Q. चर्चा कीजिये कि शहरी नियोजन को आपदा जोखिम न्यूनीकरण के साथ एकीकृत करने से भारतीय शहरों में मानसून से संबंधित आपदाओं के प्रभावों को कैसे कम किया जा सकता है। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारतीय शहरों में मानसून से संबंधित आपदाओं का परीक्षण कीजिए।
  • भारतीय शहरों में मानसून से संबंधित आपदाओं के प्रभावों का परीक्षण कीजिए।
  • चर्चा कीजिए कि शहरी नियोजन को आपदा जोखिम न्यूनीकरण के साथ एकीकृत करने से भारतीय शहरों में मानसून से संबंधित आपदाओं के प्रभावों को कैसे कम किया जा सकता है।

उत्तर

तीव्र शहरीकरण, अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे और जलवायु परिवर्तन के कारण भारतीय शहरों में मानसून से संबंधित आपदाएँ बढ़ गई हैं। मुंबई, चेन्नई और गुवाहाटी जैसे शहरों में अक्सर बाढ़, भूस्खलन और जलभराव की समस्या होती है, जिससे दैनिक जीवन बाधित होता है और आर्थिक नुकसान भी होता है।

भारतीय शहरों में मानसून से संबंधित आपदाएँ

  • शहरी बाढ़: मुंबई और चेन्नई जैसे शहरों में भारी बारिश के कारण पुरानी जल निकासी व्यवस्थाएँ चरमराने के कारण भयंकर बाढ़ आती है। 
    • उदाहरण: जुलाई 2005 में, मुंबई में एक दिन में 944 मिमी. बारिश हुई, जिससे 1,000 से अधिक मौतें हुईं।
  • भूस्खलन: पहाड़ी शहरी इलाकों में भारी बारिश के दौरान भूस्खलन होता है, जिससे जान-माल का खतरा रहता है। 
    • उदाहरण: जुलाई 2021 में मुंबई के चेंबूर और विक्रोली इलाकों में भूस्खलन से 32 लोगों की मौत हो गई।
  • जलभराव: खराब अपशिष्ट प्रबंधन और बंद नालियों के कारण जलभराव होता है, जिससे परिवहन और दैनिक गतिविधियाँ बाधित होती हैं। 
    • उदाहरण: जुलाई 2016 में, बंगलूरू में झीलों के ओवरफ्लो होने के बाद गंभीर जलभराव हुआ, जिसके लिए नावों की मदद लेनी पड़ी
  • स्वास्थ्य संबंधी खतरे: रुका हुआ पानी डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारियों के लिए प्रजनन स्थल बन जाता है। 
    • उदाहरण: वर्ष 2017 की बाढ़ के बाद, मुंबई में लेप्टोस्पायरोसिस और डेंगू के मामलों में वृद्धि देखी गई।
  • आर्थिक व्यवधान: बाढ़ से व्यवसाय संचालन रुक जाता है, जिससे पर्याप्त आर्थिक नुकसान होता है। 
    • उदाहरण: वर्ष 2018 में केरल में आई बाढ़ से राज्य की अर्थव्यवस्था को ₹31,000 करोड़ का अनुमानित नुकसान हुआ।

भारतीय शहरों में मानसून संबंधी आपदाओं का प्रभाव

  • जीवन की क्षति और चोटें: बाढ़ और भूस्खलन जैसी मानसून आपदाएँ मृत्यु और चोटों का कारण बनती हैं।
  • आर्थिक व्यवधान: बाढ़ से व्यवसाय और संपत्तियों को नुकसान पहुँचता है तथा भारी वित्तीय हानि होती है। 
    • उदाहरण: वर्ष 2005 की मुंबई बाढ़ से अनुमानित 2 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ था।
  • स्वास्थ्य संबंधी खतरे: स्थिर बाढ़ के पानी से मलेरिया और हैजा जैसी बीमारियाँ फैलती हैं। 
    • उदाहरण: वर्ष 2019 के बाद पटना में आई बाढ़ के कारण मलेरिया और डायरिया के मामलों में काफी वृद्धि हुई है
  • बुनियादी ढाँचे को नुकसान: वर्षा से सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे को नुकसान पहुँचता है, जिसके लिए महंगी मरम्मत की जरूरत पड़ती है। 
    • उदाहरण: वर्ष 2015 में चेन्नई में आई बाढ़ से 20,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ, जिससे बुनियादी ढाँचे और आजीविका पर असर पड़ा।
  • विस्थापन और बेघर होना: बार-बार आने वाली बाढ़ से निवासियों को विस्थापित होना पड़ता है, जिससे आश्रय और आजीविका प्रभावित होती है। 
    • उदाहरण: वर्ष 2020 में केरल में आई बाढ़ में 1 लाख से अधिक लोग अपने घरों से विस्थापित हो गए थे।

शहरी नियोजन को आपदा जोखिम न्यूनीकरण के साथ एकीकृत करना

  • संधारणीय जल निकासी प्रणालियाँ: आधुनिक जल निकासी प्रणाली भारी मानसून प्रवाह का प्रबंधन कर सकती है। 
    • उदाहरण: दिल्ली की जल निकासी व्यवस्था को सुधारने की पहल का उद्देश्य जलभराव को कम करना है।
  • प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण: आर्द्रभूमि और झीलें अतिरिक्त जल को सोख लेती हैं और बाढ़ को रोकती हैं। 
    • उदाहरण: अहमदाबाद की झील संरक्षण से शहरी बाढ़ की तीव्रता को कम करने में मदद मिलती है।
  • सख्त जोनिंग कानून: संवेदनशील क्षेत्रों में निर्माण को प्रतिबंधित करने से भविष्य में जोखिम को रोका जा सकता है। 
    • उदाहरण: मुंबई की विकास योजना बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में निर्माण को सीमित करती है।
  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियाँ: टेक-सक्षम अलर्ट नागरिकों को समय पर बाहर निकलने में मदद करते हैं। 
    • उदाहरण: चेन्नई की रियलटाइम बाढ़ चेतावनी प्रणाली आपदा तत्परता को बढ़ाती है
  • सामुदायिक सहभागिता: स्थानीय भागीदारी बेहतर तत्परता और त्वरित प्रतिक्रिया सुनिश्चित करती है। 
    • उदाहरण: कोलकाता के समुदाय-आधारित प्रशिक्षण से मलिन बस्तियों में बाढ़ से निपटने की क्षमता में सुधार हुआ है।

भारतीय शहरों में मानसून से जुड़ी आपदाओं से निपटने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें शहरी नियोजन को आपदा जोखिम न्यूनीकरण के साथ एकीकृत किया जाना चाहिए। संधारणीय बुनियादी ढाँचे को अपनाकर, जोनिंग कानूनों को लागू करके और सामुदायिक तत्परता को बढ़ावा देकर, मानसून से जुड़ी चुनौतियों के खिलाफ शहरी प्रत्यास्थता को मजबूत किया जा सकता है।

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