प्रश्न की मुख्य माँग
- भारत के माल परिवहन में कार्बन उत्सर्जन को कम करने में LNG और EV जैसे वैकल्पिक ईंधन की भूमिका पर चर्चा कीजिए।
- उनके व्यापक रूप से अपनाए जाने में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।
- वैकल्पिक ईंधन को बेहतर तरीके से अपनाने की दिशा में आगे की राह लिखिये।
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उत्तर
भारत का माल परिवहन क्षेत्र, जो कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में लगभग 13.5% का योगदान देता है, कार्बन-गहन सड़क परिवहन पर बहुत अधिक निर्भर है। वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य लक्ष्य को प्राप्त करने और ईंधन निर्भरता को कम करने के लिए इसे डीकार्बोनाइज करना महत्त्वपूर्ण है परंतु निश्चित रूप से इसमें कुछ चुनौतियाँ हैं।
LNG की भूमिका उत्सर्जन कम करने में सहायक है
- कम कार्बन उत्सर्जन: LNG, डीजल ट्रकों की तुलना में 25% कम CO₂ उत्सर्जित करता है। यह 85% कम NOx और लगभग कोई SOx या पार्टिकुलेट मैटर भी उत्पन्न नहीं करता है जिससे यह लंबी दूरी के माल के लिए अधिक स्वच्छ हो जाता है।
- स्वच्छ और लंबी दूरी का माल परिवहन: LNG ट्रक अंतरराज्यीय माल परिवहन के लिए उपयुक्त होते हैं, विशेष रूप से लंबी दूरी के लिए जहां बैटरी चालित EV अभी तक व्यवहार्य नहीं हैं।
- उदाहरण के लिए: भारत डीजल पर निर्भरता कम करने के लिए 5-7 वर्षों के भीतर अपने भारी ट्रक बेड़े के एक तिहाई को LNG में परिवर्तित करने की योजना बना रहा है।
- समुद्री उत्सर्जन में कमी: LNG तटीय और अंतर्देशीय जहाजों को शक्ति प्रदान कर सकती है जो वर्ष 2030 तक जलमार्गों के माध्यम से माल की आवाजाही को तीन गुना करने के भारत के लक्ष्य के अनुरूप है।
- उदाहरण के लिए: भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (IWAI) ने राष्ट्रीय जलमार्ग-1 (गंगा नदी) पर PNG जहाजों का संचालन किया है।
- वैश्विक संरेखण: LNG को अपनाना, वर्ष 2050 तक वैश्विक शिपिंग उत्सर्जन में 50% की कटौती करने के IMO के लक्ष्य के अनुरूप है जिससे भारत एक जिम्मेदार समुद्री राष्ट्र के रूप में स्थापित होगा।
उत्सर्जन कम करने में इलेक्ट्रिक वाहनों की भूमिका
- शून्य टेलपाइप उत्सर्जन: EV उपयोग के स्थान पर कोई CO2, NOx या PM उत्सर्जित नहीं करते, जिससे वे शहरी माल ढुलाई और लास्ट माइल कनेक्टिविटी के लिए आदर्श बन जाते हैं जहां वायु प्रदूषण गंभीर होता है।
- उदाहरण के लिए: दिल्ली सरकार उच्च घनत्व वाले क्षेत्रों में उत्सर्जन को कम करने के लिए कचरा संग्रहण हेतु इलेक्ट्रिक ट्रकों का उपयोग करती है।
- उच्च दक्षता: विद्युत ड्राइवट्रेन 85% से अधिक ऊर्जा को गति में परिवर्तित करते हैं, जबकि डीजल इंजन में यह लगभग 40% होता है, जिससे कुल ऊर्जा उपयोग और उत्सर्जन कम होता है।
- भारत में पायलट परियोजनाएं: सड़क परिवहन मंत्रालय द्वारा दिल्ली-जयपुर इलेक्ट्रिक राजमार्ग पायलट में ट्रकों के लिए ओवरहेड इलेक्ट्रिक तारों का परीक्षण किया जा रहा है जिसका उद्देश्य माल ढुलाई कॉरिडोर के लिए उत्सर्जन में भारी कटौती करना है।
- शहरी माल ढुलाई परिवर्तन: अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियों ने शहरों में इलेक्ट्रिक डिलीवरी बेड़े पेश किए हैं जिससे शहरी रसद उत्सर्जन को कम करने में मदद मिली है।
- उदाहरण के लिए: फ्लिपकार्ट ने अपने संधारणीयता लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अपने डिलीवरी बेड़े में 10,000 इलेक्ट्रिक वाहनों को सफलतापूर्वक तैनात किया है।
व्यापक रूप से अपनाने में चुनौतियाँ
चुनौती |
LNG (द्रवीकृत प्राकृतिक गैस) |
EV (इलेक्ट्रिक वाहन) |
बुनियादी ढाँचे की कमी |
भारत में 10 से भी कम LNG रिफ्यूलिंग स्टेशन हैं, जो अधिकांश पश्चिमी भारत में केंद्रित हैं। इससे LNG मालवाहक ट्रकों की परिचालन सीमा सीमित हो जाती है।
उदाहरण के लिए: ब्लू एनर्जी मोटर्स के LNG ट्रकों को राष्ट्रीय राजमार्गों पर रिफ्यूलिंग प्वाइंट्स की कमी के कारण मार्ग नियोजन संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। |
भारत में लगभग 3,500 सार्वजनिक EV चार्जिंग स्टेशन हैं, जो ज्यादातर मालवाहक वाहनों के लिए नहीं, बल्कि हल्के वाहनों के लिए डिजाइन किए गए हैं।
उदाहरण के लिए: Zypp Electric जैसे EV लॉजिस्टिक्स स्टार्टअप्स भारी-भरकम फास्ट चार्जर्स की कमी के कारण अक्सर डाउनटाइम की रिपोर्ट करते हैं, खासकर टियर-2 शहरों में। |
उच्च प्रारंभिक पूंजी लागत |
LNG ट्रकों की लागत डीजल ट्रकों की तुलना में 30-40% अधिक होती है, जिससे मजबूत वित्तीय प्रोत्साहन के बिना इसे अपनाना हतोत्साहित करने वाला होता है।
उदाहरण के लिए: एक टाटा LNG ट्रक की कीमत लगभग ₹40 लाख है, जबकि इसके डीजल संस्करण की कीमत ₹25 लाख है। |
बैटरी की कीमत के कारण EV ट्रकों की प्रारंभिक लागत डीजल वाहनों की तुलना में 100% अधिक होती है। |
तकनीकी एवं सुरक्षा चुनौतियाँ |
LNG को क्रायोजेनिक भंडारण और हैंडलिंग की आवश्यकता होती है, जिससे परिचालन और सुरक्षा संबंधी चिंताएं उत्पन्न होती हैं, विशेषकर भारतीय सड़कों पर।
उदाहरण के लिए: IOC की राजमार्ग LNG परियोजना में देरी आंशिक रूप से प्रशिक्षित कर्मियों की कमी और सुरक्षा कोड अनुपालन के कारण होती है। |
E.V. मालवाहक वाहनों को भारी भार और उच्च तापमान के कारण बैटरी क्षरण का सामना करना पड़ता है। |
आगे की राह
- बुनियादी ढाँचे को मजबूत करना: सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से राष्ट्रीय माल परिवहन कॉरिडोर और तटीय मार्गों पर LNG रिफ्यूलिंग स्टेशनों का विस्तार करना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: गति शक्ति मिशन के तहत संयुक्त LNG और EV बुनियादी ढाँचे के साथ “ग्रीन फ्रेट कॉरिडोर” स्थापित करना चाहिए।
- वित्तीय प्रोत्साहन और सब्सिडी सुधार: LNG ट्रक अधिग्रहण और रिफ्यूलिंग स्टेशनों के लिए व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण (VGF) और पूंजी सब्सिडी प्रदान करनी चाहिए।
- उदाहरण के लिए: FAME-II और PLI योजनाओं का विस्तार करके इसमें भारी-भरकम इलेक्ट्रिक ट्रक और बैटरी लॉजिस्टिक्स वाहन शामिल करना चाहिए।
- प्रौद्योगिकी और अनुसंधान एवं विकास सहायता: आयात निर्भरता को कम करने के लिए LNG इंजन और उच्च क्षमता वाली EV बैटरियों के स्वदेशी विनिर्माण को बढ़ावा देना चाहिए।
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- उदाहरण के लिए: माल-विशिष्ट EV अनुसंधान एवं विकास और परीक्षण ढाँचे के लिए IIT और नीति आयोग के साथ साझेदारी करनी चाहिए।
- कौशल और सुरक्षा पारिस्थितिकी तंत्र: स्किल इंडिया के साथ साझेदारी में LNG ट्रक ऑपरेटरों, मैकेनिकों और EV तकनीशियनों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करने चाहिए।
- उदाहरण के लिए: LNG परिवहन और EV चार्जिंग सिस्टम के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा कोड और आपातकालीन प्रोटोकॉल विकसित करना चाहिए।
- हरित लॉजिस्टिक्स नीति एकीकरण: समन्वित निष्पादन के लिए भारत की राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति (वर्ष 2022) और PM गतिशक्ति के भीतर LNG और EV अंगीकरण के लक्ष्यों को एकीकृत करना चाहिए।
भारत के माल परिवहन को डीकार्बोनाइज करना न केवल एक पर्यावरणीय अनिवार्यता है, बल्कि ऊर्जा सुरक्षा, आर्थिक दक्षता और सतत विकास की दिशा में एक रणनीतिक कदम है। वैकल्पिक ईंधन को अपनाने में तेजी लाकर, हम जलवायु और विकासात्मक लक्ष्यों के साथ संरेखित एक प्रत्यास्थ और भविष्य के लिए तैयार लॉजिस्टिक्स इकोसिस्टम का निर्माण कर सकते हैं।
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