प्रश्न की मुख्य माँग
- इस बात पर प्रकाश डालिये कि कैसे अमेरिकी संविधान का 22वां संशोधन, राष्ट्रपति को दो निर्वाचित कार्यकाल तक सीमित करता है, जबकि इसके विपरीत भारतीय संविधान प्रधानमंत्री पर ऐसी कोई कार्यकाल सीमा नहीं लगाता है।
- भारत के संसदीय ढाँचे के भीतर इस तरह के प्रावधान न होने के नकारात्मक लोकतांत्रिक निहितार्थों का परीक्षण कीजिए।
- भारत के संसदीय ढाँचे के भीतर इस तरह के प्रावधान न होने के सकारात्मक लोकतांत्रिक निहितार्थों का परीक्षण कीजिए।
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उत्तर
वर्ष 1951 में अधिनियमित अमेरिकी संविधान का 22 वाँ संशोधन राष्ट्रपति को दो निर्वाचित कार्यकाल तक सीमित करता है, जिसका उद्देश्य सत्ता के संकेन्द्रण को रोकना है। इसके विपरीत, भारतीय संविधान प्रधानमंत्री के कार्यकाल पर ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं लगाता है, जिससे उन्हें तब तक पद पर बने रहने की अनुमति मिलती है जब तक उन्हें लोकसभा का विश्वास प्राप्त हो। यह अंतर राष्ट्रपति और संसदीय शासन प्रणालियों के बीच मूलभूत अंतर को दर्शाता है।
अमेरिका में दो कार्यकाल की सीमा बनाम भारत में कार्यकाल की सीमा का अभाव
- अमेरिका में कानूनी प्रतिबंध: 22 वां संशोधन किसी भी व्यक्ति को दो बार से अधिक राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित होने से रोकता है तथा अधिकतम निर्वाचित कार्यकाल को आठ वर्ष तक सीमित करता है।
- उदाहरण के लिए: फ्रेंकलिन डी. रूजवेल्ट ने चार कार्यकाल (वर्ष 1933-1945) तक राष्ट्रपति पद संभाला, जिसके परिणामस्वरूप विस्तारित व्यक्तिगत शासन से बचने के लिए वर्ष 1951 में 22वें संशोधन की पुष्टि की गई।
- भारतीय ढाँचे में इस प्रकार की सीमा का अभाव: भारतीय संविधान में प्रधानमंत्री के कार्यकाल की संख्या पर कोई सीमा नहीं लगाई गई है, बशर्ते कि उन्हें बहुमत का समर्थन प्राप्त हो।
- उदाहरण के लिए: जवाहरलाल नेहरू वर्ष 1947 से वर्ष 1964 में अपनी मृत्यु तक भारत के प्रधानमंत्री के रूप में कार्यरत रहे, तीन पूर्ण कार्यकालों और चौथे चालू कार्यकाल में।
- संरचनात्मक प्रणाली अंतर: अमेरिका एक निश्चित कार्यकाल वाली राष्ट्रपति प्रणाली का पालन करता है जबकि भारत की संसदीय प्रणाली कार्यकाल सीमा पर नहीं, बल्कि बहुमत के विश्वास पर आधारित है।
- पात्रता विचलन: अमेरिका में, दो बार निर्वाचित राष्ट्रपति संवैधानिक कानून के तहत राष्ट्रपति पद और उप-राष्ट्रपति पद दोनों के लिए अयोग्य होता है जिससे राजनीतिक गतिशीलता प्रतिबंधित हो जाती है।
- उदाहरण के लिए: डोनाल्ड ट्रम्प वर्ष 2029 के बाद कानूनी रूप से फिर से चुनाव नहीं लड़ सकते।
- भारत में संवैधानिक लचीलापन: भारत में कार्यकाल सीमा का अभाव संसदीय लचीलेपन को दर्शाता है, जो संवैधानिक कार्यकाल बाधाओं के बजाय मतदाता की पसंद और विधायी समर्थन को प्राथमिकता देता है।
कार्यकाल सीमा न होने के नकारात्मक लोकतांत्रिक निहितार्थ
- सत्ता के केन्द्रीकरण का जोखिम: लम्बे कार्यकाल के कारण एक व्यक्ति के हाथ में सत्ता का केन्द्रीकरण हो सकता है, जिससे पार्टी की आंतरिक लोकतंत्र और संस्थागत स्वायत्तता कम हो सकती है।
- उदाहरण के लिए: इंदिरा गांधी के लंबे शासन में अत्यधिक केंद्रीकरण हुआ जिसके परिणामस्वरूप आपातकाल (वर्ष 1975-77) की घोषणा की गई और नागरिक स्वतंत्रता का हनन हुआ।
- कमजोर विपक्षी स्थान: एक मजबूत नेता चुनावी लाभ के लिए राज्य के संसाधनों और मीडिया में हेरफेर करके, विपक्षी दल को व्यवस्थित रूप से कमजोर कर सकता है।
- उदाहरण के लिए: नेहरू और इंदिरा के काल में, कांग्रेस पार्टी के प्रभुत्व ने विपक्ष की दृश्यता और विकास को वर्षों तक सीमित कर दिया।
- नीतिगत नवाचार में कमी: बिना कार्यकाल सीमा वाले नेता पुरानी नीतियों को पुनः लागू कर सकते हैं, तथा यथास्थिति पूर्वाग्रह या चुनावी जोखिम से बचने के कारण साहसिक सुधारों को अपनाने से बच सकते हैं।
- व्यक्तित पूजा का उदय: कार्यकाल सीमा का अभाव व्यक्तित्व-पूजा को बढ़ावा दे सकता है, तथा राजनीतिक दलों के भीतर सामूहिक नेतृत्व और लोकतांत्रिक जवाबदेही को कमजोर कर सकता है।
- संस्थागत जाँच में कमी: समय के साथ, दीर्घकालिक नेतृत्व अप्रत्यक्ष नियंत्रण या कार्यकारी अतिक्रमण के माध्यम से चुनाव आयोग या CBI जैसी निगरानी संस्थाओं को कमजोर कर सकता है।
कार्यकाल सीमा न होने के सकारात्मक लोकतांत्रिक निहितार्थ
- जनादेश की जीत: कार्यकाल सीमा का अभाव यह सुनिश्चित करता है कि मतदाताओं की पसंद सर्वोपरि है जिससे किसी नेता को पुनः निर्वाचित करने की सुविधा मिलती है, जब तक जनता का विश्वास बना रहता है।
- नीति निरंतरता सुनिश्चित रहती है: लम्बे कार्यकाल से दीर्घकालिक नीति नियोजन और क्रियान्वयन की सुविधा मिलती है, विशेष रूप से जटिल आर्थिक या बुनियादी ढाँचे में सुधार के लिए।
- स्थिर शासन वातावरण: एक अनुभवी नेता स्थिरता शासन में योगदान देता है, निवेश आकर्षित करता है और समय के साथ अंतर्राष्ट्रीय विश्वसनीयता का निर्माण करता है।
- राजनीतिक परिपक्वता को बढ़ावा देना: लंबे समय तक पद पर रहने वाले नेता अक्सर गहन प्रशासनिक विशेषज्ञता और कूटनीतिक कौशल विकसित करते हैं, जिससे राष्ट्रीय निर्णय लेने की प्रक्रिया में सुधार होता है।
- उदाहरण के लिए: नेहरू के दीर्घकालिक नेतृत्व ने भारत की गुटनिरपेक्ष नीति को आकार देने और IIT तथा AIIMS जैसे प्रमुख संस्थानों की स्थापना में मदद की।
- अनावश्यक परिवर्तन से बचाव: बार-बार नेतृत्व परिवर्तन से प्रशासनिक व्यवधान उत्पन्न हो सकता है, जबकि लंबा कार्यकाल प्रशासनिक और नीतिगत स्थिरता प्रदान करता है।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 1999 से वर्ष 2004 तक अटल बिहारी वाजपेयी के लगभग पूर्ण कार्यकाल ने दूरसंचार सुधारों में निरंतरता सुनिश्चित की, जिससे भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था की नींव को बल मिला।
सत्ता भ्रष्ट करने की ओर प्रवृत्त होती है, और पूर्ण सत्ता पूर्ण रूप से भ्रष्ट करती है। लोकतांत्रिक सत्यनिष्ठा को बनाए रखने और व्यक्तित्व पूजा को रोकने के लिए, हमें कार्यकाल सीमा जैसे संस्थागत सुरक्षा उपायों पर प्रभावी बहस शुरू करनी चाहिए। भविष्य के लिए तैयार लोकतंत्र मजबूत नियंत्रण और संतुलन की माँग करता है जो नेतृत्व नवीनीकरण को बढ़ावा देता है, संसदीय जवाबदेही को मजबूत करता है और शासन में जनता के विश्वास को बढ़ाता है।
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