प्रश्न की मुख्य माँग
- बताइए कि भारत में सहमति की उपयुक्त आयु निर्धारित करना स्वाभाविक रूप से जटिल क्यों है।
- सीमा को कम करने/पुनर्परिभाषित करने में ने वाले जोखिम और शेष चिंताओं का उल्लेख कीजिये।
- बाल संरक्षण और किशोर अधिकारों के बीच संतुलन बनाने के लिए एक संतुलित मार्ग सुझाइए।
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उत्तर
भारत में वर्तमान कानूनी व्यवस्था (POCSO अधिनियम, 2012; BNS) सहमति की आयु (ऐज ऑफ कंसेंट) 18 वर्ष निर्धारित करती है, जिससे इसके नीचे का कोई भी यौन व्यवहार आपराधिक माना जाता है। परंतु न्यायालयों, अधिकार कार्यकर्ताओं और नीति निर्माताओं के समक्ष यह वास्तविकता बार-बार सामने आती है कि अधिकांश मामले 16–18 वर्ष के किशोरों के बीच सहमति से हुए संबंधों के होते हैं, जिन्हें अपराधी के रूप में अभियुक्त बनाया जाता है। इस कारण बाल संरक्षण और किशोर स्वायत्तता के बीच संघर्ष उत्पन्न होता है, जिसके समाधान हेतु सीमित छूट और न्यायालयीन विवेक की आवश्यकता पर बल दिया जा रहा है।
भारत में ‘उपयुक्त’ सहमति की आयु निर्धारित करना, स्वाभाविक रूप से जटिल क्यों है?
- एकरूपी कानून बनाम किशोरों की अलग–अलग परिपक्वता: 18 वर्ष की एकल सीमा 16-18 आयु वर्ग की विविध मानसिक परिपक्वता को नजरंदाज कर देती है।
- उदाहरण: POCSO की धारा 2(d) के तहत, 16 वर्षीय को भी ‘बालक’ माना जाता है, इसलिए उसकी सहमति कानूनी रूप से अप्रासंगिक हो जाती है।
- संरक्षण की मंशा बनाम सहमति से बने संबंधों का दंडकरण: शोषण को रोकने के लिए बनाए गए कानूनों का उपयोग किशोरों के सहमति आधारित संबंधों के विरुद्ध होने लगा है।
- विधि आयोग की सावधानी बनाम न्यायालयों की व्यावहारिकता: नीति निर्माता आयु-सीमा को कम करने से बचते हैं,परंतु न्यायालय कुछ मामलों में विवेक का प्रयोग करते हैं।
- उदाहरण: विधि आयोग (2023) ने आयु में परिवर्तन का विरोध किया, परंतु सहमति से बने 16-18 आयु वर्ग के मामलों में सजा में छूट हेतु “निर्देशित न्यायिक विवेक” की संस्तुति की।
- सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता एकरूपता को जटिल बनाती है: विभिन्न समुदाय किशोर यौनिकता, विवाह और स्वायत्तता को अलग-अलग दृष्टिकोण से देखते हैं, जिससे एक समान सीमा अप्रभावी हो जाती है।
- उदाहरण: मद्रास उच्च न्यायालय (विजयलक्ष्मी बनाम राज्य, 2021) ने 5 वर्ष से कम आयु अंतर की सहमति वाले संबंधों को अपवाद मानने का सुझाव दिया।
सीमा को कम करने/पुनर्परिभाषित करने में जोखिम और शेष चिंताएँ
- दबाव को सहमति के रूप में प्रस्तुत करने की संभावना: छूट का दुरुपयोग बड़े उम्र के साथी या परिवार, शोषण को वैध ठहराने हेतु कर सकते हैं।
- उदाहरण: मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा 5 वर्ष की आयु-अंतर की सीमा का उद्देश्य बड़े उम्र के साथियों या परिवार वालों द्वारा किये जाने वाले शोषण को रोकना था।
- कार्यान्वयन विषमताएं: विवेक-आधारित समाधानों से असमान न्यायिक परिणाम और स्थानीय पूर्वाग्रह का खतरा रहता है।
- POCSO के सुरक्षात्मक मूल को कमजोर करना: अपवाद बनाते समय पीड़ित-केंद्रित और सख्त दायित्व की प्रकृति को क्षति नहीं पहुँचनी चाहिए।
- परिवार/समुदाय द्वारा दुरूपयोग: परिवार, अंतरजातीय/अंतरधार्मिक किशोर संबंधों को रोकने हेतु POSCO का उपयोग कर सकते हैं।
- प्रशासन एवं पुलिस का बोझ: “सहमति” से बनाये गये संबंध और “शोषणकारी” संबंध में अंतर स्थापित करने के लिए प्रशिक्षित जाँचकर्ताओं, बाल मनोवैज्ञानिकों और स्पष्ट साक्ष्य मानकों की आवश्यकता होगी।
- उदाहरण: विधि आयोग का “निर्देशित विवेक” (Guided Discretion) मॉडल ऐसी क्षमता की कल्पना करता है जिसका कई ट्रॉयल न्यायालयों में अभाव है।
बाल संरक्षण और किशोर अधिकारों के बीच संतुलन बनाने का एक सुनियोजित मार्ग
- जबरदस्ती, धोखे, शक्ति के दुरूपयोग पर कठोर दंड बनाए रखना: जहाँ बल, अधिकार, तस्करी, या विवाह के लिए जबरदस्ती की जा रही हो, वहां POCSO की सख्ती को बनाए रखना चाहिए।
- स्पष्ट परीक्षण के साथ ‘निर्देशित न्यायिक विवेक’ को क्रियान्वित करना: विधि आयोग (2023) की संस्तुति को स्पष्ट वैधानिक मानदंडों (आयु-अंतर, स्वैच्छिकता, डर का अभाव) में बदलना चाहिए।
- अनिवार्य, किशोर कानूनी-साक्षरता मॉड्यूल: स्कूलों और युवाओं के कार्यक्रमों में POCSO/BNS जागरूकता, सहमति शिक्षा और डिजिटल सुरक्षा को एकीकृत करना चाहिए।
- उदाहरण: किशोरों को कानून और उसके परिणामों के बारे में शिक्षित करने की आवश्यकता है।
- स्वतंत्र समीक्षा एवं निगरानी तंत्र: 16-18 वर्ष के बच्चों से संबंधित POCSO अभियोजनों का ऑडिट करने, परिणामों पर नजर रखने और सुधार की सिफारिश करने के लिए एक वैधानिक निरीक्षण निकाय की स्थापना करनी चाहिए।
निष्कर्ष
भारत की चुनौती संरक्षण को समाप्त करना नहीं, बल्कि सहमति आधारित किशोर संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करना है।16–18 वर्ष की आयु के किशोरों के लिए संकीर्ण, मानदंड-आधारित अपवाद, न्यायिक विवेकाधिकार का विवेकपूर्ण उपयोग तथा शोषण के मामलों में कठोर दंड का यथावत् बने रहना — इन सबके माध्यम से कानून को विकासात्मक विज्ञान, संवैधानिक स्वायत्तता और POCSO अधिनियम की संरक्षणात्मक भावना के अनुरूप बनाया जा सकता है।अंतिम उद्देश्य संरक्षण होना चाहिए न कि उत्पीड़न।
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