Q. हालिया राजनयिक प्रयासों और कुछ द्विपक्षीय तंत्रों की बहाली के बावजूद, भारत-चीन सीमा गतिरोध के मूल मुद्दे अभी भी बने हुए हैं। इसके आलोक में, हालिया सकारात्मक घटनाक्रमों और अनसुलझी चिंताओं, दोनों को ध्यान में रखते हुए, भारत-चीन संबंधों के पूर्ण सामान्यीकरण की संभावनाओं का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत-चीन संबंधों की महत्वपूर्ण उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
  • हालिया सकारात्मक घटनाक्रमों को ध्यान में रखते हुए, भारत-चीन संबंधों के पूर्ण सामान्यीकरण की संभावनाओं का विश्लेषण कीजिए।
  • शेष चिंताओं पर विचार करते हुए, भारत-चीन संबंधों के पूर्ण सामान्यीकरण की संभावनाओं का विश्लेषण कीजिए।

उत्तर

भारत चीन द्विपक्षीय संबंध सतर्क जुड़ाव की स्थिति में बने हुए हैं जहाँ कभी-कभी सहयोग देखा जाता है लेकिन गहन रणनीतिक विश्वास भी गहराई से विद्यमान है। हाल ही में राजनयिक चैनलों और कार्यात्मक तंत्रों के दोबारा शुरू होने के बावजूद, वर्ष 2020 की सीमा झड़प का प्रभाव अब भी संबंधों पर स्पष्ट रूप से विद्यमान है। वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) से संबंधित शेष अनसुलझे सैन्य तनावों का बने रहना एक स्थिर और व्यापक संबंध बनाने के प्रयासों को कमजोर करता है।

भारत-चीन संबंधों के महत्त्वपूर्ण बिंदु 

  • कजाकिस्तान बैठक (अक्टूबर 2024): भारतीय प्रधानमंत्री और चीनी राष्ट्रपति ने SCO शिखर सम्मेलन के दौरान मुलाकात की, जिससे लंबे समय के बाद राजनयिक जुड़ाव फिर से प्रारंभ हुआ।
  • उच्च स्तरीय वार्ता की बहाली: कजान बैठक के बाद से, सीमा मामलों के प्रबंधन के लिए परामर्श और समन्वय कार्य तंत्र (WMCC) की तीन बार बैठक हो चुकी है।
  • पर्यटक वीजा बहाली और कैलाश यात्रा: भारत ने चीनी नागरिकों के लिए पर्यटक वीजा पुनः शुरू कर दिया; चीन ने कैलाश मानसरोवर यात्रा पुनः शुरू कर दी, जो तनाव कम होने का संकेत है।
  • आर्थिक वार्ता आरंभ: दोनों राष्ट्र व्यापार, निवेश और उर्वरक तथा इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों के लिए महत्त्वपूर्ण आपूर्ति श्रृंखलाओं पर “कार्यात्मक वार्ता” आयोजित करने पर सहमत हुए।
  • सीधी उड़ानों का प्रस्तावित पुनरुद्धार: वर्ष 2020 से पूर्व की संपर्क व्यवस्था की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रतीकात्मक और व्यावहारिक कदम है जिसके पश्चात पत्रकार वीजा बहाली की आशा की जा रही है।

सामान्यीकरण की संभावनाओं का समर्थन करने वाले सकारात्मक विकास

  • वृद्धिशील राजनयिक संलग्नता: बार-बार होने वाली WMCC की बैठकें और प्रस्तावित विशेष प्रतिनिधियों की वार्ता संरचित, संघर्ष समाधान की ओर एकमहत्वपूर्ण  कदम को दर्शाती है।
  • पीपुलटूपीपुल संबंधो की पुनर्स्थापना: वीजा और तीर्थयात्रा को फिर से प्रारंभ करने से सॉफ्ट डिप्लोमेसी को बढ़ावा मिलता है।
  • आर्थिक अंतरनिर्भरता दबाव: क्रिटिकल मिनरल पर चीन के निर्यात प्रतिबंध और भारत के FDI प्रतिबंधों ने पारस्परिक आर्थिक असुविधा उत्पन्न कर दी है, जिससे दोनों पक्षों को समझौता करने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
  • अपेक्षित SCO यात्रा (अगस्त 2025): इस यात्रा की तैयारियां संबंधों को स्थिर करने के लिए उच्च-स्तरीय प्रतिबद्धता जारी रखने का संकेत देती हैं।
  • कार्यात्मक पृथक्करण दृष्टिकोण: ऐसा प्रतीत होता है कि भारत संबंधों में पूर्ण गतिरोध की स्थिति से बचने के लिए सीमा विवाद को व्यापार और कूटनीति से हल करना चाह रहा है।

पूर्ण सामान्यीकरण में बाधा डालने वाली शेष चिंताएँ

  • LAC उल्लंघनों का कोई समाधान नहीं: यह न तो स्पष्ट हो सका है कि वर्ष 2020 में चीनी PLA द्वारा उल्लंघन क्यों किया गया, और न ही भविष्य में ऐसे अतिक्रमण न होने का कोई आश्वासन चीन की ओर से प्राप्त हुआ है। 
  • तनाव अभी भी जारी है: सैनिकों की उपस्थिति, सैन्य बुनियादी ढाँचे और गश्ती अधिकारों की कमी की समस्या अभी भी अनसुलझी है, जबकि सरकार का दावा है कि सीमा पर शांति, सामान्यीकरण के लिए एक पूर्व शर्त है।
  • पारदर्शिता और विश्वास का अभाव: भारत को चीन से विश्वसनीय गारंटी नहीं मिली है, और वर्ष 2020 से पूर्व की सीमा स्थिति को बहाल करने की व्यवस्था अभी भी रुकी हुई है।
  • पाकिस्तान के साथ रणनीतिक गठबंधन: ऑपरेशन सिंदूर से PLA-पाकिस्तान सहयोग के बारे में हुए खुलासे भारत के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी बड़ी चिंता उत्पन्न करते हैं।
  • मुख्य मुद्दों पर चुप्पी: दोनों देश गलवान और व्यापक LAC चिंताओं पर प्रत्यक्ष सार्वजनिक बातचीत से बच रहे हैं, जिससे स्थायी विश्वास के बिना सतही सामान्यीकरण का जोखिम उत्पन्न हो रहा है।

निष्कर्ष

हालिया कूटनीतिक प्रयास यद्यपि संवाद की दिशा में एक सकारात्मक मार्ग प्रशस्त करते हैं, किंतु भारत-चीन संबंधों का स्थायी एवं पूर्ण सामान्यीकरण मुख्यतः मूलभूत विषयों — विशेष रूप से वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर शांति और यथास्थिति की पुनर्स्थापना में ठोस प्रगति पर निर्भर करता है। भारत के लिए आवश्यक है कि वह एक विवेकपूर्ण, हित-आधारित तथा दीर्घदर्शी दृष्टिकोण अपनाए, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि सीमित सहयोग दीर्घकालिक रणनीतिक हितों, राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता से समझौते की कीमत पर न हो।

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