प्रश्न की मुख्य माँग
- भारत में राष्ट्रव्यापी जाति जनगणना के राजनीतिक, संवैधानिक और सामाजिक सकारात्मक प्रभावों पर चर्चा कीजिए।
- भारत में राष्ट्रव्यापी जाति जनगणना के राजनीतिक, संवैधानिक और सामाजिक नकारात्मक प्रभावों का भी विश्लेषण कीजिए।
- सामाजिक न्याय या राजनीतिक रणनीति के साधन के रूप में राष्ट्रव्यापी जाति जनगणना का उल्लेख कीजिए।
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उत्तर
भारत में राष्ट्रव्यापी जाति जनगणना की माँग बढ़ गई है, विशेषकर बिहार के वर्ष 2023 जाति सर्वेक्षण के बाद। जबकि दशकीय जनगणना में SC और ST के आंकड़े शामिल हैं, इसमें OBC और अन्य जाति समूहों को शामिल नहीं किया गया है जिससे पूर्ण जाति जनगणना के राजनीतिक, संवैधानिक और सामाजिक निहितार्थों पर बहस छिड़ गई है।
भारत में राष्ट्रव्यापी जाति जनगणना के सकारात्मक राजनीतिक, संवैधानिक और सामाजिक निहितार्थ
- पिछड़े समूहों के लिए बेहतर राजनीतिक प्रतिनिधित्व: अद्यतन डेटा विधानसभाओं में OBC, SC, ST और EBC के आनुपातिक राजनीतिक समावेश को सक्षम बनाता है।
- उदाहरण के लिए: बिहार जाति सर्वेक्षण (वर्ष 2023) से पता चला है कि OBC और EBC मिलकर 63% से अधिक आबादी बनाते हैं, जो सीट आरक्षण की माँग को निर्देशित करता है।
- डेटा-संचालित सकारात्मक कार्रवाई: उचित और पर्याप्त डेटा, अनुच्छेद 15(4) और 16(4) के तहत आरक्षण और कल्याणकारी योजनाओं को तैयार करने में मदद करता है।
- उदाहरण के लिए: रोहिणी आयोग (वर्ष 2023) ने असमान OBC लाभ वितरण पर ध्यान दिया व उप-वर्गीकरण की आवश्यकता पर बल दिया।
- सामाजिक न्याय लक्ष्यों को बढ़ावा देना: यह कमजोर वर्गों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा देने के लिए अनुच्छेद 46 जैसे निर्देशक सिद्धांतों के साथ संरेखित है।
- संसाधन आवंटन में पारदर्शिता: यह हाशिए पर स्थित समुदायों के लिए साक्ष्य-आधारित बजट और लक्षित सार्वजनिक व्यय को सक्षम बनाता है।
- SECC वर्ष 2011 द्वारा छोड़े गए अंतराल को भरना: अप्रकाशित और त्रुटिपूर्ण SECC डेटा के कारण डेटा अंतराल को दूर करने में मदद करेगी व समावेशी शासन में विश्वास को पुनर्जीवित होगा।
- संवैधानिक नैतिकता और समावेश को बढ़ावा देना: वास्तविक उत्थान के लिए संरचनात्मक कमियों को पहचानने के अम्बेडकरवादी दृष्टिकोण को मजबूत करता है।
- उदाहरण के लिए: इंद्रा साहनी (वर्ष 1992) वाद में उच्चतम न्यायलय ने कहा कि जाति, पिछड़ेपन का एक वैध संकेतक है और समय-समय पर इसका पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता है।
भारत में राष्ट्रव्यापी जाति जनगणना के नकारात्मक राजनीतिक, संवैधानिक और सामाजिक निहितार्थ
- पहचान की राजनीति का तीव्र होना: राजनीतिक दल वोट बैंक जुटाने के लिए जातिगत आंकड़ों का दुरुपयोग कर सकते हैं, जिससे मुद्दों पर आधारित राजनीति का सिद्धांत कमजोर हो सकता है।
- जाति-आधारित ध्रुवीकरण का खतरा: जाति संख्याओं को सार्वजनिक रूप से जारी करने से अंतर-समूह प्रतिस्पर्धा और सामाजिक अशांति उत्पन्न हो सकती है।
- राष्ट्रीय एकता को कमजोर करना: जाति श्रेणियों पर अत्यधिक बल देना, एकीकृत भारतीय पहचान की दृष्टि में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
- उदाहरण के लिए: जाति गणना के आधार पर कोटा की बढ़ती माँग वाले सामाजिक समूह, राष्ट्रीय सामाजिक ताने-बाने को विखंडित कर सकते हैं।
- कोटा सीमा पर कानूनी जटिलता: ताजा आंकड़ों के कारण कोटा की माँग इंद्रा साहनी (वर्ष 1992) वाद में उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्धारित 50% सीमा से अधिक हो सकती है।
- उदाहरण के लिए: नौवीं अनुसूची के तहत तमिलनाडु के 69% आरक्षण की नए सिरे से जाँच की जा रही है क्योंकि अन्य राज्य सीमा को पार करने की कोशिश कर रहे हैं।
- डेटा के दुरुपयोग की संभावना: डेटा गोपनीयता कानूनों की कमी से संवेदनशील जाति डेटा का राजनीतिक या व्यावसायिक दुरुपयोग हो सकता है।
- उदाहरण के लिए: नागरिक समाज समूहों ने वर्ष 2023 में जाति डेटासेट का उपयोग करके चुनावी प्रोफाइलिंग और एल्गोरिदमिक टार्गेटिंग से संबंधित जोखिम को लेकर चिंता जताई है।
- प्रशासनिक बोझ और सटीकता संबंधी चिंताएं: बड़े पैमाने पर डेटा संग्रहण से दोहराव, त्रुटियाँ और वर्गीकरण संबंधी विवाद का खतरा रहता है।
सामाजिक न्याय या राजनीतिक रणनीति के साधन के रूप में राष्ट्रव्यापी जाति जनगणना
- लक्षित कल्याण वितरण के लिए उपकरण: जाति जनगणना कल्याणकारी योजनाओं के समान वितरण को सुनिश्चित करने के लिए साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण को सक्षम बनाती है।
- उदाहरण के लिए: सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (SECC) वर्ष 2011 ने PM आवास योजना और ग्रामीण कौशल कार्यक्रमों जैसी योजनाओं को निर्देशित किया।
- प्रतिनिधित्व के माध्यम से सशक्तिकरण: सटीक जाति संख्या, हाशिए पर स्थित समूहों का निष्पक्ष राजनीतिक और प्रशासनिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित कर सकती है।
- छिपे हुए पिछड़ेपन की पहचान: यह वंचित उप-जातियों की पहचान कर सकता है जो औपचारिक गणना की कमी के कारण बहिष्कृत रह गए हैं।
- उदाहरण के लिए: रोहिणी आयोग (वर्ष 2023) ने खुलासा किया कि कुलीन OBC वर्ग बहुत सारे लाभ प्राप्त कर रहा है, इसलिए उप-वर्गीकरण की आवश्यकता है।
- सामाजिक न्याय के जनादेश को मजबूत करना: जाति जनगणना अनुच्छेद 15(4), 16(4) और निर्देशक सिद्धांतों के तहत संवैधानिक लक्ष्यों के अनुरूप है।
उदाहरण के लिए: मराठा वाद में उच्चतम न्यायालय (वर्ष 2021) ने आरक्षण को सही ठहराने के लिए विश्वसनीय डेटा की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
- व्यक्तिगत पहचान का कमजोर होना: जाति के आंकड़ों को संस्थागत बनाने से जाति को प्राथमिक आइडेंटिटी मार्कर के रूप में मजबूत करने का जोखिम है।
- उदाहरण के लिए: विद्वान चेतावनी देते हैं कि जाति पहचानों को बार-बार राज्य द्वारा मान्यता दिए जाने से जातिविहीन समाज बनाने के प्रयासों पर विपरीत असर पड़ सकता है।
राष्ट्रव्यापी जाति जनगणना डेटा-संचालित नीति निर्धारण और समान संसाधन वितरण के माध्यम से सामाजिक न्याय के लिए एक महत्त्वपूर्ण उपकरण हो सकती है। हालाँकि, इसका प्रभाव इरादे, पारदर्शिता और क्रियान्वयन पर निर्भर करता है, ताकि यह महज एक राजनीतिक रणनीति बनकर न रह जाए।
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