प्रश्न की मुख्य माँग
- पारंपरिक चिकित्सा (AYUSH) और साक्ष्य-आधारित आधुनिक स्वास्थ्य सेवा के बीच बहस और तनाव का कारण।
- AYUSH डॉक्टरों को एकीकृत करने की कानूनी, शैक्षिक और नैतिक चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।
- आगे की राह लिखिए।
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उत्तर
भारत की पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों (AYUSH) को जन-विश्वास और औपचारिक सरकारी मान्यता प्राप्त है, फिर भी आधुनिक चिकित्सा के साथ उनका एकीकरण विवाद का विषय बना हुआ है। मूल विवाद मरीजों की सुरक्षा, कानूनी दायरे और वैज्ञानिक वैधता पर केंद्रित है, विशेषकर जब AYUSH चिकित्सक MBBS डॉक्टरों के समकक्ष अधिकार माँगते हैं।
पारंपरिक चिकित्सा (AYUSH) और साक्ष्य-आधारित आधुनिक स्वास्थ्य सेवा के बीच बहस और तनाव के पीछे के कारण
- दार्शनिक और वैज्ञानिक भिन्नता: आयुर्वेद, यूनानी और सिद्ध चिकित्सा पद्धतियाँ दोष और प्रकृति जैसी अवधारणाओं पर निर्भर करती हैं, जो मूल रूप से आधुनिक चिकित्सा के अनुभवजन्य, रोगाणु सिद्धांत-आधारित दृष्टिकोण से भिन्न हैं, जिससे इनका एकीकरण कठिन हो जाता है।
- जन स्वास्थ्य और सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: आयुष चिकित्सकों द्वारा MBBS-समकक्ष प्रशिक्षण के बिना एलोपैथिक दवाओं का पर्चा लिखने और सर्जरी करने के कानूनी अधिकार की माँग करने से मरीजों की सुरक्षा संबंधी गंभीर चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
- कानूनी अस्पष्टता और राज्य की नीतियाँ: सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रोक के बावजूद, कुछ राज्य औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियम, 1945 के नियम 2(ee) का उपयोग कर आयुष चिकित्सकों को आधुनिक औषधियों का पर्चा लिखने की अनुमति दे रहे हैं, जिससे यह बहस और बढ़ रही है।
- पेशागत संघर्ष और चिकित्सीय पहचान: आयुष चिकित्सकों द्वारा ‘डॉक्टर’ उपाधि का प्रयोग करने तथा MBBS-आरक्षित कर्तव्यों का पालन करने से संबंधित विवादों ने मुकदमेबाजी तथा उपभोक्ता शिकायतों को बढ़ावा दिया है।
आयुष डॉक्टरों को मुख्यधारा की स्वास्थ्य सेवा में शामिल करने की कानूनी, शैक्षिक और नैतिक चुनौतियाँ
कानूनी चुनौतियाँ
- सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों का उल्लंघन: डॉ. मुख्तियार चंद एवं अन्य बनाम पंजाब राज्य एवं अन्य (1998) जैसे स्पष्ट निर्णयों में क्रॉस-प्रैक्टिस पर रोक के बावजूद राज्यों द्वारा जारी आदेशों से भ्रम और मुकदमेबाजी बढ़ती है।
- शल्य चिकित्सा अधिकार पर विवाद: आयुष स्नातकोत्तरों को कुछ छोटी शल्य चिकित्सा करने की अनुमति देने वाली हाल की सरकारी अधिसूचनाओं को सुरक्षा और क्षमता संबंधित चिंताओं के कारण चुनौती दी जा रही है।
शैक्षिक चुनौतियाँ
- असंगत पाठ्यक्रम: AYUSH पाठ्यक्रम, पारंपरिक दर्शन और सीमित आधुनिक विज्ञान मिश्रण से बने हैं, जबकि MBBS में व्यवस्थित, साक्ष्य आधारित प्रशिक्षण होता है, जिसके कारण नैदानिक निदान और आपातकालीन प्रबंधन में कौशल अंतराल उत्पन्न हो जाता है।
- संस्थागत क्षमता की कमी: कई AYUSH कॉलेज अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे और शिक्षकों की कमी की समस्या का सामना कर रहे हैं, जहाँ शिक्षण की गुणवत्ता असंगत है और लगभग आधे शिक्षण पद रिक्त हैं।
नैतिक चुनौतियाँ
- रोगियों से पारदर्शिता का अभाव: रोगियों को अक्सर AYUSH चिकित्सकों की योग्यता या कार्यक्षेत्र के बारे में स्पष्ट रूप से जानकारी नहीं दी जाती है, जिससे भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है, विशेष रूप से मिश्रित या सरकारी स्वास्थ्य देखभाल परिवेश में।
- रेफरल और जवाबदेही तंत्र का अभाव: रेफरल या जवाबदेही के लिए कोई स्पष्ट प्रोटोकॉल न होने से अधूरा उपचार या अति उपचार का जोखिम हो सकता है।
- कम योग्यता वाले मध्यक्षेपों से नुकसान का जोखिम: कम योग्यता वाले चिकित्सकों को उच्च जोखिम वाली प्रक्रियाएँ करने या ऐसी दवाएँ लिखने की अनुमति देना, जिनके लिए वे प्रशिक्षित नहीं हैं, अनहित-अवरोध व न्याय संबंधी चिंताएं उत्पन्न करता है।
आगे की राह
- स्पष्ट प्रैक्टिस सीमाएँ परिभाषित करना: AYUSH और आधुनिक चिकित्सा के लिए कानूनी रूप से प्रैक्टिस का दायरा तय कर, अस्पतालों व क्लीनिकों में स्पष्ट संकेतक और रोगी सूचना अनिवार्य करना चाहिए।
- प्रोटोकॉल-आधारित सहयोग: प्राथमिक चिकित्सा, जीवन शैली रोग प्रबंधन आदि में दोनों प्रणालियों की शक्तियों को जोड़ने हेतु साक्ष्य-आधारित रेफरल और सह-प्रबंधन प्रोटोकॉल बनाना चाहिए।
- AYUSH शिक्षा और विनियमन को सुदृढ़ करना: आधुनिक चिकित्सा प्रशिक्षण की कठोरता के अनुरूप आयुष शिक्षा, संकाय और बुनियादी ढाँचे को उन्नत करना चाहिए।
- साक्ष्य-सृजन और अनुसंधान को प्रोत्साहित करना: प्रत्यक्ष रूप से सार्वजनिक निधि का उपयोग महत्त्वपूर्ण AYUSH अनुसंधान, नैदानिक परीक्षणों और सुरक्षा निगरानी हेतु किया जाए, ताकि प्रमाणित पद्धतियों को सार्वजनिक स्वास्थ्य तंत्र में एकीकृत किया जा सके।
- रोगी-केन्द्रित पारदर्शिता और विकल्प: यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रोगियों को चिकित्सकों की प्रणालियों और योग्यताओं के बारे में जानकारी दी जाए, ताकि वे सूचित उपचार विकल्प चुन सकें।
निष्कर्ष
AYUSH और आधुनिक चिकित्सा का संतुलन रोगी सुरक्षा और वैज्ञानिक साक्ष्य को प्राथमिकता देकर ही संभव है। पारंपरिक प्रणालियों को रोग-निवारक और जीवन शैली प्रबंधन पर केंद्रित रखना चाहिए, जबकि नैदानिक और शल्य हस्तक्षेप पर सख्त नियमन आवश्यक है। प्रमाण-आधारित दृष्टिकोण से सार्वजनिक स्वास्थ्य को सुरक्षित रखते हुए AYUSH की भूमिका को प्रभावी बनाया जा सकता है।
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