Q. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अंतर्गत त्रि-भाषा फार्मूला को विभिन्न क्षेत्रों में भाषा थोपने के कारण आलोचना का सामना करना पड़ा है। इसके कार्यान्वयन में आने वाली प्रमुख चुनौतियों का परीक्षण कीजिए तथा इसे भाषा सशक्तिकरण के साधन में बदलने के लिए रणनीति सुझाइए। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • NEP 2020 के तहत त्रि-भाषा फार्मूले के कार्यान्वयन में प्रमुख चुनौतियों का परीक्षण कीजिए।
  • इसे भाषा सशक्तीकरण के उपकरण में बदलने की रणनीतियाँ सुझाइए।

उत्तर

भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020, प्रत्यास्थता और समावेशिता को शामिल करते हुए  त्रि-भाषा सूत्र की वकालत करती है। हालाँकि, व्यावहारिक रूप से इसके थोपे जाने की चिंताएँ भी उत्पन्न हो रही हैं, विशेषकर विविध और हाशिए पर पड़े क्षेत्रों में। जैसा कि राजव्यवस्था विशेषज्ञ सैमुअल हंटिंगटन ने चेतावनी दी है, तेज सुधारों के बीच संस्थागत कमजोरी सामाजिक एकता के बजाय अव्यवस्था का कारण बन सकती है।

कार्यान्वयन में प्रमुख चुनौतियाँ

  • कथित भाषा अधिरोपण: त्रिभाषा फार्मूला को अक्सर केंद्रीकृत नियंत्रण के एक उपकरण के रूप में देखा जाता है, विशेष रूप से गैर-हिंदी भाषी राज्यों में।
    • उदाहरण: तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्यों ने इस फार्मूले का विरोध किया है और इसे अप्रत्यक्ष रूप से हिंदी भाषा थोपने और संघीय स्वायत्तता को कमजोर करने वाला बताया है।
  • प्रशिक्षित शिक्षकों का अभाव: योग्य भाषा शिक्षकों की अनुपस्थिति सुचारू कार्यान्वयन में बाधा डालती है।
  • जनजातीय क्षेत्रों में चार भाषाओं का बोझ: जनजातीय क्षेत्रों में बच्चों को संक्रमणकालीन सहायता के बिना भाषाओं के बोझ का सामना करना पड़ता है।
    • उदाहरण: ओडिशा और पश्चिम बंगाल में संथाली भाषी बच्चों को अपनी मातृभाषा के साथ-साथ हिंदी/बंगाली/अंग्रेजी भी सीखनी पड़ती है, जिससे भ्रम और अलगाव की स्थिति उत्पन्न होती है।
  • मातृभाषा को कमतर आँकना: मूल भाषा पर अपर्याप्त जोर देने से पहचान की अभिव्यक्ति के लिए जगह कम हो जाती है।
    •  उदाहरण: जनजातीय छात्रों की पढ़ाई छोड़ने की दर बढ़ जाती है, क्योंकि शिक्षा में उनकी पहली भाषा को शामिल नहीं किया जाता, जिससे उनकी सहभागिता और शिक्षण परिणाम कम हो जाते हैं।
  • बुनियादी ढाँचे और वित्तपोषण में अंतराल: अल्प वित्त पोषित स्कूलों में नीतिगत महत्त्वाकांक्षाएँ जमीनी हकीकत से आगे निकल जाती हैं।
    • उदाहरण: स्कूलों को वित्तीय कमी के कारण अयोग्य कर्मचारियों को बदलने के लिए मजबूर होना पड़ता है या तीसरी भाषा की शिक्षा नहीं देनी पड़ती।
  • मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक वियोग: बच्चे के संदर्भ से अपरिचित भाषा, उत्सुकता के स्थान पर शिक्षण संबंधी चिंता बना जाती है।
  • विविध संदर्भों में एकरूप नीति: इस नीति में क्षेत्रीय भाषायी आवश्यकताओं के लिए प्रासंगिक अनुकूलन का अभाव है।
    • उदाहरण: ओडिशा के MLE मॉडल के विपरीत, अधिकांश राज्यों में स्थानीय हितधारकों को शामिल करते हुए विकेंद्रीकृत भाषा नियोजन का अभाव है।

भाषा नीति को सशक्तीकरण में बदलने की रणनीतियाँ

  • नीति निर्माण के लिए स्थानीय भाषा समितियाँ: उपयुक्त भाषा मिश्रण तैयार करने के लिए स्थानीय हितधारकों के साथ विकेंद्रीकृत समितियाँ बनानी चाहिए।
    • उदाहरण: एक जनजातीय बहुल स्कूल लोकतांत्रिक तरीके से जनजातीय + क्षेत्रीय + राष्ट्रीय भाषा का चयन कर सकता है, जिससे केंद्रीय दबाव से बचा जा सकता है।
  • बहुभाषी शिक्षा (MLE) मॉडल का विस्तार करना: सफल MLE कार्यक्रमों का विस्तार करना चाहिए, जो बच्चे की मातृभाषा में शुरू होते हैं।
    •  उदाहरण: संथाली और कुई में ओडिशा के MLE मॉडल ने उपस्थिति और शिक्षण परिणामों में सुधार किया; NCERT ने पाया कि MLE के छात्र गणित तथा भाषा में अपने सहपाठियों से बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं।
  • बहुभाषी शिक्षक प्रशिक्षण में निवेश करना: सतत् शिक्षण सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय स्नातकों को उनकी मूल भाषाओं में भर्ती करना चाहिए और प्रशिक्षित करना चाहिए।
  • तीसरी भाषा का लचीला कार्यान्वयन: राज्यों/स्कूलों को तैयारी के आधार पर तीसरी भाषा के कार्यान्वयन की गति बढ़ाने या विलंब करने की अनुमति देनी चाहिए।
  • सहभागी भाषा नीति की ओर बदलाव: इस फार्मूले को टॉप-डाउन थोपे जाने के बजाय बॉटम-अप सहभागी डिजाइन की ओर कदम बढ़ाना चाहिए।
    • उदाहरण: इंडोनेशिया-ऑस्ट्रेलिया के द्विभाषी पायलट मॉडल की तरह, शिक्षण और सहभागिता में सुधार के लिए सामुदायिक प्रतिक्रिया के साथ पाठ्यक्रम का सह-निर्माण करना चाहिए।
  • पाठ्यक्रम में भाषायी पहचान की रक्षा करना: प्रारंभिक स्कूली शिक्षा की कहानियों में मातृभाषा के गौरव और पहचान को शामिल करना चाहिए।
    • उदाहरण: UNESCO के अध्ययन से पता चलता है कि मातृभाषा में शिक्षा समावेशिता और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए एक महत्त्वपूर्ण कारक है।
  • विकल्प के लिए कानूनी और मानक सुरक्षा उपाय: सुनिश्चित करना चाहिए कि ‘विकल्प’ केवल बयानबाजी न हो बल्कि संस्थागत रूप से सक्षम हो।

निष्कर्ष

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के अंतर्गत त्रि-भाषा फॉर्मूला समावेशी बहुभाषावाद की भारत की आकांक्षा का प्रतिनिधित्व करता है, लेकिन संस्थागत परिपक्वता और सहभागी संरचना के बिना, यह भाषायी भ्रांतियों को और बढ़ाने का जोखिम उठाता है। हंटिंगटन की अंतर्दृष्टि हमें आगाह करती है: संस्थागत मजबूती के बिना प्रतीकात्मक आधुनिकीकरण अव्यवस्था को आमंत्रित करता है। एक वास्तविक सशक्त भाषा नीति को निर्देश देने से पहले सुनना होगा और यह सुनिश्चित करने से पहले सह-निर्माण करना होगा कि कोई भी बच्चा अपनी भाषायी पहचान को ‌खोकर नई भाषा न सीखे।

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