प्रश्न की मुख्य माँग
- कुपोषण और मोटापे के सह-अस्तित्व के विरोधाभास के पीछे के कारण पर चर्चा कीजिए।
- मोटापे और कुपोषण की चुनौती के बहुआयामी पहलुओं पर चर्चा कीजिए।
- किशोर पोषण संकट से निपटने के लिए व्यापक नीति ढांचा सुझाइये।
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उत्तर
भारत में पोषण संबंधी विरोधाभास बढ़ रहा है, जहाँ किशोरों में कुपोषण और मोटापा दोनों एक साथ मौजूद हैं। जीवनशैली में तेजी से हो रहे बदलाव, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का सेवन और आहार के प्रति कम जागरूकता ने इस दोहरे बोझ को और बढ़ा दिया है।
कुपोषण और मोटापे के सह-अस्तित्व के विरोधाभास के पीछे का कारण
- कुपोषण का दोहरा बोझ: भारत में किशोर एक साथ कुपोषण (नाटेपन, सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी) और बढ़ते मोटापे की समस्या का सामना कर रहे हैं, जो पोषण तक असमान पहुँच और जीवनशैली में परिवर्तन को दर्शाता है।
- कैलोरी सेवन के बावजूद भोजन की खराब गुणवत्ता: कई किशोर कैलोरीयुक्त लेकिन पोषक तत्वों से कम आहार (जैसे, प्रसंस्कृत स्नैक्स, शर्करा युक्त पेय) का सेवन करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप पर्याप्त आवश्यक पोषक तत्वों के बिना मोटापा बढ़ता है।
- आक्रामक विपणन और खाद्य वातावरण: विज्ञापनों और अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों की सुगम उपलब्धता से प्रभावित बच्चे और किशोर पारंपरिक, संतुलित आहार का सेवन कम कर देते हैं।
- पोषण साक्षरता का अभाव और नीतिगत अंतराल: किशोरों में स्वस्थ भोजन के संबंध में ज्ञान का अभाव है, और नीतिगत प्रयास अक्सर या तो कुपोषण या मोटापे पर केंद्रित होते हैं, दोनों पर एक साथ नहीं।
मोटापे और कुपोषण की चुनौती के बहुआयामी पहलू
आयाम |
मुख्य मुद्दा |
कुपोषण का दोहरा बोझ |
किशोरों में कुपोषण और बढ़ते मोटापे का सह-अस्तित्व।
उदाहरण: व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (CNNS) – भारत में 5% से अधिक किशोर अधिक वजन या मोटापे की समस्या से ग्रस्त हैं, लगभग 10 राज्यों में यह आंकड़ा 10-15% है। |
अति-प्रसंस्कृत खाद्य पर्यावरण |
आक्रामक विपणन और व्यापक उपलब्धता के कारण उच्च वसा, लवण और शर्करा (HFSS) वाले खाद्य पदार्थों का सेवन बढ़ गया है।
उदाहरण: वर्ल्ड ओबेसिटी एटलस 2024– भारत में वैश्विक स्तर पर बाल मोटापे में सबसे तीव्र वार्षिक वृद्धि हो रही है। |
सामाजिक-सांस्कृतिक और मीडिया प्रभाव |
साथियों का दबाव, सोशल मीडिया के रुझान और खाद्य विज्ञापन, किशोरों की भोजन संबंधी पसंद को बहुत अधिक प्रभावित करते हैं।
उदाहरण: लेट्स फिक्स अवर फूड कंसोर्टियम ने मीडिया और साथियों के प्रभाव को खराब आहार विकल्पों के प्रमुख कारणों के रूप में उजागर किया है। |
सीमित खाद्य साक्षरता |
किशोरों में अक्सर लेबल पढ़ने, स्वस्थ भोजन की पहचान करने, या आहार संबंधी आवश्यकताओं को समझने के लिए जागरूकता और कौशल की कमी होती है।
उदाहरण: NCERT और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के दिशा-निर्देशों में स्कूल के भोजन में शर्करा/लवण की निगरानी करने का आग्रह किया गया है। |
विखंडित संस्थागत उत्तरदायित्व |
कई मंत्रालय पर्याप्त समन्वय या एकीकृत रणनीति के बिना पोषण के विभिन्न पहलुओं पर काम करते हैं। |
किशोर पोषण संकट से निपटने के लिए व्यापक नीतिगत ढाँचा
- विनियामक उपाय
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- फ्रंट-ऑफ-पैक लेबलिंग: उपभोक्ताओं को सूचित खाद्य विकल्प बनाने में मदद करने के लिए फ्रंट-ऑफ-पैक लेबल लागू करना चाहिए।
- उदाहरण: सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश (वर्ष 2024): सरकार को पारदर्शी लेबलिंग लागू करने के लिए 3 महीने का समय दिया गया।
- विज्ञापन प्रतिबंध: बच्चों को लक्षित करने वाले भ्रामक विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए, विशेष रूप से डिजिटल प्लेटफॉर्म और स्कूलों में।
- शैक्षिक और व्यवहारिक हस्तक्षेप
- स्कूल-आधारित पोषण शिक्षा: स्वास्थ्य और कल्याण कार्यक्रमों के तहत स्कूली पाठ्यक्रम में पोषण जागरूकता और खाद्य साक्षरता को एकीकृत करना चाहिए।
- उदाहरण: शारीरिक गतिविधि, स्कूल उद्यान और संतुलित मध्याह्न भोजन को बढ़ावा देना चाहिए।
- किशोरों को सशक्त बनाना: खाद्य नीतियों और विकल्पों को आकार देने में युवाओं की भागीदारी के लिए मंच सक्षम करना चाहिए।
- उदाहरण: पोषण पखवाड़ा 2024 ने किशोर-केंद्रित अभियानों के साथ इस परिवर्तन की शुरुआत की।
- अंतर-मंत्रालयी समन्वय
- एकीकृत राष्ट्रीय रणनीति: महिला एवं बाल विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, उपभोक्ता मामले और उद्योग के बीच सहयोग को सुविधाजनक बनाने के लिए पोषण अभियान जैसे ढाँचे को मजबूत करना चाहिए।
- डेटा-संचालित योजना: रुझानों पर नज़र रखने और रियलटाइम मध्यक्षेपों को समायोजित करने के लिए पोषण संबंधी डेटाबेस को नियमित रूप से अपडेट करना चाहिए। (उदाहरण के लिए, NFHS और CNNS के माध्यम से )।
भारत के पोषण विरोधाभास के लिए समग्र प्रतिक्रिया को खंडित मध्यक्षेपों से आगे जाना होगा। शिक्षा, विनियमन और लक्षित कल्याण को एकीकृत करने वाला एक व्यापक, अंतर-मंत्रालयी दृष्टिकोण दीर्घकालिक व्यवहार परिवर्तन को बढ़ावा देने, समान खाद्य पहुँच सुनिश्चित करने और एक स्वस्थ व उचित पोषण प्राप्त करने वाली पीढ़ी का निर्माण करने के लिए आवश्यक है।
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