Q. खाद्य सुरक्षा के लिए कृषि में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहलों के साथ-साथ भारत में महिला कृषकों के समक्ष आने वाली सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों पर चर्चा कीजिए। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत में महिला किसानों के सामने आने वाली सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।
  • खाद्य सुरक्षा के लिए कृषि में महिलाओं को सशक्त बनाने हेतु राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहलों का उल्लेख कीजिए।
  • आगे की राह लिखिये।

उत्तर

भारत में महिला किसान महत्त्व भूमिका निभाती हैं, जो कृषि कार्यबल का लगभग 80% हिस्सा हैं, फिर भी उनके पास केवल 14% भूमि है, जो महत्त्व लैंगिक असमानता को दर्शाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने खाद्य सुरक्षा में उनके महत्त्व योगदान को रेखांकित करते हुए वर्ष 2026 को अंतरराष्ट्रीय महिला किसान वर्ष के रूप में घोषित किया है।

महिला किसानों के सामने आने वाली सामाजिक-आर्थिक चुनौतियाँ

  • सीमित भूमि स्वामित्व: भारत में केवल 14% भूमि स्वामी महिलाएं हैं, जबकि कृषि में उनकी पर्याप्त भागीदारी है, जिससे ऋण और निर्णय लेने तक उनकी पहुँच सीमित है।
  • ऋण और प्रौद्योगिकी तक सीमित पहुँच: महिलाओं को संस्थागत ऋण और कृषि प्रौद्योगिकी तक सीमित पहुँच का सामना करना पड़ता है, जिससे निवेश और बेहतर प्रथाओं को अपनाने में बाधा आती है। 
    • उदाहरण: केवल 11% ग्रामीण महिलाओं को संस्थागत ऋण (ORF) तक पहुँच प्राप्त है, जिससे उत्पादकता वृद्धि धीमी हो जाती है।
  • जलवायु परिवर्तन की भेद्यता: जलवायु परिवर्तन के बढ़ते जोखिम महिलाओं के घरेलू बोझ और कृषि चुनौतियों को बढ़ाते हैं, जिससे उनकी भेद्यता और भी बढ़ जाती है। 
    • उदाहरण के लिए: असम में विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) द्वारा समर्थित इनहांसिंग क्लाइमेट एडॉप्शन ऑफ वलनरेबल कम्युनिटीज थ्रू नेचर बेस्ड सॉल्यूशन एंड जेंडर ट्रांसफॉर्मेटिव अप्रोचेज (ENACT) योजना  बाढ़ और सूखे के खिलाफ प्रत्यास्थता बढ़ाने के लिए जलवायु सलाह के साथ महिलाओं को सशक्त बनाती है।
  • सांस्कृतिक और सामाजिक बाधाएं: पारंपरिक मानदंड महिलाओं को अवैतनिक श्रम भूमिकाओं तक सीमित रखते हैं, उनके योगदान को हाशिए पर रखते हैं और उन्हें सहायता सेवाओं से बाहर रखते हैं।
  • सहकारी समितियों में महिलाओं की भागीदारी कम है, जिससे उनकी सामूहिक सौदेबाजी और बाजार तक पहुँच के अवसर सीमित हो जाते हैं। 
    • उदाहरण: SEWA जैसी सफलताओं के बावजूद, सहकारी समितियों में महिला किसानों का केवल एक छोटा हिस्सा ही भाग लेता है।

कृषि में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहल

राष्ट्रीय पहल

  • महिला किसान सशक्तीकरण परियोजना (MKSP): DAY-NRLM के तहत, MKSP कौशल विकास प्रदान करता है और कृषि में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए मशीनरी पर सब्सिडी देता है।
  • कृषि यंत्रीकरण पर उप-मिशन: महिला किसानों को आधुनिक कृषि मशीनरी अपनाने और दक्षता बढ़ाने के लिए सब्सिडी प्रदान करता है।
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM): खाद्य उत्पादन और आय को बढ़ावा देने के लिए अपने बजट का 30% विशेष रूप से महिला किसानों को आवंटित करता है ।

अंतरराष्ट्रीय पहल

  • संयुक्त राष्ट्र का अंतरराष्ट्रीय महिला कृषक वर्ष 2026: वैश्विक खाद्य आपूर्ति के लगभग आधे हिस्से में महिलाओं के योगदान को मान्यता देता है और कृषि में लैंगिक समानता को बढ़ावा देता है।
  • ला विया कैम्पेसिना: ला विया कैम्पेसिना दक्षिण एशियाई महिला किसानों को अधिकार, लैंगिक न्याय और कृषि में पितृसत्तात्मक व्यवस्था को अस्वीकार करने हेतु एक साथ लाता है‌।
  • कृषि विकास के लिए अंतरराष्ट्रीय कोष (IFAD): विश्व भर में महिला किसानों की उत्पादकता और खाद्य सुरक्षा बढ़ाने वाली परियोजनाओं में सहायता करता है।

आगे की राह 

  • महिलाओं के लिए भूमि अधिकारों को मजबूत करना: महिलाओं के स्वामित्व और उत्तराधिकार अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए कानूनी सुधारों को प्राथमिकता देना तथा ऋण तक पहुँच में सुधार करना चाहिए।
  • वित्तीय समावेशन का विस्तार: कृषि आवश्यकताओं के अनुरूप संस्थागत ऋण और वित्तीय साक्षरता तक महिलाओं की पहुँच बढ़ानी चाहिए।
  • जलवायु प्रत्यास्थता कार्यक्रम: जलवायु-स्मार्ट कृषि जानकारी के साथ महिलाओं की सहायता करने के लिए ENACT परियोजना जैसी पहलों को देश भर में बढ़ावा देना चाहिए।
    • उदाहरण: बाढ़ प्रतिरोधी फसल किस्मों और विविध आजीविका को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
  • लैंगिक-संवेदनशील कृषि नीतियों को बढ़ावा देना: महिला किसानों की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए लिंग-आधारित आंकड़ों का उपयोग करके नीतियाँ डिजाइन करनी चाहिए।
  • निर्णय लेने में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाना: कृषि समितियों, सहकारी समितियों और नीति निर्धारण निकायों में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए।

महिला किसान भारत की कृषि संधारणीयता और खाद्य सुरक्षा के लिए महत्त्व हैं। सुरक्षित भूमि अधिकार, बेहतर वित्तीय पहुँच, जलवायु प्रत्यास्थता, लिंग-संवेदनशील नीतियों और बढ़ी हुई भागीदारी के माध्यम से उन्हें सशक्त बनाना, कृषि को बदल सकता है व इस क्षेत्र में समावेशी विकास और प्रत्यास्थता को बढ़ावा दे सकता है।

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