Q. 16वें वित्त आयोग को राज्यों की राजकोषीय स्वायत्तता और व्यय की गुणवत्ता के बीच प्रतिस्पर्धात्मक माँगों का सामना करना पड़ रहा है। आलोचनात्मक रूप से जाँच कीजिए कि यह राष्ट्रीय राजकोषीय स्थिरता बनाए रखते हुए उत्तरदाई व्यय सुनिश्चित करने, क्षेत्रीय असमानताओं को संबोधित करने और त्रिस्तरीय शासन को मजबूत करने के साथ-साथ बढ़े हुए हस्तांतरण को कैसे संतुलित कर सकता है। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • परीक्षण कीजिए कि 16वाँ वित्त आयोग किस प्रकार राष्ट्रीय राजकोषीय स्थिरता बनाए रखते हुए जिम्मेदार व्यय सुनिश्चित करने, क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने तथा थर्ड टॉयर शासन को मजबूत करने के साथ-साथ बढ़े हुए हस्तांतरण को संतुलित कर सकता है।
  • 16वें वित्त आयोग के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालिए।
  • आगे की राह लिखिए।

उत्तर

अनुच्छेद-280 के तहत गठित 16वाँ वित्त आयोग (FC) राजकोषीय संघवाद को पुनः परिभाषित करने, राज्यों की स्वायत्तता को जवाबदेह शासन और राष्ट्रीय राजकोषीय स्थिरता की आवश्यकता के साथ संतुलित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसे सीमित राजकोषीय दायरे में समान वितरण, कुशल व्यय और गहन स्थानीय शासन सुनिश्चित करना चाहिए।

राजकोषीय स्थिरता के साथ विकेंद्रीकरण को संतुलित करना

उत्तरदायी व्यय सुनिश्चित करना

  • राजस्व घाटे में कटौती: कई राज्य अपने दैनिक व्ययों के लिए उधार लेते हैं, जिससे राजकोषीय सुदृढ़ता  पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  • नकदी हस्तांतरण योजनाओं में सुधार: राजनीतिक रूप से प्रेरित योजनाओं के विस्तार से राजकोषीय दबाव बढ़ता है और संसाधनों का गलत आवंटन हो सकता है।
  • गैर-जरुरी सब्सिडी को कम करना: लोकलुभावन सब्सिडी पर अनियंत्रित व्यय, बजट को प्रभावित करता है और बुनियादी ढाँचे पर होने वाले व्यय में‌ कमी लाता है। 

क्षेत्रीय असमानताओं का समाधान

  • विभेदक राजकोषीय क्षमता: बिहार जैसे राज्यों को सार्वजनिक व्यय और सेवाओं में आने वाले अंतर को कम करने के लिए अधिक सहायता की आवश्यकता है। 
    • उदाहरण: बिहार में प्रति व्यक्ति व्यय, धनी राज्यों की तुलना में बहुत कम है, जो गंभीर अंतरराज्यीय असमानता को दर्शाता है।
  • कमजोर राज्यों के लिए विशेष अनुदान: आवश्यकता आधारित अनुदानों के माध्यम से समानता लाने से, कार्यकुशलता को नुकसान पहुँचाए बिना पिछड़े राज्यों को सहायता मिल सकती है।
  • केंद्रीकृत योजनाओं की सीमा तय करना: CSS के प्रभुत्व को कम करने से राज्यों को विविध क्षेत्रीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए लचीलापन प्रदान  सकता है। 
    • उदाहरण: कई केंद्र प्रायोजित योजनाएँ (CSS) राज्य और समवर्ती सूची के कार्यों के साथ ओवरलैप होती हैं, जिससे लचीलापन सीमित हो जाता है।

त्रि-स्तरीय गवर्नेंस को सुदृढ़ बनाना

  • स्थानीय सरकार के लिए उच्च आवंटन: पंचायतों और नगर पालिकाओं को किए जाने वाले वित्तीय हस्तांतरण को मजबूत करने से जमीनी स्तर पर विकास सुनिश्चित होता है। 
    • उदाहरण: भारत की स्थानीय सरकारों को चीन और दक्षिण अफ्रीका के समकक्षों की तुलना में कम धन मिलता है  जिससे सेवा वितरण में कमी आती है।
  • राज्यों द्वारा हस्तांतरण को प्रोत्साहित करना: राज्यों को किए जाने वाले हस्तांतरण को स्थानीय निकायों को सशक्त बनाने में उनकी प्रगति से जोड़ा जाना चाहिए।
  • स्थानीय सुधार के लिए अनुदान: स्थानीय निकायों द्वारा नियोजन, बजट और सेवा वितरण में सुधार के लिए निधियों को सशर्त बनाया जा सकता है।
    • उदाहरण: सुधार से जुड़े प्रोत्साहनों के बिना, अधिक आवंटन का कम उपयोग या कुप्रबंधन होने का जोखिम रहता है

16वें वित्त आयोग के समक्ष चुनौतियाँ

  • कम होता विभाज्य पूल: बढ़ते उपकर और अधिभार राज्यों के लिए प्रभावी हिस्सेदारी को कम करते हैं। 
    • उदाहरण: विभाज्य पूल 2011-12 में सकल कर राजस्व के 88.6% से गिरकर 2021-22 में 78.9% हो गया।
  • राज्यों पर बढ़ता कर्ज का बोझ: कई राज्य राजस्व घाटे का सामना कर रहे हैं व  गैर-उत्पादक व्यय के लिए भारी मात्रा में उधार ले रहे हैं। 
    • उदाहरण: पूँजी निवेश के बजाय ब्याज भुगतान और दैनिक कामकाज के लिए उधार लेना तेजी से बढ़ रहा है।
  • मुफ्तखोरी: राजनीतिक दबाव के कारण नकदी हस्तांतरण योजनाओं का विस्तार हो रहा है, जिससे राजकोषीय विवेकशीलता खतरे में पड़ रही है।
  • त्रि-स्तरीय शासन के सशक्तीकरण में देरी: राज्यों ने स्थानीय सरकारों को पर्याप्त शक्तियाँ और धन हस्तांतरित नहीं किया है।
  • केंद्र-राज्य राजकोषीय तनाव: राज्य करों में 50% तक हिस्सेदारी की माँग करते हैं, जिससे केंद्र की मुख्य दायित्वों को पूरा करने की क्षमता प्रभावित होती है। 
    • उदाहरण: वर्तमान 41% हस्तांतरण को लेकर भी यही स्थिति बनी हुई है, क्योंकि राज्य वास्तविक हस्तांतरण में कमी के बीच अधिक हिस्सेदारी की माँग कर रहे हैं।

आगे की राह 

  • हस्तांतरण डिजाइन में पुनः कार्य करना: राज्य की स्वायत्तता का सम्मान करते हुए असंबद्ध, आवश्यकता-आधारित हस्तांतरण करना आवश्यक है।
  • विवेकपूर्ण व्यय को प्रोत्साहित करना: अनुदान को राजस्व घाटे में कमी और उत्तरदायी बजट से जोड़ा जाना चाहिए‌।
  • गैर-योग्य सब्सिडी पर सीमा लगाना: राज्यों को सशर्त वित्तपोषण के माध्यम से मुफ्त बिजली/पानी जैसी योजनाओं को सीमित करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
  • स्थानीय शासन को मजबूत करना: संस्थागत सुधार और स्थानीय क्षमता निर्माण
    से जुड़े फंड उपलब्ध कराए जाने चाहिए। 

    • उदाहरण: हस्तांतरण को प्रोत्साहित किए बिना, स्थानीय निकाय कम वित्तपोषित और अप्रभावी बने रह सकते हैं।
  • समानता और दक्षता को संतुलित करना: वित्तीय अनुशासन बनाए रखते हुए गरीब राज्यों को आगे बढ़ाने के लिए स्थानांतरण की उचित संरचना निर्धारित करनी चाहिए।
    • उदाहरण: कम क्षमता वाले शासन की कमियों को दूर किए बिना  सार्वजनिक सेवा वितरण में असमानताएँ बढ़ सकती हैं।

16वें वित्त आयोग को राज्यों की अधिक हस्तांतरण की माँग को राजकोषीय अनुशासन, क्षेत्रीय समानता और स्थानीय सशक्तीकरण की अनिवार्यताओं के साथ संतुलित करना चाहिए। प्रदर्शन आधारित अनुदान, पुनर्गठित योजनाएँ और सहकारी संघवाद का रणनीतिक मिश्रण वित्तीय रूप से लचीले भारत के निर्माण के लिए महत्त्वपूर्ण है।

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