प्रश्न की मुख्य माँग
- भारतीय वास्तुकला को समृद्ध बनाने में चोल राजवंश के महत्त्व पर चर्चा कीजिए।
- प्रशासनिक कौशल के प्रदर्शन में चोल राजवंश के महत्त्व पर चर्चा कीजिए।
|
उत्तर
राजराजा एवं राजेंद्र चोल प्रथम के अधीन चोल राजवंश वास्तुकला तथा प्रशासन में उत्कृष्ट था। उनके 1,000 वर्ष पुराने मंदिर एवं समुद्री विरासत उन्नत डिजाइन तथा शासन की क्षमता को प्रदर्शित करते हैं, जो आज भी आधुनिक भारत को प्रेरित करते हैं।
भारतीय वास्तुकला को समृद्ध बनाने में चोल राजवंश का महत्त्व
- स्मारकीय मंदिर: चोलों ने भारत के कुछ सबसे भव्य मंदिरों का निर्माण करवाया, जैसे- तंजावुर में बृहदेश्वर मंदिर एवं गंगईकोंडा चोलपुरम्।
- उदाहरण: द्रविड़ वास्तुकला यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है, जो अपने पैमाने, सटीकता एवं कलात्मक प्रतिभा के लिए उल्लेखनीय है।
- अभियांत्रिकी चमत्कार: गंगईकोंड चोलपुरम् जैसे चोल मंदिर, जिनका 180 फीट ऊँचा विमान 80 टन के पत्थर से बना है, एक सहस्राब्दी से खड़े हैं, जो भूकंप एवं क्षय के प्रति लचीलेपन का उदाहरण हैं।
- मूर्तिकला उत्कृष्टता: चोलों ने उत्कृष्ट कांस्य एवं पत्थर की मूर्तियों, विशेष रूप से नटराज जैसे शिव के चित्रण को प्रमुखता दी। मंदिर की दीवारों तथा स्तंभों पर उनकी विस्तृत नक्काशी एवं कलात्मकता ने भारतीय कला के लिए नए मानक स्थापित किए।
- संरचनात्मक नवाचार: स्तंभयुक्त हॉल (मंडप), परिष्कृत ज्यामितीय लेआउट एवं मंदिर परिसरों में कई मंदिरों के एकीकरण जैसे नवाचार उनके शासनकाल के दौरान लोकप्रिय हुए तथा बाद के दक्षिण भारतीय मंदिर वास्तुकला को प्रभावित किया।
- कला एवं उपयोगिता का एकीकरण: चोल मंदिर न केवल पूजा स्थल थे, बल्कि शिक्षा, कला एवं स्थानीय प्रशासन के केंद्र के रूप में भी कार्य करते थे, जो राजवंश द्वारा उपयोगिता को आध्यात्मिकता तथा सौंदर्यशास्त्र के साथ एकीकृत करने पर जोर देने को दर्शाता है।
प्रशासनिक कौशल के प्रदर्शन में चोल राजवंश का महत्त्व
- स्थानीय स्वशासन: चोलों ने कुदावोलाई मतपत्र प्रणाली एवं ग्राम सभाओं (सभा, उर) के माध्यम से प्रारंभिक लोकतंत्र की शुरुआत की, जैसा कि उत्तरमेरुर शिलालेखों में देखा जा सकता है, जिससे आधुनिक लोकतंत्रों से सदियों पहले प्रशासन, राजस्व तथा न्याय में स्थानीय स्वायत्तता संभव हुई।
- परिष्कृत अभिलेख-पालन एवं राजस्व प्रणाली: चोलों ने कर एवं भू-राजस्व के लिए सावधानीपूर्वक भूमि सर्वेक्षण तथा अभिलेख पालन लागू किया, जिनमें से कई शिलालेखों एवं ताम्रपत्रों के रूप में मौजूद हैं। उनके कुशल राजस्व संग्रह ने निरंतर सार्वजनिक कार्यों तथा सामाजिक कल्याण को संभव बनाया।
- जल प्रबंधन एवं सिंचाई: चोलों ने समितियों द्वारा समर्थित एवं सिंचाई एवं मत्स्य पालन करों से वित्तपोषित चोलगंगम् जैसे तालाबों, जलाशयों, नहरों तथा जलसेतुओं का एक व्यापक नेटवर्क स्थापित किया, जो उन्नत जल प्रबंधन को दर्शाता है।
- लोक निर्माण में निवेश: चोलों ने बुनियादी ढाँचे (सड़कों, पुलों, अन्न भंडारों, सार्वजनिक भवनों एवं शहरी नियोजन) में भारी निवेश किया, जिससे व्यापार, गतिशीलता तथा शहरीकरण को लाभ हुआ।
- विकेंद्रीकृत किंतु सशक्त केंद्रीय सत्ता: जहाँ ग्राम सभाएँ स्थानीय मामलों का प्रबंधन करती थीं, वहीं राजा एवं मंत्रिपरिषद साम्राज्य के व्यापक हितों का संचालन करते थे, केंद्रीकरण तथा जीवंत स्थानीय स्वशासन के बीच संतुलन बनाते थे। इस मिश्रित मॉडल ने स्थिरता एवं स्थानीय भागीदारी, दोनों को बढ़ावा दिया।
निष्कर्ष
चोल राजवंश ने कलात्मक प्रतिभा को दूरदर्शी शासन के साथ मिश्रित किया, जिससे भव्य मंदिरों, विकेंद्रीकृत प्रशासन एवं सतत् विकास की स्थायी विरासतें मिलीं, जो आधुनिक भारत के लिए वास्तुकला, शासन तथा पर्यावरण प्रबंधन में शाश्वत शिक्षाएँ प्रदान करती हैं।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Latest Comments