Q. विदेशी अधिनियम, 1946 और राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 के तहत ‘घोषित विदेशियों’ की लंबे समय तक हिरासत पर विचार करते हुए, संवैधानिक लोकतंत्र में ऐसी प्रथाओं से उत्पन्न कानूनी और मानवीय चुनौतियों पर चर्चा कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • एक संवैधानिक लोकतंत्र में विदेशी अधिनियम, 1946 और राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 के तहत ‘घोषित विदेशियों’ की लंबे समय तक हिरासत में रखने से उत्पन्न कानूनी चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।
  • एक संवैधानिक लोकतंत्र में विदेशी अधिनियम, 1946 और राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 के तहत ‘घोषित विदेशियों’ की लंबे समय तक हिरासत से उत्पन्न मानवीय चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।
  • आगे की राह लिखिए।

उत्तर

विदेशी अधिनियम, 1946 और राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 के तहत ‘घोषित विदेशियों’ की अनिश्चितकालीन हिरासत लोकतंत्र में गंभीर संवैधानिक, कानूनी और मानवीय चिंताओं को जन्म देती है। असम NRC बहिष्करण संकट ने दस्तावेजीकरण, उचित प्रक्रिया और अधिकारों की सुरक्षा में प्रणालीगत मुद्दों को उजागर किया है।

संवैधानिक लोकतंत्र में कानूनी चुनौतियाँ

  • अनुच्छेद-21 का उल्लंघन: बिना आरोप या दोषसिद्धि के हिरासत में लेना, अनुच्छेद-21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है।
  • न्यायिक निगरानी का अभाव: कार्यकारी विवेक से प्रेरित हिरासत, न्यायालयों को दरकिनार कर देती है, जिससे न्यायिक अधिकार और उचित प्रक्रिया कमजोर हो जाती है। 
    • उदाहरण: राजुबाला दास बनाम भारत संघ (2020) वाद में, सर्वोच्च न्यायालय में इस तरह की अनिश्चितकालीन हिरासत प्रथाओं की संवैधानिकता का आकलन करने के लिए याचिका दायर की गई थी।
  • निवारक निरोध का दुरुपयोग: NSA और विदेशी अधिनियम, वास्तविक निर्वासन के बिना लंबे समय तक हिरासत में रखने की अनुमति देते हैं तथा इनमें कानूनी स्पष्टता का अभाव है।
  • निर्वासन व्यवहार्यता का अभाव: द्विपक्षीय प्रत्यावर्तन के बिना, हिरासत में रखने का कोई वैध कानूनी उद्देश्य नहीं होता, बल्कि यह सजा में बदल जाता है। 
    • उदाहरण: वर्ष 2017 से, 1.59 लाख से अधिक घोषित विदेशियों के बावजूद, असम से केवल 26 विदेशियों को निर्वासित किया गया है।
  • संवैधानिक नैतिकता का उल्लंघन: बिना किसी विदेशी संबंध या आपराधिक आरोप वाले लोगों को हिरासत में लेना संवैधानिक नैतिकता और कानूनी सुरक्षा उपायों को कमजोर करता है। 
    • उदाहरण: असम में हिरासत में लिए गए कई लोग आजीवन निवासी हैं, जिन्हें मामूली दस्तावेज त्रुटियों के कारण विदेशी घोषित कर दिया जाता है।

संवैधानिक लोकतंत्र में मानवीय चुनौतियाँ

  • मानवीय गरिमा से वंचित: बंदियों को कानूनी सहायता या सामाजिक सुरक्षा के बिना अमानवीय परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। 
    • उदाहरण: असम के हिरासत केंद्रों में, वृद्ध और गरीब व्यक्तियों को बिना किसी अपराध के जेल में रखा जाता है व उन्हें बुनियादी मानवीय गरिमा से वंचित रखा जाता है।
  • पारिवारिक अलगाव और आघात: अनिश्चितकालीन हिरासत, परिवारों को विभाजित करती है, जिससे मनोवैज्ञानिक आघात और सामाजिक पृथक्करण होता है। 
    • उदाहरण: कई घोषित विदेशियों को अनिश्चित काल के लिए उनके परिजनों से अलग कर दिया जाता है और उनके लिए अक्सर कोई सहारा या अपील तंत्र नहीं होता है।
  • दस्तावेजीकरण से संबंधित अन्याय: वर्ष 1971 से पहले के प्रमाण की अनुचित माँग, विशेष रूप से आपदा प्रभावित क्षेत्रों में, गलत परिणामों में‌ योगदान‌ दे सकती है। 
    • उदाहरण: विरासत दस्तावेजों में मामूली वर्तनी की त्रुटियों के कारण लोगों को NRC से अनुचित तरीके से बाहर रखा गया।
  • आजीविका और पहचान का नुकसान: हिरासत में लिए गए लोग कल्याण, नौकरी और नागरिक पहचान तक खो देते हैं तथा राज्यविहीनता की स्थिति में रहते हैं। 
    • उदाहरण: कई घोषित विदेशियों को राशन, आधार और बैंक पहुँच से वंचित किया जाता है, जिससे आर्थिक नुकसान और सामाजिक बहिष्कार बढ़ता है।
  • मानवाधिकार मानकों का क्षरण: ये प्रथाएँ संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार सम्मेलनों के तहत भारत के अंतरराष्ट्रीय दायित्वों का उल्लंघन करती हैं। 
    • उदाहरण: भारत नागरिक एवं राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध (ICCPR) का हस्ताक्षरकर्ता है, फिर भी न्यायिक समीक्षा के बिना अनिश्चितकालीन नजरबंदी अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार मानदंडों के विपरीत है।

आगे की राह 

  • समयबद्ध न्यायिक समीक्षा: स्वच्छंद और लंबे समय तक हिरासत में रहने से रोकने के लिए हिरासत की समय-समय पर अदालती समीक्षा अनिवार्य करनी चाहिए।
    • उदाहरण: उचित प्रक्रिया को बनाए रखने के लिए न्यायिक पर्यवेक्षण के तहत प्रत्येक मामले के लिए एक वैधानिक 3-महीने की समीक्षा चक्र निर्धारित करना चाहिए।
  • निर्वासन के लिए द्विपक्षीय समझौते: पड़ोसी देशों के साथ स्पष्ट प्रत्यावर्तन प्रोटोकॉल स्थापित करना चाहिए ताकि व्यवहार्य निर्वासन संभव हो सके। 
    • उदाहरण: भारत को बांग्लादेश जैसे देशों के साथ प्रत्यावर्तन समझौते पर बातचीत करनी चाहिए, ताकि निष्कासन विकल्पों के बिना अनिश्चितकालीन हिरासत से बचा जा सके।
  • राज्यविहीन व्यक्तियों के लिए पुनर्वास: नागरिकता के बिना दीर्घकालिक निवासियों के लिए निवास अधिकार प्राप्त करने हेतु कानूनी रास्ते बनाए जाने चाहिए।
  • मानवीय हिरासत मानक: हिरासत केंद्रों में कानूनी सहायता, स्वास्थ्य देखभाल और संचार पहुँच जैसे न्यूनतम अधिकार सुनिश्चित करने चाहिए। 
    • उदाहरण: राज्य मानवाधिकार आयोगों द्वारा नियमित निरीक्षण के साथ मॉडल डिटेंशन सेंटर नियम (2021) को लागू करना चाहिए।
  • कानूनी सहायता और दस्तावेजीकरण सहायता: नागरिकों को दस्तावेजों को सही करने और गलत हिरासत से बचने में मदद करने के लिए कानूनी सहायता प्रदान करनी चाहिए।
    • उदाहरण: दस्तावेज सत्यापन और अपील में सहायता के लिए NRC सेवा केंद्र और पैरालीगल स्वयंसेवकों को तैनात करना चाहिए।

विदेशी अधिनियम और NSA के तहत लंबे समय तक हिरासत में रखने से संवैधानिक अधिकार, विधि का शासन और मानवीय मानक कमजोर होते हैं। संवैधानिक लोकतंत्र में संप्रभुता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाने के लिए कानूनी सुधार, न्यायिक निगरानी और मानवीय नीतिगत हस्तक्षेप आवश्यक हैं।

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