Q. “सरदार वल्लभभाई पटेल ने सिविल सेवाओं को भारत का ‘स्टील फ्रेम’ बताया।” समकालीन शासन चुनौतियों के संदर्भ में, एक प्रभावी और जवाबदेह प्रशासनिक प्रणाली को आकार देने में इस कथन की प्रासंगिकता की आलोचनात्मक जाँच कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • सरदार वल्लभभाई पटेल ने सिविल सेवाओं को भारत का ‘स्टील फ्रेम’ क्यों कहा था?
  • भारत में समकालीन शासन चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।
  • समकालीन शासन चुनौतियों के संदर्भ में एक प्रभावी और जवाबदेह प्रशासनिक प्रणाली को आकार देने में सिविल सेवकों की प्रासंगिकता पर चर्चा कीजिए।

उत्तर

सरदार वल्लभभाई पटेल ने सिविल सेवाओं को भारत का “स्टील फ्रेम” कहा था, जिसमें राष्ट्र के प्रारंभिक वर्षों के दौरान प्रशासनिक ढाँचे को एक साथ रखने में उनकी भूमिका पर बल दिया गया था। आज भी, सिविल सेवाएँ नीति कार्यान्वयन, शासन निरंतरता और सार्वजनिक सेवा वितरण में मुख्य भूमिका निभाती हैं। हालाँकि, समकालीन चुनौतियाँ, इस रूपक “स्टील फ्रेम” की प्रत्यास्थता, इसके लचीलेपन और जवाबदेही के संबंध में सवाल उठाती हैं।

सरदार वल्लभभाई पटेल ने सिविल सेवाओं को भारत का ‘स्टील फ्रेम’ बताया

  • स्वतंत्रता के बाद प्रशासनिक निरंतरता सुनिश्चित करना: वर्ष 1947 के बाद, भारत को विभाजन, शरणार्थी संकट, सांप्रदायिक दंगों और रियासतों के एकीकरण का सामना करना पड़ा।
    • उदाहरण के लिए: 560 से अधिक रियासतों के एकीकरण के दौरान, अधिकारियों ने महत्वपूर्ण वार्ताओं और प्रशासनिक परिवर्तनों का समन्वय किया।
  • राष्ट्रीय एकता और अखंडता को कायम रखना: नव स्वतंत्र भारत विविधतापूर्ण, खंडित तथा क्षेत्रवाद और अलगाववादी प्रवृत्तियों के प्रति संवेदनशील था।
    • उदाहरण के लिए: नागरिक प्रशासन ने राज्यों के भाषाई पुनर्गठन (वर्ष 1950-60 के दशक) के दौरान एक स्थिर भूमिका निभाई।
  • संकट प्रबंधन और शासन में स्थिरता: नौकरशाही राजनीतिक अस्थिरता या आपातकाल के दौरान एक बफर के रूप में कार्य करती है, जिससे शासन में निरंतरता सुनिश्चित होती है।
    • उदाहरण के लिए: आपातकाल (वर्ष 1962, 1975) के दौरान या वर्ष 1990 के दशक में स्थिर गठबंधन सरकारों की अनुपस्थिति में, सिविल सेवा ने प्रशासनिक कार्यक्षमता बनाए रखी।
  • विधि के शासन और संवैधानिक मूल्यों का कार्यान्वयन: सिविल सेवक, संसद द्वारा पारित कानूनों के निष्पादक होते हैं और जमीनी स्तर पर संवैधानिक मूल्यों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार होते हैं।
    • उदाहरण के लिए: जिला कलेक्टर और मजिस्ट्रेट कानूनी व्यवस्था सुनिश्चित करते हैं, विशेष रूप से चुनावों, कानून और व्यवस्था की चुनौतियों और नीति क्रियान्वयन के दौरान।
  • मेरिटोक्रेसी और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक: पटेल चाहते थे कि सिविल सेवाओं में योग्यता के आधार पर भर्ती की जाए और यह समाज के सभी वर्गों के लिए खुली हो, जिससे राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा मिले।

समकालीन शासन चुनौतियाँ

  • राजनीतिकरण और बार-बार स्थानांतरण: अधिकारियों को अक्सर राजनीतिक हस्तक्षेप का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी तटस्थता और प्रभावशीलता प्रभावित होती है।
    • उदाहरण के लिए: कई राज्यों में, अधिकारियों का बार-बार स्थानांतरण किया जाता है (कभी-कभी तो कुछ महीनों के भीतर ही), जिससे नीतिगत निरंतरता प्रभावित होती है।
  • प्रदर्शन-आधारित मूल्यांकन का अभाव: पदोन्नति और पोस्टिंग मुख्य रूप से वरिष्ठता पर आधारित होती है, न कि प्रदर्शन या परिणामों पर। 
    • उदाहरण के लिए: द्वितीय ARC और नीति आयोग ने KPI (मुख्य प्रदर्शन संकेतक) से जुड़ी एक प्रदर्शन मूल्यांकन प्रणाली की सिफारिश की है।
  • भ्रष्टाचार और सार्वजनिक विश्वास का ह्रास: प्रशासनिक भ्रष्टाचार के उदाहरण प्रशासनिक प्रणाली में जनता के विश्वास को कम करते हैं।
    • उदाहरण के लिए: ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के अनुसार, भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक (वर्ष 2023) में भारत 180 में से 93वें स्थान पर है।
  • अप्रभावी शिकायत निवारण और सेवा वितरण: नागरिकों को अक्सर सरकारी सेवाओं का लाभ उठाने में देरी, उत्पीड़न और पारदर्शिता की कमी का सामना करना पड़ता है। 
    • उदाहरण के लिए: RTI और जनसुनवाई पोर्टल जैसी पहलों के बावजूद, कई विभागों में समाधान दर और जवाबदेही कम बनी हुई है।
  • प्रौद्योगिकी और डेटा-संचालित शासन का कम उपयोग: कई सिविल सेवकों को AI, बिग डेटा और GIS टूल जैसी उभरती हुई तकनीकों के बारे में जानकारी नहीं है। 
    • उदाहरण के लिए: मिशन कर्मयोगी (वर्ष 2020 में शुरू) का उद्देश्य सिविल सेवकों को डिजिटल उपकरणों में प्रशिक्षित करना है, फिर भी कई राज्यों में इसका उपयोग सीमित है।

समकालीन शासन में प्रभावी और जवाबदेह प्रशासनिक व्यवस्था को आकार देने में सिविल सेवकों की प्रासंगिकता

  • नीतिगत निरंतरता और स्थिरता सुनिश्चित करना: सिविल सेवक बदलती सरकारों के बीच गैर-पक्षपातपूर्ण निरंतरता प्रदान करते हैं, जिससे निर्बाध सार्वजनिक सेवा वितरण सुनिश्चित होता है। 
    • उदाहरण के लिए: COVID-19 महामारी के दौरान, IAS अधिकारियों ने राजनीतिक नेतृत्व की परवाह किए बिना राज्यों में कंटेनमेंट जोन, लॉजिस्टिक्स और स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचे का समन्वय किया।
  • विधि के शासन और लोकतांत्रिक मूल्यों को कायम रखना: वे कानून को कायम रखते हुए, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव आयोजित करते हुए और सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखते हुए संविधान के संरक्षक के रूप में कार्य करते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: जिला मजिस्ट्रेट चुनाव आयोग के तहत चुनाव प्रक्रियाओं की देखरेख करते हैं व निष्पक्षता और कानूनी अनुपालन सुनिश्चित करते हैं।
  • डिजिटल और प्रशासनिक सुधारों को आगे बढ़ाना: अधिकारी दक्षता और पारदर्शिता में सुधार के लिए ई-गवर्नेंस और डिजिटल उपकरणों को लागू करते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: ई-ऑफिस, डिजिलॉकर और JAM ट्रिनिटी जैसी पहलों को सभी विभागों के सिविल सेवकों द्वारा प्रभावी ढंग से आगे बढ़ाया गया है।
  • नीति और लोगों के बीच सेतु का कार्य करना: वे नीति निर्माताओं और नागरिकों के बीच एक इंटरफेस के रूप में कार्य करते हैं और स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार नीतियों की व्याख्या और अनुकूलन करते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: जनजातीय क्षेत्रों में, अधिकारी PDS और स्वास्थ्य मिशन जैसी योजनाओं को स्थानीय सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भों के अनुसार ढालते हैं, जिससे आउटरीच और विश्वास में सुधार होता है।
  • क्षमता निर्माण और शासन नवाचार: सिविल सेवक स्थानीय नवाचारों और सार्वजनिक-निजी भागीदारी की पहल करते हैं जो शासन के परिणामों को बेहतर बनाते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: आकांक्षी जिला कार्यक्रम में अधिकारियों ने लक्षित सुधारों के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा और पोषण संकेतकों की तकनीक-आधारित ट्रैकिंग शुरू की है।

सिविल सेवाओं को “स्टील फ्रेम” के रूप में प्रस्तुत करना प्रतीकात्मक रूप से शक्तिशाली है परंतु गतिशील और लोकतांत्रिक 21वीं सदी के भारत में फिट होने के लिए इसे पुनः संतुलित करने की आवश्यकता है। इसकी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए, इस स्टील को पारदर्शिता के साथ संतुलित किया जाना चाहिए, नैतिकता द्वारा मजबूत किया जाना चाहिए और शासन की बदलती आवश्यकताओं के अनुकूल होने के लिए पर्याप्त लचीला बनाया जाना चाहिए।

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