Q. भारत के औपचारिक क्षेत्र में बढ़ती ‘संविदाकरण’ प्रक्रिया लचीलेपन की बजाय एक गहरी संरचनात्मक कमजोरी को दर्शाती है। इस कथन के आलोक में, श्रम अधिकारों और दीर्घकालिक आर्थिक विकास पर संविदाकरण के प्रभाव का परीक्षण कीजिए। सार्थक औपचारिककरण को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत सुधारों का सुझाव दीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • श्रम अधिकारों और दीर्घकालिक आर्थिक विकास पर संविदाकरण के सकारात्मक प्रभाव पर चर्चा कीजिए।
  • श्रम अधिकारों और दीर्घकालिक आर्थिक विकास पर संविदाकरण की चुनौतियों का उल्लेख कीजिए।
  • आवश्यक नीतिगत सुधार बताइए।

उत्तर

भारत का औपचारिक विनिर्माण क्षेत्र तेजी से संविदाकरण की ओर बढ़ रहा है, जो वास्तविक कौशल-आधारित लचीलेपन के बजाय लागत में कटौती से अधिक प्रेरित है। यह प्रवृत्ति श्रम अधिकारों को कमजोर करती है, वेतन को कम करती है और विशेषकर लघु एवं मध्यम उद्योग में दीर्घकालिक उत्पादकता को नुकसान पहुँचाती है, जिससे विकास मॉडल की गहन संरचनात्मक कमियाँ उजागर होती हैं।

श्रम अधिकारों और दीर्घकालिक आर्थिक विकास पर संविदाकरण का सकारात्मक प्रभाव

यद्यपि इसे सामान्यतः चुनौती के रूप में देखा जाता है, फिर भी कुछ संदर्भों में संविदाकरण के कुछ लाभ हो सकते हैं:-

  • परिचालन संबंधी लचीलापन: यह फर्मों को बाजार में उतार-चढ़ाव के अनुसार अपने कार्यबल को शीघ्रता से बढ़ाने या घटाने की सुविधा प्रदान करता है, जिससे उन्हें प्रतिस्पर्द्धी बने रहने में मदद मिलती है।
    • उदाहरण: संविदाकृत श्रम आर्थिक मंदी के समय एक बफर के रूप में कार्य करता है तथा स्थायी कर्मचारियों की बड़े पैमाने पर छँटनी को रोकता है।
  • विशिष्ट कौशल तक पहुँच: यह फर्मों को बिना किसी दीर्घकालिक प्रतिबद्धता के अल्प अवधि के लिए विशिष्ट, परियोजना-विशिष्ट कौशल वाले श्रमिकों को नियुक्त करने में सक्षम बनाता है।
    • उदाहरण: उच्च-कौशल CLI (अनुबंध श्रम-गहन) उद्यमों ने निम्न कौशल समकक्ष की तुलना में 5% अधिक उत्पादकता दर्ज की।
  • कुछ क्षेत्रों में लागत दक्षता: विशेषकर बड़े पूँजी-प्रधान उद्यमों में  संविदाकरण से होने वाली लागत बचत को अनुसंधान एवं विकास तथा पूँजी विस्तार में लगाया जा सकता है।
  • कुछ श्रमिकों के लिए औपचारिक रोजगार में प्रवेश को सुगम बनाना: कुछ मामलों में, यह अनौपचारिक श्रमिकों के लिए औपचारिक अर्थव्यवस्था में प्रवेश को सुगम बनाती है, हालाँकि इसके लाभ सीमित होते हैं।

श्रम अधिकारों और दीर्घकालिक आर्थिक विकास पर संविदाकरण की चुनौतियाँ

  • श्रम अधिकारों का ह्रास: औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के तहत अनुबंधित श्रमिकों को मूल श्रम सुरक्षा से बाहर रखा गया है तथा उनकी कमजोर सौदेबाजी शक्ति के कारण उन्हें मनमाने ढंग से बर्खास्तगी और शोषण का शिकार होना पड़ता है।
  • वेतन में कमी: वर्ष 2018-19 में, संविदाकर्मियों ने नियमित कर्मचारियों की तुलना में 14.47% कम आय अर्जित की, बड़े उद्यमों में यह अंतर बढ़कर 31% हो गया।
  • उत्पादकता में कमी: CLI उद्यमों में नियमित श्रम-गहन (RLI) उद्यमों की तुलना में श्रम उत्पादकता 31% कम थी, छोटी फर्मों (<100 श्रमिक) में उत्पादकता अंतर सबसे अधिक 36% और श्रम-गहन उद्यमों में 42% था।
  • उच्च श्रम कारोबार और कौशल क्षरण: अल्पकालिक अनुबंध नियोक्ताओं को श्रमिक प्रशिक्षण और कौशल विकास में निवेश करने से हतोत्साहित करते हैं, जिससे नवाचार क्षमता और दीर्घकालिक उत्पादकता वृद्धि सीमित हो जाती है।
  • प्रिंसिपल-एजेंट समस्या: थर्ड पार्टी के ठेकेदार नियोक्ताओं के दीर्घकालिक उत्पादकता लक्ष्यों के साथ संरेखित नहीं होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप नैतिक जोखिम के मुद्दे उत्पन्न होते हैं, जैसे कि कर्मचारी द्वारा कार्य में मनमानी करना।
  • औपचारिक क्षेत्र के भीतर बढ़ता अनौपचारिकीकरण: विनिर्माण क्षेत्र में संविदाकर्मियों की हिस्सेदारी वर्ष 1999-2000 में 20% से बढ़कर 2022-23 में 40.7% हो गई है, जो गहन संरचनात्मक कमजोरियों का संकेत है।

सार्थक औपचारिकता को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत सुधार

  • PMRPY को पुनः प्रारंभ और विस्तारित करना: प्रधानमंत्री रोजगार प्रोत्साहन योजना को पुनः लागू करना चाहिए, जो EPS और EPF में नियोक्ता के योगदान को वित्तपोषित और नियमित रोजगार को प्रोत्साहित करती है।
  • प्रत्यक्ष फिक्सडटर्म अनुबंधों को बढ़ावा देना: शोषण को कम करने के लिए प्रत्यक्ष रूप से (थर्ड पार्टी के ठेकेदारों के बिना) फिक्सड-टर्म अनुबंधों की अनुमति देते हुए औद्योगिक संबंधों पर 2020 श्रम संहिता को लागू करना चाहिए।
  • लाभ के साथ लंबी अवधि के अनुबंध: सामाजिक सुरक्षा योगदान में सब्सिडी देकर और सरकारी कौशल कार्यक्रमों के साथ जोड़कर फर्मों को यथोचित रूप से लंबी अवधि के निश्चित अनुबंधों की पेशकश करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए
  • सभी श्रमिकों के लिए लक्षित सामाजिक सुरक्षा: अनुबंध के प्रकार की परवाह किए बिना, EPS/EPF और अन्य वैधानिक लाभों तक सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करनी चाहिए।
  • कौशल विकास एवं कॅरियर प्रगति को बढ़ावा देना: दीर्घकालिक कौशल क्षमता निर्माण के लिए संविदा रोजगार को संरचित प्रशिक्षण कार्यक्रमों से जोड़ना चाहिए।
  • उच्च-कौशल और पूँजी-प्रधान उपयोग को प्रोत्साहित करना: केवल उच्च-कौशल या पूँजी-प्रधान भूमिकाओं में ही संविदाकरण को प्रोत्साहित करना चाहिए, जहाँ उत्पादकता लाभ स्पष्ट हो, जबकि कम कौशल श्रम-प्रधान उद्योगों में इसे हतोत्साहित करना चाहिए।

निष्कर्ष

भारत के औपचारिक क्षेत्र में संविदाकरण प्रथा के बढ़ने से श्रमिकों के कम वेतन और कम कौशल वाली नौकरियों में फँसने, श्रम अधिकारों के हनन और उत्पादकता में कमी का खतरा है। हालाँकि कुछ उच्च कौशल वाली, पूँजी-प्रधान फर्मों को इससे लाभ होता है, लेकिन अधिकांश उद्यमों की स्थिति खराब ही रहती है। विनिर्माण-आधारित विकास को गति देने के लिए लंबी अवधि के फिक्स्ड टर्म अनुबंधों, प्रधानमंत्री ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (PMRPY), सामाजिक सुरक्षा कवरेज और एकीकृत कौशल विकास जैसी योजनाओं के माध्यम से औपचारिकता को बढ़ावा देना अति आवश्यक है।

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