Q. न्यायिक जवाबदेही और पारदर्शिता को सामान्यत: संस्था की अखंडता को बनाए रखने के लिए आवश्यक बताया गया है। कार्यकारी-न्यायपालिका की गतिशीलता के विकास की पृष्ठभूमि में, जवाबदेही सुनिश्चित करते हुए न्यायिक स्वतंत्रता को मजबूत करने के लिए सुधारों का सुझाव दीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • संस्थाओं की सत्यनिष्ठा को बनाए रखने में न्यायिक जवाबदेही और पारदर्शिता की भूमिका पर चर्चा कीजिए।
  • न्यायिक जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करने में आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
  • कार्यपालिका-न्यायपालिका की बदलती गतिशीलता पर विचार करते हुए और जवाबदेही सुनिश्चित करते हुए न्यायिक स्वतंत्रता को मजबूत करने के लिए आवश्यक सुधारों का सुझाव दीजिए। 

उत्तर

लोकतांत्रिक समाज में न्यायपालिका की अखंडता, स्वतंत्रता और विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए न्यायिक जवाबदेही और पारदर्शिता आवश्यक स्तंभ हैं। चूँकि न्यायपालिका संविधान की व्याख्या करने और न्याय प्रदान करने में केंद्रीय भूमिका निभाती है, इसलिए कार्यपालिका-न्यायपालिका की गतिशीलता, बढ़ती सार्वजनिक अपेक्षाएँ और बढ़ती जाँच-पड़ताल के लिए मजबूत तंत्र की जरूरत होती है जो संस्थागत स्वतंत्रता को सार्वजनिक जवाबदेही और खुलेपन के साथ संतुलित कर सके।

संस्थागत अखंडता को बनाए रखने में न्यायिक जवाबदेही और पारदर्शिता की भूमिका

  • जनता का विश्वास सुनिश्चित करता है: न्यायपालिका में जवाबदेही, निष्पक्ष न्याय प्रक्रिया में जनता का विश्वास बढ़ाती है और न्यायिक अतिक्रमण या भ्रष्टाचार को रोकती है।
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2017 से कॉलेजियम प्रस्तावों को प्रकाशित करने के उच्चतम  न्यायालय के निर्णय ने नियुक्तियों में पारदर्शिता में सुधार किया, गोपनीयता को कम किया और न्यायिक कार्यों की सार्वजनिक जाँच में सुधार किया।
  • स्वतंत्रता और जिम्मेदारी के बीच संतुलन: एक पारदर्शी न्यायपालिका, शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का सम्मान करती है तथा अपने निर्णयों के लिए जवाबदेह होती है व संस्थागत सत्यनिष्ठा को बढ़ावा देती है। 
    • उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (NJDG) मामलों के निपटान, देरी और प्रदर्शन को ट्रैक करने में मदद करता है और दक्षता और जवाबदेही दोनों को बढ़ाता  है।
  • भ्रष्टाचार के जोखिम को कम करता है: जवाबदेही तंत्र न्यायपालिका के नैतिक अधिकार को बनाए रखते हुए सिस्टम के भीतर होने वाले अनैतिक आचरण को उजागर कर सकता है।
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2021 में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक पूर्व न्यायाधीश पर कथित भ्रष्टाचार के लिए जांच की गई, जिससे बेहतर आंतरिक अनुशासनात्मक प्रणालियों की मांग उठने लगी।
  • न्यायिक नैतिकता को बढ़ावा देता है: पारदर्शी वातावरण नैतिक व्यवहार को लागू करता है व पक्षपात या विवेक के दुरुपयोग को हतोत्साहित करता है। 
    • उदाहरण के लिए: उच्चतम  न्यायालय द्वारा न्यायिक जीवन के मूल्यों के पुनर्कथन (वर्ष 1997) को अपनाना, सार्वजनिक और निजी जीवन में न्यायाधीशों के लिए नैतिक मानक निर्धारित करता है।
  • न्याय तक पहुँच और दक्षता में सुधार: ओपेन डेटा और सार्वजनिक उत्तरदायित्व उपाय न्याय प्रणाली में डेटा-संचालित सुधारों को सक्षम करते हैं, जिससे बेहतर संसाधन आवंटन और पहुँच सुनिश्चित होती है। 
    • उदाहरण के लिए: ई-कोर्ट मिशन मोड परियोजना ने केस फाइलों को डिजिटल कर दिया है और लाइव ट्रैकिंग को सक्षम किया है, जिससे पारदर्शिता बढ़ी है और अकुशलता कम हुई है।

न्यायिक जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करने में चुनौतियाँ

  • अपारदर्शी कॉलेजियम प्रणाली: कॉलेजियम के माध्यम से न्यायिक नियुक्तियों से संबंधित प्रक्रियाओं का पारदर्शी न होना, सार्वजनिक निगरानी और जवाबदेही को सीमित करता है।
    • उदाहरण के लिए: कॉलेजियम विचार-विमर्श पर सूचना के अधिकार (RTI) प्रकटीकरण अनुरोध को अस्वीकार करने से प्रणाली में चल रही गोपनीयता उजागर हुई।
  • सीमित अनुशासनात्मक तंत्र: वर्तमान न्यायाधीशों के कदाचार की जांच करने, न्याय में देरी करने या उसे रोकने के लिए मौजूद आंतरिक तंत्र अपर्याप्त और अप्रभावी सिद्ध हुये हैं।
    • उदाहरण के लिए: न्यायमूर्ति सौमित्र सेन (वर्ष 2011) के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव ने दिखाया कि कैसे संस्थागत अंतराल, न्यायिक अनुचितता के खिलाफ कार्रवाई को लंबा खींचता है।
  • स्वतंत्रता और निगरानी के बीच संघर्ष: जवाबदेही लागू करने के प्रयासों को अक्सर न्यायिक स्वतंत्रता पर हमले के रूप में देखा जाता है जिससे संस्थागत घर्षण उत्पन्न होता है। 
    • उदाहरण के लिए: NJAC अधिनियम (वर्ष 2015) पर कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संघर्ष ने बाहरी जाँच के प्रति प्रतिरोध को प्रदर्शित किया।
  • न्यायालय की कार्यवाही तक पहुँच की कमी: कई न्यायालयों में वीडियो रिकॉर्डिंग या सार्वजनिक पहुँच की अनुमति नहीं है, जिससे पारदर्शिता और सार्वजनिक समझ सीमित हो जाती है। 
    • उदाहरण के लिए: उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के बावजूद, न्यायालय की कार्यवाही की लाइव-स्ट्रीमिंग, कुछ संवैधानिक पीठों तक ही सीमित है।
  • समान नैतिक मानकों का अभाव: वैधानिक निकाय के माध्यम से लागू करने योग्य कोई बाध्यकारी आचार संहिता नहीं है, जिसके कारण असंगत अनुशासनात्मक परिणाम सामने आते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: न्यायिक मानक और जवाबदेही विधेयक का अभाव, निम्न और उच्च न्यायपालिका की जवाबदेही को सीमित करती है।

जवाबदेही सुनिश्चित करते हुए न्यायिक स्वतंत्रता को मजबूत करने के लिए सुधार

  • संहिताबद्ध न्यायिक आचरण: एक वैधानिक न्यायिक मानक और जवाबदेही अधिनियम लागू करने से स्पष्ट और व्यवहारिक मानदंड लागू हो सकते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: प्रस्तावित न्यायिक मानक और जवाबदेही विधेयक (वर्ष 2022) का उद्देश्य न्यायाधीशों के खिलाफ शिकायतों के लिए एक तंत्र का निर्माण करना और इसे विधि आयोग का समर्थन प्राप्त था।
  • पारदर्शी कॉलेजियम प्रक्रियाएँ: प्रकाशित स्मरणपत्रों और चयनात्मक मानदंडों के माध्यम से कॉलेजियम की बैठकों को अधिक पारदर्शी बनाना और विश्वास में सुधार हो सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: कॉलेजियम की सिफारिशों और कारणों को प्रकाशित करने की उच्चतम  न्यायालय की वर्ष 2017 की पहल एक आरंभिक कदम था, लेकिन इसे संस्थागत बनाने की आवश्यकता है।
  • न्यायिक बुनियादी ढाँचे और प्रशिक्षण को मजबूत करना: नैतिकता, डिजिटल साक्षरता और अधिकार-आधारित कानून पर बेहतर बुनियादी ढाँचे और निरंतर न्यायिक प्रशिक्षण से स्वायत्तता और क्षमता में वृद्धि होती है। 
    • उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी (भोपाल) नियमित रूप से न्यायाधीशों को प्रौद्योगिकी कानून और न्यायिक नैतिकता जैसे उभरते क्षेत्रों पर प्रशिक्षण देती है।
  • लाइव-स्ट्रीमिंग और सार्वजनिक पहुँच: कार्यवाही की लाइव-स्ट्रीमिंग और निर्णयों तक डिजिटल पहुँच का विस्तार, न्याय प्रक्रिया को लोकतांत्रिक बना सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: स्वप्निल त्रिपाठी वाद (वर्ष 2018) के बाद  चुनिंदा संवैधानिक मामलों के लिए लाइव-स्ट्रीमिंग की अनुमति दी गई, जिससे अधिक सार्वजनिक निगरानी संभव हुई।
  • स्वतंत्र निरीक्षण निकाय: एक स्वतंत्र न्यायिक शिकायत आयोग के गठन से स्वायत्तता को बनाए रखते हुए कदाचार के मामलों की समीक्षा की जा सकेगी।

जैसे-जैसे भारत का लोकतंत्र विकसित होता जा रहा है, न्यायिक स्वतंत्रता का सम्मान करते हुए न्यायालयों की वैधता को बनाए रखने के लिए न्यायिक जवाबदेही और पारदर्शिता आवश्यक है। नियुक्ति तंत्र में सुधार, नैतिक मानकों का उन्नयन और निगरानी को संस्थागत बनाना निष्पक्षता, दक्षता और लोकतांत्रिक जवाबदेही की बढ़ती मांगों के बीच न्यायपालिका की सत्यनिष्ठा को बनाए रख सकता है।

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