai वाद ने शिक्षा में अल्पसंख्यकों के अधिकारों को बरकरार रखा, फिर भी जनजातीय भाषा आधारित स्कूलों को उपेक्षा का सामना करना पड़ रहा है।

सरकारी पहलों की प्रभावशीलता

  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020: बहुभाषी शिक्षा को बढ़ावा देती है , लेकिन जनजातीय  भाषाओं के लिए मजबूत कार्यान्वयन का अभाव है।
  • ट्राइफेड और जनजातीय सांस्कृतिक संवर्धन: जनजातीय संस्कृति को संरक्षित करने के लिए कार्यक्रम मौजूद हैं, लेकिन वे खंडित हैं, तथा शिक्षा को एकीकृत करने में विफल हैं।
    • उदाहरण के लिए: TRIFED जनजातीय शिल्प को बढ़ावा देता है, लेकिन भाषा-संरक्षण का कोई अधिदेश नहीं देता, जिससे समग्र विकास सीमित हो जाता है।
  • डिजिटल और रेडियो पहल: ऑल इंडिया रेडियो (AIR) गोंडी प्रसारण जैसे प्रयास किये गये हैं, लेकिन व्यापक पहुँच का अभाव है।
    • उदाहरण के लिए: बस्तर में गोंडी रेडियो कार्यक्रम गोंडी भाषा के प्रयोग को बढ़ावा देते हैं, फिर भी शैक्षिक नीति ऐसी पहलों के अनुरूप नहीं है।

आगे की राह 

  • आठवीं अनुसूची में समावेश: गोंडी और अन्य प्रमुख जनजातीय भाषाओं को आठवीं अनुसूची में मान्यता देने से नीति-संचालित संवर्धन पर विचार किया जाना सुनिश्चित होगा।
  • जनजातीय नेतृत्व वाली शैक्षिक नीतियाँ: शिक्षा संबंधी निर्णयों में स्थानीय शासन को मजबूत करने से गोंडी-माध्यम स्कूल जैसी पहलों के खिलाफ काम करने वाली प्रशासनिक बाधाओं को रोका जा सकेगा।
  • मातृभाषा आधारित शिक्षा का विस्तार: जनजातीय भाषा शिक्षा के लिए समर्पित संसाधन, शिक्षक प्रशिक्षण और डिजिटल उपकरण सुनिश्चित करने से शिक्षण अंतर कम हो जायेगा।

जबकि संवैधानिक सुरक्षा उपाय और सरकारी पहल जनजातीय  समुदायों की भाषाई और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिए एक कानूनी ढाँचा प्रदान करते हैं, कार्यान्वयन अंतराल, अपर्याप्त संसाधन और नीतिगत उपेक्षा अक्सर उनकी प्रभावशीलता को कमजोर करती है। गोंडी-माध्यम विद्यालयों का बंद होना मजबूत संस्थागत समर्थन, समुदाय-संचालित पहल और बेहतर शैक्षिक बुनियादी ढाँचे की तत्काल आवश्यकता को दर्शाता है।

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