प्रश्न की मुख्य माँग
- लैंगिक न्याय को बढ़ावा देने वाले संवैधानिक प्रावधानों के बारे में लिखिये।
- लैंगिक न्याय को बढ़ावा देने वाले केस लॉ के बारे में लिखिये।
|
उत्तर
लैंगिक न्याय सभी के लिए समान अधिकार, अवसर और सुरक्षा सुनिश्चित करता है, चाहे उनका लिंग कुछ भी हो। यह कानूनी, सामाजिक और नीतिगत उपायों के माध्यम से लिंग आधारित भेदभाव को खत्म करने का प्रयास करता है। भारतीय संविधान, इन सिद्धांतों को विभिन्न प्रावधानों के माध्यम से मूर्त रूप देता है जो लैंगिक समानता को बनाए रखते हैं और एक न्यायपूर्ण समाज को बढ़ावा देते हैं।
लैंगिक न्याय के लिए संवैधानिक प्रावधान
- प्रस्तावना: न्याय, समानता और सम्मान पर आधारित समाज की कल्पना करती है। यह सभी लिंगों के लिए समान अधिकार और अवसर सुनिश्चित करने वाली नीतियों की नींव रखती है।
- अनुच्छेद 14: विधि के समक्ष समता और समान सुरक्षा की गारंटी देता है व यह सुनिश्चित करता है कि कानून लिंग के आधार पर भेदभाव न करें।
- अनुच्छेद 15(1) और 15(3): लैंगिक भेदभाव पर रोक लगाता है, जबकि राज्य को महिलाओं और बच्चों के ऐतिहासिक वंचन को दूर करने, उनके कल्याण और भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए विशेष प्रावधान करने की अनुमति देता है।
- अनुच्छेद 16: भर्ती, पदोन्नति और वेतन में लिंग आधारित भेदभाव को समाप्त करते हुए समान रोजगार के अवसर सुनिश्चित करता है।
- अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को कायम रखता है जिसमें सम्मान, स्वायत्तता और लैंगिक आधारित सुरक्षा शामिल है।
- DPSP प्रावधान: राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत अनुच्छेद 39(a) (समान आजीविका के अवसर), अनुच्छेद 39(d) (समान कार्य के लिए समान वेतन), और अनुच्छेद 42 (मानवीय कार्य स्थितियाँ और मातृत्व राहत) के माध्यम से महिलाओं के लिए आर्थिक और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देते हैं।
- अनुच्छेद 51A(e): नागरिकों को महिलाओं की गरिमा के विरुद्ध अपमानजनक प्रथाओं का त्याग करने के लिए प्रोत्साहित करता है, तथा सम्मान और लैंगिक समानता की संस्कृति को बढ़ावा देता है।
- अनुच्छेद 243D(3): पंचायतों में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करना, राजनीतिक भागीदारी और निर्णय लेने को बढ़ावा देना।
लैंगिक न्याय को बढ़ावा देने वाले ऐतिहासिक वाद
- विशाखा बनाम राजस्थान राज्य (वर्ष 1997): कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को परिभाषित किया गया और कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 को अधिनियमित किया गया।
- जोसेफ शाइन बनाम भारत संघ (वर्ष 2018): व्यभिचार को अपराध से मुक्त किया गया, महिलाओं की स्वायत्तता की पुष्टि की गई और विवाह की पितृसत्तात्मक धारणाओं को खारिज किया गया।
- वॉलन्ट्री हेल्थ असोसियेशन ऑफ़ पंजाब यूनियन बनाम भारत संघ (वर्ष 2013): लैंगिक चयन और कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ सख्त प्रवर्तन का निर्देश दिया।
- वैवाहिक बलात्कार पर निर्णय: गर्भ का चिकित्सीय समापन (MTP) अधिनियम के तहत वैवाहिक बलात्कार को मान्यता दी गई, जिससे विवाहित और अविवाहित महिलाओं को गर्भपात का समान अधिकार प्राप्त हुआ।
- अनुज गर्ग बनाम होटल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (वर्ष 2008): शराब परोसने वाले प्रतिष्ठानों में महिलाओं के काम करने पर प्रतिबंध लगाने वाले कानूनों को रद्द कर दिया गया, जिससे कार्यस्थल पर समानता सुनिश्चित हुई ।
लैंगिक न्याय एक सतत प्रक्रिया है, जिसके लिए कानूनी सुधार, नीतिगत परिवर्तन और सामाजिक परिवर्तन की आवश्यकता होती है ताकि पूर्वाग्रहों को खत्म किया जा सके और समानता सुनिश्चित की जा सके। भारतीय संविधान अपने प्रावधानों के माध्यम से ऐसे समाज को बढ़ावा देने में एक शक्तिशाली उपकरण बना हुआ है जहाँ लैंगिक अधिकारों, अवसरों या गरिमा का निर्धारण नहीं करता हो।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Latest Comments