प्रश्न की मुख्य माँग
- भारत में गलत सूचना के प्रति बढ़ती संवेदनशीलता के संदर्भ में डिजिटल प्लेटफॉर्म और प्रभावशाली व्यक्तियों को नियंत्रित करने वाले कानूनी ढाँचे का परीक्षण कीजिए।
- गलत सूचना को रोकने और उपभोक्ता हितों की रक्षा करने में मौजूदा उपायों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिए।
- गलत सूचना के प्रसार को सीमित करने तथा उपभोक्ता संरक्षण तंत्र को मजबूत करने के लिए अतिरिक्त कदम प्रस्तावित कीजिए।
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उत्तर
भारत में 880 मिलियन से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के साथ डिजिटल फुटप्रिंट का विस्तार हो रहा है, जिससे गलत सूचनाओं के प्रति इसकी संवेदनशीलता बढ़ गई है, विशेषकर सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफर्म्स पर प्रभावशाली लोगों के माध्यम से। फॉल्स कंटेंट का अनियंत्रित प्रसार उपभोक्ता संरक्षण, लोकतांत्रिक विश्वास को कमजोर करता है, और मजबूत कानूनी निगरानी और नियामक प्रवर्तन की माँग करता है।
डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म और प्रभावशाली व्यक्तियों को नियंत्रित करने वाले कानूनी ढाँचे
- IT नियम 2021 का प्रवर्तन: मध्यस्थ दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता नियम, 2021 के अनुसार प्लेटफॉर्म को शिकायत निवारण अधिकारी नियुक्त करना होगा और फ्लैग्ड कंटेंट पर तुरंत कार्रवाई करनी होगी।
- उदाहरण: आधिकारिक आदेश प्राप्त होने के बाद प्लेटफॉर्मों को 36 घंटे के भीतर अवैध सामग्री को हटाना होगा।
- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019: इस अधिनियम के तहत भ्रामक प्रचार के लिए इन्फ्लुएंसर्स को जवाबदेह होना चाहिए और उल्लंघन के लिए भारी जुर्माना लगाया जाना चाहिए।
- उदाहरण: इन्फ्लुएंसर्स को पहली बार अपराध करने पर ₹10 लाख और दोबारा अपराध करने पर ₹50 लाख तक का जुर्माना देना पड़ सकता है।
- इन्फ्लुएंसर्स के लिए ASCI दिशा-निर्देश: इन्फ्लुएंसर्स को विज्ञापन में पारदर्शिता बनाए रखने और नैतिक मार्केटिंग को बढ़ावा देने के लिए भुगतान की गई सामग्री को स्पष्ट रूप से लेबल करना चाहिए।
- उदाहरण: इन्फ्लुएंसर्स को भुगतान किए गए प्रचार के लिए #ad या #sponsored का उपयोग करना चाहिए।
- PIB फैक्ट चेक यूनिट: यह यूनिट सरकार से जुड़ी भ्रामक खबरों का मुकाबला करती है, जिससे डिजिटल प्लेटफॉर्म पर प्रसारित कंटेंट की सत्यता को सत्यापित करने में मदद मिलती है।
- उदाहरण: PIB ट्विटर और आधिकारिक सरकारी साइटों पर वायरल गलत सूचनाओं का सक्रिय रूप से खंडन करता है।
- प्लेटफॉर्म स्व-विनियमन नीतियाँ: YouTube जैसे प्लेटफॉर्म कंटेंट की निगरानी करते हैं, हानिकारक गलत सूचनाओं को हटाते हैं और विमुद्रीकरण लागू करते हैं।
- उदाहरण: यूट्यूब ने COVID-19 संबंधी झूठी कहानियों पर अंकुश लगाने के लिए गलत सूचना फैलाने वाले वीडियो की रिपोर्ट दर्ज की।
मौजूदा उपायों की प्रभावशीलता
- कमजोर प्रवर्तन: हालाँकि नियम मौजूद हैं, लेकिन असंगत कार्यान्वयन कई अपराधियों को फॉल्स कंटेंट फैलाने के लिए परिणामों से बचने की सुविधा देता है।
- उदाहरण: कई इंफ्लूएंशर अभी भी उचित प्रकटीकरण के बिना उत्पादों को बढ़ावा देते हैं व ASCI दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करते हैं।
- सीमित फैक्ट–चेकिंग रीच: गलत सूचनाओं की अधिक संख्या के परिणामस्वरूप सभी दावों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने की फैक्ट-चेक करने वालों की क्षमता सीमित हो जाती है।
- उदाहरण: PIB प्रतिदिन भ्रामक वायरल सामग्री से संबंधित कम ही मामलों को सँभाल सकता है।
- प्लेटफॉर्म की धीमी प्रतिक्रिया: प्लेटफॉर्म अक्सर फ्लैग की गई सामग्री पर प्रतिक्रिया देने में धीमे होते हैं, जिससे मिसइन्फॉरमेशन लंबे समय तक बिना रोक-टोक के फैलती रहती है।
- उदाहरण: फर्जी फॉरवर्ड को कम करने के लिए व्हाट्सऐप के प्रयास अक्सर अप्रभावी होते हैं, विशेषकर ग्रामीण भारत में।
- कम सार्वजनिक जागरूकता: कई उपभोक्ताओं में फेक न्यूज की पहचान करने के कौशल या ज्ञान का अभाव होता है, जिससे वे भ्रामक सामग्री के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।
- कानूनी अस्पष्टता और प्रतिरोध: कुछ कानूनी उपायों की आलोचना की जाती है, क्योंकि वे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन कर सकते हैं, जिससे प्रवर्तन जटिल हो सकता है।
- उदाहरण: सर्वोच्च न्यायालय ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के उल्लंघन पर चिंताओं के जवाब में PIB की फैक्ट चेक संबंधी अधिकारों पर रोक लगा दी।
प्रस्तावित अतिरिक्त कदम
- राष्ट्रव्यापी मीडिया साक्षरता अभियान: लोगों को शिक्षित करना, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों और स्कूलों में, मिसइन्फॉरमेशन और फैक्ट–चेकिंग टूल्स के संबंध में जागरूकता उत्पन्न करने में मदद करता है।
- उदाहरण: केरल के स्कूली पाठ्यक्रम में अब फेक न्यूज की पहचान करने के पाठ शामिल किए गए हैं।
- बार-बार अपराध करने वालों के लिए कठोर दंड: कठोर दंड बार-बार अपराध करने वालों को हतोत्साहित कर सकता है और यह सुनिश्चित कर सकता है कि प्रभावशाली लोगों को भ्रामक प्रथाओं के लिए जवाबदेह ठहराया जाए।
- उदाहरण: CPA 2019 के तहत जुर्माना बढ़ाने का उद्देश्य भ्रामक समर्थन को रोकना है।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी: सरकार, तकनीकी फर्मों और गैर-सरकारी संगठनों के मध्य सहयोग से फैक्ट–चेकिंग के प्रयासों को मजबूत किया जा सकता है और गलत सूचना की पहुँच को कम किया जा सकता है।
- उदाहरण: मेटा ने अपने प्लेटफॉर्म पर फेक न्यूज के प्रसार को कम करने में मदद के लिए भारतीय फैक्ट–चेकर्स के साथ साझेदारी की है।
- एल्गोरिदम पारदर्शिता आवश्यकताएँ: प्लेटफॉर्मों को यह बताना अनिवार्य करना है कि वे सामग्री को कैसे प्राथमिकता देते हैं, पारदर्शिता बढ़ा सकता है और फेक न्यूज के प्रसार को सीमित कर सकता है।
- सत्यापित प्रभावशाली व्यक्तियों की रजिस्ट्री: अनुपालन करने वाले प्रभावशाली व्यक्तियों की सरकार द्वारा अनुमोदित रजिस्ट्री से जवाबदेही में सुधार होगा और उपभोक्ताओं की सुरक्षा होगी।
भारत के कानूनी ढाँचे विकसित हो रहे हैं, लेकिन प्रवर्तन अंतराल के कारण गलत सूचनाएँ बनी हुई हैं। उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा और डिजिटल जवाबदेही में सुधार के लिए सख्त दंड, मीडिया साक्षरता अभियान और सहयोगात्मक प्रयास आवश्यक हैं।
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