प्रश्न की मुख्य माँग
- भारत के संविधान का, एक ऐसे जीवंत साधन के रूप में उल्लेख कीजिये जिसमें अत्यधिक गतिशीलता की क्षमता है
- लिखिये कि भारतीय संविधान प्रगतिशील समाज की उभरती आवश्यकताओं के अनुरूप कैसे ढलता है।
- भारत में जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के बढ़ते दायरे के बारे में लिखिये।
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उत्तर
न्यायशास्त्र में, “जीवंत साधन” का तात्पर्य ऐसे कानूनी ग्रंथ से है जो सामाजिक परिवर्तनों के साथ विकसित होता हो। भारतीय संविधान का भाग XX, अनुच्छेद 368 (1) संसद को इसमें कुछ जोड़ने, बदलने या निरस्त करने के माध्यम से इसे संशोधित करने की शक्ति प्रदान करता है। दूरदर्शिता के साथ बनाया गया, भारत का संविधान इस गतिशीलता का उदाहरण है, जो इसकी निरंतर प्रासंगिकता सुनिश्चित करता है।
भारत का संविधान: गतिशीलता का जीवंत साधन
- लचीली संशोधन प्रक्रिया: 101 वें संशोधन द्वारा GST की शुरुआत की गई, जिसमें आर्थिक परिवर्तनों के प्रति अनुकूलनशीलता प्रदर्शित की गई।
- प्रस्तावना: 1976 में संशोधित (42वां संशोधन) किया गया और इसमें “धर्मनिरपेक्ष” और “समाजवादी” शब्दों को शामिल किया गया, जिससे कल्याणकारी राज्य के प्रति भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि हुई।
- मौलिक अधिकार: न्यायिक व्याख्या के माध्यम से विस्तारित (जैसे, मेनका गांधी बनाम भारत संघ 1978) करते हुए अनुच्छेद 21 के दायरे को व्यापक बनाया गया।
- न्यायिक समीक्षा: केशवानंद भारती वाद (वर्ष 1973) ने संविधान की मूल संरचना की रक्षा करने की न्यायपालिका की शक्ति को बरकरार रखा।
- आपातकालीन सुरक्षा उपाय: 44वें संशोधन 1978 ने इसके दुरुपयोग को रोकने व प्रत्यास्थता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए सुरक्षा उपाय जोड़े।
प्रगतिशील समाज के लिए भारतीय संविधान की अनुकूलता
- गोपनीयता का अधिकार (अनुच्छेद 21): न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ (वर्ष 2017) में इसे मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है, जो डिजिटल युग की गोपनीयता संबंधी चिंताओं को संबोधित करता है।
- शिक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 21A): 86वें संशोधन (वर्ष 2002) के माध्यम से पेश किया गया जो 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित करता है।
- समलैंगिकता का गैर-अपराधीकरण: नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (वर्ष 2018) ने LGBTQ+ अधिकारों को बरकरार रखा जो उभरते मानवाधिकार मानकों को दर्शाता है।
- यौन उत्पीड़न के विरुद्ध अधिकार: विशाखा बनाम राजस्थान राज्य (वर्ष 1997) वाद में कार्यस्थल पर उत्पीड़न रोकथाम मानदंड स्थापित किए गये जिससे लैंगिक न्याय को मजबूती मिली।
जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के दायरे का विस्तार
- स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार: M.C. मेहता बनाम भारत संघ (वर्ष 1988) वाद ने पर्यावरण संरक्षण को जीवन के अधिकार का अभिन्न अंग बताया।
- सूचना का अधिकार: RTI अधिनियम (वर्ष 2005) ने पारदर्शिता को बढ़ाया तथा नागरिकों को सार्वजनिक सूचना तक पहुँच प्रदान कर उन्हें सशक्त बनाया।
- सम्मान के साथ मरने का अधिकार: अरुणा शानबाग बनाम भारत संघ (वर्ष 2011) वाद ने शर्तों के साथ निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति दी।
- इंटरनेट का अधिकार: अनुराधा भसीन बनाम भारत संघ (वर्ष 2019) वाद ने डिजिटल युग में मौलिक अधिकारों के लिए इंटरनेट तक पहुंच को आवश्यक माना।
भारत का संविधान, एक लचीला और विकसित होता दस्तावेज़ है जो समाज की बदलती आवश्यकताओं के अनुसार खुद को ढाल लेता है। निरंतर विस्तृत न्यायिक व्याख्याएँ इसकी जीवंत प्रकृति का प्रमाण हैं, जो प्रत्येक नागरिक के लिए गरिमापूर्ण जीवन सुनिश्चित करती हैं।
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